भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा रबड़ उत्पादक देश है । मुख्यता दक्षिण भारत में रबर की की खेती की जाती है । इसके अलावा पूर्वोत्तर में भी रबर की खेती की जाती है । रबर की खेती की शुरुआत भी केरल से ही हुई थी । जो कि वर्तमान में भारत का सबसे बड़ा रबड़ उत्पादक राज्य है । छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए यह खेती काफी फायदेमंद साबित होती है ।
भारत में यह केरल में सर्वाधिक उत्पादन होता है तथा कर्नाटक, अंडमान निकोबार, तमिलनाडु आदि राज्यों में इसका उत्पादन किया जाता है।
यह नकदी फसल जिसका मुख्य रूप से उपयोग चप्पल जूता बनाने, कपडा उद्योग इत्यादि में किया जाता है
रबड़ का पौधा रोपण बिधि द्वरा करते है ! एक एकड़ में लगभग 150 पेड़ लगाए जा सकते हैं ।
रबर के पेड़ों की वृद्धि के लिए गहरी दोमट लाल एवं लेटराइट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है । दो से तीन बार खेत की जुताई करे !
रबड़ के बीज खेत में छोड़े जाने पर बहुत तेजी से अपनी व्यवहार्यता खो देते हैं। इसलिए बीज गिरने के मौसम के दौरान बीजों को प्रतिदिन उठाया जाता है और अंकुरण और रोपण के लिए जल्दी से नर्सरी में ले जाया जाता है। रबर प्लांटेशन स्थापित करने के लिए रोपण सामग्री ग्राउंड और पॉलीबैग नर्सरी में तैयार की जाती है। रबड़ का पौधा रोपण बिधि द्वरा करते है !
एक एकड़ में लगभग 150 पेड़ लगाए जा सकते हैं ।
बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।
नर्सरी में बीज की बुवाई के समय अच्छी बढ़वार के लिए वर्मीकम्पोस्ट या गोबर की खाद देना चाहिए। और पौधरोपण के समय मिट्टी परिक्षण के अनुसार कृषि विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर ही खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करें।
बुवाई से पहले सिंचाई करे ! भूमि में नमी की कमी से पौधों में नई जड़ें विकसित नहीं हो पाती है, जिसके फलस्वरूप पादप बढ़वार रूक सकती है। बुवाई के 30-35 दिनों बाद दूसरी सिंचाई देना चाहिए, क्योंकि इसके बाद पौधों में नए कल्ले तेजी से आना शुरू होते हैं और नये कल्ले बनाने के लिए पौधों को पर्याप्त नमीं एवं पोषण की आवश्यकता रहती है। आवश्कतानुसार सिंचाई करे !
खरपतवार की रोकथाम के लिए समय-समय पर पौधों के आसपास निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
मिट्टी पलट हल, देशी हल, कुदाल, खुरपी, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।