गेंहूँ की खेती

विश्व की धान्य फसलों में, गेहूं बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है। विश्व के सकल खाद्यान्न उत्पादन में गेहूं का योगदान सर्वाधिक 34% है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भी विश्व में धान के पश्चात गेहूं का स्थान आता है। गेहूँ का उपयोग प्रमुख रूप से रोटी बनाने के लिए किया जाता है। भारत देश में गेहूँ को पीसकर साधारण रोटी तैयार की जाती है, परंतु अन्य विकासशील देशों में गेहूं के आटे में ग्लूटन अधिक होने के कारण खमीर उत्पादन करके आटे का प्रयोग डबल रोटी, बिस्कुट आदि तैयार करने के लिए किया जाता है।


गेंहूँ

गेंहूँ उगाने वाले क्षेत्र

हमारे देश में सर्वाधिक क्षेत्रफल में गेहूं उत्पादन करने वाला राज्य उत्तर प्रदेश है। इसके बाद क्रमश: मध्य प्रदेश, पंजाब व हरियाणा का नंबर आता है। महाराष्ट्र, बिहार और राजस्थान हमारे देश के गेहूं उगाने वाले अन्य प्रमुख राज्य हैं।

गेंहूँ की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

गेहुं में दूसरे मुख्य अनाज मक्का और चावल से ज्यादा प्रोटीन होता है। इसके अलावा इसमें कार्बोहाइड्रेट, फाइबर , कई प्रकार के विटामिन जैसे थायमिन , नियासिन, विटामिन बी 6 , रिबोफ्लेविन , पैण्टोथेनिक एसिड , फोलेट तथा खनिज के रूप में मैगनीज और सेलेनियम प्रचुर मात्रा में होते है। इसके अतिरिक्त Wheat में कॉपर , जिंक ,फास्फोरस ,आयरन , मैग्नेशियम , पोटेशियम तथा विटामिन ई , विटामिन के भी पर्याप्त मात्रा में होते है

बोने की विधि

सीड ड्रिल द्वारा बुवाई- विस्तृत क्षेत्र में बुवाई करने के लिये यह आसान तथा सस्ता तरीका है। इसमे बुवाई, बैल चलित या ट्रेक्टर चलित बीज वपित्र द्वारा की जाती है। इस मशीन में पौध अन्तरण व बीज दर का समायोजन इच्छानुसार किया जा सकता है। इस विधि से बीज भी कम लगता है और बोआई निश्चित दूरी तथा गहराई पर सम रूप से हो पाती है जिससे अंकुरण अच्छा होता है। इस विधि से बोने में समय कम लगता है।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के पश्चात 3-4 जुताई देशी हल या हैरों से करके पाटा लगा देना चाहिए जिससे भूमि समतल हो जाए।

बीज की किस्में

गेंहूँ के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

गेहूं के ज्यादा उत्पादन के लिए उचित सिंचाई व् उर्वरक प्रबंधन के साथ साथ उचित बीज का चुनाव बहुत जरुरी है। आज के इस लेख में गेहूं की उन्नत किस्मो के बारे में विवरण दिया गया है और ये सारा विवरण किसान भाइयो द्वारा बताये गये अनुभव पर आधारित है। किसान गेहूं की उन्नत किस्म का चुनाव अपने विवेक, खेती की जमीन, वातावरण परिस्तिथियों का ध्यान रखते हुए करे। 👉 DBW 187 ( करण वंदना ) गेहूं की इस किस्म की ऊंचाई 104 से 106 cm तक होती है। पकाई के लिए ये किस्म 148 दिन का समय लेती है। ये किस्म 28 से 30 क्विंटल की पैदावार देती है। 👉DBW 222 - इस किस्म की ऊंचाई 105 cm तक होती है। पकाई के लिए ये किस्म 145 दिन का समय लेती है। ये किस्म 28 से 30 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। 👉HD 2967 - इस वैरायटी के गेहूं के पौधे की ऊंचाई 100 से 110 cm तक होती है। पकने में ये किस्म 157 दिन का समय लेती है। ये किस्म 22 से 25 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। 👉HD 3086 पौधे की ऊंचाई 85 से 95 cm तक होती है। ये किस्म पकाई के लिए 150 दिन का समय लेती है। ये किस्म 22 से 25 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। 👉HD 2733 गेहूं की इस किस्म की ऊंचाई 100 से 110 cm तक होती है। पकाई के लिए ये किस्म 157 दिन का समय लेती है। ये किस्म 22 से 25 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। 👉HD 2851 गेहूं की इस किस्म की ऊंचाई 85 से 90 cm तक होती है। पकाई के लिए ये किस्म 140 दिन का समय लेती है। ये किस्म 22 से 25 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। 👉HD 3226 इस वैरायटी की ऊंचाई 100 से 110 cm तक होती है। ये किस्म 23 से 27 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। यह गेहूं उन्नत किस्म तैयार होने में 155 दिन का समय लेती है। 👉HD 3059 गेहूं की इस किस्म की ऊंचाई 100 से 105 cm तक होती है। पकाई के लिए ये किस्म 140 दिन का समय लेती है। ये किस्म 21 से 24 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। 👉HD CSW 18 गेहूं की इस किस्म की ऊंचाई 105 से 115 cm तक होती है। पकाई के लिए ये किस्म 162 दिन का समय लेती है। ये किस्म 23 से 27 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। 👉WH 711 ये गेहूं की किस्म ऊंचाई में 90 से 100 cm तक होती है। पकाई के लिए ये किस्म 150 दिन का समय लेती है। ये किस्म 22 से 25 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। 👉WH 1105 पौधो की ऊंचाई 90 से 100 cm तक होती है। पकाई के लिए ये किस्म 155 दिन का समय लेती है। ये किस्म 23 से 26 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। 👉PARBHAT 68 इस गेहूं की किस्म की ऊंचाई 100 से 110 cm तक होती है। पकाई के लिए ये किस्म 153 दिन का समय लेती है। ये किस्म 23 से 27 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। 👉DBW 173 गेहूं की किस्म की ऊंचाई 100 से 110 cm तक होती है। पकाई के लिए ये किस्म 140 दिन का समय लेती है। ये किस्म 23 से 27 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। 👉WR 544 गेहूं की इस किस्म की ऊंचाई 90 से 100 cm तक होती है। पकाई के लिए ये किस्म 125 दिन का समय लेती है। ये किस्म 18 से 21 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। 👉उन्नत PBW 343 गेहूं के पौधे की ऊंचाई 100 से 105 cm तक होती है ! पकाई के लिए ये किस्म 157 दिन का समय लेती है। ये किस्म 22 से 25 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। 👉उन्नत PBW 550 गेहूं के पौधे की ऊंचाई 90 से 95 cm तक होती है। पकाई के लिए ये किस्म 145 दिन का समय लेती है। ये किस्म 22 से 25 क्विंटल की पैदावार प्रति एकड़ देती है। HD 2967, HD2733, HD - 3117, HS -542 PBW 621-50, DBW -16, DBW17 आदि।

बीज की जानकारी

गेंहूँ की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हेक्टेयर के लिए लगभग 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है| यदि दानों का आकार बड़ा या छोटा है, तो उसी अनुपात में बीज दर घटाई या बढ़ाई जा सकती है|

बीज कहाँ से लिया जाये?

गेहूँ का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदें।

उर्वरक की जानकारी

गेंहूँ की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

गेहूं की अच्छी व गुणवत्ता युक्त फसल लेने के लिए भूमि में पोषक तत्वों की उचित मात्रा होनी चाहिए। उर्वरकों की मात्रा मृदा परीक्षण के परिणाम के आधार पर तय किया जाना चाहिए। गेहूं में उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी। सिंचित और समय पर बुवाई के लिए उर्वरकों का अनुपात एनपीके 40:20:10 किलो प्रति एकड़ प्रयोग करें। नत्रजन :- 44 किलो यूरिया प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं और 44 किलो यूरिया बुवाई के 21 दिन बाद खड़ी फ़सल में डालें। फॉस्फोरस :- 125 किलो एसएसपी प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं। या डीएपी 88 किलो प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं। पोटाश :- 17 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश (mop) प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं। जड़ों के अच्छे विकास के लिए पोटाश की जरूरत होती है। ध्यान दे :- डीएपी उर्वरक प्रयोग करें।

जलवायु और सिंचाई

गेंहूँ की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

पहली सिंचाई बोने के 20 से 25 दिन पर, लम्बी किस्मों में पहली सिंचाई सामान्यतः बोने के लगभग 30-35 दिन बाद की जाती है, दूसरी सिंचाई बुवाई के लगभग 40-50 दिन बाद, तीसरी सिंचाई बुवाई के लगभग 60-70 दिन बाद, चौथी सिंचाई फूल आने की अवस्था अर्थात बोआई के 80-90 दिन बाद, पांचवी सिंचाई बोने के 100-120 दिन बाद की जानी चाहिए।

रोग एवं उपचार

गेंहूँ की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

झुलसा रोग इस रोग में पत्तियों के नीचे कुछ पीले व भूरापन लिए हुए अण्डाकार धब्बे दिखाई देते हैं। यह धब्बे बाद में किनारों पर कत्थई भूरे रंग के हो जाते हैं। इसके उपचार के लिए प्रोपिकोनोजोल 25 % ईसी रसायन के आधा लीटर को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें, जिससे कि फसल को इस बीमारी से राहत मिलेगी। गेरुई या रतुआ रोग - इस रोग में फफूंदी के फफोले पत्तियों पर पड़ जाते हैं, जो बाद में बिखर कर अन्य पत्तियों को ग्रसित कर देते हैं। इसके उपचार के लिए एक प्रोपीकोनेजोल 25 % ईसी रसायन की आधा लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से ये रोग कम हो जाता है।

खरपतवार नियंत्रण

कृष्णनील, बथुआ, हिरनखुरी, सैंजी, चटरी-मटरी, जंगली गाजर आदि के नियंत्रण हेतु 2,4-डी इथाइल ईस्टर 36% (ब्लाडेक्स सी, वीडान) की 1.4 किग्रा. मात्रा या 2,4-डी लवण 80% (फारनेक्सान, टाफाइसाड) की 0.625 किग्रा मात्रा का 700-800 लीटर पानी मे घोलकर एक हेक्टर में बोने के 25-30 दिन के अन्दर छिड़काव करना चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, कल्टीवेटर, खुर्पी, फावड़ा, दराँती, आदि यंत्रो की आवश्यकता होती है।