परवल की खेती

परवल के पौधे लतादार होते हैं और भारत में इसकी खेती सब्जी के उत्पादन के लिए की जाती हैं।परिचय ➽➢परवल की खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु वाले इलाके उपयुक्त होते हैं।➢इसके पौधे कद्दू वर्गीय पौधों की श्रेणी के होते हैं।➢इसकी लताएं 3- 5 मीटर लम्बी होती हैं।जलवायु ➽➢परवल की खेती के लिए आद्र जलवायु व गर्म मौसम की आवश्यकता होती हैं।➢बारिश वाले इलाके इसकी उपज के लिए बेहतर होते हैं लेकिन ज्यादा बारिश होने पर इसकी बेलें और फल गल जाते हैं।➢बीज बुवाई के समय 20- 25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अंकुरण के लिए अनुकूल होता हैं।➢इसके पौधे 10 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान को सहन कर लेते हैं।खेती का समय ➽➢परवल के पौधों की रोपाई जून और अगस्त महीने में करनी चाहिए। 


परवल

परवल उगाने वाले क्षेत्र

भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, मद्रास, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल तथा तामिलनाडु राज्यों में विस्तारपूर्वक परवल की खेती की जाती है।

परवल की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

➢परवल के फल पोषक तत्वों से भरपूर होते है और इसमें विटामिन, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन आदि पोषक तत्व होते हैं।➢इसके फल पौष्टिक और स्वास्थय के लिए लाभकारी होते हैं।➢इसके फलों का इस्तेमाल सब्जी, अचार और लड्डू बनाने के लिए किया जाता हैं।

बोने की विधि

नर्सरी की तैयारी ➽ ➢परवल के पौधों को बीजो, जड़ों या कलम द्वारा उगाया जाता हैं।➢कलमे तैयार करने के लिए कटिंग एक से डेढ़ मीटर लम्बी होनी चाहिए।➢काटने के तुरंत बाद कलमों को गोबर और मिट्टी के मिश्रण के साथ भरे हुए पॉलीथीन बेगों में लगाकर सिंचाई करें (रोपाई के दौरान कटिंग के दोनों सिरों को मिटटी से बाहर रखें)।➢रोपाई के 25- 30 दिन बाद कलमें खेत में लगाने योग्य हो जाती हैं।बुवाई की विधि ➽➢परवल के पौधों की रोपाई करने से पहले अच्छे से जुताई और खरपतवार मुक्त बनाने के लिए भूमि को दो से तीन बार जोतना चाहिए।➢जुताई के बाद खेत में पाटा लगाकर जमीन को समतल बना दें।➢पौधों को क्यारिओं और मेड़ों के ऊपर लगाया जा सकता हैं दो लाइनों के बीच एक से दो मीटर का फासला रखें।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टी ➽➢परवल के पौधों को कई प्रकार की मिटटी में उगाया जा सकता हैं, पौधों से उच्च उपज प्राप्त करने के लिए बलुई दोमट मिटटी का चयन करना चाहिए।➢इसके पौधों के लिए लगभग 7 पीएच रेंज की मिट्टी अच्छी होती हैं।➢परवल के पौधे पानी के ठहराव के प्रति संवेदनशील होते हैं, इसलिए पौध रोपण से पहले सुनिश्चित करें कि खेत में अच्छी जल निकासी की सुविधा उपल्बध हो।खेत की तैयारी ➽➢मई-जून के महीनों में मिट्टी पलटने वाले हल से खेत को एकबार जुताई कर खुला छोड़ देना चाहिए ताकि हानिकारक कीड़े-मकोड़े मर जायें तथा खरपतवार सुख जायें।➢लता की रोपाई के लगभग एक महीना पहले मिट्टी में गोबर की सड़ी खाद अथवा कम्पोस्ट 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह मिला देना चाहिए।➢लता रोपाई के समय खेत को 3-4 बार देशी हल से जुताई करके पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा तथा समतल बना लेना आवश्यक है। यदि इसे ऊँची जमीन में लगाना है तो 3 जुताई देशी हल से करके उसके बाद पाटा लगा देना चाहिए मिटटी का शोधन ➽ जैविक विधि ➱➢जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा विरडी नामक जैविक फफूंद नाशक से उपचार किया जाता है। ➢इसे प्रयोग करने  के लिए 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में 1 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा विरडी को मिला देते हैं एवं मिश्रण में नमी बनाये रखते हैं । ➢4-5 दिन पश्चात फफूंद का अंकुरण हो जाता है तब इसे तैयार खेत में बीज बुवाई से पहले अच्छी तरह मिला देते हैं।रसायनिक विधि ➱ ➢रसायनिक विधि के तहत उपचार हेतु कार्बेन्डाजिम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी की दर से मिला देते है तथा घोल से भूमि को तर करते हैं , जिससे 8-10 इंच मिट्टी तर हो जाये। ➢मिटटी शोधन के 4-5 दिनों के पश्चात बुवाई करते हैं ।

बीज की किस्में

परवल के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

⇻उन्नत किस्में⇺काशी अलंकार ➽➢यह उच्च उपज देने वाली किस्म हैं और इसे मध्य और पूर्वी भारत के इलाकों में मुख्य रूप से उगाया जाता हैं।➢इसके फल हल्के हरे रंग के और मुलायम बीजों वाले होते हैं।➢औसतन उपज - 80 क्विंटल/ एकड़स्वर्ण अलौकिक ➽➢परवल की इस किस्म के फल लंबे और हल्के हरे रंग के होते हैं।➢इसके फलों का उपयोग लड्डू और पेठा बनाने में किया जाता हैं।➢इस किस्म को झारखंड, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाकों में उगाने के उगाने के लिए सिफारिश किया जाता हैं।➢औसतन उपज - 80- 100 क्विंटल/ एकड़स्वर्ण सुरुचि ➽➢इस किस्म के फल आकार में अंडाकार और हल्के हरे रंग के होते हैं।➢इसके फल सब्जी और मीठा बनाने के लिए उपयुक्त होते है और बुवाई के 120- 140 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं।➢औसतन उपज - 100- 120 क्विंटल/ एकड़शतरंज संकर 1 ➽➢इसके फल बड़े आकार के, गहरे हरे रंग की धारियों वाले बहुत आकर्षित होते हैं।➢इस किस्म को ज्यादातर बिहार और यूपी के ऊपरी इलाकों में उगाया जाता हैं।➢इसके पेड़ फल मक्खी कीट के प्रतिरोधी होते है।➢औसतन उपज -  112- 120 क्विंटल/ एकड़ फैजाबाद परवल ➽➢परवल की इस किस्म के फल हरे रंग के गोल आकर वाली बहुत आकर्षित होने के कारण इनकी बाजार में मांग अधिक होती हैं।➢इस किस्म को यूपी राज्य में उगाने के लिए सिफारिश किया गया हैं।➢औसतन उपज - 60- 65 क्विंटल/ एकड़

बीज की जानकारी

परवल की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर ➽ ➢परवल की रोपाई के लिए एक एकड़ में लग़भग 1600 पौधों की जरूरत होती हैं।बीज उपचार ➽➢बीज द्वारा पौध तैयार करते समय मादा पौधों को हटा देना चाहिए अन्यथा पैदावार कम होती हैं। बुवाई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी @ 2 ग्राम/ किलोग्राम बीजों की दर से उपचारित करें।

बीज कहाँ से लिया जाये?

परवल का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

परवल की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

खाद और उर्वरक ➽➢नाइट्रोजन -  32 किलोग्राम/ एकड़ (70 किलोग्राम यूरिया)➢फॉस्फोरस- 16 किलोग्राम/ एकड़ (35 किलोग्राम डीएपी या 100 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट) ➢पोटाश-       24 किलोग्राम/ एकड़ (40 किलोग्राम मुरिट ऑफ़ पोटाश)➢खेत की तयारी करने से पहले खेत में 4 से 5 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई फार्म यार्ड (FYM)या गोबर की खाद डालें।सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन ➽➢परवल के पौधों में कैल्शियम और बोरोन तत्व की ज्यादा कमी देखी जाती हैं इसकी कमी से फल अच्छे से विकसित नहीं होते। इनकी कमी को पूरा करने के लिए बीज बुवाई से पहले मिट्टी की जाँच करवा ले फिर आवश्यकतानुसार पोषक दे। 

जलवायु और सिंचाई

परवल की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाई ➽➢परवल के पौधों को सामान्य सिंचाई की जरूरत होती हैं।➢पहली सिंचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद करें।➢मौसम और मिटटी के आधार पर गर्मी के दिनों में 5-8 दिनों और सर्दी के मौसम में 12 से 15 दिनों के अंतराल पर खेत की सिंचाई करें।  ➢सिंचाई के समय बेलों या टहनियों के भागों को गीला न होने दें (विशेष रूप से फूल आने और फल लगने के समय)।➢फल बनने के चरण में खेत में उच्चित नमि होनी चाहिए और बारिश के मौसम में उचित जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए।

रोग एवं उपचार

परवल की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

⇻रोग और उपचार⇺1) पत्तों के निचली तरफ धब्बे (डाउनी मिल्ड्यू) ➽नुकसान के लक्षण ➪➢पत्ती की निचली सतह पर पाउडरी, भूरा, सफेद चूर्ण दिखाई देता है।➢जो बाद में पुरे पूरे पौधे में फैल जाता हैं और पत्तिया सुख जाती हैं।नियंत्रण ➪➢बुवाई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी @ 1 ग्राम/किलोग्राम बीज से उपचारित करें।➢यदि उपलब्ध हो तो रोग सहिष्णु या प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें, खेत और मेड़ को खरपतवार मुक्त रखें।➢पौधों को मैटालैक्सिल 8 %+ मैनकोजेब 64 %WP 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या ट्रायडाइमफ़ोन 25 डब्ल्यूपी @ 200 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से पानी में मिलाकर छिड़काव करें।2) चूर्णिल आसिता रोग (पाउडरी मिल्डू) ➽नुकसान के लक्षण ➪➢इस रोग के संक्रमण से पौधों की पुराणी पुरानी पत्तियों की निचली सतह पर सफ़ेद रंग के गोल धब्बे बन जाते हैं और बाद में ये धब्बे बड़े हो जाते हैं और पुरे पत्तों को घेर लेते हैं।  नियंत्रण ➪➢जब पौधों पर रोग के लक्षण दिखाई दें तो एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 23% एससी @ 1 मिली/ लीटर पानी या ट्रायडाइमफ़ोन 25 डब्ल्यू पी @ 200 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से पानी में मिलाकर छिड़काव करें।3) तना झुलसा (स्टेम ब्लाइट) ➽नुकसान के लक्षण ➪ ➢पानी से लथपथ घाव पीले रंग से घिरे होते हैं और पत्तियों के अंतःस्रावी क्षेत्र सूख जाते है। ➢सूखने के बाद धब्बे फट जाते हैं। पानी से भीगे हुए घाव तने पर विकसित हो जाते हैं और हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं। ➢संक्रमित तने वाले भाग से लाल भूरा या काला गाढ़ा गोंद जैसा पदार्थ निकलता है। नियंत्रण ➪ ➢बीजारोपण से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें। ➢खेत को खरपतवारों से मुक्त रखें, पौधों को किसी भी तरह की चोट से बचाएं। ➢क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 1.5 ग्राम/लीटर पानी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP @ 2.5 ग्राम/ लीटर पानी के साथ पौधों का छिड़काव करें। 4) मोजेक रोग ➽ नुकसान के लक्षण➢यह रोग सफ़ेद  मक्खी द्वारा फैलता हैं। इस रोग के कारण पत्तियाँ छोटी और मोटी होकर पीली हो जाती हैं, पौधे की वृद्धि रुक ​​जाती है। नियत्रंण ➪ ➢इसकी रोकथाम के लिए रोगग्रस्त पौधों को तुरंत नष्ट कर देना चाहिए।➢रोग का प्रसार रोकने के लिए डाइमेथोएट 1 मिली. प्रति लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 1 मिली. प्रति 5 लीटर पानी की दर से छिड़काव 15 दिन के अंतर में करना चाहिए।5) फल विगलन रोग (फ्रूट रॉट) ➽➢इस रोग से ग्रसित पौधों के फलों पर गहरे धब्बे बन जाते है।➢मिटटी के सम्पर्क में आने वाले फलों पर इस रोग का संक्रमण ज्यादा होता हैं।नियंत्रण ➪ ➢फलों को जमीन के सम्पर्क में आने से बचाएं।➢पौधों पर मैंकोजेब @ 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।⇻कीट और रोकथाम⇺1)लाल कद्दू बीटल (रेड पम्पकिन बीटल) ➽नुकसान के लक्षण ➪  ➢बच्चे पौधों की जड़ों को खाते हैं जिससे पौधे सुख जाते हैं और उनके खाने के निशानों को पौधे के निचले हिस्से और फलों पर देखा जा सकता हैं।➢वयस्क पत्तियों को खुरेदकर खाते हैं और उनपेउनमे  छेद बन जाते हैं।➢ज्यादा संक्रमण के कारण पत्तों पर बड़े छेद हो जाते हैं और पौधे सुख जाते हैं।नियंत्रण ➪ ➢फसल चक्रण प्रथाओं का पालन करें, फसल कटाई के बाद फसल अवशेषों को इकट्ठा करें और नष्ट करें। ➢फसल बोने से पहले खेत में बाढ़ सिंचाई करें, रोपण से पहले खेत की गहरी जुताई करें। ➢प्रोफेनोफोस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% ईसी @ 2 मिली/ लीटर पानी या थायमेथोक्सम 25% डब्ल्यू जी @ 80 ग्राम/एकड़ के साथ पौधों का छिड़काव करें।2)फल मक्खी (फ्रूट फ्लाई ) ➽नुकसान के लक्षण ➪  ➢फलों के प्रारंभिक विकास चरण के दौरान फल मख्खिओं के मैगॉट फलों में प्रवेश करते हैं और फलों के गूदे को अंदर से खाते हैं। ➢संक्रमित फलों से राल  निकलता है और उपभोग के लिए अनुपयुक्त हो जाता है। फलों का आकार विकृत हो जाता हैं।  नियंत्रण ➪ ➢मिथाइल यूजेनॉल + मैलाथियान 50 ईसी को 1:1 के अनुपात में मिलाएं और 10 मिलीलीटर चारा को पॉलिथीन बैग में 10/एकड़ की दर से रखें। ➢वयस्क मक्खियों को पकड़ने और मारने के लिए फ्लाई ट्रैप 2 प्रति एकड़ की दर का प्रयोग करें। 5 ग्राम गीला फिशमील पॉलिथीन बैग (20 x 15 सेमी) में छह छेद (3 मिमी व्यास) के साथ रखें। मछली खाने में 0.01 मिली फ़्लूबंडामाइड  मिलाएं और हर 7 वें दिन दोहराएं। हर 20वें दिन फिशमील का नवीनीकरण करें।3)भ्रंग (एपिलकना बीटल) ➽नुकसान के लक्षण ➪  ➢एपिलकना बीटल ग्रब और वयस्क पत्तों से हरे पदार्थ को खुरेदकर खाते हैं। ➢कीट ग्रसित पत्तियाँ पपड़ीदार हो जाती हैं और कंकाल बन जाती हैं।नियंत्रण ➪ ➢खेत से अंडे, ग्रब, प्यूपा और वयस्क भृंगों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें। नीम के बीज की गिरी के अर्क @ 5% से पौधों का छिड़काव करें। ➢रासायनिक प्रबंधन के लिए पौधों को थायमेथोक्सम 25% डब्ल्यू जी @ 80 ग्राम/ एकड़ या थियामेथोक्सम 40 ग्राम /एकड़ के साथ स्प्रे करें।4)माइट ➽नुकसान के लक्षण ➪ ➢माइट पत्तियों का रस चूस कर उन्हें हानि पहुंचाता है और क्लोरोफिल (हरियाली) को समाप्त कर देते हैं। इसका प्रभाव अप्रैल से जून तक रहता है । नियंत्रण ➪ ➢तेज पानी की धार के साथ पौधों पर पानी का छिड़काव करें।➢रासायनिक नियंत्रण के लिए डाइकोफाल को 1 मिली. प्रतिलीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।5)तना छेदक ➽नुकसान के लक्षण ➪ ➢तना छेदक का प्रकोप अगस्त से अक्टूबर माह तक रहता हैं। इसकी इल्लियां लताओं की गाँठो में छेद करती है।➢छेद वाले जगह पर भूरे रंग का गाढ़ा पदार्थ निकलता है प्रभावित गाठ के ऊपर की शाखा सूख जाती है।नियत्रंण ➪ ➢अण्डों को इकठा करके नष्ट कर दें।➢स्पिनोसैड 45 एससी @ 64 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेन्जोएट 5% एसजी @ 80 ग्राम प्रति एकड़ के साथ पौधों का छिड़काव करें।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण ➽➢खरपतवार के नियंत्रण के लिए हाथ द्वारा निराई गुड़ाई करें। पहली निराई गुड़ाई पौध रोपाई के 20- 25 दिन बाद करनी चाहिए।➢उसके बाद 30- 35 दिनों के अंतराल पर खेत में निराई गुड़ाई करें।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।