कद्दू की खेती

कद्दू का उपयोग सम्पूर्ण भारत में गर्मियों में सब्जी के रूप में किया जाता है।परिचय ➽➢कद्दू की उत्पत्ति भारत में हुई है। ➢यह एक बेल वाला पौधा है जिसे पूरे भारत में गर्मियों में सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है।➢इसके बीजों में से तेल निकाला जाता है जो शरीर और मस्तिष्क दोनों के लिए अच्छा होता है। ➢कद्दू में 96 प्रतिशत पानी होता है जो गर्मी के मौसम में स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता  है। ➢इसके पौधे बड़े व त्रिकोणीय आकार के पत्तों वाले तथा फूल पीले रंग के होते हैं। जलवायु ➽➢फसल की वृद्धि के लिए औसत 25 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल होता है। ज्यादा तापमान में पौधों की वृद्धि ज्यादा होती है।➢बीज की बुवाई के समय 21- 35 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल होता हैं।➢दिन और रात के  हवा के तापमान में जितना अधिक  अंतर होता है उतना ही पौधे का आकार लंबा और पत्ती का आकार छोटा होता है।➢हवा का तापमान वनस्पति विकास, फूल की शुरुआत, फलों की वृद्धि और फलों की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला मुख्य पर्यावरणीय घटक है।➢ध्यान दें – अधिक ठंड में इसके बीज अंकुरित नहीं हो पाते।खेती का समय ➽➢कद्दू की बिजाई के लिए फरवरी-मार्च और जून-जुलाई का समय उचित होता  है |


कद्दू

कद्दू उगाने वाले क्षेत्र

 कद्दू की बुवाई देश के सभी हिस्सों में की जा सकती है लेकिन इसका सबसे ज्यादा उत्पादन तमिलनाडु, कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में होता है.

कद्दू की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

➢कद्दू के कच्चे फलों का उपयोग सब्जी बनाने के लिए किया जाता है। ➢इसके 100 ग्राम अपरिपक्व फलों में 1.4% प्रोटीन, 0.4% वसा, 3.4% कार्बोहाइड्रेट, कैरोटीन 13 मिलीग्राम और विटामिन 18 मिलीग्राम होता है। ➢इसके फलों में औषधीय गुण भी होते हैं और इनका उपयोग सूखी खांसी व रक्त परिसंचरण में सुधार के लिए किया जाता है।

बोने की विधि

बुवाई की विधि ➽ ➢इसकी बुआई सीधे खेत में करें।➢बीज की बुआई कतारों में की जाती हैं।➢बीजों को मिट्टी में 1 इंच की गहराई में बोए।➢प्रत्येक जगह में 60 सेमी की दूरी पर दो बीज बोए। ➢हाइब्रिड किस्मों के लिए, बीजों को बैड के दोनों तरफ 45 सेमी की दूरी पर बोए 

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टी ➽➢इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है जैसे रेतली दोमट से भारी मिट्टी जिसमे जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो।➢अच्छे जल निकासी वाली और जैविक पदार्थों से भरपूर मिटटी जिसकी पीएच रेंज 6.0-7.0 के बीच हो वह कद्दू की खेती के लिए उपयुक्त होती हैं।➢इसकी खेती के लिए जल जमाव वाले खेत का चयन न करें।खेत की तैयारी ➽ सामान्यतः अन्य फसलों की तरह इसकी खेती के लिए भी खेत में पोषक तत्वों की मात्रा भरपूर होनी चाहिए. इसका सबसे सटीक उपाय है की आप खेत में पहली जुताई से पहले गोबर की बनी ( सड़ी) हुई खाद डाल कर उस पर 2 से 3 बार कल्टीवेटर से जुताई लगा दें और ऊपर से पाटा लगा दें जिससे की खेत समतल हो जाये. अगर हो सके तो अपने खेत को कम से कम 3 साल में एक बार हरी खाद  जरूर दें.  इससे जमीन को ताकत मिलती है तथा आपकी फसल भी कम से कम रासायनि खादों पर निर्भर रहती है.मिट्टी का शोधन ➽ जैविक विधि ➱ ➢जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा विरडी नामक जैविक फफूंद नाशक से उपचार किया जाता है। ➢इसे प्रयोग करने  के लिए 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में 1 किलोग्राम  ट्राईकोडर्मा विरडी को मिला देते हैं साथ ही  मिश्रण में नमी भी बनाये रखते हैं । ➢4-5 दिन पश्चात फफूंद का अंकुरण हो जाता है तब इसे तैयार क्यारियों में अच्छी तरह मिला देते हैं ।रसायनिक विधि ➱ ➢रसायनिक विधि के तहत उपचार हेतु कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी की दर से मिला देते है तथा घोल से भूमि को तर करते हैं जिससे 8-10 इंच तक  मिट्टी तर हो जाए । 4-5 दिनों के पश्चात बुआई करते हैं ।

बीज की किस्में

कद्दू के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

⇻उन्नत किस्में⇺पंजाब नवाब ➽➢कद्दू की यह किस्म बरसात के मौसम के लिए उपयुक्त है क्योंकि इसमें  सफेद मक्खी से फैलने वाले पीली शिरा मोज़ेक रोग के प्रति प्रतिरोधकता होती है। ➢औसतन उपज - 164 क्विंटल प्रति एकड़ ➢फसल की अवधि - 100-120 दिनपंजाब सम्राट ➽➢पंजाब सम्राट किस्म 2008 में जारी की गई थी | ➢इस किस्म की लताएँ - मध्यम लंबी, तना - कोणीय और पत्ते - गहरे हरे रंग के होते हैं।➢इसके फल छोटे और गोलाकर  होते हैं।➢इनके फल अपरिपक्व अवस्था में हरे रंग के और परिपक्व अवस्था में  हल्के भूरे रंग के  हो जाते  है।➢फलों में सुनहरे पीले रंग का गूदा होता है।➢औसतन उपज - 165 क्विंटल प्रति एकड़  ➢फसल की अवधि - 120-130 दिनCO 2 ➽➢इस किस्म के प्रत्येक फल का औसत वजन 1.5-2 किलो होता है।➢फल में नारंगी रंग का गूदा होता है। ➢औसतन उपज - 100 क्विंटल प्रति एकड़➢फसल की अवधि- 135 दिन पीपीएच-1 ➽➢यह जल्दी पकने वाली किस्म हैं। इसकी बेलें बौनी, पत्तों के बीच दूरी  कम और पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं।➢इस किस्म के फल छोटे और गोलाकार  होते हैं। ➢इसके फल अपरिपक्व अवस्था में  हरे रंग के और परिपक्व अवस्था में धब्बेदार भूरे रंग के हो जाते  है।➢औसतन उपज - 70 क्विंटल प्रति एकड़ ➢फसल की अवधि- 68-90 दिनपूसा विश्वास ➽➢कद्दू की इस किस्म की शाखायें ज्यादा फलती है।➢इसका फल सफेद धब्बों वाला गहरे हरे रंग से हल्के भूरे रंग का, गोलाकार व गूदा सुनहरी होती हैं।➢औसतन उपज- 180-190 क्विंटल प्रति एकड़➢फसल की अवधि- 120 दिनपूसा विकास ➽➢छोटी  बेले और हल्के हरे पीले धब्बो वाली मुलायम पत्तियां इस किस्म की विशेषता है।  ➢इसका फल: छोटा, चपटा, गोलका , पीले गूदे वाला, विटामिन-ए से भरपूर होता है।➢औसतन उपज- 160-170 क्विंटल प्रति एकड़ ➢फसल की अवधि- 95-105 दिन

बीज की जानकारी

कद्दू की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर ➽➢कद्दू की बुआई के लिए 1 -2 किलो प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है।बीज उपचार ➽➢मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बैनलेट या बविस्टिन 2.5 ग्राम/ किलोग्राम की दर  से बीजों का उपचार करें। ➢बुआई से पहले ट्राइकोडर्मा विराइड विरडी 4 ग्राम/किलोग्राम या स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 10 ग्राम/किलोग्राम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम/किलोग्राम की दर से बीजों का उपचार करें। 

बीज कहाँ से लिया जाये?

कद्दू का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

कद्दू की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

खाद और उर्वरक ➽ ➢नाइट्रोजन - 40 किलो (यूरिया 90 किलो) प्रति एकड़➢फॉस्फोरस -20 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 125 किलो) प्रति एकड़➢पोटाशियम - 20 किलो (मिउरेट ऑफ पोटाश 35 किलो) प्रति एकड़ ➢खेत में क्यारिओ को तैयार करने से पहले रूड़ी की खाद 8-10 टन डालें | नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई से पहले और शेष नाइट्रोजन की खाद 3-4 हफ्तों में खड़ी फसल में छिंडकाव करे |सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन ➽सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, लोहा, मैंगनीज, कॉपर, मॉलीबीडनम तथा बोरॉन आदि कद्दू की फसल में कम मात्रा में पाए जाते  है| जमीन की तैयारी से पहले मिटटी की जांच करवा लें और आवश्यकता अनुसार खेत में पोषक तत्व डालें।

जलवायु और सिंचाई

कद्दू की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाई ➽➢सही समय के अंतराल पर उचित सिंचाई आवश्यक होती है। बीज बोने के तुरंत बाद सिंचाई की आवश्यकता होती है। ➢मौसम के आधार पर, 6-7 दिनों के अंतराल पर लगातार सिंचाई आवश्यक है। फसल चक्रण में कुल 8-10 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।➢कम अवधि की फसल होने के कारण इसे बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। ➢यदि बीज पूर्व सिंचित कुंडों में बोया जाता है तो पहली सिंचाई बुआई के दूसरे या तीसरे दिन करें।➢गर्मी के मौसम में जलवायु व  मिट्टी के प्रकार के आधार पर 4-5 दिनों के अंतराल पर खेत की सिंचाई करें। ➢वर्षा ऋतु में वर्षा की आवृत्ति के आधार पर सिंचाई करें।➢कद्दू की उपज पर  ड्रिप सिंचाई का अच्छा प्रभाव पड़ता है इसके उपयोग से  उपज में 28% की वृद्धि की जा सकती है।

रोग एवं उपचार

कद्दू की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

⇻रोग और रोकथाम⇺1)पत्ती धब्बा रोग (एन्थ्रेक्नोज) ➽नुकसान के लक्षण ➱➢यह रोग जमीन से ऊपर कद्दू के लगभग सभी हिस्सों पर हमला करता है।➢पौधों के पुराने पत्तों पर पीले रंग के गोलाकार धब्बे और फलों पर धँसे हुए गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं।नियंत्रण ➱➢फसल चक्रण प्रथाओं का पालन करें, सिंचाई करते समय बेलों को भीगने से बचाएं।➢यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब या क्लोरोथालोनिल 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी की दर से 10-12 दिनों के अंतराल पर दो बार स्प्रे करें।2)खस्ता फफूंदी (पाउडरी मिल्डू) ➽नुकसान के लक्षण ➱  ➢इस रोग के लक्षण पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद चूर्ण के धब्बो के रूप में  दिखाई देते हैं इसके कारण पत्तियाँ  मुरझाने लगती  हैं।नियंत्रण ➱  ➢सिंचाई करते समय बेलों को भीगने से बचाएं।➢रोग का संक्रमण होने पर पौधों को कार्बेन्डाजिम @ 2 ग्राम या डिफेनोकोनाज़ोल 25% ईसी @ 1.5- 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से स्प्रे करें।   3)काला सड़ांध (ब्लैक रॉट) ➽नुकसान के लक्षण ➱➢इस रोग के संक्रमण से फलों और तने पर गीले व भूरे रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं।➢फलों का छिलका काले रंग का और झुर्रीदार हो जाता  है।➢बाद में फल कांस्य रंग के हो जाते हैं और संकुचित अंगूठीनुमा धब्बे दिखाई पड़ते हैं।नियंत्रण ➱➢रोगमुक्त बीज बोए, फसल कटाई के बाद खेत की जुताई करें। ➢ककड़ी भृंग और एफिड्स की बढ़ोतरी को नियंत्रण में रखें।➢बीज को बोने से पहले कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। ➢क्लोरोथालोनिल 75% WP 2 ग्राम/लीटर या जीरम @ 1.5- 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर इसका  प्रभावित क्षेत्र और पौधों पर बड़े पैमाने में  उपचार के लिए स्प्रे करें।4)तना झुलसा (स्टेम ब्लाइट) ➽नुकसान के लक्षण ➱    ➢पानी से लथपथ घाव पीले रंग से घिरे होते हैं और पत्तियों के अंतःस्रावी क्षेत्र सूख जाते है। ➢सूखने के बाद धब्बे फट जाते हैं। पानी से भीगे हुए घाव तने पर विकसित हो जाते हैं और हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं। ➢संक्रमित तने वाले भाग से लाल भूरा या काला गाढ़ा गोंद जैसा पदार्थ निकलता है। नियंत्रण ➱➢बीजारोपण से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें। ➢खेत को खरपतवारों से मुक्त रखें, पौधों को किसी भी तरह की चोट से बचाएं। क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 1.5 ग्राम/लीटर पानी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP @ 2.5 ग्राम/ लीटर पानी के साथ पौधों का छिड़काव करें।5) फल सड़न ➽नुकसान के लक्षण ➱ ➢मिट्टी के संपर्क में आने के कारण फल सड़ जाते  है।➢संक्रमित फलों पर फफूंदी लग जाती है। संक्रमित फलों का छिलका नरम हो जाता हैं और उनपर पानी से गीले गहरे हरे निशान दिखाई देते हैं और अंदर से फल पानीदार और मुलायम हो जाते हैं।नियंत्रण ➱➢ऊपरी सिंचाई विधि से फसलों की सिंचाई करने से बचें, फसल की कटाई के बाद गहरी जुताई करें | ➢पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखें। ➢उठी हुई क्यारियों पर फसल उगाए, जलजमाव की स्थिति से बचें। ➢पौधों पर क्लोरोथालोनिल या मैनकोज़ेब 75% WP 2 ग्राम/लीटर पानी के साथ छिड़काव  करें।⇻कीट और नियंत्रण⇺फल मक्खी (फ्रूट फ्लाई) ➽ नुकसान के लक्षण ➱ ➢यह कद्दू  में पाया जाने वाला एक हानिकारक कीट है। ➢मादा मक्खी युवा फलों के एपिडर्मिस के नीचे अंडे देती है। ये कीड़े गूदे को खाते हैं जिससे फल सड़कर गिर जाते हैं।नियंत्रण ➱➢मिथाइल यूजेनॉल + मैलाथियान 50 ईसी को 1:1 के अनुपात में मिलाएं और 10 मिलीलीटर चारा को पॉलिथीन बैग में 10/एकड़ की दर से रखें। ➢वयस्क मक्खियों को पकड़ने और मारने के लिए फ्लाई ट्रैप 2 प्रति एकड़ की दर का प्रयोग करें। ➢5 ग्राम गीला फिशमील पॉलिथीन बैग (20 x 15 सेमी) में छह छेद (3 मिमी व्यास) के साथ रखें। मछली खाने में 0.01 मिली फ़्लूबंडामाइड  मिलाएं और हर 7 वें दिन दोहराएं। हर 20वें दिन फिशमील का नवीनीकरण करें।2)लाल फल बीटल (रेड पम्पकिन बीटल ) ➽नुकसान के लक्षण ➱➢ये जड़, तना और मिट्टी को छूने वाले फलों को खाते हैं और वयस्क पत्ती और फूलों को खाते हैं। ➢बीटल पौधे के ऊतकों (नसों के बीच) में बड़े छेद पैदा करता है, जिससे विकास धीमा  हो जाता है और अंततः पौधे की मृत्यु हो जाती है।➢युवा पौधों को होने वाली क्षति अक्सर विनाशकारी होती है क्योंकि इससे फसल की परिपक्वता में देरी होती है। ➢यदि फूल प्रभावित होते हैं, तो इसके परिणामस्वरूप फलों की सेटिंग कम हो जाती है।नुकसान के लक्षण ➱➢बुआई में देरी से बचें, फसल चक्र प्रणाली  का पालन करें, फसल की कटाई के बाद फसल अवशेषों को इकट्ठा करके  नष्ट करें, अन्य चीजों को हटाकर  नष्ट कर दें | ➢नाइट्रोजन उर्वरकों का  अधिक मात्रा में उपयोग करने  से बचें। ➢फसल बोने से पहले खेत में बाढ़ सिंचाई करें, बोने से पहले खेत की गहरी जुताई करें। ➢जब कीट का हमला खेत में दिखाई दे तो पौधों को डाइमेथोएट 30% ईसी @ 1 मिली/लीटर या थियामेथोक्सम 40 ग्राम/ 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।3)सफेद मक्खी(वाइट फ्लाई ) ➽नुकसान के लक्षण ➱➢सफेद मक्खी के बच्चे छोटे, पीले अंडाकार होते हैं जबकि वयस्क पीले शरीर के होते हैं जो सफेद मोम से ढके होते हैं।➢वे पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण खराब होता है।नियंत्रण ➱➢सफेद मक्खी की निगरानी के लिए पीले चिपचिपे जाल (2 ट्रैप/एकड़) लगाएं।➢यदि सफेद मक्खियों का हमला दिखे तो इसके नियंत्रण के लिए एसीफेट 57 एस पी @ 300 ग्राम /एकड़ या थियाक्लोप्रिड 4.5 ग्राम /10 लीटर पानी या एसिटामिप्रिड 75 WP 4 ग्राम /10 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में घोलकर छिड़काव करें।4)लौकी प्लम मोथ ➽नुकसान के लक्षण ➱➢इल्लियों के खाने के कारण पत्तियों पर छोटे-छोटे छिद्र बन जाते हैं। गंभीर प्रकोप में पत्तियां पूरी तरह से इल्लियों द्वारा खा ली जाती हैं।नियंत्रण ➱➢बाढ़ सिंचाई विधि से बुआई  से पहले खेत की सिंचाई करें, खेत और आसपास के क्षेत्रों को खरपतवारों से मुक्त रखें। ➢बीज बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई करें, फसल की समय से बुआई करें, फसल चक्र का पालन करें। ➢कीट का संक्रमण होने पर स्पिनोसैड 45% एससी @ 64 मिली/एकड़ या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% एससी 60 मिलीलीटर प्रति एकड़ के साथ पौधों का छिड़काव करें।5)थ्रिप्स ➽नुकसान के लक्षण ➱ ➢यह कद्दू का गंभीर कीट हैं। थ्रिप्स के बच्चे पीले रंग के बिना पंखो वाले होते हैं जबकि वयस्क पीले से काले शरीर के होते हैं।➢वे पत्तियों और फूलों को खुरेदकर खाते हैं जिसके कारण पत्ते और फूलों पर सिल्वर से भूरे रंग की लाइने बन जाती हैं।  नियंत्रण ➱➢नीम के तेल या नीम के बीज की गिरी के अर्क @ 5% के साथ पौधों में छिड़काव करें। ➢कीट के रासायनिक नियंत्रण के लिए एसिटामिप्रिड 75 WP @ 4 ग्राम/ 10 लीटर पानी या एसीफेट 300 ग्राम/200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें। 

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण ➽ ➢निराई व गुड़ाई से खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है फसल की अच्छी वृद्धि और विकास के लिए गुडाई की आवश्यकता होती है। ➢पहली गुड़ाई रोपाई के 3- 4 सप्ताह बाद और दूसरी गुड़ाई पहली गुड़ाई के 3- 4 सप्ताह बाद  करें।➢खरपतवार पर  नियंत्रण खरपतवार नाशक रसायनो द्वारा किया जा सकता है | ➢रसायनिक खरपतवारनाशी ; खरपतवार उगने से पहले या उगने के बाद तब  प्रयोग करें जब मिट्टी में नमी हो। ➢खरपतवार उगने के बाद खरपतवारनाशी का प्रयोग तभी करें जब खरपतवार दो से चार पत्ती की अवस्था में हो | ➢नदीनों (खरपतवार) की रोकथाम के लिए बेलों के फैलने से पहले मिट्टी की ऊपरी परत की हल्की गुड़ाई  करें।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, फावड़ा, खुर्पी आदि यंत्रो की आवश्यकता होती है।