चाय की खेती

भारत की निर्यात की जाने वाली फसलों में चाय एक प्रमुख फसल है। चाय की खेती मुख्यतः उन क्षेत्रों में की जाती है, जहाँ 150 सेमी या इससे अधिक वर्षा होती है। चाय की खेती के लिए 24 - 35 डिग्री तापमान अनुकूल रहता है। पौधे की जड़ों में पानी का रुका रहना इसके लिए हानिकारक होता है। अतः इसकी खेती मुख्य रूप से पहाड़ी ढलानों पर की जाती है।


चाय

चाय उगाने वाले क्षेत्र

भारत में चाय की खेती असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु प्रान्तों में उगाई जाती है।

चाय की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

हरी और काली चाय दोनों में अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में विटामिन सी, डी, और के और राइबोफ्लेविन होते हैं, साथ ही साथ अच्छी मात्रा में खनिज कैल्शियम, मैग्नीशियम, लोहा, जस्ता, सोडियम, निकल और फ्लोराइड भी होते हैं। हालांकि, यह ग्रीन टी के पॉलीफेनोल्स हैं जो इसके स्वास्थ्य लाभों के लिए जिम्मेदार हैं।

बोने की विधि

दक्षिण भारत में चाय का रोपण एक हेज एवं दोहरी हेज रोपण पद्धति द्वारा किया जाता है। पौधे से पौधे की दूरी 60 सेमी व पंक्ति से पंक्ति की दूरी 105 सेमी रखी जानी चाहिए । जब पौध 12-15 माह पुरानी हो जाये तो इसे 30x30x45 सेमी आकार के गड्ढों में रोप देना चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

चाय के पौधे एक बार लगाने के बाद कई साल तक उत्पादन दे सकते हैं. भारत में इसकी खेती ज्यादातर पर्वतीय भागों में की जाती है. जहां इसे ढाल वाली भूमि में उगाया जाता है. ढाल वाली भूमि में इसके पौधों की रोपाई के लिए गड्डे तैयार किये जाते हैं. इन गड्डों को पंक्तियों में ढाई से तीन फिट की दूरी पर तैयार किया जाता है. पंक्तियों में गड्डों को तैयार करते वक्त प्रत्येक पंक्तियों के बीच एक से डेढ़ मीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए. गड्डों के तैयार होने के बाद उनमें उचित मात्रा में जैविक और रासायनिक खाद को मिट्टी में मिलाकर भर देते हैं. इन गड्डों को पौध लगाने के एक महीने पहले भरकर तैयार किया जाता है.

बीज की किस्में

चाय के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

ऐथरे, गोलकोन्डा, जयाराम, सुन्दराम, स्वर्णा, सिंगारा, श्रीलंका, आदि।

बीज की जानकारी

चाय की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 13000-19000 पौधों की आवश्यकता होती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

बीज (पौध) किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

चाय की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

उत्तरी पूर्वी भारत में कांगड़ा घाटी के लिए एन. पी. के.90:90:90 किग्रा.प्रति हैक्टेयर अनुमोदित की गई है।

जलवायु और सिंचाई

चाय की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

चाय की खेती करते समय धरातल 1,000 से 2,000 मीटर ढाल युक्त लहरदार होना चाहिए | लहरदार और पहाड़ी के रूपी, जिससे कि चाय के पौधों की जड़ों में पानी नहीं रुक सके/ रोपाई से कुछ दिन पहले सिंचाई करे ! जमीन में नमी होनी चाहिए ! भूमि में नमी की कमी से पौधों में नई जड़ें विकसित नहीं हो पाती है, जिसके फलस्वरूप पादप बढ़वार रूक सकती है। बुवाई के 30-35 दिनों बाद दूसरी सिंचाई देना चाहिए, क्योंकि इसके बाद पौधों में नए कल्ले तेजी से आना शुरू होते हैं और नये कल्ले बनाने के लिए पौधों को पर्याप्त नमीं एवं पोषण की आवश्यकता रहती है।

रोग एवं उपचार

चाय की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

1. भूरा विगलन - यह रोग कवक द्वारा फैलता है, इस रोग से प्रभावित पौधों की परिपक्व पत्तियों पर अण्डाकार या गोलाकार भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। इसके नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 50 % WP या मैन्कोज़ेब  75 % WP का छिड़काव करना चाहिए। 2. लाल किट्ट - यह शैवाल द्वारा होता है। इसमें तने पर जंग लगा हुआ दिखाई देता है। प्ररोह वतना हल्के रंग का चितकबरा दिखाई देता है। इसके उपचार के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 % WP का छिड़काव करना चाहिए। 3. भूरा जड़ विगलन/काला जलन जड़ विगलन - यह रोग भी कवक के द्वारा फैलता है। इसमें जड़ों में कवक की वृद्धि दिखाई देती है। जड़ के रंग में परिवर्तन हो जाता है और वो सड़ जाती है। इस रोग के नियंत्रण हेतु प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। मृदा को धूम्रक द्वारा उपचारित करना चाहिए। 4. रेड कॉफीबोरर - इस कीट के लार्वा तने में छेद करके सुरंग बनाते है। इसके नियंत्रण हेतु कीट द्वारा बनाये गये छेद में हेप्टाक्लोर नामक रसायन डालना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण के लिए समय- समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, कुदाल, खुरपी, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।