तोरई की खेती

तोरिया के पौधे कम शाखा युक्त होते हैं। पत्तियां सीधी तने पर लगी होती हैं। इनकी ऊंचाई 15-120 सेंटीमीटर तक होती है। इसके बीज मोटे चिकने और पीले या भूरे रंग के होते हैं। इनकी जड़े भूमि में ऊपरी सतह पर फैली रहती हैं। इनमें पत्तियां शाखाओं पर लगी होती हैं। इनके बीच खुरदुरे वह गहरे भूरे रंग के होते हैं। तथा इन पौधों में मूसला जड़ पाई जाती है खाने में पौष्टिक आहार मिलता है।


तोरई

तोरई उगाने वाले क्षेत्र

तोरई की खेती सम्पूर्ण भारत में की जाती है। लेकिन इसकी खेती मुख्य रूप से केरल, उड़ीसा, कर्नाटक, बंगाल और उत्तर प्रदेश में की जाती है।

तोरई की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

तोरई में प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट ,तथा कई प्रकार में विटामिन और खनिज पाए जाते है। यह एक हरी सब्जी है और हरी सब्जी के गुण इससे मिलते हैं। तुरई में पाए जाने वाले खनिज में कैल्शियम , कॉपर , आयरन , मैग्नेशियम , मेगनीज , फास्फोरस , पोटेशियम आदि शामिल हैं। इसके अलावा इसमें विटामिन A , विटामिन C , विटामिन B समूह के रिबोफ्लेविन , थायमिन , फोलेट , नियासिन आदि होते है। कुछ मात्रा में आयोडीन और फ़्लोरिन भी पाए जाते है ।

बोने की विधि

सरसों की शुद्ध अकेली फसल को छिटकवाँ या लाइनों में बोया जाता है, वैसे अच्छी फसल लेने के लिए बुवाई पंक्तियों में करनी चाहिए।पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-45 सेमी. पौध से पौध की दूरी 10-15 सेमी. एवं बीज की गहराई 4-5 सेमी रखनी चाहिए। 👉 बुवाई के तरीके :-शुष्क दशाओं में अच्छी फसल लेने के लिए पौधों की उचित एवं वांछित पौध संख्या बनाये रखना वांछित पौध संख्या बनाये रखना वास्तव में बाधा है। इस समस्या के निवारण हेतु जहाँ तक संभव हो बीज को रिजर सीडर द्वारा पंक्तियों में बोया जाये।बुवाई के समय यह ध्यान रखना चाहिए कि बीज उर्वरक के संपर्क में न आये अन्यथा अंकुरण प्रभावित होगा। इसके लिए बीज को 4-5 से भी गहरा तथा उर्वरक को 7-10 से.मी. गहरा डाला जाये। अच्छे अंकुरण एवं उचित पौध संख्या को सुनिश्चित करने के लिए बुवाई से पूर्व बीजों को पानी में भिगोकर बोया जाये। इसके लिए सही तरीका यह होगा कि भीगे बोरे में बीजों को रखकर रात भर ढक दिया जाये या गीली मिट्टी में रख सकते हैं। बुवाई के तुरंत बाद यदि वर्षा हो जाये तब ऐसी स्थिति में पुनः बुवाई कर देनी चाहिए। अच्छे अंकुरण के लिए भूमि में 10-12 प्रतिशत नमी होनी चाहिए। 👉 बीजोपचार :-बीज जनित रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित एवं प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए। इसके लिए2.5 ग्राम थीरम प्रति किग्रा०बीज की दर से बीज को उपचारित करके ही बोयें। यदि थीरम उपलब्ध न हो तो मैकोजेब 3 ग्राम प्रति किग्रा०बीज की दर से उपचारित किया जा सकता है। मैटालेक्सिल 1.5 ग्राम प्रति किग्रा०बीज की दर से शोधन करके पर प्रारम्भिक अवस्था में सफेद गेरूई एवं तुलासिता रोग की रोकथाम हो जाती है।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

इसकी खेती रेतीली भूमि से भारी मटियार तक की सभी भूमियों में की जा सकती है परंतु दोमट भूमि में इसकी अच्छी पैदावार होती है तथा क्षारीय भूमि में इसकी फसल अच्छी होती है। तोरिया की फसल के लिए खेत तैयार करते समय पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से 15 सेंटीमीटर गहरी करनी चाहिए। इसके बाद 2-3 जुताई हैरों से करनी चाहिए तथा जुताई के बाद, पाटा लगाना चाहिए जिससे भूमि भुरभुरी हो जाए और नमी बनी रहे।

बीज की किस्में

तोरई के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

 तरोई की खेती के लिए क्षेत्र की जलवायु एवं भूमि संबंधी आवश्यकताएं बीज उपलब्ध बुवाई का समय ध्यान में रखते हुए निम्न प्रकार की प्रजातियां हैं। 👉 संगम :-यह संश्लिष्ट किस्म है। यह लगभग 112 दिन में पक जाती है और अधिक उपज देती है (प्रति एकड़ 6-7 क्विंटल) व तेल अंश 44 प्रतिशत है। 👉 टी एल 15 :-इसके पौधे की ऊँचाई मध्यम होती है। प्राथमिक तथा द्वितीय शाखायें बहुत अधिक होती हैं जिनमें पर्याप्त फलियाँ लगती हैं। बीज बड़े आकार के भूरे रंग के होते हैं जिनमें 44 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है। यह किस्म 85-90 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। यह तोरिया गेहूँ फसल-चक्र अपनाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसत उपज 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ है। 👉 टी एच 68 :-यह पकने में लगभग 90 दिन लेती है। यह अगेती किस्म है। इसके पौधे की ऊंचाई मध्यम (107 सैं. मी.) है। इसका बीज छोटा होता है (3.2 ग्राम / 1000 बीज) तथा तेल अंश 44 प्रतिशत है। इस किस्म के कुछ पौधों की फलियां नीचे झुक जाती है। यह तोरिया गेहूँ फसल चक्र के लिए सर्वोत्तम किस्म है। इसकी औसत पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ है जो लगभग संगम किस्म के बराबर है। 👉 टी.एल.-17 (2011) :-इसके पौधे की ऊँचाई मध्यम होती है शाखायें बहुत अधिक होती है जिनमें पर्याप्त फलियां लगती है बीज बड़े आकार के भूरे रंग के होते है जिसमें 42.0 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है यह किस्म 85-90 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है इसकी औसत उपज 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ है। 👉 काली तोरिया type-9, भवानी py-30 पीली तोरिया type-36,type - 151 भूरी तोरिया VSH-1 व पूसा कल्याणी।

बीज की जानकारी

तोरई की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर - तोरिया की फसल के लिए 2 से 3 किलोग्राम प्रति एकड़, मिश्रित फसल 1 से 2 किलोग्राम बीज प्रति एकड़।

बीज कहाँ से लिया जाये?

तोरइ के बीज  किसी विस्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

तोरई की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

👉उर्वरको का प्रयोग भूमि परीक्षण के आधार पर करें। यदि परीक्षण न कराया गया हो तो उर्वरकों का अनुपात एनपीके 20:30:20 प्रति एकड़ प्रयोग करें। 👉यूरिया :- 22 किलों प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं। शेष 22 किलों खड़ी फ़सल खरपतवारों को निकालने के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में डालें। 👉फॉस्फोरस :- 188 किलों एसएसपी प्रति एकड़ सम्पूर्ण मात्रा बुवाई केसमय खेत मिलाएं। 👉पोटास :- 34 किलों म्यूरेट ऑफ पोटास प्रति एकड़ सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय खेत मिलाएं। 👉 3 किग्रा सल्फर की मात्रा प्रति एकड़ खड़ी फ़सल मे देनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

तोरई की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

ग्रीष्मकालीन फसल की अच्छी उपज सिंचाई पर निर्भर रहती है. किसान ध्यान दें कि गर्मी के दिनों में इसकी फसल को लगभग 5-6 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई की जरूरत पड़ती है. अगर वर्षाकालीन फसल है, तो सिंचाई की जरूरत नहीं होगी. अगर बारिश नहीं हुई है, तो खेत में नमी के लिए सिंचाई कर सकते हैं.  

रोग एवं उपचार

तोरई की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

(i) झुलसा रोग - यह रोग फफूंद से लगता है। इस रोग के कारण पौधे पीले होकर सूख जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए डाइथेन एम 45 का 0.02% का घोल बनाकर 4 से 5 बार 10 से 15 दिन के अंतराल में छिड़काव करना चाहिए। (ii) मृदु रोमिल फफूंद -यह रोग फफूंदी से उत्पन्न होता है। इस रोग से पत्तियों पर सफेद चुर्ण सा दिखाई देता है। इससे दानों में तेल की मात्रा कम हो जाती है। इस रोग की रोकथाम के लिए जिनेब डाइथेन जेड- 78 का 0.1% के घोल का फसल पर 10 से 15 दिन के अंतराल से छिड़काव करना चाहिए। (iii) सफेद गेरुई -यह रोग भी फफूंदी के द्वारा उत्पन्न होता है। इस रोग से पत्तियों के निचले भाग पर सफेद फफोले बन जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए जिनेब डाइथेन जेड- 78 का 0.2% के घोल का फसल पर छिड़काव करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नष्ट करने के लिए एक निराई-गुड़ाई करनी चाहिए तथा पेन्डीमेथलीन 30 ई.सी.की 1 लीटर मात्रा प्रति एकड़ की दर से 200 - 300 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के बाद तथा जमाव से पहले छिड़काव करना चाहिए।

सहायक मशीनें

देशी हल या हैरों, कुदाल, फावड़ा की आवश्यकता होती है।