गुलाब की खेती

गुलाब का तना कांटेदार होता है। पत्तियाँ बारी बारी से घेरे में होती हैं और उनके कोने दांतेदार होते हैं। इसका उपयोग इसकी सुगंध, सौंदर्य अथवा औषद्यीय गुणों के लिए होता है।


गुलाब

गुलाब उगाने वाले क्षेत्र

उत्तर एवं दक्षिण भारत के मैदानी एवं पहाड़ी क्षेत्रों में जाड़े के दिनों में इसकी खेती की जाती हैI

गुलाब की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

होंठों का कला पैन, मुँह के छाले , पेट के रोग, सर दर्द में इसके तेल से काफी आराम मिलता है।

बोने की विधि

गुलाब की पौध रोपण के लिए 60 से 90 सेमी की दूरी पर 60 से 75 सेमी गहरे गोलाकार गड्ढे खोदकर प्रति गड्ढा 5 किग्रा सड़ी गोबर की खाद व 2 ग्राम एण्डोसलफान डस्ट मिलाकर गड्ढा भर देना चाहिए। पौधा लगाने के बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

खेत की 2 से 3 गहरी जुताई करें| प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाऐं ताकि ढेले टूट जाएं| बिजाई से 4-6 सप्ताह पहले खेती के लिए बैड तैयार करें। बैड बनाने कि लिए 2 टन गोबर की खाद और 2 किलो सुपर फासफेट डालें।

बीज की किस्में

गुलाब के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

हाईब्रिड टीज वर्ग, फ्लोरीबंडा वर्ग, ग्रेन्डीफ्लोरा, पॉलिएन्था, मिनिएचर वर्ग

उर्वरक की जानकारी

गुलाब की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

10 किलोग्राम गोबर, 40-60 ग्राम नाइट्रोजन, 20-30 ग्राम फास्फोरस एवं 20 ग्राम पोटाश प्रति वर्ग मीटर देना चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

गुलाब की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

गुलाब के लिए सिंचाई का प्रबंधन उत्तम होना चाहिए। गर्मी में आवश्यकतानुसार 5 से 7 दिनों के बाद तथा सर्दी में 10 से 12 दिनों के बाद सिंचाई करते रहना चाहिए I

रोग एवं उपचार

गुलाब की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

बैक्टीरियल और फंगल रोगयह रोग पौधों और फूलो दोनों पर ही देखने को मिलते है | इस तरह के रोग लग जाने पर पौधे की शाखाये सूखने लगती है साथ ही फूल और नई कलिया भी सूख जाती है | इस रोग की रोकथाम के लिए टैगक्सोन नाम के पाउडर की पांच ग्राम की मात्रा को 6 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए |सफ़ेद मक्खी कीट रोगसफ़ेद मक्खी का रोग गुलाब के पौधों में सबसे ज्यादा लगता है | इस रोग में सफ़ेद मक्खिया पौधों की पत्तियों का रस चूस लेती है जिससे पत्तिया नष्ट होकर गिर जाती है | इस रोग से रोकथाम के लिए डायफेन्थ्रीयुरोन 50 डब्लूपी के 20 ग्राम पाउच को लगभग 15 लीटर पानी में अच्छे से मिलाकर पौधों में छिड़काव करना चाहिए | इसके साथ ही स्पाइरोमेसिफेन 240 SC की 20 मिलीलीटर की मात्रा को 18  से 20 लीटर पानी में छिड़काव करना चाहिए |थ्रिप्स कीट रोगइस तरह का रोग अधिकतर पत्तियों और उनकी पत्तियों में देखने को मिलता है | यह रोग कीट कलियों और फूल दोनों का रस चूस लेती है, जिससे पत्तियों और कलियों पर बादामी रंग के घब्बे बन जाते है | इस रोग की रोकथाम के लिए फिप्रोनिल 5 एससी की 30 मिलीलीटर की मात्रा को लगभग 15 लीटर पानी में मिलाकर करना चाहिए | इसके अतिरिक्त इमिडाक्लोप्रिड 350 SC का भी इसी तरह से छिड़काव कर सकते है |स्केल किट रोगयह रोग पौधों के लिए अधिक हानिकारक होता है, स्केल किट रोग एक पतले सफ़ेद आवरण के पीछे खुद को छिपाये रहता है | यह पौधे के विकास को रोक देता है तथा ऐसे रोग पौधे की कोमल तने का रस चूसकर उसे ख़त्म कर देता है | जिससे पौधा पूरी तरह से सूख जाता है | इस तरह के रोग से रोकथाम के लिए क्लोरोपायरीफोस 2% के 10 किलो पैक्ट एक एकड़ में इस रोग से ग्रसित पौधों पर छिड़काव करना चाहिए | इस रोग का अधिक प्रभाव होने पर बुप्रोफेजिन 25 एससी के 30 मिलीलीटर को 15 लीटर पानी में मिलाकर अच्छे से छिड़काव करना चाहिए |मिलिबग कीट रोगयह कीट रोग पौधों की कोमल डुंख और पत्ते की निचली सतह से रस को चूस कर पौधों को अधिक नुकसान पहुँचाता है |जिससे पौधा पूरी तरह से नष्ट हो जाता है | इस रोग की रोकथाम के लिए बुप्रोफेजिन 25 SC का उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए |

खरपतवार नियंत्रण

 गुलाब की खेती में खरपतवार की बहुत ही कम समस्या होती है| महीने में एक बार क्यारियों की ऊपरी सतह की मिट्टी की हल्की गुडाई करनी चाहिए| मिट्टी की गुडाई करने से मिट्टी भुरभुरी बनी रहती है और मिट्टी की पानी भण्डारण की क्षमता भी बढ़ जाती है| गुड़ाई करते समय यह सावधानी रखनी चाहिए कि गुलाब की पतली जड़े न टूटें इसलिए हल्की गुड़ाई करनी चाहिए|

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, कुदाल, खुरपी, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।