बाजरा की खेती

परिचयदुनिया के बाजरा उत्पादक देशों में भारत अग्रणी है। बाजरे में अधिक ऊर्जा होने के कारण सर्दियों के मौसम में इसका खाने में अधिक उपयोग  किया जाता है।  बाजरे को चारे के रूप में भी प्रयोग करते हैं। इसके चारे में प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस और खनिज लवण उपयुक्त मात्रा में एवं हाइड्रोरासायनिक अम्ल संतुलित  मात्रा में पाए  जाते है।  इसको मुर्गियों के आहार तथा पशुओं के हरे व सूखे चारे के रूप में उपयोग किया  जाता है।जलवायु बाजरा शुष्क एवं अर्ध शुष्क क्षेत्रों में मुख्य रुप से उगाया जाता है, यह इन क्षेत्रों  में अनाज  एवं चारे का मुख्य स्रोत माना जाता है।बाजरे की फसल गर्म जलवायु तेजी से बढ़ने वाली फसल है जो कि 40-75 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होती है। इसमे सूखा सहन करने की शक्ति होती है।फसल वृद्धि के समय नमी वाला वातावरण अनुकूल रहता है साथ ही फूल आने की अवस्था पर वर्षा का होना इसके लिए हानिकारक होता है क्योंकि वर्षा से परागकण घुल जाने से बालियों मे कम दाने बनते है। बाजरा सूखे के प्रति सहिष्णु एवं कम अवधि (मुख्यतः 2-3 माह) की फसल है जो कि लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह फसल देश के शुष्क, पश्चिमी एवं उत्तरी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होता है!खेती का समयबाजरे के लिए गर्मियों में सिंचिंत क्षेत्रों में बुआई के लिए मार्च से मध्य अप्रैल तक का समय उपयुक्त रहता है। जुलाई का पहला पखवाड़ा खरीफ़ की फसल के लिए उपयुक्त होता है। दक्षिण भारत में, रबी मौसम के दौरान अक्टूबर से नवंबर तक बुआई की जाती है।


बाजरा

बाजरा उगाने वाले क्षेत्र

प्रमुख क्षेत्र भारत में प्रमुख बाजरा उत्पादक राज्य राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा है। 

बाजरा की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

पोषण मूल्य बाजरे  की फसल ऊर्जा, प्रोटीन, विटामिन एवं मिनरल आदि पोषक  तत्वों का मुख्य स्रोत  है|बाजरे का आटा; विशेषकर भारतीय महिलाओं के लिए खून की कमी को पूरा करने का एक अच्छा  साधन है।बाजरे के दाने में अपेक्षाकृत अधिक प्रोटीन (10.5 से 14.5 प्रतिशत) और वसा (4 से 8 प्रतिशत) होता है, वहीं कार्बोहाइड्रेट, खनिज तत्व, कैल्शियम, केरोटिन, राइबोफ्लेविन (विटामिन बी-2) और नायसिन (विटामिन बी- 6) भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं|बाजरे में एंटीऑक्सिडेंट, पॉलीफेनोल्स और फाइटोकेमिकल्स जैसे लाभकारी पादप रसायनों की उच्च मात्रा पाई जाती है,जिनका  मानव स्वास्थ्य के  सुधार में अधिकतम  योगदान माना जाता  हैं।

बोने की विधि

खेत की तैयारी और बुवाई की विधि -बाजरे के खेत की तैयारी  के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य 2-3   जुताई  हल या कल्टीवेटर से करके खेत तैयार कर लेना चाहिए।बाजरे की फसल 45 से 50 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बोनी चाहिए | बुआई  के 10 से 15 दिन बाद यदि पौधे घने हों तो पौधों की छँटाई कर देनी चाहिए और पौधे से पौधे के बीच की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बाजरा की बुवाई सीड ड्रील मशीन से भी की जा सकती है ।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टीबाजरे को कई प्रकार की मिट्टी जैसे  काली मिट्टी,दोमट, एवं लाल मिट्टी  में सफलतापूर्वक  उगाया जा सकता है। साथ ही यह जल भराव की समस्या के प्रति भी सहिष्णु है । खेत कि तैयारी :-खेत की तैयारी इस प्रकार करनी चाहिए कि पूर्व फसल अवशेष एवं अवांछित खरपतवार अच्छी तरह मिट्टी के नीचे दब जाये एवं मिट्टी भुरभुरी हो जाये। एक गहरी जुताई, मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए उसके बाद 2-3 जुताई, डिस्क द्वारा की जा सकती है। खेत से अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए खेत का समतल होना अतिआवश्यक है।मिट्टी का शोधन जैविक विधि - जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा विरडी नामक जैविक फफूंद नाशक से उपचार किया जाता है। इसे प्रयोग करने के लिए 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में 1 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा विरडी को मिला देते हैं साथ ही मिश्रण में नमी भी बनाए रखते हैं । 4-5 दिनों के पश्चात फफूंद का अंकुरण हो जाता है तब इसे तैयार क्यारियों में अच्छी तरह मिला देते हैं ।रसायनिक विधि -रसायनिक विधि के तहत उपचार हेतु कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी की दर से मिला देते है फिर इस घोल से भूमि को इस प्रकार से  तर करते हैं जिससे 8-10 इंच की गहराई तक मिट्टी तर हो जाए। 4-5 दिनों के पश्चात बुआई  करते हैं ।

बीज की किस्में

बाजरा के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

प्रजातियाँबायर क्रॉप साइंस :- 9444 बाजरा की यह किस्म राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के लिए अच्छी है। 80 से 85 दिन का समय लेती है । अच्छी पैदावार देती है ।बायर 9450 - बायर की यह किस्म राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के लिए अच्छी है। तैयार होने में 85 से 90 दिन का समय लेती है । डाउनी मिल्ड्यू, रस्ट,ब्लास्ट और लोगिंग (lodging) के प्रतिरोधी किस्म है । उपजाऊ भूमि के लिए अच्छी किस्म है ।बायर 7701- गुजरात राजस्थान और उत्तरप्रदेश के लिए । 75 से 80 दिन का समय लेती है।बायर XL-51-महाराष्ट्र , गुजरात, कर्नाटका, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु के लिए । हल्की मिटटी के लिए ।बायर 9330 9343 महाराष्ट्र, और दक्षिण पश्चिम उत्तर प्रदेश के लिए । तेजस राजस्थान और हरियाणा के लिए उपयुक्त किस्म है । जल्दी पककर तैयार ( 65-70 ) हो जाती है ।Mahyco Tower (MRB-2210) , Caliber (MRB-204), MRB-२२४०जे.के.एग्री जेनेटिक्स :- JKBH-26, JKBH-778(80-85 दिन में तैयार हो जाती है पौधे की ऊंचाई 240 से 250 cm तक होती है , 2 से 3 tiller होते है )।गंगा कावेरी :- GK-1111 (मध्यम लेट अवधि की किस्म और लम्बी किस्म है ) , GK-1116 (मध्यम अवधि ) Rasi Seeds :- Rasi-1818 (80 से 84 दिन , टिलर ज्यादा होते है ), 1827 (84 से 87 दिन ,कटाई तक हरी रहती है।श्रीराम बायोसीड बायोसीड B-70 (68 से 70 दिन), 8141 (82 से 85 दिन), 8850 (80 से 85 दिन), 8142(82 से 85 दिन , पौधे की लम्बाई 210 से 220 cm, 2 से 3 टिलर), 8494(78 से 80 दिन),नुजीवीडू सीड्स :-सुधा 2223, सोनी-227, एनबीएच 2123 रेवती, 1024 बादशाह, स्नेहा- 1132, 1134 प्रताप, 216 सुबीज एक्सप्रेस, 2340 कीर्तिपायोनियर सीड्स पायोनियर :-86M88 ये वैरायटी लीफ ब्लास्ट और रस्ट के प्रति सहनशील है ।पायोनियर सीड्स 86M11 यह माध्यम अवधि की वैरायटी है। ज्यादा पैदावार देने वाली किस्म है । इसके पत्ते चौड़े होते है और चारे की पैदावार भी अधिक देती है।पायोनियर सीड्स 86M86 यह किस्म भी माध्यम अवधि की है और अच्छा उत्पादन देती है ।पायोनियर सीड्स 86M35 यह किस्म जल्दी पकने वाली है ।86M74, 86M84 ये भी अच्छी किस्मे है अच्छा उत्पादन देती है । बाजरा मैनपुर, बाजरा घाना, बाजरा बाबापुरी, बाजरा फतेहाबाद-1, बाजरा एस-530, पी.एच.बी.-10 एच. बी.-5 एच.एच.बी-60, एम.पी.-15।

बीज की जानकारी

बाजरा की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर बाजरे की खेती के  लिए 4 किग्रा प्रति  एकड़  बीज पर्याप्त होता  है। बीज उपचारबाजरे  के बीज को बुआई  से पहले  थीरम (3 ग्राम / किग्रा बीज) से उपचारित करना चाहिए।

बीज कहाँ से लिया जाये?

बाजरे का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

बाजरा की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

खाद एवं उर्वरक :-अधिक उपज वाली किस्मों के लिए मिट्टी जांच के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करे ।1. देसी जातियों के लिए - 40 किग्रा नाइट्रोजन, 30 किग्रा फास्फोरस प्रति एकड़ देना चाहिए।👉 नत्रजन :- 44 किलो यूरिया बुवाई के समय और खड़ी फसल में 25 दिन बाद 22 किलो यूरिया व 40 दिन बाद 22 किलो यूरिया प्रति एकड़ टॉप ड्रेसिंग के रूप में डालें ।👉 फॉस्फोरस :- 188 किलो एसएसपी प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं।2. संकर जातियों के लिए - 50 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा फास्फोरस, प्रति एकड़ देना चाहिए।👉 नत्रजन :- 55 किलो यूरिया बुवाई के समय और खड़ी फसल में 35 दिन बाद 55 किलो यूरिया प्रति एकड़ टॉप ड्रेसिंग के रूप में डालें ।👉 फॉस्फोरस :- 250 किलो एसएसपी प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं।👉सामान्य तौर पर सिंचित अवस्था में 100-120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-60 किलोग्राम फास्फोरस, 30-40 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है ।👉वर्षाधारित खेती में लगभग आधी मात्रा की आवश्यकता होती है ।👉सिंचित खेती में 70 किलोग्राम यूरिया, 55 किग्रा डीएपी या 90 किलोग्राम यूरिया, 150 किलोग्राम (एसएसपी) सिगल सूपर फॉस्फेट प्रति एकड आवश्यक है । इसमें आवश्यकतानुसार पोटाश का प्रयोग किया जा सकता है । नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फास्फेट तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयारी में प्रयोग करें ।सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधनबाजरे में कैल्शियम, आयरन, फॉस्फोरस जैसे तत्वों की कमी पाई जाती है इसलिए  मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर  सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा मिट्टी में दी जानी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

बाजरा की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाईबाजरे को कम पानी की आवश्यकता होती है जब वर्षा न हो तब फसल की सिंचाई करनी चाहिए।साधारणतः फसल को बढ़वार के समय सिंचाई की आवश्यकता  होती है। यदि बालियाँ  निकलते समय नमी कम हो, तो इस समय सिंचाई की आवश्यकता होती  है क्योंकि इस समय नमी का स्तर उच्च होना चाहिए ।बाजरे की फसल अधिक समय तक पानी के भराव को सहन नही कर सकती इसलिए उचित जल निकासी का प्रबंध करना चाहिए।बाजरे की  फसल में फूल आने और दाना  बनने के समय सिंचाई आवश्यक होती है । 

रोग एवं उपचार

बाजरा की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

रोग और उनका नियंत्रण:1. पाउडर फफूंदी :नुकसान के लक्षण बाजरे की पत्ती पर क्लोरोटिक धारियाँ दिखाई देती हैं और पत्ती की दोनों सतह पर सफेद कवक की वृद्धि देखी जाती है।नियंत्रण: बाजरे की उपलब्ध रोग प्रतिरोधी किस्में उगाए। खेत को खरपतवार से मुक्त रखें, छिड़काव सिंचाई से बचें। रोगग्रस्त पौधों को हटाकर नष्ट कर दें। गैर परपोषी  फसल  के साथ फसल चक्रण प्रथाओं का पालन करें। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का प्रयोग करें। मैनकोज़ेब 75%WP @ 2 ग्राम/लीटर पानी के साथ पौधों पर छिड़काव करें। 2).  अर्गट (फफूंदी) :नुकसान के लक्षण संक्रमित पुष्पगुच्छों से "हनीड्यू" की हल्के गुलाबी  रंग की बूंदें निकलती हैं। बाद में बूंदे सूखी और सख्त हो जाती हैं, और पुष्पगुच्छ पर बीज के स्थान पर गहरे भूरे कुछ  काले से  रंग के द्रव्यमान,आकार में अनियमित और बीज से बड़े कवक दिखाई देते है । नियंत्रण:फसल की बुआई  के समय को इस प्रकार समायोजित करें कि बरसात के मौसम में उसमें फूल न आए। कीटों की आबादी को नियंत्रण में रखें। कप्तान + हेक्सकोनाज़ोल 63% WP @ 1 ग्राम/लीटर पानी के साथ पौधों पर  छिड़काव करें।3) बाजरा का कण्डुआनुकसान के लक्षणकन्डुआ रोग से बीज आकार में बड़े गोल अण्डाकार हरे रंग के होते हैं] जिसमें काला चूर्ण भरा होता हैं।नियंत्रण खेत की गहरी जुताई करें।फसल चक्र सिद्धान्त का प्रयोग करें।फसल एवं खरपतवारों के अवशेषों को नष्ट करें।सिंचाई का समुचित प्रबन्ध करें।रोग ग्रसित बालियों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिएबीजशोधन हेतु थिरम 75 प्रतिशत डब्लू.एस. 2.5 ग्राम अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 ग्राम अथवा मेटालैक्सिल 35 प्रतिशत डब्लू.एस.की 6.0 ग्राम प्रति किग्रा.बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए 4) बाजरे की हरित बाली रोगनुकसान के लक्षणइनमें बाजरा की बालियों के स्थान पर टेढ़ी-मेढ़ी हरी-हरी पत्तियॉ सी बन जाती हैं, जिससे पूर्ण बाली झाडू के समान दिखाई देती हैं।पौधों बौने रह जाते हैं।नियंत्रण खेत की गहरी जुताई करें।फसल चक्र सिद्धान्त का प्रयोग करें।फसल एवं खरपतवारों के अवशेषों को नष्ट करें।सिंचाई का समुचित प्रबन्ध करें।उन्नतशील /संस्तुत प्रजातियों की ही बुवाई करें।रोग के लक्षण दिखाई देते ही कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. अथवा थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2 ग्राम मात्रा प्रति ली. पानी में घोलकर 10 दिन के अन्तराल पर दो छिड़काव करना चाहिएकीट  प्रबंधन 1 )  तना छेदक: नुकसान के लक्षण पौधे के विकास के प्रारंभिक चरण में संक्रमण होने पर डेड हार्ट होता है (पूरा पौधा या केन्द्रीय शूट सूख जाता है) और यदि बाद में वृद्धि के चरणों में कीट का संक्रमण होता है तो बालियाँ  सफेद हो जाती हैं।नियंत्रण:ट्राइकोग्रामा (अंडा परजीवी) रोपण के 30 दिन बाद @ 2 सीसी (40 हजार अंडा परजीवी), साप्ताहिक अंतराल पर तीन बार (सुबह या शाम के दौरान पत्ती की सतह के नीचे बाहर की ओर ) छोड़ें। वयस्कों द्वारा अंडे देना कम करने के लिए पौधों को बैसिलस थुरिंगिएन्सिस वेर कुर्स्टाकी @ 1 किग्रा / एकड़ में छिड़काव  करें। कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4% जी @ 4 किग्रा / एकड़ को रेत या उर्वरक में मिलाकर या फ्लुबेंडियामाइड 480 एससी @ 20 मिली / एकड़  से पौधों में छिड़काव करे ।2 ) शूट फ्लाई  नुकसान के लक्षण  शूट फ्लाई मैगॉट युवा पौधों केन्द्रीय शूट में घुस जाता है जिससे केंद्रीय शूट सूख जाता है अर्थात डेड हार्ट हो जाता है।नियंत्रण: खेत की जुताई के बाद, कंकड़ पत्थर को हटा दें और नष्ट कर दें, फसल चक्र का पालन करें, खेत और आसपास के क्षेत्रों से खरपतवार हटा दें, समय पर बुआई  करें, नाइट्रोजन उर्वरकों के अधिक मात्रा  में उपयोग से  बचें। जलभराव की स्थिति से बचें। डाइमेथोएट 30% ईसी @ 1 मिली/लीटर पानी के साथ पौधों पर  छिड़काव करें। 3 ) टिड्डे (ग्रासहॉपर)नुकसान के लक्षण टिड्डे नई पत्तियों और फूलों की कलियों को खाते हैं। क्षतिग्रस्त पत्ते और फूलों वाले पौधे अपनी सुंदरता खो देते हैं। ये पकने वाले अनाज को भी कहते हैं।नियंत्रण: फसल कटाई के बाद फसल अवशेषों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें, बुआई  से पहले खेत की सिंचाई बाढ़ सिंचाई विधि द्वारा करें इसमे खेत को 48 घंटे तक पानी में डूबा रहना चाहिए। खेत और आसपास के स्थानों से खरपतवार निकालकर नष्ट कर दे ।ग्रीष्मकाल में फसल चक्रण पद्धतियों का पालन करें और खेत की गहरी जुताई करें।  फ्लुबेंडियामाइड 480 एससी @ 20 मिली / एकड़   पौधों पर छिड़काव करे । 4 ) सफेद सुंडी (वाइट ग्रब): नुकसान के लक्षण इस कीट की भुंडीया मिट्टी में अंडे देती हैं और उनमें से सफेद रंग की इल्लियां निकलती हैं जो मिटटी के अंदर मौजूद पौधों की जड़ों और उनके ऊपर के बालों को खा जाती हैं। ज्यादा संक्रमण होने पर पौधे सुख जाते हैं।नियंत्रण:मई-जून माह में खेत की दो बार गहरी जोताई करें।बिजाई से पहले बीजों को क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. @ 6.5 मि.ली. प्रति किलोग्राम बीजों की दर से उपचारित करें।बिजाई के समय या उससे पहले क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 0.4% जीआर @ 4 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 20 किलोग्राम मिटटी में मिलकर खेत में भुरकाव करें।5) कट वाॅर्मनुकसान के लक्षणबड़े लार्वा डंठल को पूरी तरह से काट सकते हैं, जिससे पौधे मुरझा सकते हैं और मर सकते हैं। वे कभी-कभी कटे हुए पौधों को मिट्टी के गुच्छों के नीचे या मिट्टी के छोटे-छोटे छिद्रों में घसीटते हैं ताकि दिन के उजाले के दौरान उनका भोजन जारी रहे।नियंत्रणप्रतिरोधी किस्मों का चयन करें और उन्हें उगाएं। लोबिया को अंतर फसल के रूप में बोएरोग प्रभावित पौधों को हटाकर नष्ट कर दें|कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4% जी @ 4 किग्रा / एकड़ को रेत या उर्वरक में मिलाकर या फ्लुबेंडियामाइड 480 एससी @ 20 मिली / एकड़  से पौधों में छिड़काव करे ।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण बाजरे के खेत में जहाँ पर अधिक पौधे उगे हो उन्हे वर्षा वाले दिन निकालकर उन स्थानो पर लगाए  जिन  स्थानों  पर पौधो की संख्या कम हो।यह कार्य बीज जमने के लगभग 15 दिन बाद कर देना चाहिए । बोने के 20 - 25 दिन में एक बार निराई कर देनी चाहिए। चौड़ी पत्ती वाली खरपतवार के नियंत्रण हेतु बीज बीने के 25-30 दिनों के बाद, (2,4 डी) 500 ग्राम का 400-500 लीटर  पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करें  । 

सहायक मशीनें

मिट्टी पलटने वाला हल, देशी हल या हैरों खुरपी, फावड़ा, दराँती, इत्यादि यंत्रो की आवश्यकता होती है।