मोठ की फसल दाना, हरा चारा, हरी सब्जी, हरी खाद, तथा वनस्पतिक प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है। इसको दाल के रूप में खाया जाता है तथा इसको मोठ व पापड़ के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। यही कारण है कि अब मोठ की फसल एक औधोगिक फसल का दर्जा प्राप्त कर चुकी है। मोठ के लिए 150-250 मिमी. वर्षा वाले क्षेत्र, जहाँ प्रचुर मात्रा में प्रकाश एवं कम नमी वाली भूमि उपलब्ध हो, बहुत उपयोगी पाये गये है।
पश्चिम राजस्थान में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में मोठ प्रमुख फसल है । इसमें सूखा सहन करने की क्षमता अन्य दलहन फसलों की अपेक्षा अधिक होती है । इसकी जड़ें अधिक गहराई तक जाकर भूमि से नमी प्राप्त कर लेती हैं ।मोठ फसल के क्षेत्र और उत्पादन में राजस्थान अग्रणीय राज्य है। राजस्थान के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र और जम्मू कश्मीर में भी मोठ की खेती प्रचलन में है। भारत के अन्य वर्षा आश्रित क्षेत्रों और कम उपजाऊ जमीनों में भी मोठ की खेती आसानी से की जा सकती है। मोठ फसल की औसत उपज काफी कम है।मोठ की औसत उपज 338 किला ग्राम प्रति हैक्टेयर के लगभग है । उन्नत तकनीकों द्वारा खेती करने पर 25 से 60 प्रतिशत तक अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है ।
मोठ या मटकी एक प्रकार की दाल है जो अन्य दालों की तुलना में ज्यादा प्रोटीन तत्वों से भरपूर होती है। इसके अलावा इसमें कैल्शियम और फाइबर की भरपूर मात्रा पाई जाती है। मोठ दाल विटामिन्स और मिनरल्स का भी अच्छा स्त्रोत है। इस दाल को स्प्राउट के रूप में खाने से शरीर में कई पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है और शरीर को ऊर्जा मिलती है।
मोठ की अच्छी उपज के लिए खेत में 1लाख पौधे स्थापित होना चाहिए .खेत में वांछित पौधों की संख्या के लिये 6 से 8 किलो बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है. बीज की बुआई पंक्तिओं में 45 सेमी. की दूरी पर करना चाहिए। बीज बोने की गहराई 3-4 सेमी से ज्यादा न रखें।
मोठ खरीफ ऋतु की दलहनी फसल है। इसकी खेती समस्या ग्रस्त भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है।परन्तु अच्छे जल निकास वाली हल्की बलुई दोमट मिटटी मोठ की खेती के लिये सर्वोत्तम होती है। मोठ के बीजों का आकार छोटा होने के कारण ढेलेरहित मृदा की जरूरत होती है। वर्षा होने पर मोठ फसल हेतु भूमि को आवश्यकतानुसार एक-दो बार हैरो से जूताई करने के बाद पाटा लगाकर भूमि को समतल कर लेना चाहिए।इसके लिए खेत की तैयारी के समय 2.5 टन गोबर या कंपोस्ट खाद की मात्रा भूमि में अच्छी प्रकार से मिला देनी चाहिए। बुवाई से पहले 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर को 1 लीटर पानी व 250 ग्राम गुड़ के घोल में मिलाकर बीज को उपचारित कर छाया सुखाकर बोना चाहिए।
उन्नत किस्मों के बीज का इस्तेमाल :-मोठ की अधिकतम उपज के लिए अग्र प्रस्तुत किस्मों में उपलब्ध किस्म के बीज की बुआई कर सही शस्य प्रबंधन से अधिकतम उपज ली जा सकती है। 1.आर.ऍम.ओ. 257 :यह किस्म दाना चारा दोनों के लिये उपयुक्त है। यह किस्म 62 -65 दिन में पककर 5 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन देती है। 2.आर.ऍम.ओ. 225 : यह क़िस्म 65 -70 दिन में पक कर औसतन 6-7.5 क्विंटल प्रति दाना उपज देती है।यह किस्म पीत मोजेक विषाणु के लिये प्रतिरोधी है। 3. एफ.एम.एम. 96 :अति शीघ्र पकने वाली यह कम ऊंचाई वाली,सीधी बढ़ने वाली किस्म है जिसमे पकाव एक साथ आता है। यह किस्म 58-60 दिन में पक जाती है और औसतन पैदावार 5-6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आती है। 4. आर.एम.ओ. 40 :कम अवधि ( 55 -60 दिन ) में पकने वाली यह किस्म सूखे से कम प्रभावित होती है। यह सीधी बढ़ने वाली तथा कम ऊंचाई की किस्म है जिसमें पकाव एक ही समय पर आता है। इस किस्म में पीत मोजेक विषाणु के प्रति प्रतिरोधकता है द्य इस किस्म की औसतन पैदावार 6-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। 5. काजरी मोठ-2 :यह किस्म 70-75 दिन में पककर 8-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसत उपज देती है . इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 10 -12 क्विंटल सुखा चारा भी प्राप्त होता है। 6. काजरी मोठ-3 :यह किस्म 65 -70 दिन में पककर 8-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसत उपज देती है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 10 -11 क्विंटल सुखा चारा भी प्राप्त होता है।
एक एकड़ क्षेत्र की बुवाई हेतु 6 से 8 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है।
बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।
मोठ दलहनी फसल होने के कारण इसे नाइट्रोजन की कम मात्रा की आवश्यकता होती है।एक एकड़क्षेत्र के लिए एनपीके का अनुपात 10:20मोठ के लिए समन्वित पोषक प्रबंधन उचित रहता है। यूरिया :- 11किलों प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत मिलाएं और बुवाई के 20 से 25 दिन बाद 11 किलो यूरिया खरपतवार नियंत्रण के बाद टॉप ड्रेसिंग करें । फॉस्फोरस :- 125 किलों एसएसपी प्रति एकड़सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय खेत मिलाएं ।
नमी बनाए रखने के लिए खेत में आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए।
दीमक - पौधों की जड़े काटकर दीमक बहुत नुकसान पहुंचाती है। इससे पौधा कुछ ही दिनों में सूख जाता है। दीमक की रोकथाम के लिए अंतिम जुताई के समय क्लोरोपायरीफॉस पाउडर की 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला देनी चाहिए तथा बीज को बुवाई से पूर्व क्लोरोपाइरीफॉस 20 % ईसी 2 मिली. मात्रा को प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए। जैसिड्स -यह कीट हरे रंग का होता है तथा पौधों की पत्तियों से रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाता है। पत्तियां मुड़ी सी दिखने लगती है। इस कीट के नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस कीआधा लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। फली छेदक - यह कीट फसल केपौधों की पत्तियों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाता है। इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 डब्लू.एस.सी या मेलाथियान 50 ईसी. या क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत पाउडर की 20 से 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव/भुरकाव करना चाहिए। पीला मोजेक विषाणु रोग - यह रोग मोठ की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है। इसमें प्रभावित पत्तियां पूरी तरह से पीली हो जाती है एवं आकार में छोटी रह जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए सफेद मक्खी जिसके द्वारा यह रोग फैलता है का नियंत्रण आवश्यक है। लक्षण दिखाई देते ही डाइमिथोएट 30 ईसी. आधा लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
मोठ की फसल को खरपतवार बहुत हानि पहुंचाते हैं खरपतवार नियंत्रण के लिए बाजार में उपलब्ध पेन्डीमैथालीन ( स्टोम्प ) की 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव कर देना चाहिए । फसल जब 25-30 दिन की हो जाए तो एक गुड़ाई कस्सी से कर देनी चाहिए । यदि मजदूर उपलब्ध न हो तो इसी समय इमेजीथाइपर ( परसूट ) की बाजार में उपलब्ध 750 मि.ली. मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए ।
मिट्टीपलट हल, देशी हल या हैरों,कल्टीवेटर,खुर्पी, फावड़ा आदि यंत्रो की आवश्यकता होती है।