सूरजमुखी की खेती

सूरजमुखी हमारे देश के लिए तिलहन की एक नई फसल है जो भारत में 1969-70 में हुई खाद्य तेल की कमी के बाद उगाई जाने लगी है। यह 90-100 दिन में तैयार हो जाती है, इसलिए इसे सघन फसल चक्रों में सफलतापूर्वक उगाया जाता है। सूरजमुखी का तेल शीघ्रता से खराब नहीं होता। अतः इसे काफी समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसके तेल का उपयोग वनस्पति घी को तैयार करने में भी किया जाता है। इसकी गिरी काफी स्वादिष्ट होती है। इसे कच्चा या भूनकर मूंगफली की तरह खाया जाता है। इसकी खली मवेशियों को खिलाने के काम में लाई जाती है। खली में उच्च कोटि की 40-44% तक प्रोटीन होती है।


सूरजमुखी

सूरजमुखी की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

सूरजमुखी के बीज से 46-52 प्रतिशत तक तेल व 20-25 प्रतिशत प्रोटीन प्राप्त हो जाता है। सूरजमुखी के लिए संतृप्त वसीय अम्लों की मात्रा कम होने के कारण इसका तेल हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए काफी लाभकारी रहता है।

बोने की विधि

बीजों को 60 - 80 सेमी. की दूरी पर बनी हुई कतारों में बोना चाहिए। कतार में 20 - 25 सेमी. की दूरी पर बीज डालना चाहिए। बीज 3-4 सेमी. से गहरा नहीं पड़ना चाहिए। बड़े पैमाने पर मक्का बोने की मशीन से इसकी बुवाई की जा सकती है। असिंचित क्षेत्र में 50 से 60 हजार व सिंचित क्षेत्रों में 80 से 100 हजार पौधे प्रति हेक्टेयर होने चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

खेत में एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करने के बाद दो-तीन बार हैरों या देशी हल से जुताई करके और पाटा लगा देना चाहिए। सूरजमुखी के बीजों का छिलका कड़ा और मोटा होता है, इसलिए बहुत धीरे-धीरे पानी सोखता है। अतः इसके जमाव के लिए पर्याप्त नमी जरूरी है। नमी की कमी होने पर पलेवा करके बुवाई करनी चाहिए

बीज की किस्में

सूरजमुखी के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

(i) यू. पी. एस.2-फसल अवधि से 145 दिन, पैदावार 20 से 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर, तेल 45% पाया जाता है। (ii) यू. पी. एस. 5-फसल अवधि 142 दिन, में पककर तैयार हो जाती है। इसकी उपज 23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दानों में तेल 45% तक पाया जाता है। (iii) दृषि - सूरजमुखी की यह एक संकर प्रजाति है। दानों में तेल का प्रतिशत 42 - 44% तथा दानों की उपज 1300 -1600 किग्रा प्रति हेक्टेयर है। यह प्रजाति सभी क्षेत्रों में रबी सीजन हेतु उपयुक्त है।

बीज की जानकारी

सूरजमुखी की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

8-10 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

सुर्यमुखी के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

सूरजमुखी की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

उर्वरक डालने से पहले मिट्टी की जांच अवश्य करा लेना चाहिए। यदि आप किसी कारण से मिट्टी की जांच न करा सकें तो सामान्य भूमि में एक हेक्टेयर के लिए 60 से 80 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस, 40-50 किलो पोटाश की जरूरत पड़ती है। इन पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए सही मात्रा में उर्वरक डालें। 50 किलो नाइट्रोजन तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत की अंतिम जुताई के समय मिट्टी में बिखेरकर मिला देना चाहिए। बची हुई 30 किलो नाइट्रोजन दूसरी सिंचाई के समय या फसल में फूल निकलते समय फसल की कतारों के बीच डालनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

सूरजमुखी की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

रबी में 2 बार और बसन्त ऋतु में 5-6 बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। फसल उगने के 25- 30 दिन बाद पहली और करीब 50 दिन बाद दूसरी सिंचाई कर देनी चाहिए। तीसरी सिंचाई फूल निकलने और दाने भरने की अवस्था में कर देनी चाहिए। खरीफ में आवश्यकतानुसार 3-4 सिंचाई की जानी चाहिए।

रोग एवं उपचार

सूरजमुखी की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

(i) झुलसा या अंगमारी रोग - इस रोग का प्रकोप अधिक होता है, जिसके फलस्वरुप सूरजमुखी की उपज में बहुत कमी हो जाती है। पौधे पर गहरे भूरे रंग और काले रंग के धब्बों के प्रकट होने के शीघ्र बाद फसल पर 0.3 प्रतिशत डाइथेन एम-45 या ड्यूटर का छिड़काव कर देना चाहिए। 10 दिनों के अंतर पर 4-5 बार छिड़काव करना चाहिए। (ii) इस रोग के अलावा जुलाई और अगस्त में बोई गई फसल में स्क्लेरोशियम म्लानि, शीतकालीन फसल में स्क्लेरोटिनिया म्लानि और मार्ग में बोई गई फसल में चारकोल विगलन नामक बीमारियों का प्रकोप भी हो जाता है। इन बीमारियों से बचाव के लिए खेत में से रोगी पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए तथा सूरजमुखी को दीर्घकालीन फसल चक्रों में उगाना चाहिए। फसल को रोग मुक्त रखने के लिए जिनेब (डाइथेन जैड-78) की 2.5 किग्रा. मात्रा 1,000 लीटर पानी में घोलकर प्रभावित फसल पर छिड़काव कर देना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर 10-15 दिन के अंतर पर छिड़काव करते रहना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खरीफ की फसल में दो बार और रबी तथा बसंत ऋतु की फसल में एक बार निराई-गुड़ाई जरूर कर देनी चाहिए। निकाले गये पौधे खाली स्थानों पर रोपे जा सकते हैं। पहले दो महीनों में 1-2 बार निराई-गुड़ाई आवश्यक है।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, आदि यंत्रो की आवश्यकता होती है।