स्ट्राबेरी की खेती

स्ट्रॉबेरी शीतोष्ण जलवायु का पौधा है। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती शीतोष्ण एवं समशीतोष्ण दोनों ही भागों में की जाती है। फल की बढ़वार के लिए 15 से 35 डिग्री तथा पुष्पन के समय 14 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड ताप उपयुक्त होता है। स्ट्रॉबेरी एक बहुत ही नाज़ुक फल होता है। जो कि स्वाद में हल्का खट्टा और हल्का मीठा होता है। । इसके फलों का उपयोग जैम, जैली, केन्डी तथा कई सुगन्धित पदार्थों को बनाने में किया जाता है।


स्ट्राबेरी

स्ट्राबेरी उगाने वाले क्षेत्र

भारत में स्ट्राबेरी की खेती  हिमाचल प्रदेश, छतीसगढ़, उत्तर-प्रदेश एवं बिहार, आदि राज्यो में की जाती है।

स्ट्राबेरी की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

स्ट्राबेरी में कई तरह के विटामिन तथा लवण पाये जाते हैं, जो स्वस्थ के लिए काफी लाभदायक होते हैं। यह कैल्शियम, मैग्नीशियम ,फॉस्फोरस व विटामिन ए, विटामिन सी, और विटामिन के, एवंफोलिक एसिड का अच्छा स्रोत है।

बोने की विधि

स्ट्राबेरी की व्यवसायिक खेती उठी हुई क्यारी में की जाती है जिसकी चौड़ाई 1 मीटर और ऊँचाई 30-35 सेमी रखी जानी चाहिए। लम्बाई आवश्यकतानुसार रख सकते हैं। दो उठी हुई क्यारियों के बीच की दूरी 50 सेमी रखनी चाहिए।प्रत्येक क्यारी पर पौधे की 2-3 पंक्तियां 20-30 सेमी की दूरी पर लगाई जाती है।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

हल्की जीवांशयुक्त दोमट (5.5-6.5 पी.एच.), भूमि जिसमे जल निकास की उचित व्यवस्था हो,इसकी खेती के लिए उपयुक्त रहती है। पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करके 2-3 जुताई देशी हल या हैरों से करके पाटा लगा देना चाहिए।

बीज की किस्में

स्ट्राबेरी के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

स्वीट चार्ली, ओफरा, केमारोजा, चैंडलर, ओसो ग्रैन्ड, अकिहिमे, आदि।

उर्वरक की जानकारी

स्ट्राबेरी की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

खाद और उर्वरकों का उपयोग मिट्टी की जाँच के आधार पर करना चाहिए। सामान्य स्थिति में रोपाई से पूर्व 10-15 टन सड़ी गोबर या कम्पोस्ट की खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। उर्वरकों में 120 किग्रा नाइट्रोजन, 80 किग्रा फॉस्फोरस एवं 60 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर देना चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

स्ट्राबेरी की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

स्ट्राबेरी की फसल में हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई पौध रोपने के तुरन्त बाद एवं बाद में नमी को ध्यान में रखकर सिंचाई करना चाहिए। स्ट्राबेरी में फल आने से पहले सूक्ष्म फव्वारे से सिंचाई कर सकते हैं, फल आने के बाद टपक विधि से ही सिंचाई करना चाहिए।

रोग एवं उपचार

स्ट्राबेरी की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

1. लाही कीट - यह कीट जीवाणु वाहक होता है। इस कीट के प्रकोप से पौधों की पत्तियाँ छोटी होकर किनारे से मुड़ जाती हैं। नई कोमल पत्तियों में इस कीट प्रभाव अधिक होता है। इस कीट के नियंत्रण हेतु मेटासिस्टाक्स की 1 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। 2. थ्रिप्स - इस कीट का प्रकोप पौधों में पुष्पन के समय अधिक होता है। यह कीट पत्तियों का रस चूसकर उन्हें हानि पंहुचाता है। इस कीट से बचाव के लिए इमिडाक्लोरोप्रिड 17 . 8 %  की 0.5 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। 3. ग्रे मोल्ड - यह एक फफूंद जनित रोग है, जो पौधे के पुष्प एवं फलों को प्रभावित करता है। इस रोग के नियंत्रण हेतु डाइथेनएम-45 की 1.5 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें। 4. पत्ती धब्बा रोग - इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों एवं फलों में धब्बे दिखाई देते हैं। इस रोग के बचाव के लिए डाइथेनएम-45 की 2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

मल्चिंग के प्रयोग से खरपतवार बहुत कम या नहीं उगते हैं।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, खुर्पी, प्लास्टिक मल्च,ड्रिप सिंचाई यन्त्र।