बेर की खेती

बेर रहमनेसी कुल का भारतीय मूल का फलवृक्ष है । एक मुसला जद्धारी पौधा होने के कारण अत्यधिक सुख सहनशील है । यह जमीन की गहरी परतो से पानी लेने में सक्षम है । इसके अतिरिक्त इसके पत्तो की क्यूटिकल परत मोती होती है जिसके कारण पत्तो से वाष्पीकरण बहुत कम होता है । यही कारण है की शुष्क क्षेत्रीय बागवानी के लिए उतम फलवृक्ष है । अधिक उत्पादन व् सर्वोत्तम गुन्नवत्ता के लिए निम्नलिखित सस्य क्रियाए अपनानी चाहिए ।


बेर

बेर उगाने वाले क्षेत्र

भारत में इसका कुल क्षेत्र 9500 हेक्टेयर के लगभग है, जिसका 50% क्षेत्र केवल मध्य प्रदेश में है।इसके मुख्य उत्पादक : महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और असम। ,मुख्यता इनकी खेती अक्टूबर से लेकर गर्मियों में मई तक होती है

बेर की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

बेर के सवन से लो-ब्लड प्रेशर, एनीमिया, लीवर आदि समस्याओं से आराम मिलता है। बेर में अन्य फलों के मुकाबले विटामिन-सी और एंटीऑक्सीडेंट ज्यादा मात्रा में होते हैं।

बोने की विधि

(i) बीज बोकर - बेरों के बीज गड्ढों में फरवरी या मार्च में बोये जाते हैं। यह वर्षा ऋतु में भी बोये जा सकते हैं। बेर 20-30 दिन में जम जाते हैं। बेरों के प्रवर्धन का यह ढंग अधिक प्रचलित है। बीज को सीधे गड्ढों में ही बोया जाता है क्योंकि यह स्थानांतरण पसंद नहीं करता। (ii) मुकुलन विधि - अच्छी उपज के लिए बेर को मुकुलन विधि द्वारा प्रसारित करना चाहिए इस विधि द्वारा पैबन्दी या कलमी बैर तैयार किए जाते हैं। इस विधि द्वारा पौधे तैयार करने के लिए 1 या 2 वर्ष की आयु के पेड़ों पर भूमि से 30-40 सेमी. की ऊंचाई पर वर्षा ऋतु में चश्मा लगाया जाता है। मुकुलन तरीके से उत्पादित पौधों के लिए गड्ढों में जुलाई से अक्टूबर तक 7 मीटर की दूरी पर रोपा जाता है। 7 x 7 मीटर की दूरी पर लगाये गये बेर के बाग में प्रति हैक्टेयर पौधों की संख्या 204 होती है।पौधे से पौधे व् पंक्ति से पंक्ति 8 मीटर फासला रखा जाता है । बारानी बागवानी में फासला बढ़ा दिया जाता है । एक एकड़ में इस दुरी पर 72 पौधे लगते है ।नए पौधो की शुरुआती देखभाल -सहारा देना :- पौधारोपण के तुरंत बाद सभी पौधो को बांस अथवा लकड़ी की सोटी/छड़ी से सहर देना चाहिए ।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

भूमि का चुनाव -बेर की बागवानी अनेक प्रकार की भूमि जैसे रेतीली, दोमट, चिकनी कुछ हद तक लवणीय आदि में की जा सकती है । लेकिन अधिकं पैदावार व् अच्छी गुन्नवत्ता के लिए अछे जल निकास वाली दोमट मिटटी सर्वोत्तम रहती है । भूमिगत जलस्तर 3 मीटर से उपर न हो । जमीन की ph 8.7 तक हो ( 9.4 तक सहशील ) । लवण सहनशीलता स्तर 11.3 मि. म्होज /cm तक है ।बेर विभिन्न प्कार की भूमियों में उगने की क्षमता रखता है। यह बलुई से लेकर मृतिका तथा हल्की क्षारीय भूमि में भी पैदा हो जाता है।गड्ढ़े तैयार करना व् पौधारोपण -जून के प्रथम सप्ताह या दिसम्बर के अंत में 3 फुट लम्बे, चौड़े व् गहरे गड्ढे खोदे। खोदते समय गड्ढे के उपर की आधी मिटटी एक तरह व् निचे की आधी मिटटी दूसरी तरफ डाले । 15-20 दिन बाद उपर की आधी मिटटी में बराबर मात्रा में गली सड़ी देशी खाद, एक किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट (SSP) व् 50 ग्राम लिन्डेन पाउडर (2%) मिलाकर गड्ढो को भर दे व् बाकि बची मिटटी भी भर दे । एक अच्छी वर्षा का इंतजार करे या गड्ढो की सिंचाई करे और मिटटी बैठ जाने के बाद पौधरोपण करे ।सिधाई एवं कांट- छांट -पहले 2-3 सालो में जमीन से 60-75 cm ऊंचाई तक मुख्य तने से कोई फुटाव न निकलने दे । इसी तरह मूलवृन्त से निकलने वाले सभी फुटाव समय समय पर निकालते रहे । करीब 2-2.5 फुट बढ़ने के बाद चारो दिशाओ में नई शाखाओ को प्रोत्साहन दे ताकि पौधे का मजबूत ढांचा तैयार हो सके ।बेर में नियमित व् अच्छी गुन्नवत्ता एवं भरपूर उत्पादन के लिए प्रति वर्ष सुप्तावस्था में कांट छांट अनिवार्य है । इसके लिए 1-30 मई के बीच चालू वर्ष की बढवार को छ: द्वितीय शाखाओ के बाद काट देना चाहिए ।

बीज की किस्में

बेर के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

किस्मे :-पकने के समय के अनुसार बेर कि किस्मो को तीन वर्गो में बता गया है जो की निम्न है । 1.अगेती किस्मे (फरवरी में पकने वाली ) : गोला, सेब, संधुरा नारनौल 2.मध्य मौसम में पकने वाली ( फरवरी अंत से मार्च मध्य तक ) : कैथली, मुड़िया मुरहारा, बनारसी कड़ाका,छुहारा 3.पछेती किस्मे : उमरान, काठाफल, इलाइची (i) जोगिया - यह किस्म मध्यम समय में तैयार होती फल पीले रंग के तथा मध्यम आकार वाले होते है फलो का गुदा मुलायम तथा रसीला होता है (ii) कैथली - यह किस्म मध्यम समय में पक कर तैयार होती है फलो कि लम्बाई 3.6 सेमी. व ब्यास 2.5 सेमी. होता है रंग सुनहरा पिला तथा सतह पर हलकी धारियां पाई जाती है (iii) बनारसी पैबंदी - यह मध्यम समय में तैयार होने वाली किस्म है फल बड़े अंडाकार एवं नुकीले पेंदी वाले होते है फलो कि 4.25 सेमी. एवं ब्यास लगभग 2.5 सेमी. होता है

बीज की जानकारी

बेर की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

सामान्यतः 1 हेक्टेयर क्षेत्र में 200 पौध लगाये जा सकते हैं और एक एकड़ में इस दुरी पर 72 पौधे लगते है ।

बीज कहाँ से लिया जाये?

बेर के पौधे किसी विश्वसनीय  स्थान से ही खरीदना चाहिए 

उर्वरक की जानकारी

बेर की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

बेर के पौधे को पर्याप्त खाद दिये जाने पर उनकी उपज व फलों के आकार तथा गुणों में सुधार होता है। उर्वरक व खाद जुलाई में देनी चाहिए। प्रति पेड़ प्रतिवर्ष 50 ग्राम पोटाश, 50 ग्राम फास्फोरस तथा 100 ग्राम नाइट्रोजन तने से आधा मीटर अर्धव्यास की दूरी को छोड़कर चारों और छिड़ककर भूमि को फावड़ा कुदाल से खोदकर मिलाना चाहिये। पौधे के अच्छे विकास के लिए 20-25 किलोग्राम गोबर की खाद प्रतिवर्ष प्रति पेड़ वर्षा के मौसम में देनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

बेर की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाई -पौधो को आवश्कता अनुसार पानी देना चाहिए । अधिक गर्मी व् सर्दी के समय जल्दी जल्दी सिंचाई दे । चिकनी मिटटी की तुलना में रेतीली मिटटी में पानी कही अधिक जल्दी जल्दी देना पड़ता है । सिंचाई के पानी के साथ 10-20 मिलीलीटर क्लोरोप्यरीफोस 20 ई सी 10 लीटर पानी में घोलकर अवश्य डाले । जाड़े के दिनों में प्रतिवर्ष 1-2 सिंचाइयाँ कर देने पर पेड़ खूब फलते-फूलते हैं।

रोग एवं उपचार

बेर की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

(i) बेरोबीटल - यह कीट पत्तियों को खाता है। इसकी रोकथाम के लिये जून-जुलाई में 0.2% सेविन के घोल का छिड़काव करना चाहिये। (ii) फल मक्खी - इस कीट की सुण्डियाँ फलों के गूदे को खाती हैं तथा फल सड़ जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए अक्टूबर-नवंबर में दो बार 0.2% सुमिसीडीन के घोल का छिड़काव करना चाहिये। (i) चूर्णित फफूँदी - यह रोग जाड़ों में लगता है। फल तथा पत्तियों पर सफेद रंग की एक पर्त चढ़ जाती है। इसकी रोकथाम के लिए सल्फैक्स की 3 किग्रा मात्रा को 1,000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिये। पहला छिड़काव फूल आने के एक सप्ताह पूर्व तथा फिर 15 से 20 दिन के अन्तर से छिड़काव करते रहना चाहिये।

खरपतवार नियंत्रण

निराई गुड़ाई -फलित बागों में वर्ष में 3-4 बार थावलो में निराई गुड़ाई करे व् बीच की भूमि को ट्रेक्टर अथवा पॉवर टिलर से जुताई करे विशेषकर शुरुआत के सालो में । वर्ष में एक या दो बार निकाई -गुड़ाई करनी चाहिये।

सहायक मशीनें

लगभग 3 वर्ष की आयु के पेड़ों पर बेर के फल लगते हैं। अतः प्रथम फलन की आयु 3 वर्ष है। बेर के पेड़ में सितंबर-अक्टूबर में फूल आते हैं तथा नवंबर-दिसंबर में फल लगते हैं। जनवरी-फरवरी में फल पकते हैं।