गन्ना की खेती

परिचय➩➣गन्ना एक प्रमुख व्यवसायिक फसल है।➣विषम परिस्थितियाँ जैसे कीट या रोग आदि गन्ने की फसल को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर पाते इस कारण गन्ने की खेती अपने आप में सुरक्षित व लाभप्रद खेती होती है।➣गन्ने के साथ अंतर फसल लगाकर 3-4 माह में ही प्रारंभिक लागत मूल्य को प्राप्त किया जा सकता है | जलवायु➩➣गन्ने की खेती के लिए शुष्क जलवायु अच्छी मानी जाती है |➣गन्ने की बुआई के समय 30-35 डिग्री से. तापमान होना चाहिए |➣जलवायु का प्रभाव सबसे ज़्यादा उपज की गुणवत्ता  पर पड़ता है | ➣यदि खेत में पानी अधिक समय तक भर जाए तो पैदावार की गुणवत्ता में कमी आ जाती है |➣यदि तापमान कम हो जाए और कोहरा हो तो गन्ने से बनने वाली चीनी की गुणवत्ता में  कमी आ जाती है |खेती का समय➩➣गन्ना एक बहुवर्षीय फसल है जो शरद (अक्टूबर), बसंत (फरवरी-मार्च), तथा आषाढ़ (जुलाई) में बोई जाती है। ➣आषाढ़ गन्ने की बुआई  मुख्यत: महाराष्ट्र में की जाती है, जबकि भारत में ज़्यादातर  स्थानों में  गन्ने की बुआई  बसंत और शरद  ऋतु  में की जाती है।➣शरदकाल में की गई बुआई, बसंतकाल में की गई बुआई की तुलना में 25-30 प्रतिशत व ग्रीष्मकाल में की गई बुआई की तुलना में 30-40 प्रतिशत अधिक पैदावार देती है।


गन्ना

गन्ना उगाने वाले क्षेत्र

प्रमुख क्षेत्र➩➣भारत में प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, बिहार, पंजाब और हरियाणा है | 

गन्ना की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

पोषण मूल्य➩➣गन्ने के रस में भरपूर मात्रा में पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक, थायमिन, राइबोफ्लेविन और अमीनो एसिड जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते हैं।➣एक गिलास (240 मि.ली.) गन्ने के रस में 180 कैलोरी, 30 ग्राम शर्करा और आहारी रेशे भी काफ़ी मात्रा में पाए जाते है।

बोने की विधि

बुवाई की विधि➩➣भारत के विभिन्न भागों में गन्ना तीन तरीकों से लगाया जाता है।समतल रोपण➩➣इस विधि में उथले (8-10 सेंटीमीटर गहरे) कुंडों को स्थानीय हल या कल्टीवेटर से 75 से 90 सेंटीमीटर की दूरी पर कुंडों को खोल दिया जाता है।➣रोपण के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। उनमें एक सिरे से दूसरे सिरे तक सेल्ट लगाए जाते हैं, इस बात का ध्यान रखते हुए कि प्रत्येक 30 सेंटीमीटर लंबी फ़रो में एक तीन सेल्ट (गन्ने के बीज)  गिरे➣इसके बाद कुंडों को 5-7 सेंटीमीटर मिट्टी से ढक दिया जाता है और भारी प्लांकिंग करके खेत को समतल कर दिया जाता है।➣उत्तरी भारत के अधिकांश भाग और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में इस विधि से गन्ना लगाया जाता है।कुंड रोपण➩➣इस विधि में गन्ने की धार से उत्तरी भारत में लगभग 10-15 सेंटीमीटर गहरी और दक्षिण भारत में लगभग 20 सेंटीमीटर गहरी कुंड बनाई जाती है।➣सेल्ट को खांचों में अंत से अंत तक लगाया जाता है, सेल्ट को फ़रो में ढकने के तुरंत बाद 5-6 सेंटीमीटर मिट्टी से ढक दिया जाता है |➣यह विधि पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों और प्रायद्वीपीय भारत में, विशेष रूप से भारी मिट्टी में प्रचलित है।खाई विधि➩➣इस विधि का प्रयोग तटीय क्षेत्रों के साथ-साथ  कुछ अन्य क्षेत्रों में  भी किया जाता है, जहाँ  फसल बहुत लंबी होती है और बरसात के मौसम में बहुत तेज़  हवाएँ चलती है जो गन्ने  की कटाई का कारण बनती हैं |➣फसल को गिरने से बचाने के लिए खाई विधि अपनाई जाती है।➣75-90 सेंटीमीटर की दूरी पर गड्ढों को रिजर की मदद से या शारीरिक श्रम से खोदा जाता है।➣खाई लगभग 20-25 सेंटीमीटर गहरी होनी चाहिए।➣इसके बाद पहले से तैयार उर्वरकों के मिश्रण (एन.पी.के.) को खाइयों में समान रूप से फैलाकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए।➣सेल्ट को एक सिरे से दूसरे सिरे खाइयों में लगाया जाता है। ➣गामा बी.एच.सी. 20 ई.सी. 2 लीटर की दर से 300 -400 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से दीमकों और प्ररोह तथा जड़ बेधक को नियंत्रित करने के लिए खाइयों में लगाए गए गाद के ऊपर छिड़काव किया जाता है।➣इसके तुरंत बाद, समतल बुआई  के समय  खाइयों को ढीली मिट्टी से भर दिया जाता है➣ट्रैक्टर से चलित गन्ना बोने की मशीन खाइयों में गन्ना बोने के लिए एक बहुत उपयुक्त उपकरण हैअंतर्वर्तीय खेती➩➣गन्ने की फसल की वृद्धि शुरू के 2-3 माह तक धीमी गति से होती है, जिससे गन्ने की दो कतारों के बीच का स्थान काफ़ी समय तक खाली रह जाता है।➣इस बात को ध्यान में रखते हुए यदि कम अवधि के फसलों को अंतर्वर्तीय खेती के रूप में उगाया जाए तो गन्ने के फसल के साथ-साथ प्रति इकाई अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो सकती है। ➣इसके लिए निम्न फसलें अंतर्वर्तीय खेती के रूप में उगाई जा सकती हैशरदकालीन खेती - गन्ना+आलू, गन्ना+प्याज, गन्ना+मटर, गन्ना+धनिया, गन्ना+चना, गन्ना+गेंहू; की फसल लें |बसंतकालीन खेती - गन्ना+मूंग, गन्ना+उड़द, गन्ना+धनिया, गन्ना+मेथी; की फसल लें |

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टी➩➣गन्ने की खेती मध्यम से भारी काली मिट्टी में की जा सकती है। ➣दोमट मिट्टी वाली ऐसी भूमि जिसमें सिंचाई व जल निकासी की उचित व्यवस्था तथा पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच हो, गन्ने की खेती के लिए सर्वोत्तम होती है।खेत की तैयारी➩➣ग्रीष्मकाल में अप्रैल से 15 मई के पूर्व तक खेत की एक गहरी जुताई करें।➣इसके पश्चात् 2 से 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर तथा रोटावेटर व पाटा चलाकर खेत को भुरभुरा, समतल एवं खरपतवार रहित कर ले तथा रिजर की सहायता से 3 से 4.5 फुट की दूरी में 20-25 से.मी. गहरी कुंडे बनाए ।मिट्टी का शोधन➩जैविक विधि➩➣जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा विरडी नामक जैविक फफूंद नाशक से उपचार किया जाता है। ➣इसे प्रयोग करने  के लिए 10 कि.ग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद में 8-10 ग्राम ट्राईकोडर्मा विरडी को मिला देते हैं साथ ही  मिश्रण में नमी भी बनाए रखे ।➣4-5 दिन पश्चात् फफूंद का अंकुरण हो जाता है तब इसे तैयार क्यारियों में अच्छी तरह मिला देते हैंरसायनिक विधि➩ ➣रसायनिक विधि के तहत उपचार हेतु कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी की दर से मिला देते है फिर इस घोल से भूमि को इस प्रकार से तर करते हैं, जिससे 8-10 इंच की गहराई तक मिट्टी तर हो जाए। ➣4-5 दिन पश्चात् बुआई करते हैं ।

बीज की किस्में

गन्ना के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

प्रजातियाँ➽सीओजे 85➩ ➣गन्ने की यह अगेती पकने वाली किस्म है जो रतुआ रोग और कोहरे को सहन कर लेती है।➣इसके पौधे का आकार खुला होने के कारण इसके गन्ने जल्दी गिरते हैं।➣इसलिए लाइनों में  साथ- साथ मिट्टी चढ़ाना और पौधे को बाँधना पड़ता है➣औसत उपज -306  क्विंटल प्रति एकड़ ➣फसल की अवधि - 300-350 दिनसीओ 118➩ ➣गन्ने की यह अगेती पकने वाली किस्म है इसके गन्ने मध्यम  मोटे और हरे पीले रंग के होते हैं। ➣यह किस्म रतुआ रोग और कोहरे को सहने में सक्षम  है। ➣उपजाऊ भूमि जहाँ  पानी की सुविधा हो वहाँ  इस किस्म की पैदावार ज़्यादा प्राप्त की जाती है। ➣औसत उपज - 320 क्विंटल प्रति एकड़ ➣फसल की अवधि - 300-350 दिनसीओएस 8436➩ ➣गन्ने की यह मध्यम  कद वाली किस्म है जिसके गन्ने ठोस, मोटे और हरे रंग के होते हैं। ➣यह किस्म रतुआ रोग को सहने योग्य और ना गिरने वाली किस्म है। उपजाऊ भूमि में इसकी  पैदावार अधिक  होती  है।➣औसत उपज - 307 क्विंटल प्रति एकड़ ➣फसल की अवधि- 300-350 दिन सीओ 1148➩ ➣इसके गन्ने ठोस और अच्छे जमाव वाले होते हैं। यह फोट की फसल के लिए भी प्रयोग किए जा सकते हैं।➣यह मध्यम दर्जे  का गुड़ बनाने के काम आती है। इस  किस्म में  रतुआ रोग  प्रतिरोधी क्षमता नहीं है। ➣औसत उपज -375  क्विंटल प्रति एकड़ ➣फसल की अवधि- 300-350 दिन सीओपीबी 93➩ ➣गन्ने का यह किस्म रतुआ रोग और ठंड  को सहने योग्य है। ➣यह किस्म में नवम्बर के महीने में 16-17% सुक्रोस मात्रा और दिसम्बर के महीने में 18% सुक्रोस मात्रा होती है। ➣यह अच्छी गुणवत्ता का गुड़ बनाने के काम आती है।➣औसत उपज- 335 क्विंटल प्रति एकड़ ➣फसल की अवधि- 325 दिन

बीज की जानकारी

गन्ना की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर➩ ➣गन्ना के बीज की मात्रा उसकी बुआई पद्धति, कतार से कतार की दूरी एवं गन्ने की मोटाई के आधार पर निर्भर करता है |➣गन्ने की बुआई के लिए बीज दर 30-35 क्विंटल प्रति एकड़ लें ।➣गन्ना उगाने के लिए बीज की मात्रा किस्म, बुआई पद्धति, कतार से कतार की दूरी एवं गन्ने की मोटाई के आधार पर निर्भर करती हैं।➣आमतौर पर एक एकड़ खेत की बिजाई के लिए 30-35 क्विंटल बीज (गन्नों) की मात्रा उपयुक्त होती हैं।➣अच्छे रोग मुक्त गन्नों का चयन करने के बाद उन्हें तीन कलियों (आँखों) वाले समूहों में काटा जाता है जो आमतौर पर 30 से 40 सेमी लंबे होते हैं।बीज उपचार➩ ➣गन्ने में बीज जनित रोग व कीट नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 0.80 ग्राम प्रति  लीटर पानी व क्लोरोपायरीफास 2.02 मि.ली. प्रति एकड़ पानी की दर से घोल बनाकर आवश्यक बीज का 15 से 20 मिनट तक उपचार करें।➣गन्ने के बीजों को रोपाई से पहले 2- 2.5 घंटे के लिए 50ºC तापमान वाले पानी में उपचारित करें। ➣पौधों को होने वाले शुरुआती रोगो, कीटों या बीज जनित रोगो से बचाने के लिए गन्नों के टुकड़ों या बीज को कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी व क्लोरोपायरीफास 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर वाले घोल में 10 से 15 मिनट तक डुबोकर रखें।

बीज कहाँ से लिया जाये?

गन्ने का बीज किसी विश्वनीय स्थान से खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

गन्ना की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

गन्ना की फसल में बुवाई के समय➩➣50 किलोग्राम यूरिया और 200 किलोग्राम किलोग्राम सिंगल फॉस्फेट और 40 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिए।बुवाई के 30 दिन बाद➩➣50 किलोग्राम यूरिया और 10 किलोग्राम इफको सागरिका दानेदार और 5 किलोग्राम सल्फर प्रति एकड़ के हिसाब डालना चाहिए।बुवाई के 90 दिन बाद➩➣50 किलोग्राम यूरिया और 5 किलोग्राम बायोविटा दानेदार प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिएबुवाई के 120 दिन बाद➩ ➣50 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिएशरदकालीन गन्ना➩  शरदकालीन गन्ने में नाइट्रोजन की कुल मात्रा को चार समान भागों में विभक्त कर बोने के क्रमशः 30, 90, 120 एवं 150 दिन में प्रयोग करें।बसन्तकालीन गन्ना➩ बसन्तकालीन गन्ने में नाइट्रोजन की कुल मात्रा को तीन समान भागों में विभक्त कर बोने के क्रमशः 30, 90 एवं 120 दिन में प्रयोग करें।➣नाइट्रोजन उर्वरक के साथ नीमखली के चूर्ण को मिलाकर प्रयोग करने में नाइट्रोजन उर्वरक की उपयोगिता बढ़ती है साथ ही दीमक से भी सुरक्षा मिलती है।गन्ने की फसल में सभी सूक्ष्म पोषक तत्व की पूर्ति  के लिए 20 कि.ग्रा. / एकड़ में  सूक्ष्म पोषक का निम्न  मिश्रण बनाकर  डाले➣फेरस सल्फेट➩  8 कि.ग्रा➣मैंगनीज सल्फेट➩ 4 कि.ग्रा➣जिंक सल्फेट➩ 4 कि.ग्रा.➣कॉपर सल्फेट➩ 2 कि.ग्रा.➣बोरेक्स मिश्रित➩  2 कि.ग्रा.➣विघटित रूडी➩  40 कि.ग्रा.

जलवायु और सिंचाई

गन्ना की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाई➩ ➣गरमी के दिनों में भारी मिट्टी वाले खेतों में 8-10 दिन के अंतर पर और ठंड के दिनों में 15 दिन के अंतर से सिंचाई करें।➣हल्की मिट्टी वाले खेतों में 5-7 दिन के अंतर से गरमी के दिनों में व 10 दिन के अंतर से ठंड के दिनों में सिंचाई करना चाहिए ।➣सिंचाई की मात्रा कम करने के लिए गड्ढों में गन्ने की सूखी पत्तियों की पलवार की 10-15 से.मी. तह बिछाए ।➣गन्ने की खेती में कम पानी की खपत के लिए ड्रिप (टपक विधि) से सिंचाई करे, इससे 60 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है।➣गरमी के मौसम तक जब फसल 5-6 महीने तक की होती है, स्प्रिंकलर (फुहारा) विधि से सिंचाई करके 40 प्रतिशत पानी की बचत की जा सकती है।➣वर्षा के मौसम में खेत में उचित जल निकासी का प्रबंध रखें।➣खेत में पानी का जमाव होने से गन्ने की वृद्धि एवं रस की गुणवत्ता प्रभावित होती है।➣गन्ने के फसल जमाव, कल्ले निकलते और वृद्धि के समय भूमि में नमी का होना आवश्यक होता है । ➣खेत को छोटी -छोटी क्यारियों में बाँट कर सिंचाई करे | 

रोग एवं उपचार

गन्ना की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

रोग और उनका नियंत्रण➽1) लाल सड़न रोग➩नुकसान के लक्षण➩➣गन्ना के रोगी पौधे की ऊपरी दो-तीन पत्तियों के नीचे वाली पत्तियाँ किनारे से पीली पड़कर सूखने लगती हैं व झुक जाती है।➣पत्तियों के मध्य भाग पर लाल-कत्थई धब्बों का दिखना जो बाद में राख के रंग के होने लगते है।➣तना फाड़कर देखने से ऊतक का रंग चमकीला लाल व सफेद तथा उस पर आड़ी तिरछी पट्टियाँ दिखती है।➣रोगी पौधे से शराब / सिरका जैसी गंध आती है।नियंत्रण➩➣इसके लिए लाल सड़न अवरोधी किस्म सी.ओ.जे.एन. 86141 लगाए➣बीज उपचार कार्बन्डाजिम या वीटावेक्स पावर 2 ग्राम / लीटर घोल से 20 मिनट तक उपचार करे।➣खड़ी फसल में इसकी रोकथाम के लिए एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC 300 मिलीलीटर प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। 2) उकठा रोग➩नुकसान के लक्षण➩➣इससे प्रभावित पौधे की वृद्धि कम हो जाती है |➣पत्तियों व पौधों में पीलापन आने लगता है और वह सूखना शुरू हो जाते हैं | ➣पौधों को चीरकर देखने पर गाँठो के पास लाल मटमैला दिखना शुरू हो जाता है।➣गन्ना अंदर से खोखला हो जाता है | नियंत्रण➩➣इसके लिए उकठा अवरोधी किस्मे - सी.ओ.जे.एन. 86141, सी.ओ.जे.एन. 86600 का चयन करे➣बुआई से पूर्व बीज उपचार कार्बन्डाजिम या वीटावेक्स पावर 2 ग्रा. / लीटर घोल से 20 मिनट तक उपचारित करे |➣अच्छी तरह पानी निकाल ले तथा जल निकासी की उचित व्यवस्था करें ।3)लीफ स्कैल्ड➩नुकसान के लक्षण➩➣पत्तियों पर पीली रेखाओं के मध्य, पतली सफेद रंग की रेखाएँ बन जाती हैं और पत्तियों का प्रभावित हिस्सा संक्रमण की एक छोटी अवधि के बाद सूख जाता है। ➣पत्तियाँ हल्के हरे रंग की हो जाती हैं।नियंत्रण➩➣फसल की कटाई के बाद और गरमी के मौसम में खेत की गहरी जुताई करें, फसल चक्रण प्रणाली का पालन करें। ➣फसल उगाने के लिए रोगमुक्त रोपण सामग्री चुनें।➣इसके नियंत्रण के लिए क्लोरोथालानिल या मैनकोज़ेब 75% WP  2 ग्राम / लीटर पानी में मिलाकर बारिश के मौसम में पौधों पर छिड़काव करें।4 ) पोक्काह बोएंग (चोटी गलन)➩नुकसान के लक्षण➩➣इसमें पत्तियाँ झुर्रीदार, आकार में छोटी, मुड़ी हुई और विकृत होती है तथा नई पत्तियों में में भी विकृति उत्पन्न हो जाती है। ➣डंठल या तने के छिलकों पर तिरछे कट पड़ जाते है।नियंत्रण➩➣फसल उगाने के लिए रोगमुक्त रोपण सामग्री का चयन करें, फसल की कटाई के बाद फसल के अवशेष  एकत्र कर नष्ट कर दें, खेत को खरपतवार से मुक्त रखें। ➣बुआई से पहले बीज को 30 मिनट के लिए कार्बेन्डाजिम @ 0.5 ग्राम / लीटर पानी के घोल में डुबोए।➣खड़ी फसल में इस रोग की रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 % WP 1 किलोग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें।5 ) पौधे मुरझाना➩नुकसान के लक्षण➩➣इस रोग के संक्रमण से पौधों की पत्तियाँ पिले रंग की हो जाती हैं और पौधे सुख जाते हैं।➣पौधों पर धसे हुए धब्बे बन जाते हैं और पौधों की गुणवत्ता और पैदावार कम हो जाती हैं।नियंत्रण➩➣फसल उगाने के लिए रोगमुक्त रोपण सामग्री का चयन करें, फसल की कटाई के बाद फसल के अवशेष  एकत्र कर नष्ट कर दें, खेत को खरपतवार से मुक्त रखें। ➣गन्ने की बुवाई करने से पहले रोपण सामग्री को कार्बेनडाज़िम @ 2 ग्राम + बोरिक एसिड @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में 10 मिनट तक भिगो कर रखें।कीट  प्रबंधन➽1) शीर्ष तना छेदक➩नुकसान के लक्षण➩➣इसका लार्वा पत्ती के  बीच वाले सख्त भाग के बीच से होते हुए पत्ती के आधार से तने में प्रवेश करता  है तथा 2-3 गाँठो तक छेद करते हुए फसल को नुकसान पहुँचाता है।➣बाद में प्रभावित गन्ने में बंची टॉप नामक बीमारी होती हैं जिसमे संक्रमण वाले भाग से बहुत सारी पत्तियाँ निकल आती हैं।➣इसके परिणामस्वरूप उपज में 53 प्रतिशत व मिठास में 3.6 प्रतिशत तक कमी आ जाती है।नियंत्रण➩➣इसके लिए इस कीट के नियंत्रण के लिए शीतकालीन बुआई अक्टूबर-नवम्बर माह में करें | ➣खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।➣कीट का प्रकोप बढ़ने पर स्पिनोटेरम 11.7% अस.सी. की 180 मि.ली. मात्रा का प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।2)सफेद मक्खी➩नुकसान के लक्षण➩➣निम्फ पीले अंडाकार होते हैं, जबकि वयस्क का शरीर पीले रंग का व सफेद मोमी पदार्थ से ढका होता हैं।➣पत्ती पीली पड़कर सूखती है और पत्तियों पर काले मटमैले रंग की परत विकसित हो जाती  है । उपज में 15 से 85 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है |नियंत्रण➩➣शीतकालीन बुआई  अक्टूबर-नवम्बर में करें | ➣उर्वरकों का उपयोग संतुलित मात्रा में करे | जल निकासी की उचित व्यवस्था बनाए रखे।➣इसके लिए इमिडाक्लोप्रिड  17.8 एस.एल. की 140 मि.ली. मात्रा 250 लीटर पानी प्रति एकड़ में उपयोग करें। 3)इंटरनोड छेदक➩नुकसान के लक्षण➩➣गन्ने के पौधों पर कैटरपिलर; रोपण के 3 महीने बाद हमला करते हैं।➣कई छिद्रों के साथ इंटर्नोड्स संकुचित और छोटा हो जाता है, नोडल क्षेत्र में छिद्र ताज़ा अपशिष्ट पदार्थों से भर जाते है, प्रभावित हिस्से पर ताज़ा अपशिष्ट पदार्थ मौजूद होते  है।नियंत्रण➩➣इसके लिए 150 लीटर पानी में 1 लीटर क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. मिलाए और रोज़   केन की मदद से कुंडों पर छिड़कें। ➣रेत या यूरिया उर्वरक में कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4% जी. 8 कि.ग्रा. / एकड़ की दर से  मिलाकर खेत में समान रूप से प्रसारित करें।4 ) अर्ली शूट बोरर➩नुकसान के लक्षण➩➣जमीनी स्तर से नीचे शाखाओं पर छेद मौजूद होते है।➣गन्ने के अंदर ‘डेड हार्ट’ (लाल रंग के धब्बे ) बन जाता है और अपशिष्टों से भर जाता है।➣कैटरपिलर(इल्ली) केंद्रीय शूट में छेद करता है और आंतरिक ऊतक पर फ़ीड करता है, जिससे डेड हार्ट होता है।➣भूसे के रंग के प्ररोह का सड़ा हुआ भाग एक अप्रिय गंध का उत्सर्जन करता है।नियंत्रण➩➣इसके नियंत्रण के लिए 20 कि.ग्रा. मिट्टी में कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी. या फाइप्रोनिल 0.3 ग्राम, 10 कि.ग्रा. / एकड़ की दर से डालें और रोपण के 45 दिन बाद पंक्तियों के साथ छिड़काव करें➣क्लोरेंट्रानिप्रोल 18.5 एस.सी. 150 मि.ली. या फिप्रोलिन 5% एस.सी. 600 मि.ली.  प्रति एकड़ का छिड़काव करे |5) पायरिल्ला कीट➩नुकसान के लक्षण➩➣पायरिल्ला कीट के बच्चे और वयस्क दोनों पत्ते के निचली सतह से रस चूसते रहते हैं। जिसके कारण पत्तों पर पीले से सफेद रंग के धब्बे हो जाते हैं, इस कीट का ज्यादा संक्रमण होने पर पत्ते नष्ट हो जाते हैं।➣ये पत्तों पर मीठा रस छोड़ते हैं। जिसके ऊपर काले रंग के फंफूद का विकास हो जाता हैं।नियंत्रण➩➣अण्डों को इकठा करके नष्ट कर दें।➣ज्यादा संक्रमण होने पर पौधों को डाइमैथोएट 30% 2 मि.ली. इसी या एसीफेट @ 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से पौधों पर छिड़काव करें।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण➩➣गन्ने का अंकुरण देर से होने के कारण कभी-कभी खरपतवारों का अंकुरण गन्ने से पहले हो जाता है। इसके नियंत्रण के लिए एक बार गुड़ाई करना आवश्यक होता है | ➣गन्ने को बोने के लगभग 4 माह तक खरपतवारों की रोकथाम आवश्यक होती है। इसके लिए 3-4 बार निराई करनी चाहिए। ➣रासायनिक नियंत्रण के लिए अट्राजिन 160 ग्राम प्रति एकड़ 325 लीटर पानी में घोलकर अंकुरण के पूर्व छिड़काव करें ।➣बुआई के बाद में उगे खरपतवारों के लिए 2-4 डी सोडियम साल्ट 400 ग्राम प्रति एकड़ 325 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।➣खड़ी फ़सल मोथा घास के नियंत्रण के लिए हालोसल्फुरोन मिथाइल (सेम्प्रा नाम से बाज़ार में आती है।) 75% WG 36 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें।छिड़काव के समय खेत में नमी होना आवश्यक है।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, या कल्टीवेटर हरी, फावड़ा, कुदाल आदि यंत्रो की आवश्यकता होती है।