सनई भारत में उगाई जाने वाली मुख्य फसलों में से एक है। यह एक तेजी से उगने वाली फलीदार फसल है जो उसके रेशे और हरी खाद के लिए उगाई जाती है। मिट्टी में मिलाये जाने पर यह खारेपन और खनिजों के नुकसान को रोकती है और मिट्टी में नमी बनाए रखती है।
भारत वर्ष में उत्तर-प्रदेश, प्रतापगढ़, जौनपुर, आजमगढ़, सुल्तानपुर, सोनभद्र, मिर्जापुर, गाजीपुर, वाराणसी, बांदा व इलाहाबाद में सनई की अच्छी खेती होती है।
सनई के फूल में कैल्शियम, फॉस्फोरस और फाइबर भरपूर होता है। इसका फाइबर कब्ज और कैंसर से बचाव और नियंत्रण में भी सहायक है। सनई के फूलों की सब्जी खाने से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है।
बीज की गहराई 3-4 सैं.मी. होनी चाहिए। हरी खाद के लिए फसल को बीजने का सही समय अप्रैल से जुलाई है। बीज के लिए तैयार की फसल को जून महीने में बोया जाता हैं। जब फसल को हरी खाद के लिए बोया जाता है तब इसकी बिजाई छींटे द्वारा की जाती है। बीज के लिए फसल को बीजने के समय पंक्ति से पंक्ति का फासला 45 सैं.मी. रखें।
पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करके 2-3 जुताई देशी हल या हैरों से करना चाहिए।
एम.-19, के.-12, एम.-35
हरी खाद के लिए 75-100 किग्रा, रेशे के लिए 60-80 किग्रा तथा बीज उत्पादन के लिये 25-35 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है।
सनई के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से खरीदना चाहिए।
अच्छे परिणाम के लिए 15-20 किग्रा नाइट्रोजन, 60-80 किग्रा फॉस्फोरस उर्वरक की आवश्यकता होती है।
खेत में नमी बनाये रखने के लिये अवश्यक्तानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।
(i) मुरझान या उकठा - यह रोग फफूँद द्वारा लगता है। इस रोग में पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं। यह रोग अक्टूबर में दिखाई देता है और इसके प्रभाव से पूरा पौधा मुरझा कर नष्ट हो जाता है। इसे रोकने के लिये रोगरोधी किस्मों की बुवाई करनी चाहिए, फसल-चक्र अपनाना चाहिए और खेत की स्वच्छता का भी ध्यान रखना चाहिये। बीज को बोने से पहले एग्रोसन जी.एन. से उपचारित करना चाहिए। (ii) गेरूई या रतुआ - यह रोग एक फफूँद से लगता है। पौधे के सभी वायवीय भागों पर फफोले दिखाई देते हैं। इनका रंग कुछ पीला-भूरा होता है। धब्बे बिखरे रहते हैं व बाद में काले-भूरे हो जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिये 0.2% डाइथेन एम-45 के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
पहली सिंचाई के पश्चात निराई-गुड़ाई करना लाभप्रद माना जाता है।
मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, खुरपी-कुदाल, फावड़ा इत्यादि की आवश्यकता पड़ती है।