मशरुम की खेती

मशरुम का प्रयोग एक सब्ज़ी के रूप में किया जाता है । भारत में मशरुम ने कुछ वर्ष पहले ही प्रसिद्धि प्राप्त करना शुरू की है और अब यह काफी लोकप्रिय हो चुका है। मशरुम काफी पौष्टिक होता है। इसमे प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। मशरुम मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं - बटन मशरुम, ओएस्टर मशरुम और पैडी स्ट्रॉ। मशरुम को एक हवादार कमरे या शेड में उगाया जा सकता है| मशरुम दो प्रकार के हैं - एक जिसे साल भर उगाया जा सकता और दूसरा वह जिसे एक तय मौसम में ही उगाया जा सकता है। मशरुम एक कमरे या शेड में उगाया जा सकता है।


मशरुम

मशरुम उगाने वाले क्षेत्र

महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में भी ओईस्टर मशरूम की कृषि लोकप्रिय हो रही है।

मशरुम की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

 मशरूम एक स्वादिष्ट एवं पौष्टिक आहार है। जिसमें प्रोटीन, खनिज, लवण, विटामिन जैसे पोषक पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। मशरूम की अपनी एक आकर्षक खुशबू होती है जिसके कारण इसे खाने में ज्यादा पसंद किया जाता है। आरंभ में लोग इसे स्वाद के लिए खाते थे किन्तु अब इसे पौष्टिक तत्वों तथा औषधीय उपयोगिता के कारण अब इसे गुणकारी आहार के रुप में खाया जाने लगा है। खुम्बों में पाये जाने वाले प्रोटीन से शाकाहारी लोग अपने भोजन में प्रोटीन की कमी को पूरा कर सकते हैं। खुम्बों में प्रोटीन की मात्रा सब्जियों व फलों की अपेक्षा 20-25 प्रतिशत, चावल से 73 प्रतिशत, गेहूं से 132 प्रतिशत, दूध से 252 प्रतिशत, बंद गोभी से दोगुना, संतरे से चार गुणा व सेब से 12 गुणा अधिक पाई जाती है। मशरूम में कम कैलोरी, कम वसा, कम स्टार्च, कम कोलेस्ट्रॉल होने के कारण मशरूम का आहार उन व्यक्तियों के लिए वरदान है जो मोटापे, मधुमेह, अधिक तनाव व हृदय रोग से पीड़ित हैं ।

बोने की विधि

मशरूम लगाने की सम्पूर्ण जानकारी :- मौसम के आधार पर कम लागत में जो मशरूम की विभिन्न प्रजातियां को लगाने का तरीका इस प्रकार है । व्यापारिक स्तर पर काश्त के लिए सफेद बटन मशरूम, ऑयस्टर या ढींगरी के साथ-साथ दूधिया मशरूम भी लोकप्रिय है । इन खुम्बियों के उत्पादन के लिए भिन्न भिन्न तापमान व नमी की आवश्यकता होती है और इनकी काश्त भी अलग-अलग समय पर की जाती है । कम्पोस्ट बनाने की विधि :- यह निम्न प्रकार से तैयार की जा सकती है । लम्बी विधि :- इस विधि में कम्पोस्ट मिश्रण को बाहर फर्श पर सड़ाया जाता है और दो सप्ताह बाद एक खास कमरे में भर दिया जाता है जिसे चैंबर या टनल के नाम से जाना जाता है । ठंडे स्थानों पर इस चैम्बर के अंदर कम्पोस्ट को गर्म करने के लिए बॉयलर का इस्तेमाल किया जाता है परंतु हमारे यहां कम्पोस्ट के सूक्ष्म जीवियों की क्रिया से काम चल जाता है । चैंबर का फर्श जालीदार होता है तथा उसमें नीचे प्रेशर से ब्लोअर द्वारा हवा फैकी जाती है जो सारे कम्पोस्ट का तापमान एक समान बनाए रखती है जिससे कम्पोस्ट जल्दी तैयार हो जाती है । चैंबर में सात फुट तक कम्पोस्ट भरी जाती है और कम्पोस्ट का तापमान तीन चार घंटों के लिए बॉयलर की भाप द्वारा 58-60 डिग्री सेल्सियस तक किया जाता है ताकि कम्पोस्ट में कीड़े, बीमारियां व सूत्रकृमि नष्ट हो जाए । इसके बाद कम्पोस्ट का तापमान छह-सात दिन 48 डिग्री सेल्सियस रखा जाता है । जब कम्पोस्ट में अमोनिया गैस प्रोटीन में बदल जाती है तब कम्पोस्ट का तापमान कम हो जाता है या फिर ताजी हवा से कम किया जा सकता है । इस विधि से मशरूम उत्पादन लगभग दोगुना हो जाता है । देश में ज्यादातर किसान लम्बी विधि द्वारा खाद तैयार करते हैं क्योकि ज्यादातर किसान छोटे स्तर पर ही मशरूम उत्पादन करते हैं । किसान जब कम्पोस्ट बनाना शुरू करें, जो भी तूड़ा/भूसा/पराल लें वह बारिश में भीगी हुई तथा खराब नहीं होनी चाहिए । कम्पोस्ट बनाने का तरीका :- भूसे को फर्श पर फैलाकर अच्छी तरह भिगों लें, जहां तक हो सके कम्पोस्ट बनाने की जगह पक्की होनी चाहिए, नही तो ईटों को बिछाकर जगह पक्की कर लें ताकि कम्पोस्ट में मिट्टी आदि न मिलें। साफ सुथरी कच्ची जगह भी उपयोग की जा सकती है । भूसे को फर्श पर बिछाकर अच्छी तरह एक दिन (24 घंटे) पानी से भिगोएं। अब इस भीगे हुए भूसे में खाद व अन्य सामान मिलाकर निश्चित अवधि पर पलटाई करें जिसका कार्यक्रम निम्न है । पहला दिन :- गीले भूसे को एक फुट की तह में बिछा देते हैं तथा उसके ऊपर रसायन उर्वरक छह किलोग्राम यूरिया, तीन किलोग्राम सुपर फास्फेट, तीन किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा 15 किलोग्राम गेहूं का छानस बिखेर दें तथा अच्छी तरह मिला दें। इसके बाद पांच फीट ऊंचा, पांच फीट चौड़ा तथा लंबाई सुविधानुसार एक ढ़ेर बना दें। ढ़ेर बनाने के 48 घंटे के अंदर ही तापमान 70-75 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है । छह दिन बाद पहली पलटाई :- ढ़ेर का बाहरी भाग हवा में खुला रहने से सूख जाता है जिससे खाद अच्छी तरह नहीं सड़ता । पलटाई देते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि अंदर का भाग बाहर व बाहर का भाग अंदर आ जाए तथा सूखे भाग पर पानी का हल्का छिड़काव कर दें । इस समय तीन किलोग्राम किसान खाद, 12 किलो यूरिया तथा 15 किलोग्राम चोकर मिला दें व ढेर को दोबारा पहले दिन जैसा बना दें । 10 वें दिन दूसरी पलटाई :-खाद के ढेर के बाहर के एक फुट खाद को अलग निकाल लें तथा इस पर पानी का छिड़काव करके पलटाई करते समय ढेर के बीच में डाल दें । इस पलटाई के समय खाद में पांच किलोग्राम शीरा दस लीटर पानी में मिलाकर ढ़ेर बनाने से पहले ही सारे खाद में अच्छी तरह मिला दें । 13 वें दिन तीसरी पलटाई :- खाद को जैसे दूसरी पलटाई दी थी उसी तरह तीसरी पलटाई देनी चाहिए । बाहर के सूखे भाग पर हल्का पानी जरुर छिड़के। खाद में नमी न तो अधिक और न कम होनी चाहिए। खाद में 30 किलोग्राम जिप्सम मिला लेना चाहिए । ढेर को ठीक उसी तरह से तोड़ना चाहिए जैसे कि 10वें दिन दूसरी पलटाई पर तोड़ा गया और फिर दोबारा से वैसा ही ढेर बना देना चाहिए । 16वें दिन चौथी पलटाई :- कम्पोस्ट के ढेर में पलटाई करें, तथा नमी देखें, नमी ठीक होनी चाहिए । 19वें दिन पांचवी पलटाई :- कम्पोस्ट में पलटाई कर ढ़ेर बना दें । 22वें दिन छठी पलटाई :- पलटाई कर फिर से ढेर बना दें । 25वें दिन सातवीं पलटाई :- पलटाई करें व ढेर फिर से बना दें । 28वें दिन आठवीं पलटाई :- इस दिन कम्पोस्ट का परीक्षण अमोनिया तथा नमी के लिए किया जाता है । नमी की उचित मात्रा की पहचान करने का सबसे आसान तरीका यह है कि थोड़ी सी कम्पोस्ट को मुट्ठी में लेकर हल्का सा दबाएं, पानी की बूंदें अंगुलियों के बीच से बाहर आनी चाहिए, परंतु पानी की धार नहीं बननी चाहिए, यदि पानी की मात्रा आवश्यकता से अधिक है तो कम्पोस्ट के ढेर को खोल कर हवा लगा देनी चाहिए । कम्पोस्ट के ढेर से कम्पोस्ट को सूखें, इसमें अमोनिया गैस की बदबू जैसी की पहली पलटाई के समय आती थी, नहीं होनी चाहिए, यदि रह गई तो एक दिन छोड़ कर एक दो पलटाई करें, जब तक की यह बदबू खत्म नहीं हो जाए । यदि पानी की मात्रा उचित है व अमोनिया गैस की बदबू नहीं है तो कम्पोस्ट तैयार है । कम्पोस्ट में बिजाई (स्पानिंग) :- मशरूम की खेती में प्रयोग होने वाले बीज को मशरूम का बीज (स्पान) कहते हैं । अच्छी पैदावार लेने के लिए बीज शुद्ध व अच्छी किस्म का होना चाहिए । मशरूम के बीज में चिपचिपापन अथवा बदबू नहीं होनी चाहिए । अनाज के हर दाने पर मशरूम के कवक का सफेद जाला होना चाहिए । बीच में किसी प्रकार से सड़ने जैसी गंध नहीं आनी चाहिए । थैलों में किसी प्रकार का द्रव्य रिसाव नहीं होना चाहिए ।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

केसिंग मिश्रण :- खाद में जब स्पान पूरी तरह फैल जाए तो उसके ऊपर मिट्टी तथा धान के छिलके की राख या अन्य किसी मिश्रण की डेढ़ इंच की एक परत बिछाई जाती है जिसको हम केसिंग कहते हैं । केसिंग मशरूम की वानस्पतिक वृद्धि में सहायक होती है, यदि केसिंग न की जाए तो बहुत की कम मात्रा में मशरूम निकलते हैं । केसिंग के बाद में नमी बनी रहती है जो मशरूम के बनने के लिए आवश्यक है । केसिंग मिश्रण कैसे बिछाएं :- अनुकूल वातावरण में स्पानिंग के 15-20 दिन बाद मशरूम का जाला खाद (कम्पोस्ट) में फैल जाता है, इसके पश्चात् ही केसिंग मिश्रण खाद पर बिछाना ठीक रहता है । केसिंग करने से पहले अखबार या पॉलीथीन चादर खाद के ऊपर से हटा दें । इसके बाद खाद के ऊपर एक इंच केसिंग मिश्रण की तह बिछा दें। केसिंग की सतह समतल रखना चाहिए। केसिंग करने के तुरंत बाद फोरमेलिन दो प्रतिशत व बाविस्टिन 0.05 प्रतिशत के घोल का छिड़काव कर देना चाहिए । केसिंग के बाद पर्यावरण बनाना :- खाद के ऊपर केसिंग बिछा देने के बाद 7-10 दिनों तक तापमान 23-25 डिग्री सैल्सियस रहना चाहिए । जब छोटी-छोटी सफेद खुम्बियां निकलने लगें तो तापमान 18 डिग्री सेल्सियस से नीचे होना चाहिए । यह तापमान तब तक बनाए रखें जब तक मशरूम निकलते रहें । दिसंबर के अंतिम सप्ताह तथा जनवरी में तापमान काफी कम हो जाता है जिसके कारण मशरूम कम निकलते हैं । तापमान धुएं वाले ईंधन से नहीं बढ़ाएं । मशरूम निकलने वाले कमरे में नमी का होना जरूरी है और जब मशरूम निकलने शुरू हो जाएं तो नमी 80-90 प्रतिशत होनी चाहिए । आमतौर पर यह देखा गया है कि मशरूम उत्पादक केवल खाद पर ही पानी का छिड़काव करते हैं । नमी बनाए रखने के लिए कमरे की खिड़कियों तथा दरवाजों पर गीली बोरी लटका कर रखनी चाहिए व इन पर पानी छिड़कते रहें ताकि बाहर से जो हवा आए वह भी नम हो जाए।

बीज की किस्में

मशरुम के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

मशरूम की किस्म एवं महीना :- सफेद बटन मशरूम - अक्तूबर-फरवरी ढ़ीगरी या आयस्टर मशरूम - फरवरी-अप्रैल दूधिया मशरूम (मिल्की मशरूम) - जुलाई-अक्तूबर।

बीज की जानकारी

मशरुम की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

मशरूम का बीज :- यह प्लास्टिक बैगों में गेहूं या ज्वार या बाजरा के दानों पर तैयार किया जाता है । बिजाई के लिए 100 किलोग्राम तैयार की गई खाद में 500 ग्राम बीज काफी है । बीज की अग्रिम बुकिंग कम से कम एक महीना पहले अवश्य करवा लें । जब कम्पोस्ट बनाना शुरू करें, उसी समय जितने क्विंटल भूसा लिया है उतना ही किलो स्पान बुक करा दें । क्योंकि हम जितनी तूड़ी या भूसे की मात्रा से कम्पोस्ट बनाना शुरू करते हैं, 28 दिनों बाद उस कम्पोस्ट की मात्रा दोगुनी हो जाती है । कम्पोस्ट में स्पान मिलाने से पहले ढ़ेर को खोलकर ठंडा होने के लिए छोड़ दें, गर्म कम्पोस्ट में स्पानिंग नहीं करनी चाहिए, खाद में बीज मिलाकर या तो पॉलीथीन बैगों में भरा जाता है या रैकों पर बिछाया जाता है । ऊपर थोड़ा सा बिखेर दें और खाद के ऊपर दो प्रतिशत फोरमेलन में भिगोया हुआ अखबार या पॉलीथिन शीट बिछा दें । कमरे का तापमान 24-25 डिग्री सेल्सियस रखें। स्पानिंग 15 अक्टूबर के बाद करें, उस समय अंदर का तापमान ठीक होता है तथा नमी 80-90 प्रतिशत बनाए रखें । आवश्यकतानुसार अखबार के ऊपर तथा कमरे में सुबह शाम स्प्रेयर पंप से पानी का हल्का छिड़काव करें । यदि स्पानिंग (बिजाई) बैगों में की है तो इसमें कम्पोस्ट एक से सवा फुट तक भरना चाहिए व रैकों के ऊपर प्लास्टिक की चादर बिछाकर बिजाई करते हैं तो कम्पोस्ट की ऊचाई लगभग छह इंच होनी चाहिए।

बीज कहाँ से लिया जाये?

बीज प्राप्त करने के स्रोत :- पौध रोग विभाग चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार । राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र चम्बाघाट, सोलन, हिमाचल प्रदेश । हरियाणा एग्रो इंडस्ट्रीज, मशरूम केन्द्र, मुरथल, जिला सोनीपत, हरियाणा । डिवीजन ऑफ माइक्रोबायोलॉजी एंड प्लांट पैथोलॉजी आईएआरआई, नई दिल्ली । बीज को रखने में सावधानियां :- मशरूम का बीज अधिक तापमान पर शीघ्र नष्ट हो जाता है । मशरूम का बीज 40 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर 48 घंटों में भर जाता है । इस तरह के बीज में सड़ने की बदबू आने लगती है । बीज को गर्मियों में रात को लाना चाहिए । हो सके तो थर्मोकोल शीट के बने डिब्बे में लिफाफों के बीच में बर्फ के टुकड़े रख कर लाएं । बीज पर धूप नहीं लगनी चाहिए । यदि बीज बस से लाएं तो बीज को आगे इंजन के पास न रखें । बीज का भंडारण :- मशरूम का ताजा बना हुआ बीज कम्पोस्ट में शीघ्र फैलता है । मशरूम शीघ्र निकलने शुरू हो जाते हैं तथा पैदावार भी अधिक मिलती है । फिर भी कभी-कभी भंडारण करना जरुरी हो तो मशरूम को रैफ्रीजरेटर में ही भंडारण करें । ऐसा करने से 10-15 दिन तक बीज खराब नहीं होता।

उर्वरक की जानकारी

मशरुम की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

कूड़ा खाद बनाने के लिए अन्‍न के तिनकों (गेंहू, मक्‍का, धान, और चावल), मक्‍कई की डंडिया, गन्‍ने की कोई जैसे किसी भी कृषि उपोत्‍पाद अथवा किसी भी अन्‍य सेल्‍यूलोस अपशिष्‍ट का उपयोग किया जा सकता है। गेंहू के तिनकों की फसल ताजी होनी चाहिए और ये चमकते सुनहरे रंग के हो तथा इसे वर्षा से बचा कर रखा गया है। ये तिनके लगभग 5-8 से. मी. लंबे टुकडों में होने चाहिए अन्‍यथा लंबे तिनकों से तैयार किया गया ढेर कम सघन होगा जिससे अनुचित किण्‍वन हो सकता है। इसके विप‍रीत, बहुत छोटे तिनके ढ़ेर को बहुत अधिक सघन बना देंगे जिससे ढ़ेर के बीच तक पर्याप्‍त ऑक्‍सीजन नहीं पहुंच पाएगा जो अनएरोबिक किण्‍वन में परिणामित होगा। गेंहू के तिनके अथवा उपर्युक्‍त सामान में से सभी में सूल्‍यूलोस, हेमीसेल्‍यूलोस और लिग्‍निन होता है, जिनका उपयोग कार्बन के रूप में मशरूम कवक वर्धन के लिए किया जाता है। ये सभी कूडा खाद बनाने के दौरान माइक्रोफ्लोरा के निर्माण के लिए उचित वायुमिश्रण सुनिश्चित करने के लिए जरूरी सबस्‍टूटे को भौतिक ढांचा भी प्रदान करता है। चावल और मक्‍कई के तिनके अत्‍यधिक कोमल होते है, ये कूडा खाद बनाने के समय जल्‍दी से अवक्रमित हो जाते हैं और गेंहू के तिनकों की अपेक्षा अधिक पानी सोखते हैं। अत:, इन सबस्‍टूट्स का प्रयोग करते समय प्रयोग किए जाने वाले पानी की प्रमात्रा, उलटने का समय और दिए गए संपूरकों की दर और प्रकार के बीच समायोजन का ध्‍यान रखना चाहिए। चूंकि कूड़ा खाद तैयार करने में प्रयुक्‍त उपोत्‍पादों में किण्‍वन प्रक्रिया के लिए जरूरी नाइट्रोजन और अन्‍य संघटक, पर्याप्‍त मात्रा में नहीं होते, इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए, यह मिश्रण नाइट्रोजन और कार्बोहाइड्रेट्स से संपूरित किया जाता है।

जलवायु और सिंचाई

मशरुम की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

नमी कम होने पर ड्रिप सिंचाई के द्वारा पानी देना चाहिए

खरपतवार नियंत्रण

मशरुम की खेती में खरपतवार का प्रकोप नहीं होता है लेकिन जहाँ आप मशरुम की खेती कर रहे है उस स्थान को साफ रखे ताकि किसी भी प्रकार के कीट का प्रकोप नहीं हो। 

सहायक मशीनें

सावधानियां :- मशरूम उगाने के लिए खाद/कम्पोस्ट उन्हीं पदार्थों से बनाना चाहिए जो आसानी से उपलब्ध हो सके । अच्छी खाद ज्यादा पैदावार देती है । कम्पोस्ट में गोबर की खाद न मिलाएं । कम्पोस्ट बनाने के लिए पहले स्पान की उपलब्धता अवश्य सुनिश्चित कर लें क्योंकि कई बार बीज समय पर न मिलने से अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है । खाद पक्के फर्श पर ही बनाएं । खाद में नमी की मात्रा 65-70 प्रतिशत होनी चाहिए । अच्छी पैदावार के लिए कमरे का तापमान तथा नमी उचित रखें । जब खुम्बी की टोपी फटी-फटी नजर आए तथा खुलने लगे तो कमरे में नमी की मात्रा बढ़ाएं तथा खुम्बी में सीधी तेज हवा न लगने दें । जब डंडी लंबी होने लगे तो कमरे में स्वच्छ हवा का प्रवेश होने दें जिससे कार्बन डाई-ऑक्साइड की मात्रा कम हो जाती है । कमरे की सफाई का विशेष ध्यान रखें । केसिंग स्पान फैलने के बाद ही करें । मशरूम सावधानी से तोड़े तथा उस जगह पर केसिंग कर दें । मशरूम भवन में प्रवेश कम से कम हो । कम्पोस्ट बनाना सितंबर माह में पहले शुरू नहीं करना चाहिए । रेक में खाद की ऊंचाई छह इंच रखें, यदि बैगों में मशरूम लगा रहे हैं तो खाद की ऊंचाई 12-15 इंच रखें।