चीकू की खेती

चीकू एक उष्णकटिबंधीय फल है। इसकी खेती के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। ऐसे क्षेत्र जहां 125 से 250 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा होती है, इसकी खेती के लिए अत्यंत उपयुक्त हैं। फल के बेहतर विकास और चीकू की खेती के लिए 11 से 38 डिग्री सेल्सियस तापमान और 70 प्रतिशत आर्द्रता वाली जलवायु अच्छी मानी जाती है। शुरुआती वर्ष में चीकू के साथ अन्तर फसल के रूप में पपीता, टमाटर, बैंगन, फूलगोभी, दलहनी और कददू वर्गीय फसलें लगाने से आय की प्राप्ति के साथ खरपतवार का नियंत्रण किया जा सकता है। चीकू पाले के प्रति अधिक संवेदनशील है इसलिए आरम्भ के वर्षों में सर्दियों में पौधों को ठण्ड और पाले से बचाना जरूरी होता है।


चीकू

चीकू उगाने वाले क्षेत्र

भारत में चीकू मुख्यत: कर्नाटक, तामिलनाडू, केरला, आंध्रा प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात में उगाया जाता है।

चीकू की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

चीकू के फल में 71% जल, 1.5% प्रोटीन, 1.5% वसा, 25.5% कार्बोहाइड्रेट तथा 14% शक्कर होती है। इसमे विटामिन ए तथा विटामिन सी तथा फास्फोरस व आइरन आदि पोषक तत्व भी पाए जाते है।

बोने की विधि

अप्रैल-मई में या जुलाई महीने में वर्षा ऋतु के आरम्भ में पौध रोपण किया जा सकता है। 100 x 100 x100 सेमी के आकार के गड्ढे बनाकर इन गड्ढों में 10 किग्रा गोबर की खाद, 3 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 1.5 किग्रा म्यूरेट ऑफ़ पोटाश और 10 ग्राम फोरेट धूल अथवा नीम की खली (1 किग्रा) प्रति गड्ढे की दर से प्रयोग करते हैं। गड्डे भरने के एक महीने बाद मानसून के प्रारंभ में सघन घनत्व रोपण लिए 8 x 4 मीटर पौधों की रोपाई कर देते हैं। पौधे तैयार करना (प्रवर्धन) :- बीज और एयर लेयरिंग (गूटी) द्वारा मानसून के आरम्भ में ही जुलाई महीने में पौधे तैयार किये जाते हैं। हर दो हफ्ते बाद गूटी के 10-15 सैं.मी. नीचे v आकृति का चीरा देते रहें और 3 महीने बाद गूटी से तैयार पौधे को निकाल लें।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

चीकू को सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है लेकिन अच्छे जलनिकास वाली गहरी जलोढ़, बलुई दोमट और काली मिट्टी चीकू की खेती के लिए उत्तम रहती है। चीकू की खेती के लिए अच्छी तरह से तैयार जमीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के बाद 2-3 जुताई हैरों या कल्टीवेटर से करके पाटा लगा देना चाहिए।

बीज की किस्में

चीकू के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

 काली पत्ती :- चीकू की ये किस्म अधिक पैदावार तथा उत्तम गुणों वाली होती है, इसके फल अण्डाकार तथा कम बीजों वाले होते है।  छत्तरी :- चीकू की ये किस्म भी काली पत्ती की तरह ही, परन्तु कुछ कम गुणवत्ता वाला फल होता है। यह किस्म अधिक पैदावार वाली किस्म है।  ढोला दीवानी :- चीकू की इस किस्म के फल उत्तम गुणों वाले तथा सफेद अण्डाकार होते है।  क्रिकेट बॉल :- यह किस्म कलकत्ता लार्ज के नाम से प्रसिद्ध है। इसके चीकू बड़े तथा गोल होते है। इसका गूदा दानेदार होता है। इस वैरायटी के फल ज्यादा मीठे नहीं होते है।  बारामासी :- यह उत्तरी भारत की लोकप्रिय किस्म है। इसके फल गोल तथा मध्यम आकार के होते है। यह चीकू की बारह महीने फल देने वाली किस्म है।  पॉट स्पोटा :- पौधे पर गमले में ही फल लगना प्रारम्भ हो जाते है। इसका चीकू छोटा और अण्डाकार होता है जिसका शीर्ष भाग नुकीला होता है। इसके फल बहुत मीठे और सुगन्धित होते है ।

बीज की जानकारी

चीकू की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हैक्टेयर क्षेत्र में लगभग 300-312 पौधों की आवश्यकता होती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

चीकू के पौधे किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

चीकू की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

1 से 3 वर्ष के पौधों में 100 ग्राम यूरिया, 125 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP), 125 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश तथा 4-6 वर्ष के पौधों में 200 ग्राम यूरिया, 250 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP), 250 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश और 7-10 वर्ष के पौधों में 400 ग्राम यूरिया, 500 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP), 500 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश व 11 वर्ष के पौधें य अधिक आयु के पौधों में 800 ग्राम यूरिया, 1 किग्रा सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP), 750 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति वर्ष प्रति पेड़ की दर से प्रयोग करनी चाहिए। गोबर की सड़ी खाद 40 किग्रा प्रति पेड़ दिसम्बर-जनवरी में डालें इसी समय सुपर फॉस्फेट व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा डालनी चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा फरवरी में तथा शेष मात्रा जुलाई-अगस्त में डालें।

जलवायु और सिंचाई

चीकू की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

चीकू कुछ सीमा तक सूखे की स्थिति को सहन कर लेता है फिर भी अच्छी उपज के लिए सिंचाई आवश्यक है।छोटे पौधे को 6-12 दिन के अंतर से सर्दियों से गर्मियों तक सिंचाई करते रहें परन्तु वर्षा के समय अधिक दिनों के अन्तर पर आवश्यक्तानुसार सिंचाई करें।

रोग एवं उपचार

चीकू की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

1. फल छेदक कीट -यह कीट फलों में छिद्र कर फलों को हानि पंहुचाता है। इस कीट के नियंत्रण हेतु क्यूनालफ़ोस 0.05%) या कार्बराईल 0.2% का छिड़काव करें। दवा छिड़काव करने के पश्चात फलों को कोमल कपड़े या बटर पेपर से ढक देना चाहिए। 2. पत्ती धब्बा - इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों में कई छोटे सफ़ेद केन्द्रों के साथ गुलाबी-भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है। रोग के लक्षण दिखाई देने पर 15 दिनों के अंतराल पर डाईथेन जेड- 78 (0.2%) का छिड़काव करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण हेतु समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरो, कल्टीवेटर, फावड़ा, कुदाल तथा खुर्पी आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।

चीकू का फसल चक्र

चीकू की फसल में कितना समय लगता है?

<p>पौधे की रोपाई के लिए उपयुक्त समय जुलाई -सितम्बर है तथा पौध रोपण के 3-4 वर्ष पश्चात पौधों में फल लगना प्रारम्भ हो जाते हैं।</p>