रजनीगंधा की खेती

फूल अनेक अवसरों पर मानव के व्यक्तित्त्व को सजाने एवं संवारने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। सौन्दर्य तथा सुगन्ध जैसे दो गुणों से सम्पन्न ऐसा ही एक पुष्पीय पौधा रजनीगंधा है। यह एमेरिलीडेसी परिवार का एक सदस्य है। इसमें पुष्प दूध के समान श्वेत एवं पुष्प डंडियों पर दोनों और खिलते चले जाते है। पुष्प डंडियाँ लगभग एक मीटर लम्बी होती है जो गुलदस्ते बनाने एवं पुष्पदानों को सजाने के काम में आती हैं। अपनी सुंदरता एवं सुगन्ध के कारण इसकी मांग दिल्ली जैसे महानगरों में बहुत बढ़ रही है जहाँ पर यह होटलों, घरों एवं कार्यालयों को सजाने हेतु प्रयोग में लिया जाता है। दिन का तापमान 20-30 डिग्री उपयुक्त रहता है। यदि तापमान 10 से से कम होता है तब इसकी पुष्प डंडियों की लंबाई, वजन एवं पुष्पों की गुणवत्ता में कमी आ जाती है।


रजनीगंधा

रजनीगंधा उगाने वाले क्षेत्र

हमारे देश में इसकी व्यावसायिक खेती पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है|

रजनीगंधा की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

रजनीगंधा के तेल का उपयोग उच्च मूल्य के इत्र और कॉस्मेटिक उत्पादों में किया जाता है। ... भुरभुरा, कार्बनिक पदार्थों से भरपूर और इसमें भरपूर नमी के साथ पोषक तत्व। इसके अलावा, चॉकलेट से तैयार पसंदीदा पेय में उत्तेजक या शामक के साथ सुगंधित फूल जोड़े जाते हैं और इच्छानुसार ठंडा या गर्म परोसा जाता है। रजनीगंधा के बल्ब में एक अल्कलॉइड-लाइकोरिन होता है, जो उल्टी का कारण बनता है। बल्बों को हल्दी और मक्खन से मला जाता है और शिशुओं के लाल फुंसियों पर लेप के रूप में लगाया जाता है। सूखे कंद के बल्ब को पाउडर के रूप में सूजाक के लिए एक उपाय के रूप में उपयोग किया जाता है। जावा में, फूलों को सब्जियों के रस के साथ खाया जाता है।

बोने की विधि

पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से 40 सेंमी एवं पंक्तियों में कन्द से कन्द की दूरी 15 से 20 सेमी. रखना चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

रजनीगन्धा की खेती के लिए दोमट मिट्टी की आवश्यक्ता होती है। मिट्टी भुरभुरी होना चाहिए और उसमें कम्पोस्ट खाद की मात्रा काफी होनी चाहिए जिससे जड़ों का विकास सुचारू रूप से हो सके। भूमि में वर्षा का पानी न रुके इसलिए जल निकास का अच्छा प्रबन्ध होना चाहिए। भूमि का पी. एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच में होना चाहिए और सूर्य की रोशनी भी भरपूर होनी चाहिए। कन्द लगाने से पूर्व खेत की 3 - 4 बार अच्छी गहरी जुताई अवश्य करना चाहिए जिससे मिट्टी बारीक हो जाए।

बीज की किस्में

रजनीगंधा के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

मेक्सिकन सिंगल, मेक्सिकन डबल, सुवासिनी, वैभव श्रंगार, , प्रज्ज्वल, हैदराबाद सिंगल, हैदराबाद डबल, कोलकाता सिंगल/डबल, स्वर्ण रेखा एवं रजत रेखा।

बीज की जानकारी

रजनीगंधा की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक एकड़ में रजनीगंधा लगाने के लिए लगभग 50 से 60 हजार कन्दों की आवश्यक्ता होती है। अच्छी पुष्प डंडियाँ प्राप्त करने के लिए 3 से 5 सेमी व्यास वाले कन्द लगाना चाहिए।

बीज कहाँ से लिया जाये?

रजनीगंधा के  बीज किसी विश्वसनीय  स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

रजनीगंधा की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

अंतिम जुताई से पहले 12 से 15 टन अच्छी गोबर की खाद एवं उर्वरकों में नाइट्रोजन, फास्फेट, पोटाश का 1:2:2 के अनुपात से मिश्रण बनाकर 50 से 100 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग कर सिंचाई कर देना चाहिए जिससे खेत में अंतिम जुताई के बाद अच्छी नमी बनी रहे।

जलवायु और सिंचाई

रजनीगंधा की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सर्दियों में 10 से 12 दिन पर और ग्रीष्म ऋतु में 6 से 7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि क्यारियों में पानी का जमाव ज्यादा समय तक न रहे क्योंकि ऐसी स्थिति बिमारियों को बुलावा देती है।

रोग एवं उपचार

रजनीगंधा की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

तना गलन: यह सक्लेरोशिअम रोलफसाई के कारण होता है| इसके बीमारी के कारण पत्तों की सतह पर फंगस दिखाई देती है| हरे रंग के धब्बे देखे जा सकते है और पत्ते झड़ जाते है|उपचार: इसकी रोकथाम के लिए ब्रैसिकोल (20%) 12.5 किलोग्राम प्रति एकड़ मिट्टी में डालेंधब्बे और झुलस रोग: यह बीमारी मुख्य तौर पर बरसात के मौसम में फैलती है| इसके कारण फूलों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है और फूल के सरे भाग सूख जाते है|उपचार: इसकी रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के फासले पर स्प्रे करें|चेपा: यह छोटे कीट होते हैं जो फूल की कलियों और नए पत्तों को खाकर नुकसान करते हैं|उपचार: चेपे की रोकथाम के लिए मैलाथिओन 0.1% @ 3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15 दिनों के फासले पर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।भुंडी: यह पौधे के पत्तों और शाखा को प्रभावित करती है| यह पत्तों और जड़ों को शिखर से खाकर पौधे को नुकसान पहुंचाती है|उपचार: इसकी रोकथाम के लिए बेनज़ीन हेक्साक्लोराइड @10% मिट्टी में मिलाएं|कली छेदक: यह मुख्य तौर पर कलियों पर अंडे देकर उन्हें प्रभावित करते है फिर लार्वा फूल की कलियों को खाता है जिससे कलियों में छेद हो जाते है|उपचार: इसकी रोकथाम के लिए कार्बारिल 0.2%, 6 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार जब छोटा रहे उसी समय खेत से बाहर निकाल देना चाहिए। पौधों की छोटी अवस्था में निराई गुड़ाई का भी विशेष महत्व है। पहली गुड़ाई कन्दों के अंकुरण के 15 से 20 दिन बाद तथा दूसरी इसके 45 दिन बाद करनी चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, कुदाल, खुरपी, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।