अफीम की खेती

पोस्त फूल देने वाला एक पौधा है जो पापी कुल का है. पोस्त भूमध्यसागर प्रदेश का देशज माना जाता है। यहाँ से इसका प्रचार सब ओर हुआ. इसकी खेती भारत, चीन, एशिया माइनर, तुर्की आदि देशों में मुख्यत: होती है. भारत में पोस्ते की फसल उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में बोई जाती है. पोस्त की खेती एवं व्यापार करने के लिये सरकार के आबकारी विभाग से अनुमति लेना आवश्यक है. पोस्ते के पौधे से अहिफेन यानि अफीम निकलती है, जो नशीली होती है.


अफीम

अफीम उगाने वाले क्षेत्र

अफीम की खेती उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में की जाती है। राजस्थान के झालावाड़, बारां, चित्तौडगढ, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा क्षेत्र में अफीम की खेती होती है।

अफीम की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

अफीम  विशेष रूप से मैंगनीज से भरपूर होता है, जो हड्डियों के स्वास्थ्य और रक्त के थक्के के लिए महत्वपूर्ण एक ट्रेस तत्व है। यह खनिज आपके शरीर को अमीनो एसिड, वसा और कार्ब्स का उपयोग करने में भी मदद करता है। वे तांबे में भी उच्च हैं, एक खनिज जो संयोजी ऊतक और परिवहन लोहा बनाने के लिए आवश्यक है। अफीम  तेल का उत्पादन करने के लिए बीजों को ठंडा दबाया जा सकता है, जो विशेष रूप से ओमेगा -6 और ओमेगा -9 वसा से भरपूर होता है। इसमें आवश्यक ओमेगा -3 वसा अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ALA) की थोड़ी मात्रा भी होती है।अनुसंधान आम तौर पर इन वसा में समृद्ध आहार को समग्र स्वास्थ्य में सुधार और हृदय रोग के कम जोखिम से जोड़ता है

बोने की विधि

अफीम की बुवाई दो प्रकार से (छिड़काव विधि या कतारों में) की जाती है। किंतु कतारों में बुआई करना ज्यादा उपयुक्त रहता है क्योंकि इस विधि में निराई-गुड़ाई, अफीम में चीरा लगाना एवं अफीम लूने व कटाई करने में आसानी रहती है। इसमे बीजों का अंकुरण 8 से 10 दिनों में पूर्ण हो जाता है। कतारों में बुवाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी होनी चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

अफीम की खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में की जा सकती है, जैसे कि मालवा क्षेत्र के कपास वाली काली मिट्टी से लेकर उत्तरी भारत की बलुई मिट्टी तक तथा चिकनी व चिकनी दोमट मिट्टी अफीम की खेती के लिए उपयुक्त है। मृदा की उर्वरा शक्ति व संरचना अच्छी होनी चाहिए इसके लिए जीवाश्म की मात्रा अति आवश्यक है तथा भूमि गहरी होनी चाहिए, जिससे पौधों की जड़ों का विकास अच्छा हो सके। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि मिट्टी अच्छी तरह से भुरीभुरी व ढेला रहित होनी चाहिए। भूमि को भुरभुरी बनाने के लिए हर जुताई के बाद पाटा लगाना चाहिए जिससे भूमि में नमी सुरक्षित रहती है।

बीज की किस्में

अफीम के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

तोलिया, रनजटक, धोला चोटा गोटिया, एम.ओ.पी.-3,एम.ओ.पी.-16 (जवाहर अफीम-16), शामा, श्वेता, कीर्तिमान (एन.ओ.पी.-4), चेतक (यू.ओ.-285), तृष्णा (आई.सी.-42)एवं जवाहर अफीम-540 (जे.ओ.पी.-540)

बीज की जानकारी

अफीम की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक एकड़ क्षेत्र में 2-3 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

अफीम के  बीज किसी विश्वसनीय स्रोत से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

अफीम की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

खेत की तैयारी के समय 4-5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 40 किग्रा नाइट्रोजन, 20 किग्रा फास्फोरस तथा 20 किग्रा पोटाश तत्व की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फॉस्फोरस व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय तथा शेष नाइट्रोजन को दो बार में बुवाई के 40-50 दिन व शेष मात्रा फूल की डोडियाँ निकलते समय देनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

अफीम की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

अफीम की बढोत्तरी के समय खेत में उचित नमी का होना आवश्यक है। पौधों की बढ़वार एवं पुष्पावस्था पर खेत में नमी की कमी होने पर अफीम उत्पादन एवं मॉर्फीन की मात्रा पर विपरीत असर पड़ता है। भारी मृदाओं में 7-8 एवं हल्की मृदाओं में 8-10 सिंचाई की आवश्यकता होती है।

रोग एवं उपचार

अफीम की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

पाले से बचाव - अफीम की फसल को पाले से बहुत नुकसान होता है। अतः पाला पड़ने की संभावना हो तो तुरन्त सिंचाई कर देना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

गुड़ाई एवं खरपतवार प्रबन्धन - निराई-गुड़ाई के समय पौधों की छटाई करके कतारों में पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी कर देनी चहिये। रसायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए बीजाई के पश्चात अर्थात अंकुरण से पूर्व अर्थात बुवाई के तीसरे - चौथे दिन आइसोप्रोट्यूरोन 0.125 किग्रा. सक्रिय तत्व या क्लोरतोलूरों 1.5 कि. ग्रा. सक्रिय तत्व का 500 से 600 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करें एवं छिड़काव के समय मिट्टी में नमी होना आवश्यक है।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, कुदाल, खुरपी, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।

अफीम का फसल चक्र

अफीम की फसल में कितना समय लगता है?

<p>अफीम की खेती अक्टूबर-नवम्बर की जाती है तथा इसकी कटाई का समय मार्च-अप्रैल है।</p>