तुलसी की खेती

तुलसी के पौधों में कई तरह से औषधीय गुण पाए जाते है, जिससे यह पौधा लगभग सभी घरो में देखने को मिल जाता है | हिन्दू समाज के लोग तुलसी की पूजा भी करते है | तुलसी का पौधा झाड़ीनुमा तीन से चार फ़ीट लम्बा होता है | जिसकी पत्तियों का उपयोग चीजों में खुशबु लाने के लिए किया जाता है | प्राचीन काल से ही तुलसी के पौधों का इस्तेमाल यूनानी औऱ आयुर्वेदिक चिकित्सा के रूप में किया जाता है | इसके अलावा इसे दवाइयों को बनाने के लिए भी उपयोग में लाते है |


तुलसी

तुलसी उगाने वाले क्षेत्र

तुलसी की खेती भारत के ज्यादातर राज्यों में की जाती है जैसे - बिहार ,उत्तरप्रदेश ,मध्यप्रदेश ,राजस्थान आदि। 

तुलसी की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

तुलसी एक लो-कैलोरी हर्ब होता है जिसमें प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इन्फ्लेमेटरी और एंटीबैक्टीरियल प्रॉपर्टीज होती हैं। साथ ही यह शरीर को कई जरूरी पोषक तत्व भी प्रदान करती है जैसे विटामिन ए, सी, के, मैंगनीज, कॉपर, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम और ओमेगा-3 फैट्स। यह सभी पोषक पदार्थ शरीर को स्वस्थ रखने में काफी मदद करते हैं।

बोने की विधि

अधिक उपज और अच्छे तेल उत्पादन के लिए लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

तुलसी की खेती के लिए बलूई दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है।

बीज की किस्में

तुलसी के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

प्रजातियाँ निम्न प्रकार हैं - 1. बेसिल तुलसी या फ्रेंच बेसिल (i) स्वीट फेंच बेसिल या बोबई तुलसी (ii) कर्पूर तुलसी (iii) काली तुलसी (iv) वन तुलसी या राम तुलसी (v) जंगली तुलसी 2. होली बेसिल (i) श्री तुलसी या श्यामा तुलसी

बीज की जानकारी

तुलसी की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

750 ग्राम से 1 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टयेर की दर पर्याप्त होता है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

तुलसी के बीज किसी विश्वसनीय  स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

तुलसी की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

15 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद बुवाई के एक माह पूर्व खेत में डालकर अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए। 75-80 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस व 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यता होती है। नाइट्रोजन की एक तिहाई एवं फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत में डालकर जमीन में मिला देनी चाहिए। शेष नाइट्रोजन की मात्रा दो बार टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

तुलसी की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चहिए। उसके बाद मिट्टी की नमी के अनुसार सिंचाई करनी चहिए। वैसे गर्मियों में 8-10 दिन के अंतराल से सिंचाई करनी चाहिए। बरसात के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, यदि वर्षा न हो, तो सिंचाई आवश्यकतानुसार करनी चाहिए।

रोग एवं उपचार

तुलसी की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

पत्ती झुलसाइस क़िस्म का रोग अक्सर गर्मियों के मौसम में पौधों की पत्तियों पर देखने को मिल जाता है | इस रोग से प्रभावित होने पर पौधों की पत्तियों पर जले हुए धब्बे पड़ जाते है | फाइटो सैनिटरी विधि का इस्तेमाल कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |जड़ गलन रोगइस क़िस्म का रोग अक्सर खेत में जलभराव की स्थिति में ही देखने को मिलता है | खेत में जलभराव होने से पौधों की जड़े गलने लगती है, जिससे पौधे की पत्तियां मुरझा कर पीली पड़ जाती है | इस रोग से बचाव के लिए खेत में जलभराव न होने दे | इसके अलावा इस रोग के लक्षण दिखने पर बाविस्टिन की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों की जड़ो पर किया जाता है |कीट रोगइस क़िस्म का रोग तुलसी की पत्तियों को अधिक हानि पहुँचाता है | यह कीट रोग पौधों की पत्तियों पर पेशाब कर उन्हें हानि पहुँचाता है, जिससे पौधों की पत्तियां पीले रंग की पड़ जाती है, औऱ पत्तियां मुरझाकर नष्ट हो जाती है | एजाडिरेक्टिन की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण हेतु समय समय पर निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है। पहली निराई-गुड़ाई बुवाई 30 दिन बाद तथा दूसरी 50-60 दिन बाद करनी चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलटने हल , देशी हल, खुरपी, कुदाल, फावड़ा, आदि यंत्रो की आवश्यकता होती है