अरहर एक दलहनी फसल है जो खरीफ की फसल के साथ बोई जाती है। इसके दानों के ऊपर का छिलका पशुओं को खिलाने के काम आता है। इसकी हरी पत्तियां पशुओं को चारे के रूप में खिलाई जाती है तथा फसल के पकने पर इसकी लकड़ी ईधन के रूप में काम आती है। इसकी फसल से भूमि में उर्वरा शक्ति की वृद्धि होती है।
भारतवर्ष में अरहर का उत्पादन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार आदि राज्यों में होता है।
अरहर दाल के कई लाभ हैं - इससे शरीर की वृद्धि होती है, रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) संतुलित रहता है, हृदय से जुडी बीमारियां नहीं होती, वज़न वज़न संतुलित रहता है, पाचन क्रिया सुधरती है, शरीर की ऊर्जा अच्छी रहती है और सूजन से जुडी परेशानियां नहीं होतीं। औषधीय लाभ के संदर्भ में, अरहर की दाल में प्रोटीन, खनिज, विटामिन, फाइबर, और एंटीऑक्सिडेंट्स होते हैं। इनसे आपके शरीर को भरपूर पोषण मिलता है।
अरहर की बुवाई हल के पीछे कूंडों में करनी चाहिए। कम समय में पकने वाली जातियों की पंक्तियों में लगभग 60 सेमी तथा देर से पकने वाली जातियों की पंक्तियों में लगभग 120 सेमी का अंतर होना चाहिए। तथा फसल बोने के बाद पौधों की छंटाई करके कम समय में पकने वाली फसल के पौधों के बीच 20 सेमी तथा अधिक समय में पकने वाली फसल के पौधों के बीच 30 सेमी का अंतर रखना चाहिए।
अरहर की फसल के लिए दोमट तथा बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है। वैसे इसकी फसल कंकरीली भूमि में भी की जाती है। इसके लिए ढालू भूमि अच्छी रहती है जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था होती है। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से लगभग 15 सेमी गहरी करनी चाहिए। फिर दो से तीन जुताई देसी हल तथा कल्टीवेटर से करनी चाहिए। जमीन भुरभुरी हो जाए उसके बाद खेत पर पाटा लगाकर तैयार करना चाहिए।
(i) प्रभात - यह अरहर की जल्दी पकने वाली किस्म है। यह 110 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी उपज लगभग 15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है। (ii) आई. सी. पी. एल 151 - यह जाति भी जल्दी पकने वाली है। यह 130 से 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी उपज लगभग 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। (iii) पूसा 84 - इस जाति को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। इसके दाने भूरे रंग के होते हैं। यह 145 से 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने की उपज 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। (iv) पन्त A 120 - यह शीघ्र पकने वाली जाति है जिसकी फसल 120 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने की उपज 18 से 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है।
(a) कम समय में पकने वाली किस्में - 14 से 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर (b) अधिक समय में पकने वाली किस्में - 10 से 12 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
चना के बीज सदैव विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।
अरहर की फसल एक दलहनी फसल है जिसमें नाइट्रोजन की पूर्ति स्वयं पौधे कर लेते हैं। केवल थोड़ी नाइट्रोजन बुवाई के साथ देनी चाहिए। कार्बनिक खाद फसल बोने से एक मास पहले भूमि में डालकर जुताई कर देनी चाहिए। बुवाई के समय 20 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फास्फोरस तथा 40 किग्रा पोटाश बीज वाले कूंड के साथ 5 सेमी दूर दूसरे कूंड में, बीज से 5 सेमी गहराई पर देना चाहिए।
अरहर की जो फसलें पलेवा करके जून के मास में बोई जाती हैं, उनमें वर्षा होने से पूर्व आवश्यकता अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। जब फसल पर फलियां आनी प्रारंभ हो जाए तो एक सिंचाई उस समय कर देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त देर से पकने वाली फसल को पाले से बचाने के लिए दिसंबर-जनवरी में सिंचाई करनी चाहिए।
(i) लीफ ब्लाइट - इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों पर भूरे या काले रंग के धब्बे बनते हैं, जो पत्तियों को झुलसा देते हैं। इसकी रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोसाईक्लिन 200 पीपीएम का छिड़काव करना चाहिए
पहली निराई-गुड़ाई फसल बोने के 20 से 25 दिन बाद कर देनी चाहिए तथा अतिरिक्त पौधों को खेत से निकाल देना चाहिए। दूसरी निराई-गुड़ाई फसल बोने के 40 से 45 दिन बाद करना चाहिए जिससे खेत के खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त, खरपतवारों को उगने से रोकने के लिए फसल बोने से पहले 1 किग्रा बेसालिन को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव कर जुताई कर देना चाहिए।
देशी हल, खुरपी, कुदाल, दराँती।