अजवायन की खेती

अजवायन एक झाड़ीनुमा वनस्पति है जो मसाला एवं औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। यह हमारे सेहत के लिए फायदेमंद है। अजवाइन की फसल लगभग 140-150 दिन में पककर तैयार हो जाती है।


अजवायन

अजवायन उगाने वाले क्षेत्र

भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में की जाती है। जलवायु और तापमान :- जलवायु: यह रबी के मौसम में ली जाने वाली फसल है, जिसके लिए शुष्क एवं ठंडा मौसम अनुकूल होता है| अजवायन की फसल को पाला लगने की सम्भावना रहती है। अजवाइन का पौधा उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है। इसके पौधों के विकास के दौरान पौधों को खुली धूप की आवश्यकता होती है। अजवाइन के पौधों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की जरूरत होती है। उसके बाद इसके पौधे सर्दियों के मौसम में न्यूनतम 10 डिग्री के आसपास तापमान पर भी अच्छे से विकास कर लेते हैं। जबकि इसके दानो के पकने के वक्त पौधों को 30 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है।

अजवायन की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

8.9% नमी, 15.4% प्रोटीन, 18.1% वसा, 11.9% रेशा, 38.6% कार्बोहाइड्रेट, 7.1% खनिज पदार्थ, 1.42% कैल्शियम एवं 0.30% फास्फोरस होता हैं। प्रति 100 ग्राम अजवाइन से 14. 6मी.ग्रा. लोहा तथा 379 केलोरिज मिलती हैं।

बोने की विधि

बुआई की विधि - अजवायन की बुआई में दो विधियाँ प्रचलित है- छिटकवाँ विधि - छिटकवां विधि में बीजों को समतल क्यारियों में समान रूप से बिखेर कर हाथ से मिट्टी में मिला देना चाहिए। कतार विधि - इस विधि में कतार से कतार की दूरी 45 से.मि. (सिचित) एवं 30 से.मि (असिचित) में होनी चाहिए तथा पौधे से पौधे की दूरी 20-30 से.मि.रखनी चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

अजवायन फसल को बलुई मिटटी छोड़कर सभी प्रकार की मिटटी में खेती की जा सकती है। किसान ध्यान दे की अजवायन के लिए दोमट अथवा चिकनी दोमट मिटटी जिसमे ह्यूमस (आर्गेनिक मैटर) उचित मात्रा में हो साथ ही साथ खेत से जल निकास की समुचित प्रबंध हो, अजवायन की खेती के लिए उत्तम होती है। खेत की तैयारी के लिए एक गहरी जुताई के साथ दो - तीन उथली जुताई करने के बाद पाटा लगाना अच्छा रहता है। खेत को बुआई से पूर्व छोटी छोटी क्यारियों में बाँट लेना चाहिए ताकिजल समान रूप से क्यारी में लग सके। खेत में अगर दीमक की समस्या हो तो क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत या मिथाइल पैराथीओन 2.0 प्रतिशत में से किसी एक कीटनाशी दवा के 10 किलोग्राम प्रति एकड़की दर से खेत में सामान रूप से बिखेर के मिला देना चाहिए।

बीज की किस्में

अजवायन के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

प्रताप अजवाइन -1 :- अजवाइन फसल की यह नव विकसित किस्म विभिन्न स्थानों पर औसतन 850 से 900 किलोग्राम/हैक्टर बीज की उपज देती है जो स्थानीय किस्मों में लगभग 20 प्रतिशत अधिक है। इस किस्म में तेल की मात्रा 3.89 प्रतिशत है। यह किस्म स्थानीय किस्मों से लगभग 15 दिन पहले पक जाती है और यह पत्ती झुलसा रोग से मध्यम प्रतिरोधी है। लाम सिलेक्शन 1 :- अजवाइन की ये किस्म कम समय में तैयार हो जाती है। ये किस्म 130 से 140 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म की अजवाइन की खेती राजस्थान तथा गुजरात के कुछ हिस्सों में की जाती है। अजवाइन की इस किस्म की ऊंचाई करीब 3 फीट होती है। लाभ सिलेक्शन अजवाइन किस्म प्रति हैक्टेयर 8 से 9 क्विंटल के आसपास (carom seed) उत्पादन देती है। लामसिलेक्शन 2 :- अजवाइन की ये किस्म सिंचित तथा असिंचित दोनों तरह की परिस्तिथियो में अच्छा उत्पादन देती है और समय कम लेती है। ये किस्म लगाने के लगभग 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है। ये किस्म 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर से अधिक कैरम सीड की उपज दे सकती है। ए ए 1 :- अजवाइन की ये किस्म देरी से पकने वाली है। इसके पौधे की ऊंचाई 3 से 4 फीट होती है। ये किस्म प्रति हैक्टेयर करीब 15 क्विंटल की अजवाइन (कैरम सीड) पैदावार दे सकती है। ये किस्म लगाने के 170 दिन में तैयार हो जाती है। अजवाइन की खेती करने के इच्छुक किसान इस किस्म को हर तरह की मिटटी में लगा सकते है। ए ए 2 :- यह अजवाइन की जल्द तैयार होने वाली किस्म है। ये किस्म रोपाई के करीब 145 दिन में तैयार हो जाती है। ये किस्म प्रति हैक्टेयर 13 क्विंटल की उपज दे सकती है। यह सिचित तथा कम पानी वाली दोनों तरह की जमीन में हो सकती है। आर ए1 - 80 :- अजवाइन की ये किस्म लगाने के 170 से 180 बाद पैदावार देना शुरू करती है। यह किस्म प्रति हैक्टेयर 10 क्विंटल के आसपास देती है। इसके बीज (कैरम सीड) अधिक सुगन्धित तथा आकार में छोटे होते है। गुजरात अजवाइन 1 :- अजवाइन की ये किस्म रोपाई के लगभग 170 दिन में तैयार होती है। यह किस्म प्रति हैक्टेयर 8 से 12 क्विंटल की कैरम सीड पैदावार देती है। इस किस्म के पौधे लगभग 3 फीट के होते है। आर ए 19-80 :- अजवाइन की ये किस्म करीब 160 दिन में तैयार होती है। यह किस्म प्रति हैक्टेयर 10 क्विंटल की पैदावार देती है। गोल्डन सेल्फ ब्लानचिंग :- इस किस्म के डंठल मोटे व लम्बे होते हैं। पत्तियां चौड़ी होती हैं। पत्तियों के डंठल सुगन्ध वाले होते हैं। स्टैंडर्ड-बियरर :- इस किस्म के पौधों के डंठल लम्बे, पत्तियां कुछ चौड़ी व गहरे हरे रंग की होती हैं। पौधे का तना या डंठल वृद्धि करने से अधिक मोटा नहीं होता। एन. आर. सी. एस.एस. -ए.ए.-1 :- यह किस्म 165 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है तथा बीजो में 3.4 प्रतिशत वाष्पशील तेल पाया जाता है।

बीज की जानकारी

अजवायन की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

सिचित क्षेत्रो में किसान 1किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की दर से बुआई करें जबकि असिचित क्षेत्र में 2   किलोग्राम बीज प्रति एकड़ से बुआई करें !

बीज कहाँ से लिया जाये?

बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

अजवायन की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

अजवाइन की अच्छी व गुणवत्तायुक्त फसल लेने के लिए भूमि में पोषक तत्वों की उचित मात्रा होनी चाहिए। उर्वरकों की मात्रा मृदा परीक्षण के परिणाम के आधार पर तय की जाना चाहिए। अजवाइन मे उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी। उर्वरकों का अनुपात एनपीके 40:20:20 किलो प्रति एकड़ प्रयोग करें। नत्रजन :- 44 किलो यूरिया प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं और 44 किलो यूरिया की मात्रा 4-5 पत्ती की अवस्था में और बची आधी मात्रा पौधों में फूल बनने से पहले देनी चाहिए। फॉस्फोरस :- 125 किलो एसएसपी प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं। पोटास :- 34 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश (mop) प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं।10 टन गोबर की सड़ी खाद बुवाई के 1 माह पूर्व खेत में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए। नत्रजन 80 किग्रा, फास्फोरस 60-70 किग्रा, पोटाश 50-60 किग्रा प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है। नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा अन्तिम जुताई के समय खेत में भली-भांति मिला देना चाहिए। जिससे पौध रोपने तक खाद व उर्वरक मिल सकें तथा शेष नत्रजन की मात्रा को दो बार में खड़ी फसल में छिड़क कर, टॉपड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

अजवायन की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

पौध रोपने के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। उसके बाद 15 दिन के अन्तराल से सिंचाई करनी चाहिए।

रोग एवं उपचार

अजवायन की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

(i) छाछया रोग - इस रोग के प्रकोप से पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है। इसके नियंत्रण के लिए घुलनशील गंधक 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर उसका छिड़काव करना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर इसे 15 दिन बाद दोहराना चाहिए। (ii) झुलसा रोग - इस रोग के लक्षण में पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बनते है एवं अधिक प्रकोप में पत्तियां झुलस जाती हैं। इस रोग की रोकथाम हेतु मेंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी मिलाकर उसका छिड़काव करना चाहिए। ज़रूरत पड़ने पर इस प्रक्रिया को दोहराएं।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार के नियंत्रण हेतु 2-3 निकाई-गुड़ाई करना आवश्यक है।अजवाइन की खेती में खरपतवारों को न पनपने दें।अजवायन फसल में खरपतवार नियंत्रण करने हेतु बुवाई के तुरन्त बाद 400 मिलीलीटर पेन्डीमिथेलीन प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें तथा 30 दिन बाद उगने वाले खरपतवार का अंतरशस्य द्वारा निकालें ।अजवाईन की फसल में सामान्य खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 50 ग्राम आक्सीडायरजिल सक्रिय तत्व प्रति एकड़ बुवाई के 20 से 25 दिन बाद 200 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, हैरों, फावड़ा, खुर्पी, कुदाल, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।