मूली की खेती

मूली का प्रयोग पत्तों तथा जड़ों दोनों के लिए किया जाता है। यह गर्मी और सर्दी दोनों ही मौसम में उगाई जाती है।मूली को सलाद के रूप में भी प्रयोग किया जाता है तथा पकाकर सब्जी के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।मूली उष्ण तथा शीत दोनों प्रकार की जलवायु में उत्पन्न की जा सकती है।परंतु मुख्यता शीतकाल में इसकी फसल अच्छी होती है। इसके लिए 10℃ से 15℃ ताप बहुत अच्छा रहता है।गर्म मौसम में इसकी जड़े अधिक खराब चरपरी तथा कड़ी हो जाती हैं।


मूली

मूली उगाने वाले क्षेत्र

मूली की खेती सम्पूर्ण भारत वर्ष में की जाती है।

मूली की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

मूली में विटामिन ए तथा सीअधिक मात्रा में होते हैं। यह स्वभाव से ठंडी तथा तर होती है, तथा कब्ज को दूर करके भूख को बढ़ाती है। यह यकृत तथा बढ़ी हुई तिल्ली एवं बवासीर से पीड़ित रोगियों के लिए और भी अधिक उपयोगी समझी जाती है।

बोने की विधि

मूली मेड़ो पर बोई जाती है। बीज को 30 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में बोया जाता है पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेमी रखी जाती है।बीज को लगभग 4 सेमी गहरा बोया जाता है। मूली की बुवाई मेड़ो पर भी की जाती है इसके लिए 30 से 40 सेमी की दूरी पर 25 सेमी उंची मेंड़े बनाई जाती हैं।इन मेड़ो 4 सेमी की गहराई पर बीज को 8 से 10 सेमी की दूरी पर बोया जाता है। यह विधि अच्छी है क्योंकि इसमें जड़ की वृद्धि अच्छी होती है और मूली मुलायम रहती हैं।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मूली विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाई जा सकती है परंतु इसके लिए जीवांश युक्त बलुई दोमट भूमि अधिक उपयुक्त समझी जाती है।मिट्टी हल्की व भुरभुरी होनी चाहिए। खेत में जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए। इसके लिए खेत की गहरी जुताई करना आवश्यक होता है क्योंकि भूमि जितनी भुरभुरी होगी, जड़ों का विकास उतना ही अधिक व शीघ्रता से होता है।मूली की बढ़िया फसल के लिए एक एकड़में करीब 5 टनगोबर की सड़ी खाद डालनी चाहिए। खेत की तैयारी के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से 1 या 2 जुताई करके देशी हल से 5-6 जुताईयाँ की जाएँ। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा चलाना चाहिए जिससे बड़े ढेले फूट जाएँ और मिट्टी भुरभुरी होकर खेत समतल हो जाए।

बीज की किस्में

मूली के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

👉 ह्वाइट आईसीकिल - शुद्ध, सफेद, पतली एवं मुलायम तथा बोने के 30 दिन बाद तैयार हो जाती है। 👉 जापानीज सफ़ेद:-यह किस्म नवंबर-दिसंबर महीने में बोने के लिए अनुकूल है। इसे भारत में जापान द्वारा लाया गया है। उत्तरी मैदानों में इसकी पिछेती बिजाई के लिए और पहाड़ी क्षेत्रों में जुलाई से सितंबर महीने में इसकी खेती के लिए सिफारिश की गई है। इसकी जड़ें बेलनाकार और सफेद रंग की होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 👉 पूसा चेतकी :-यह किस्म अप्रैल-अगस्त में बोने के लिए अनुकूल है। यह जल्दी पकने वाली किस्म है, और पंजाब में खेती करने के लिए अनुकूल है। इसकी जड़ें नर्म, बर्फ जैसी सफेद और मध्यम लंबी होती है। इसकी औसतन पैदावार 105 क्विंटल प्रति एकड़ और बीज 4.5 क्विंटल प्रति एकड़ होते हैं। 👉 पूसा हिमानी :-यह किस्म की बिजाई जनवरी-फरवरी महीने में शाम के समय करें| इसकी जड़ें सफेद और शिखर से हरी होती हैं| यह बिजाई के बाद 60-65 दिनों में कटाई के लिए तैयार होती हैं| इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| 👉 पंजाब पसंद :-यह किस्म की बिजाई मार्च के दूसरे पखवाड़े में शाम के समय करें| यह जल्दी पकने वाली किस्म है, यह बिजाई के बाद 45 दिनों में कटाई के लिए तैयार होती हैं| इसकी जड़ें लम्बी, रंग में सफेद और बालों रहित होती है| इसकी बिजाई मुख्य मौसम और बे-मौसम में भी की जा सकती है| मुख्य मौसम में, इसकी औसतन पैदावार 215 क्विंटल प्रति एकड़ और बे-मौसम में 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| 👉 पंजाब सफ़ेद मूली 2:-यह किस्म 60 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 236 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 👉 पूसा देसी:-यह किस्म उत्तरी मैदानों में बोने के लिए अनुकूल हैं। इसकी जड़ें सफेद रंग की होती हैं। यह किस्म बिजाई के बाद 50-55 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। 👉 पूसा रेशमी:-यह किस्म अगेती बिजाई के लिए अनुकूल है। यह 50-60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। 👉 अर्का निशांत:-यह लंबी और गुलाबी जड़ों वाली किस्म है। यह किस्म 50-55 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। 👉 Rapid Red White Tipped :-यह जल्दी पकने वाली यूरोपियन किस्म है। यह 25-30 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। इसकी जड़ें छोटी और चमकदार लाल रंग के साथ सफेद रंग का गुद्दा होता है।

बीज की जानकारी

मूली की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर :-एक एकड़ खेत में 4-5 किलोग्राम बीज काफी है।जड़ों के उचित विकास के लिए बिजाई मेंड़ों पर करे।

बीज कहाँ से लिया जाये?

बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदें।

उर्वरक की जानकारी

मूली की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

मूली की अच्छी व गुणवत्ता युक्त फसल लेने के लिए भूमि में पोषक तत्वों की उचित मात्रा होनी चाहिए। उर्वरकों की मात्रा मृदा परीक्षण के परिणाम के आधार पर तय किया जाना चाहिए। मूली मे उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी। उर्वरकों का अनुपात एनपीके 25:12:12 किलो प्रति एकड़ प्रयोग करें। 👉 नत्रजन :- 30 किलो यूरिया प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं और 25 किलो यूरिया खड़ी फ़सल में 30 से 35 दिन बाद खेत में डालें। 👉 फॉस्फोरस :- 75किलो एसएसपीप्रति एकड़बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्राखेत में मिलाएं। 👉 पोटास :- 20 किलो म्यूरेट ऑफ पोटास (mop)प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं।

जलवायु और सिंचाई

मूली की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

बुवाई के बाद, पहली सिंचाई करें। गर्मियों में मिट्टी की किस्म और जलवायु के आधार पर बाकी की सिंचाईयां 6-7 दिनों में करें और सर्दियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर करें। ज्यादा सिंचाइयां देने से परहेज़ करें इससे जड़ों का आकार बेढंगा और जड़ों के ऊपर बालों की वृद्धि बहुत ज्यादा हो जाती है। गर्मियों के मौसम में, कटाई से पहले हल्की सिंचाई करें। इससे फल तजव रहते है और दुर्गंध कम हो जाती है।

रोग एवं उपचार

मूली की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

👉 मृदु विगलन - इर्विनिया कैरोटावोर नामक जीवाणु द्वारा यह रोग फैलता है। यह प्रारंभिक अवस्था में आक्रमण करता है जिसके कारण जड़े सड़ने लगती हैं। इसकी रोकथाम के लिए नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों का टॉप ड्रेसिंग नहीं करना चाहिए और खेत में जल निकास का अच्छा प्रबंध करना चाहिए बीज को बोने से पूर्व थायरम या सेरेसन से 30 ग्राम दवा प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। 👉 सफेद रतुआ - इस रोग में पत्तियों पर सफेद फफोलेदार धब्बे बन जाते हैं इसकी रोकथाम के लिए इंडोफिल एम-45 के 2.5% घोल को एक या दो बार छिड़काव करना चाहिए। 👉 चेपा :-यह मूली का गंभीर कीट है। इसका हमला नए पौधे पर या पकने के समय होता है। हमला दिखने पर,रोकथाम के लिए मैलाथियॉन 50 ई सी 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 10 दिनों के अंतराल पर दोबारा दो-तीन बार स्प्रे करें। 👉 मुरझाना :-पत्तों पर पीले रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। इनका हमला ज्यादातर बारिश वाले मौसम में होता है। फलियों और बीजों पर फंगस लग जाती है और विकास धीमा हो जाता है।इनका हमला रोकने के लिए, मैनकोजेब 2 ग्राम और कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

खरपतवार नियंत्रण

पौधों में तीन-चार पत्तियां निकल आने पर मूली की फसल में पहली निकाई की जाती है। इसी समय मूली की पंक्तियों में फालतू पौधों को निकालकर बीच की दूरी 8 सेमी कर देनी चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, कल्टीवेटर, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा आदि यंत्रो की आवश्यकता होती है।