अनानास की खेती

अनानास ब्राजील मूल का पौधा होता है. यह एक ऐसा फल है जिसको आप कभी भी ताजा काटकर खा सकते है. यह कईं तरह के पोषक तत्वों से भरा हुआ फल है, जो शरीर के अंदर मौजूद कईं तरह के विष को बाहर निकालने का कार्य करता है. इसका तना काफी ज्यादा छोटा होता है और इसकी गांठे काफी ज्यादा मजबूत भी होती है. अनानास का तना प्रायः पत्तियों से भरा हुआ होता है और यह पूरी तरह से गठीला होता है. अनानास में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम भी पाया जाता है और यह शरीर को कई तरह की ऊर्जा भी प्रदान करता है.


अनानास

अनानास उगाने वाले क्षेत्र

भारत में अनानास की खेती असम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिम बंगाल एवं बिहार में की जाती है।

अनानास की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

अनानास में विटामिन ए, बी एवं सी का अच्छा स्रोत माना जाता है तथा इसमें क्लोरीन, मैग्नीशियम व उच्च एंटीआक्सीडेंट भीप्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।

बोने की विधि

बीज की रोपाई दोहरी कतार में की जाती है, जिसमें पौधे की बीच की दूरी 45 सेमी एवं कतार से कतार की दूरी 90 सेमी रखी जाती है, गड्ढे का व्यास 22 सेमी. गहरा एवं 30 सेमी रखते हैं।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

अनानास की फसल करने से पहले उसके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए | इसके लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर देनी चाहिए | जिससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जायेंगे | इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे | इससे खेत की मिट्टी में अच्छी तरह से धूप लग जाएगी | इसके बाद खेत में 15 से 17 पुरानी गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में अच्छे से मिला देना चाहिए | खाद को मिट्टी में मिला देने के बाद कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर देनी चाहिए |जुताई के बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर देना चाहिए | इसके बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे तब एक बार रोटावेटर की सहायता से ढेलों को तोड़ कर मिट्टी को भुरभुरा बना दे | मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद पाटा लगाकर चलवा दे, जिससे खेत समतल हो जायेगा |

बीज की किस्में

अनानास के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

जार्दल कयु कॉपन क्वीन, जलयुप, लखत, बरूर्दपुर, हरियाणाविटा, रेडस्केनीस, जाईटक्यू एवं क्वीन हैं।

उर्वरक की जानकारी

अनानास की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

प्रथम गुड़ाई के पश्चात प्रति पौधा 2 ग्राम नाइट्रोजन का प्रयोग किया जाना चाहिए। दूसरी निकाई-गुड़ाई के तुरंत बाद 2 ग्राम नाइट्रोजन एवं 6 ग्राम पोटाश प्रति पौधा प्रयोग कर पौधे की जड़ो पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। अंतिम निकाई-गुड़ाई के बाद 3 ग्राम नाइट्रोजन का उपयोग श्रेष्ठकर होता है।

जलवायु और सिंचाई

अनानास की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

अनानास के पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत होती है | इसलिए बीजो की रोपाई के तुरंत बाद इसके पौधों की सिंचाई कर देनी चाहिए | इसके पौधों की सिंचाई के लिए धीमी बहाव या ड्रिप विधि का इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे लगाए गए बीज बहे नहीं | अन्य मौसम में इसके पौधों को 20 से 22 दिन बाद सिंचाई की आवश्यकता होती है, वही बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करनी चाहिए |

रोग एवं उपचार

अनानास की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

शीर्ष विगलनइस किस्म का रोग पौधों और फलो दोनों को ही प्रभावित करता है | शीर्ष विगलन रोग के प्रारंभिक आक्रमण से पौधा विकास करना बंद कर देता है | यदि इस तरह का रोग फल बनने के बाद लगता है तो यह रोग फलो को पूरी तरह से नष्ट कर देता है | इस रोग से बचाव के लिए पौधों पर नीम के तेल या काढ़े का छिड़काव किया जाता है |जड़ गलनअनानास के पौधे में लगने वाला रोग जलभराव की स्थिति में देखने को मिलता है | इस रोग के लग जाने से पौधा सूखकर पूरी तरह से नष्ट हो जाता है | अनानास के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए खेत में जलभराव की स्थिति न होने दे, इसके अलावा पौधों पर बोर्डों मिश्रण का छिड़काव भी कर सकते है |काला धब्बाकाला धब्बा रोग पौधों की पत्तियों पर दिखाई देता है | इस रोग से प्रभावित होने पर पौधे की पत्तियों पर भूरे और काले रंग के धब्बे पड़ जाते है | इस रोग से अधिक प्रभावित होने पर पौधा विकास करना पड़ता है | मैं कोजेब या नीम के तेल की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |

खरपतवार नियंत्रण

रोपाई के 40-45 दिन पश्चात प्रथम निकाई-गुड़ाई, 80-90 दिनों के पश्चात दूसरी, 110-120 दिनों के पश्चात तीसरी, 200-210 दिनों के पश्चात चौथी, 300-310 दिनों के पश्चात पाँचवी व अन्तिम निकाई कर अनावश्यक खरपतवारों को नियन्त्रित किया जा सकता है।

सहायक मशीनें

मिट्टीपलट हल, देशी हल, या हैरो, कल्टीवेटर, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा आदि यन्त्रों की आवश्यकता होती है।