ज्वार की खेती

ज्वार गर्म जलवायु की फसल है। ज्वार की खेती समुद्र तल से लगभग 1500 मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है। ज्वार के अंकुरण के लिए न्यूनतम तापमान 9-10डिग्री सेंटीग्रेडउपयुक्त होता है। पौधों की बढ़वार के लिए सर्वोत्तम औसत तापमान 26 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड पाया गया है। फसल में भुट्टे निकलते समय 30 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान फसल के लिए हानिकारक होता है। ज्वार की फसल कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है, क्योंकि इनमें सूखे की दशा को सहन करने की अधिक क्षमता होती है।


ज्वार

ज्वार उगाने वाले क्षेत्र

भारत में ज्वार की खेती मुख्य रूप से कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्राप्रदेश, तमिलनाडु, मध्य-प्रदेश, गुजरात, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में की जाती है।

ज्वार की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

ज्वार में मिनरल, प्रोटीन, फ़ाइबर, पोटैशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, ऑयरन और विटमिन बी कॉम्प्लेक्स जैसे कई पोषक तत्व पाये जाते हैं। गर्मी के मौसम में ज्वार का सेवन शीतलता प्रदान करता है।

बोने की विधि

पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी के 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। पंक्ति में बुवाई देशी हल के पीछे कूंड़ों में या सीडड्रिल द्वारा की जा सकती है। सीडड्रिल द्वारा बुवाई करना सर्वोत्तम रहता है क्योंकि इससे बीज समान दूरी पर और समान गहराई पर पड़ता है। ज्वार का बीज 3-4 सेमी पर बोना चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

ज्वार की खेती देश के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार की मृदाओं में की जाती है, परंतु अच्छे जल निकास वाली चिकनी दोमट या दोमट मृदा जिसका पी.एच. मान 6.0-8.5 के बीच हो, इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम होती है।अच्छी उपज लेने के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें, इसके लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या हैरो से करने के बाद 2-3जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करें। बोने से पहले पाटा चला कर खेत को समतल कर लेना चाहिए।

बीज की किस्में

ज्वार के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

उत्तर प्रदेश - सी.एस.एच.1,सी.एस.एच.14, सी.एस.वी.11, सी.एस.वी.10,सी.एस.वी.11,सी.एस.वी.113, आदि।मध्य-प्रदेश-सी.एस.एच.-13,सी.एस.एच-14,सी.एस.एच-16,सी.एस.एच-18, सी.एस.वी-15, एस.पी.वी.235 आदि। राजस्थान -सी.एस.एच-14,सी.एस.एच-13, आदि

बीज की जानकारी

ज्वार की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज की मात्रा उसके आकार, अंकुरण प्रतिशत, बुवाई का तरीका एवं समय, बुवाई के समय भूमि में उपस्थित नमी की मात्रा पर निर्भर करती है। साधारणतः एक हैक्टेयर क्षेत्रफल की बुवाई के लिए 12 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

ज्वार का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से खरीना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

ज्वार की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि फसल में उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग किया जाए। इसके लिए 10 टन गोबर या कंपोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 15 से 20 दिन पूर्व खेत में समान रूप से बिखेर कर भूमि में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। सिंचित दशा में 100 किग्रा नाइट्रोजन 50 से 60 किग्रा फास्फोरस तथा 40 से 50 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है, जबकि असिंचित (बारानी) दशा में 50 से 60 किग्रानाइट्रोजन, 30-40 किग्रा फास्फोरस तथा30-40 किग्रापोटाश पर्याप्त होता है। सिंचित दशा में नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय फर्टिसीडड्रिल द्वारा भूमि में डालें। नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा बुवाई के 30-35 दिन बाद खड़ी फसल में छिड़के। असिंचित दशा में उर्वरकों की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय ही भूमि में मिला दें।असिंचित दशा में 2 प्रतिशत यूरिया का 1,000 लीटर पानी में घोल बनाकर खड़ी फसल में छिड़काव करना लाभप्रद पाया गया है।

जलवायु और सिंचाई

ज्वार की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

ज्वार की फसल में पौधों की वृध्दि, फूल तथा दाना बनते समय पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है।ज्वार की फसल के लिए सिंचाई देने की चार क्रान्तिक अवस्थाएं होती है - 1. प्रारम्भिक बीज पौधों की अवस्था 2. भुट्टे निकलने से पहले की अवस्था 3. भुट्टे निकलते समय 4. भुट्टों में दाना बनने की अवस्था। उपरोक्त अवस्थाओं में पानी का अभाव होने पर ज्वार की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

रोग एवं उपचार

ज्वार की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

1. दानें का कंड (स्मट) - यह ज्वार का सबसे हानिकारक कवक जनित रोग है। इसका प्रकोप पौधों में भुट्टे निकलते समय होता है। इस कवक के बीजाणु अंकुरण के समय जड़ों द्वारा प्रवेश कर जाते हैं। पौधों में भुट्टे आने पर दानों की जगह कवक के काले बीजाणु भर जाते हैं। बीजाणु बाहर से एक कड़ी झिल्लीदार परत से ढके रहते हैं, जिसके फटने पर वे बाहर आकर फैल जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए बीज को कैप्टन या एग्रोसान जी.एन से 2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करके बुवाई करना चाहिए। 2. अर्गट - संकर ज्वार में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस बीमारी के बीजाणु हवा द्वारा फैलते हैं तथा इस बीमारी का प्रकोप फसल में फूल आने के समय होता है। पुष्प शाखा पर स्थिति स्पाईकिल से हल्के गुलाबी रंग का गाढ़ा व चिपचिपा पदार्थ निकलता है जो मनुष्य तथा पशुओ दोनों के लिए हानिकारक होता है। इस रोग की रोकथाम के लिए ग्रसित भुट्टों को काटकर जला देना चाहिए। भुट्टों में दाना बनने की अवस्था पर थीरम (0.2%) के 2-3 छिड़काव करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

ज्वार की अच्छी उपज लेने के लिए निराई-गुड़ाई करना अति आवश्यक है। निराई-गुड़ाई करने से खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ भूमि में वायु का संचार होता है। यदि किसी कारणवश निराई-गुड़ाई सम्भव न हो तो बुवाई के तुरन्त बाद एट्राजिन नामक खरपतवारनाशी की 0.75-1.0 किग्रा मात्रा (सक्रिय तत्व) का 700-800 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल या हैरोंदेशी हल,कल्टीवेटर, खुर्पी, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।