पोदीना की खेती

पोदीना से प्राप्त सुगन्धित तेल और इसमें पाये जाने वाले अन्य अवयवों का उपयोग व्यापक रूप से सौंदर्य प्रसाधनों, विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों को सुगंधित करने, मेन्थोल बनाने, टॉफी बनाने, पान के मसालों को सुगन्धित करने, खांसी, सर्दी- जुकाम, कमर दर्द के लिए मलहम बनाने, उच्च कोटि की शराब को सुगन्धित करने, ग्रीष्मकालीन पेय प्रदार्थ निर्माण आदि के लिए विश्व भर में किया जाता है।


पोदीना

पोदीना उगाने वाले क्षेत्र

उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और बिहार, मध्य प्रदेश में इसकी खेती की जाती है।

पोदीना की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

इस पौधे में अनेक प्रकार के खनिज, कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन आदि भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त विटामिन सी के साथ-साथ विटामिन बी कॉम्प्लेक्स डी तथा ई भी पाए जाते हैं।

बोने की विधि

प्रजनन क्रिया जड़ के भाग या टहनियों द्वारा की जाती है| अच्छी पैदावार के लिए 160 किलो भागों को प्रति एकड़ में प्रयोग करें।फसल को जड़ गलने से बचाने के लिए बिजाई से पहले बीजे जाने वाले उपचार कप्तान 0.25 प्रतिशत या आगालोल 0.3% या बैनलेट 0.1% से 2-3 मिनट के लिए किया जाना चाहिए। पौधे के जड़ वाले भाग को मुख्य खेत में बोया जाता है| बीज को 2-3 सैं.मी. की गहराई में बोयें।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

जापानी पोदीना को मध्यम से भारी मृदाओं में उगाया जा सकता है, परंतु उचित जल निकास वाली रेतीली मिट्टी अच्छी मानी जाती है। भूमि का पीएच मान 6-7 होना चाहिए। अत्याधिक जीवांश पदार्थ वाली भूमि अच्छी उपज के लिए उपयुक्त होती है। मिट्टी में देर तक नमी बनाये रखने वाली, जो कभी-कभी सूख भी सके, वह अधिक उपयोगी होती है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें फिर विपरीत दिशा में दो बार हल चलाना चाहिए। पुराने पौधों की जड़ों और छोटी झाड़ियों को चुनकर निकाल देना चाहिए। फसल को दीमक आदि से बचाने के लिए 25 किलोग्राम लिण्डेन चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में डालना चाहिए।

बीज की किस्में

पोदीना के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

कोसी, शिवालिक, कुशाल, सक्षम, गौमती (एच.वाई.77), हिमालय, एल-11813, संकर 77, ई.सी.41911, आदि।

बीज की जानकारी

पोदीना की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

70 - 75 किग्रा प्रति हैक्टेयर जड़ो की आवश्यकता होती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

पालक के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

पोदीना की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

200-250 कुंतल गोबर या कंपोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर रोपाई से पूर्व खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। नाइट्रोजन 80-100 किलोग्राम, फास्फोरस 50-60 किलोग्राम और पोटाश 50-60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए। एक तिहाई नाइट्रोजन तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व खेत में बिखेरकर मिट्टी में मिला देनी चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा का 2-3 बार खड़ी फसल में प्रयोग करना चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

पोदीना की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

पोदीना की उपज एवं तेल की गुणवत्ता पर सिंचाई का बहुत प्रभाव पड़ता है। अतः सिंचाई उचित समय पर उचित मात्रा में की जानी चाहिए। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करनी चाहिए, क्योंकि पौधों की बढ़वार एवं विकास गर्मियों में होता है। अतः 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। कटाई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए अन्यथा अंकुवें निकलने में बाधा पड़ सकती है। कटाई के एक सप्ताह पूर्व सिंचाई रोक देनी चाहिए। पोदीना में जहां सिंचाई इतनी महत्वपूर्ण है, वहीं ये फसल पानी के ठहराव को सहन करने में असमर्थ है। अतः खेत में जल निकासी की समुचित व्यवस्था का होना नितांत आवश्यक है क्योंकि अधिक समय तक पानी ठहरने के कारण फसल नष्ट हो जाती है।

रोग एवं उपचार

पोदीना की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

(i) पत्ती धब्बा रोग - यह केराइनोस्पोरा कैसीकोला नामक फफूंदी के प्रकोप से होता है। यह रोग पोदीने की पत्तियों की ऊपरी सतह पर भूरे रंग के रूप में लगता है, जिसके चारों और पीले रंग का घेरा बन जाता है। भूरे धब्बों के निर्माण से पत्तियों के अंदर भोजन निर्माण की क्षमता कम हो जाती है, जिससे पौधे की बढ़वार एवं विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पत्तियों में जगह-जगह धब्बों के कारण पत्तियां पीली पड़ कर गिरने लगती हैं। अत्यधिक प्रकोप की अवस्था में पत्तियां गिर जाती हैं। पुरानी पत्तियां पीली होकर पहले और नई पत्तियां बाद में गिर जाती है। इस रोग की रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP, डाइथेन एम 45 या डाइफोलटेन का 0.2 से 0.3 प्रतिशत घोल पानी में मिलाकर 15 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए। (ii) चूर्णिल आसिता - यह एरीसाइफी सिकोरेसियेरस कवक द्वारा होती है। इसके सफेद धब्बे पत्तियों पर दिखाई देते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक का 0.25% का घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए। (iii) जड़ और तना सड़न - इस रोग की रोकथाम के लिए बुवाई के पूर्व स्टोलन को 0.3% मेंकोजेब   75 % WP के घोल में आधे घण्टे तक डुबोकर बोना चाहिए। मेंकोजेब 75% WP 3 किग्रा प्रति हेक्टेयर का घोल बनाकर खेत में बुवाई के पूर्व छिड़कना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

पोदीना की फसल के साथ अनेक खरपतवार उग आते हैं जो पौधों के विकास एवं बढ़वार पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। परीक्षणों से पता चला है कि बुवाई के 30 से 75 दिन बाद और पहली कटाई से 15 से 45 दिन बाद फसल खरपतवारों से मुक्त रहनी चाहिए। अतः खरपतवार की रोकथाम के लिए तीन बार निराई करनी चाहिए। पहली निराई बुवाई के 1 माह बाद, दूसरी 2 माह बाद और तीसरी कटाई के 15 दिन बाद करनी चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों या कल्टीवेटर, खुर्पी, फावड़ा एवंदरांती, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।