इमली को भारतीय खजूर के नाम से भी जाना जाता है। इमली के लिए अर्ध-शुष्क, उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। इसके फल लाल से भूरे रंग के होते हैं, तथा स्वाद में बहुत खट्टे होते हैं। इमली का वृक्ष समय के साथ बहुत बड़ा हो सकता है और इसकी पत्तियाँ एक वृन्त के दोनों तरफ छोटी-छोटी लगी होती हैं।
इमली की खेती बिहार, उड़ीसा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, केरल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और निचले हिमालय में की जाती है।
इमली कई तरह के औषधीय गुणों से भरपूर होती है जैसे की कैल्शियम, आयरन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, मैगनीज और फाइबर। यह विटामिन सी, ई और बी का अच्छा स्त्रोत मानी जाती है।
3 से 4 माह उम्र तक के बीज को नर्सरी से ले जाकर खेत में बो देने चाहिये। इमली की खेती मुख्य रूप से क्यारियों में होती है। 10 x 10 मीटर की दूरी पर 1 x 1 मीटर के गड्डे करके लगा देना चाहिये।
गहरी जलोढ ज़मीन इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। यह लवणीय, क्षारीय एवं कणिकामय मिट्टियों एवं मृदा अपरदन वाली मिट्टियों में भी बढ सकती है।
पी के एम् 1,उरगम ,तेतेली, तेंतुल, आमली, पुली, डालिमा, तिंतिरी, चिंतपांडु
उचित मात्रा में सड़ी हुई गोबर खाद का उपयोग इसके लिए पर्याप्त होता है।
सिंचित फसल होने के कारण इसे नियमित रूप से पानी दे, यदि मिट्टी की पानी सोकने की क्षमता अधिक हो तो सिंचाई में थोड़ी नरमी बरती जा सकती है।
मल्चिंग के द्वारा शुरुआती दिनों में खेत को घास से दूर रखना चाहिये। साथ ही हल चला कर घास हटाते रहना चाहिये।
कुदाल, खुरपी, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।