पालक की खेती

पालक की खेती अधिक क्षेत्रफल में की जाती है। इसका प्रयोग हरी सब्ज़ी के रूप में किया जाता है। इसकी पत्तियां स्वास्थ्य के लिये बहुत ही लाभकारी हैं। इसकी खेती सम्पूर्ण भारतवर्ष में की जाती है। सब्ज़ियों के अतिरिक्त, पालक का प्रयोग नमकीन पकौडे बनाने में, आलू मिलकर बनाने में तथा भुजिया बनाकर किया जाता है। पालक के सेवन से पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है।


पालक

पालक उगाने वाले क्षेत्र

पालक की खेती आंध्र प्रदेश, तेलंगना, केरला, तामिलनाडु, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और गुजरात आदि राज्यों में की जाती है।

पालक की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

पालक विटामिन ए, बी2, सी, ई, लोहा, मैग्नीशियम, फास्फोरस, जस्ता, प्रोटीन और आहार का अच्छा स्रोत है।

बोने की विधि

सामान्यतः पालक की बुवाई छिटकवां विधि से की जाती है। परन्तु पालक की खेती से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई पंक्तियों में करनी चाहिए। पालक की पंक्ति में बुवाई करने के लिए पंक्तियों व पौधों की आपस में दूरी क्रमश: 20-25 सेमी और 20 सेमी रखना चाहिए। पालक के बीज को 2 से 3 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए। इससे अधिक गहरी बुवाई नहीं करनी चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद 3 से 4 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए, जिससे खेत भुरभुरा हो जाए और उस पर पाटा लगा देना चाहिए।

बीज की किस्में

पालक के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

(i) पालक पूसा ज्योति - यह जाति अधिक पैदावार देती है। पत्तियां समान, मुलायम होती हैं तथा गहरी हरे रंग की होती हैं। पहली कटाई 40-45 दिनों में आरम्भ हो जाती है। सितम्बर से फरवरी के अन्त तक पत्तियों की वृद्धि अधिक होती है। 8-10 बार फसल की कटाई की जाती है।(ii) पालक पूसा हरित - इस किस्म के पौधे ऊंचे और समान वृद्धि वाले होते हैं। यह अधिक उपज देने वाली किस्म है जो सितम्बर से मार्च तक अच्छी वृद्धि करती है।

बीज की जानकारी

पालक की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 25-30 किग्रा बीजपर्याप्त रहता है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

पालक के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

पालक की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

200 से 250 क्विंटल कम्पोस्ट खाद या सड़ी गोबर की खाद बुवाई के एक माह पूर्व डालनी चाहिए। इसके बाद 100 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस और 60 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय डालनी चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा दो बार में बुवाई के बाद पहली कटाई के समय और फिर दूसरी कटाई के समय डालनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

पालक की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

मिट्टी में नमी की मात्रा कम हो तो सिंचाई अवश्य करें। गर्मियों में बुवाई के 4-5 दिन, सर्दियों में 8 से 10 दिन के अंतराल से सिंचाई करनी चाहिए।

रोग एवं उपचार

पालक की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

पालक में मुख्य रूप से डम्पिंग आफ एवं सरकोस्पोरा लीफ स्पॉट रोग लगते हैं, इनकी रोकथाम के लिए बीज को उपचारित करने के बाद ही बोना चाहिए। इसके साथ ही खड़ी फसल पर 0.2% ब्लाइटाक्स 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 15 दिन के अन्तराल पर दो-तीन छिड़काव करने चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

पालक की फसल में रबी फसल के खरपतवार अधिक हो जाते हैं। इनको पहली, दूसरी सिंचाई के तुरन्त बाद खेत में निकाई-गुड़ाई करते समय फसल से शीघ्र निकाल देना चाहिए। इस प्रकार से 2-3 निकाई फसल में करनी अति आवश्यक हैं।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, दराँती, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।