शकरकन्द की खेती

शकरकन्द एक अच्छा व सस्ता भोजन है। इसे उबालकर या बालू में भुनकर तथा तरकारी दोनों ही रूपों में प्रयोग किया जाता है। इसकी लताएं पशुओं के चारे के काम में लाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त फलहार के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। औधोगिक क्षेत्र में शकरकन्द से एल्कोहल, स्टार्च तथा सिरप आदि बनाये जाते हैं। यह एक बहुवर्षीय पौधा है। शकरकन्द सूखे को सहन करने वाली तरकारियों में से एक है। अर्ध सूखे प्रदेशों में बिना सिंचाई के ही अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। यदि व्रद्धिकाल के आरंभ में ही वर्षा हो जाती है तो इसकी अच्छी उपज प्राप्त होती है। शकरकंद के लिए लंबे गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। इसके लिए 4 माह तक खूब धूप तथा अच्छी वर्षा और गर्म रातों वाले दिन अच्छे रहते हैं।


शकरकन्द

शकरकन्द उगाने वाले क्षेत्र

शकरकंद की खेती वैसे तो पूरे भारत में की जाती है। लेकिन ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल व महाराष्ट्र में इस की खेती सब से अधिक होती है। शकरकंद की खेती भारत में छठे स्थान पर आता है।

शकरकन्द की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

शकरकंद विटामिन ए का बहुत अच्छा माध्यम है. इसके सेवन से शरीर की 90 प्रतिशत तक विटामिन ए की पूर्ति हो जाती है। शकरकंद पोटैशियम का एक बहुत अच्छा माध्यम है. यह नर्वस सिस्टम की सक्रियता को सही बनाए रखने के लिए आवश्यक है। साथ ही किडनी को भी स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

बोने की विधि

शकरकन्द को बोने से पहले पौध क्षेत्र तैयार करना चाहिये। पौध के लिए अच्छे व मोटे तथा स्वस्थ शकरकंद चुनकर उन्हें जनवरी के महीने में अच्छी तरह तैयार किये गये पौधे-क्षेत्र में 45 x 30 सेमी की दूरी पर बो दिया जाता है तथा पानी आदि के लिए देख-रेख करते रहते हैं। शाखाएं निकलने के पश्चात शाखाओं को काट - काटकर रोपाई के काम में लाया जाता है। एक हेक्टेयर की रोपाई के लिए 0.05 हेक्टेयर पौध क्षेत्र पर्याप्त रहता है।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

शकरकन्द की उत्तम खेती के लिए भूमि रेतीली अथवा बलुई दोमट होनी चाहिये। उसमें जल निकास का उत्तम प्रबंध होना चाहिये। लेकिन दोमट भूमि में भी शकरकन्द को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। शकरकन्द की अच्छी उपज के लिये खेत की अच्छी तैयारी की आवश्यकता होती है। खेत को देशी हल से तैयार करने से पूर्व मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करनी चाहिये। इसके खेत के लिए 4-5 जुताइयाँ आवश्यक होती हैं।

बीज की किस्में

शकरकन्द के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

पूसा सफेद, पूसा सुनहरी, पूसा लाल, संकर 41व 42। इसके अतिरिक्त हरटोगैली, E.C.7193 भी शकरकंद की उन्नत प्रजातियां हैं।

बीज की जानकारी

शकरकन्द की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

1 हेक्टेयर खेत के लिए शकरकंद की 6-7 क्विंटल बेल या 59000 टुकड़ों की जरूरत पड़ती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

शकरकंद के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से  खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

शकरकन्द की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

शकरकन्द की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए 200 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद बोने से 20-25 दिन पहले मिट्टी में मिला देनी चाहिए। इसके बाद 50 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फॉस्फोरस तथा 80 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर रसायनिक उर्वरकों से देना चाहिए। नाइट्रोजन का 2/3 भाग फॉस्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा बोने से पूर्व अंतिम जुताई के समय तथा शेष नाइट्रोजन मेडों पर मिट्टी चढ़ाते समय देनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

शकरकन्द की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए। उसके बाद आवश्यकता अनुसार 10-12 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए।

रोग एवं उपचार

शकरकन्द की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

(i) तना सड़न - बेल की पत्तियों का रंग फीका पड़ कर पीला हो जाता है। पत्तियां मुरझा जाती हैं तथा पौधा ऐंठकर सूख जाता है। पुराने पौधों की पत्तियों के डंठलों पर भी आक्रमण होता है। पेड़ का तना अंदर से काला तथा कभी-कभी जमीन की सतह से फट जाता है। कंद का स्वाद खराब हो जाता है तथा 1/4 हिस्से पर नीचे तक काले रंग का गोलाकार निशान पड़ जाता है। इसकी रोकथाम के लिए बोने से पूर्व लताओं के टुकड़ों एवं कन्दों को 0.25% ऐरीटान के घोल में 10 मिनट तक डुबोकर लगाना चाहिए। (ii) मृदु विगलन - मृदु विगलन पौधे के किसी भी भाग से शुरू होकर गूदे तक पहुंच जाता है। ऐसे कन्दों से पानी निकलने लगता है। रोगी ऊतक का रंग बादामी तथा उसमें से हल्की-सी गंध आने लगती है। अनुकूल परिस्थितियां होने पर सारा कन्द विगलित हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए कन्दों के भण्डारण से पहले भण्डारगृह को अच्छी तरह साफ करके मरक्युरिक क्लोराइड के 1% घोल से अच्छी प्रकार धो लेना चाहिये तथा खुदाई के बाद कन्दों को 28-32 डिग्री ताप पर 2 सप्ताह तक रखने के बाद ही भण्डारगृह में रखना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खेत में खरपतवार निकालने के लिए खेत में 2-3 बार निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए। एक या दो बार मेड़ो पर मिट्टी भी चढ़ा देनी चाहिए।

सहायक मशीनें

कुदाल फावड़ा हल कल्टीवेटर आदि मशीनों की आवश्कता पड़ती हैं।