धान(चावल) की खेती

धान पूरे विश्व में पैदा होने वाली एक प्रमुख फसल है,इसकी खेती विश्वभर में बड़े पैमाने पर की जाती है ।परिचय➽➢भोजन के रूप  में सबसे ज्यादा उपयोग होने वाला चावल धान की खेती  से प्राप्त किया जाता है |➢चावल के उत्पादन में चीन पूरे विश्व में सबसे आगे है , उसके बाद दूसरे नंबर पर भारत है | ➢भारत में धान  खरीफ सीजन की मुख्य फसल  है |➢धान की खेती सिंचित  एवं असिंचित  दोनों  ही  दशाओं  में  की जाती है Iजलवायु➽➢धान को उन सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, जहाँ का  औसत तापमान  4 से 6 महीनों तक  21 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक रहता है |➢धान की खेती के लिए गर्म और नम जलवायु की आवश्कता होती है ।➢धान एक उष्ण कटिबंधीय फसल है जिन स्थानों का  बदलते मौसम के दौरान औसत तापमान 20°C और 27°C के बीच होता है वहाँ पर इसकी फसल उगाई जाती है ।➢अपने विकास के  चार महीनों  के दौरान इसको प्रचुर मात्रा में धूप की आवश्यकता होती  है।➢न्यूनतम तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं जाना चाहिए क्योंकि इस  तापमान से नीचे अंकुरण नहीं हो सकता है।➢धान को किसी भी अन्य फसल की तुलना में अधिक पानी की आवश्यकता होती है इसलिए इसकी  की खेती केवल उन्हीं क्षेत्रों में की जाती है जहाँ न्यूनतम वर्षा 115 सेमी होती हो ।➢यद्यपि इसके  लिए  175-300 सेमी के बीच औसत वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र सबसे उपयुक्त हैं।बुवाई का समय➽ ➢वर्षा आरम्भ होते ही धान की बुवाई शुरू कर देना चाहिए। ➢जून  माह के  मध्य से जुलाई माह के प्रथम सप्ताह तक बुवाई का समय सबसे उपयुक्त होता है।


धान(चावल)

धान(चावल) उगाने वाले क्षेत्र

प्रमुख क्षेत्र➱➢भारत में, धान की फसल आमतौर पर पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब,  हरियाणा, उड़ीसा, बिहार और तमिलनाडु राज्यों में उगाई जाती है। 

धान(चावल) की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

पोषण मूल्य➽➢चावल के पोषक तत्वों में प्रोटीन, वसा, रेशे, कार्बोहाइड्रेट, खनिज शामिल हैं।➢इसमें थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, टोकोफेरोल नामक विटामिन पाए जाते हैं |➢यह उच्च रक्तचाप, कैंसर की रोकथाम, अल्जाइमर रोग, हृदय रोग, त्वचा की देखभाल, पेचिश जैसे रोगों की रोकथाम करके मानवजाति को कई प्रकार से  स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते  है।

बोने की विधि

नर्सरी की तैयारीवेट-बेड नर्सरी➽➢धान की खेती के लिए वैट बेड  नर्सरी का उपयोग मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में किया जाता है जहाँ  पर्याप्त पानी होता है। ➢पूर्व-अंकुरित बीजों को एक ऐसी मिट्टी में लगाया जाता है जो पूरी तरह से पोखर और समतल होती है।➢पानी की निकासी के लिए नालियों का निर्माण किया जाना चाहिए।➢बेसल ड्रेसिंग के रूप में जैविक खाद (अपघटित) और अकार्बनिक उर्वरक की थोड़ी मात्रा को जोड़ने से अंकुरों को उखाड़ने में आसानी होगी और अंकुर शक्ति बढ़ जाएगी➢नर्सरी को खरपतवार, किसी भी प्रकार के  रोग और कीटों तथा  पोषक तत्वों की कमी से मुक्त होना चाहिए।➢यदि उपरोक्त सामस्याएँ हो तो इनका इलाज भी नर्सरी में ही  किया जाना चाहिए।शुष्क-बेड विधि➽➢इस विधि में नर्सरी को शुष्क मिट्टी की स्थिति में तैयार किया जाता है।➢लगभग 5-10 सेमी की ऊंचाई तक मिट्टी को ऊपर उठाकर सुविधाजनक आयामों के सीड बेड तैयार किए जाते हैं।➢आधी जली हुई धान की भूसी की एक परत नर्सरी की क्यारियों पर बिछाई  जा सकती है ताकि उन्हें उखाड़ने में आसानी हो।➢नर्सरी  पर्याप्त सिंचाईकी  सुविधाओं के साथ-साथ छाया रहित भी  होनी चाहिए।➢अंकुरण के 15 से 21 दिनों के बीच पौध को निकाल लेना  चाहिए।➢मिट्टी में पोषक तत्वों की आपूर्ति कम होने पर बेसल उर्वरक मिश्रण को खेत में डाल देना चाहिए।रोपाई➽➢धान के  पौध की  रोपाई का समय जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के तीसरे सप्ताह  तक होना  चाहिए ।➢धान की  रोपाई हेतु पौध की उम्र होनी चाहिए➢कम अवधि की किस्म: 18-22 दिन ➢मध्यम अवधि की किस्म: 25-30  दिन ➢लंबी अवधि की किस्म: 35-40  दिन➢धान की रोपाई में लाइन से लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की  दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए | ➢धान के पौधे की   2 से 3 सेंटीमीटर की  गहराई पर रोपाई करनी चाहिए I 

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टी➽➢धान की फसल के लिए मटीयार एवं दोमट भूमि सर्वोत्तम  होती है | ➢धान के लिए  नदी की उपजाऊ  जलोढ़ मिट्टी सबसे अच्छी रहती  है। ➢मानसूनी भूमि में दोमट मिट्टी चावल की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है क्योंकि इस मिट्टी की जल धारण क्षमता बहुत अधिक होती है।➢चावल  डेल्टा क्षेत्र के ; लवणीय क्षेत्रों में भी उगाया जाता है।➢चावल की खेती के  लिए अधिक मात्रा में उर्वरक के उपयोग  की आवश्यकता होती है।➢धान की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी  का पी.एच.  6.5 होता है |खेत की तैयारी➽➢धान के खेत की तैयारी हेतु 2-3 बार कल्टीवेटर या रोटावेटर के द्वारा जुताई करे | ➢खेत के पानी को अधिक  समय तक रोकने हेतु खेत के चारो ओर मजबूत मेढ़बन्दी करे | ➢धान के रोपाई करने के पूर्व  खेत में पानी भरकर; जुताई करके; पाटा लगाकर खेत को समतल बना लेना चाहिए  Iमिट्टी का शोधन➽जैविक विधि➱➢जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा विरडी नामक जैविक फफूंद नाशक से उपचार किया जाता है।➢इसे प्रयोग करने  के लिए 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में 1 किलो ट्राईकोडर्मा विरडी को मिला देते हैं साथ ही  मिश्रण में नमी भी बनाई रखनी चाहिए  हैं । ➢4-5 दिन पश्चात फफूंद का अंकुरण हो जाता है तब इसे तैयार क्यारियों में अच्छी तरह  से मिला देते हैं ।रसायनिक विधि➱ ➢रसायनिक विधि के तहत उपचार हेतु कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी में  मिलाकर भूमि को इस  घोल से  तर कर  देते  हैं , जिससे 8-10 इंच मिट्टी तर हो जाये। ➢4-5 दिनों के पश्चात  बुआई  करते हैं ।

बीज की किस्में

धान(चावल) के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

प्रजातियाँ➽विवेक धान -62➱➢धान की यह किस्म  पहाड़ी और सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसके दाने छोटे और मोटे होते हैं। इस पर ब्लास्ट का कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।➢औसतन उपज -19   क्विंटल प्रति एकड़ ➢फसल की अवधि - 125‑135 दिनHKR 47➱➢यह धान की मध्य अगेती पकने वाली किस्म है। इसके पौधे का औसतन ऊँचाई  117 सें .मी. होता है। यह किस्म बैक्टीरियल ब्लाइट पैथोजन के 10 प्रचलित पैथोटाइप्स के प्रति  संवेदनशील होती है ।➢औसतन उपज - 29.5 क्विंटल प्रति एकड़➢फसल की अवधि - 104 दिनपीआर 122➱➢धान के इस किस्म के पौधों  की औसत  ऊंचाई 108 से. मी.  है और यह  117 दिनों के बाद परिपक्व होती है|➢इसमें लंबे पतले पारभासी दाने होते हैं।पंजाब राज्य में बैक्टीरियल ब्लाइट नामक पैथोजन वर्तमान में काफी प्रचलित पैथोजन  है ।➢औसतन उपज - 31.5 क्विंटल➢फसल की अवधि- 110-115 दिन पूसा बासमती 1401➱➢धान की यह; पहली जल्दी पकने वाली बासमती चावल की एक किस्म है। ➢इसके पौधे  की  संरचना छोटी और तना मजबूत होता है |➢शीघ्र परिपक्व होने  के कारण, PB-1401 की खेती में  4-5 सिंचाई कम करनी पड़ती  है, जिससे  25% तक➢सिंचाई में उपयोग किया जाने वाला पानी बचाया जा सकता है ।➢पौधे की ऊँचाई 135-150 सेमी तक होती है।➢औसतन उपज - 30.0- 32 क्विंटल प्रति एकड़➢फसल की अवधि- 145 दिनपूसा 44/ पीली पूसा➱➢धान की लंबी अवधि में उगने वाली किस्म है इसमें   15-20 फीसदी अधिक पानी की खपत करती हैं|➢पीआर किस्मों की तुलना में, पुआल का भार अधिक होता है और सभी प्रचलित विकृति के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं| ➢औसतन उपज- 28 - 32   क्विंटल प्रति एकड़ ➢फसल की अवधि- 108 दिन

बीज की जानकारी

धान(चावल) की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर➽➢सीधी  बुआई  हेतु बीज की  मात्रा  20 किलोग्राम  प्रति  एकड़  लगती है | ➢नर्सरी की कम अवधि की किस्म: 8 -10  किग्रा/ एकड़➢नर्सरी की मध्यम अवधि की किस्म: 12-14 किग्रा/ एकड़➢नर्सरी की लंबी अवधि की किस्म: 14-16 किग्रा / एकड़➢संकर किस्म के लिए नर्सरी में 8-10 किलो प्रति एकड़ बीज की मात्रा प्रयोग होती है |बीज उपचार➽➢धान के  बीज शोधन हेतु 25 किलोग्राम बीज को 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या 75 ग्राम  थीरम से बीज का उपचार  करके बुआई करनी चाहिए I

बीज कहाँ से लिया जाये?

धान का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदें।

उर्वरक की जानकारी

धान(चावल) की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

जहां तक संभव हो उर्वरक की मात्रा भूमि का परीक्षण कराकर ही सुनिश्चित किया जाएं तथा गोबर की 4 टन खाद या हरी खाद प्रति एकड़ खेत में डाले।खाद और उर्वरक/ प्रति एकड़➽उन्नत किस्मों के लिए➽➢60:30:30 एनपीके की प्रति एकड़ आवश्यकता होती है।➢बुवाई के समय यूरिया 66 किलों व सिंगल सुपर फॉस्फेट 188 किलो और 50 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश खेत में डालें ।➢बुवाई के 30 दिन बाद➱ यूरिया 33 किलो और 8 से 10 किलो जिंक सल्फेट प्रति एकड़ डालें।➢बुवाई के 60 दिन बाद➱ यूरिया 33 किलो प्रति एकड़ डालें ।संकर किस्मों के लिए➽➢80:40:40 एन पी के की प्रति एकड़ आवश्यकता होती है।➢बुवाई के समय यूरिया 88 किलो व सिंगल सुपर फॉस्फेट 250 किलो व 68 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश खेत में डाले।➢बुवाई के 30 दिन बाद➱ यूरिया 44 किलो तथा 10 किलो इफको सागरिका प्रति एकड़ डालें ।➢बुवाई के 60 दिन बाद➱ यूरिया 44 किलो प्रति एकड़ डालें। प्रयोग विधि➽➢रोपाई के सप्ताह बाद आधी नत्रजन तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के पूर्व तथा नत्रजन की शेष मात्रा को बराबर-बराबर दो बार में कल्ले फूटते समय तथा बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था पर प्रयोग करें। दाना बनने के बाद उर्वरक का प्रयोग न करें।सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन➽➢धान की फसल में जिंक, आयरन और बोरोन पोषक तत्व की कमी ज्यादातर आती है। इनकी कमी को पूरा करने के लिए रोपाई से पहले मिटटी की जांच करवा लें और उसके हिसाब से खेत में पोषक तत्व डालें।➢अगर फसल में पोषक तत्वों की कमी आती हैं तो जिंक की कमी होने पर जिंक सल्फेट 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी और आयरन की कमी होने पर आयरन सल्फेट 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी और बोरोन की कमी होने पर बोरिक एसिड 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से पौधों पर छिड़काव करें।

जलवायु और सिंचाई

धान(चावल) की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाई➽➢धान की फसल के लिए सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होना बहुत ही जरूरी है | ➢सिंचाई की पर्याप्त सुविधा होने पर लगभग 3 से 6 सेंटीमीटर पानी खेत में खड़ा रहना अति लाभकारी होता है | ➢धान की तीन अवस्थाओं- रोपाई, बाली निकलते समय और दाने भरते समय खेत में सर्वाधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है | ➢इन अवस्थाओं पर खेत में 5 से 6 सेंटीमीटर पानी अवश्य भरा रहना चाहिए | ➢फसल की कटाई से 15 दिन पहले खेत से पानी निकाल कर सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। 

रोग एवं उपचार

धान(चावल) की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

रोग और उनका नियंत्रण1) जीवाणु झुलसा रोग (बैक्टीरियल ब्लाइट )➽ नुकसान के लक्षण➱➢इसके कारण धान की पत्तियों की नोक  या किनारे सूखने लगते हैं |नियंत्रण➱➢इसके नियंत्रण के लिए 15 ग्राम  स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या कॉपर-आक्सीक्लोराइड 1 किलोग्राम प्रति  एकड़  दर से छिड़काव करना चाहिएI 2) झोंका रोग (ब्लास्ट रोग -नोड और गर्दन)➽ नुकसान के लक्षण➱➢नोड संक्रमण बैंडेड पैटर्न में होता है।➢नोड पर घाव काले से भूरे  रंग के होते हैं।➢संक्रमित गांठें कलम  या पौधे के उस हिस्से को तोड़ सकती हैं जो पुष्पगुच्छ को रखता है।➢गर्दन पर घाव भूरे-भूरे रंग के होते हैं और गर्दन कमजोर का कारण बन सकते हैं, जिससे गर्दन और पुष्पगुच्छ गिर जाते हैं।➢दूधिया अवस्था से पहले गर्दन का संक्रमण होने पर दाना नहीं बनता है, लेकिन बाद में संक्रमण होने पर खराब गुणवत्ता वाले दाने बनते हैं। नियंत्रण➱➢बीज का चयन रोगरहित फसल से करना चाहिए।➢फसल की कटाई के बाद खेत में रोगी पौध अवशेषों एवं ठूठों इत्यादि को एकत्र करके नष्ट कर देना चाहिए।➢इसके नियंत्रण के फुजिओन (आइसोप्रोथियोलेन) की 250 मिली प्रति एकड़  मात्रा 200 लीटर पानी में मिलाकर  छिड़काव  करना चाहिए I3) पत्ती पर धारिया भूरी चित्ती (ब्राउन स्ट्राइप)➽ नुकसान के लक्षण➱➢पत्ती शिराओं के बीच छोटे, पानी से लथपथ, रैखिक घाव हो जाते है।➢ये धारियाँ शुरू में गहरे हरे रंग की होती हैं और बाद में हल्के भूरे से पीले-भूरे रंग की हो जाती हैं।➢रोग के बहुत गंभीर होने पर पूरी पत्तियाँ भूरी हो जाती हैं और मर जाती हैं।नियंत्रण➱➢नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों की संतुलित मात्रा दें। फसल पकने की अवस्था में खेत में खड़े पानी से बचें।➢फसल के अवशेषों को इकट्ठा कर नष्ट कर दें और फसल की कटाई के बाद खेत में ही छोड़ दें। ➢फसल उगाने के लिए रोगमुक्त बीजों का चयन करें। ➢हेक्साकोनाजोल 5% एससी @ 15 मिली/15 लीटर पानी में मिलाएं और पौधों पर जुताई और फूल आने से पहले छिड़काव करें।4) आभासी कंड रोग (फाल्स स्मट)➽ नुकसान के लक्षण➱➢चावल का दाना पीले फलने वाले पिंडों के द्रव्यमान में बदल जाता है।➢जैसे-जैसे कवक की वृद्धि तेज होती है, स्मट बॉल फट जाती है और नारंगी हो जाती है, फिर बाद में पीले-हरे या हरे-काले रंग की हो जाती है। ➢संक्रमण आमतौर पर प्रजनन और पकने के चरणों के दौरान होता है।नियंत्रण➱➢नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों की संतुलित मात्रा दें।➢फसल पकने की अवस्था में खेत में खड़े पानी से बचें। फसल के अवशेषों को इकट्ठा कर नष्ट कर दें और फसल की कटाई के बाद खेत में ही छोड़ दें।➢फसल उगाने के लिए रोगमुक्त बीजों का चयन करें।➢हेक्साकोनाजोल 5% एससी @ 1 मिली/लीटर पानी में मिलाएं और पौधों पर जुताई और फूल आने से पहले छिड़काव करें।5) धान टुंग्रो रोग (वायरस)➽ नुकसान के लक्षण➱➢टुंग्रो से प्रभावित पौधे बौनेपन और कम बढ़वार का प्रदर्शन करते हैं।➢उनके पत्ते पीले या नारंगी-पीले हो जाते हैं, उनमें जंग के रंग के धब्बे भी हो सकते हैं।➢पत्ती की नोक से मलिनकिरण शुरू होता है और ब्लेड या निचली पत्ती के हिस्से तक फैलता है |नियंत्रण➱➢लीफ हॉपर वैक्टर को आकर्षित करने और इसकी आबादी की निगरानी के लिए लाइट ट्रैप स्थापित करें ➢प्रात:काल प्रकाश ट्रैप के पास उतरते हुए लीफहॉपर की आबादी को कीटनाशकों के छिड़काव से मार दें ।इस क्रिया को प्रतिदिन दुहराए ।➢थियामेथोक्सम 25 डब्ल्यूडीजी 60 ग्राम/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 100 मि.ली./एकड़ मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करे | ➢मेड़ों की वनस्पति पर भी कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए।कीट  प्रबंधन तना छेदक (स्टेम बोरर )➽ नुकसान के लक्षण➱➢इससे पौधा टिलर या पूरा पौधा सूख जाता है ।➢इस कीट का प्रकोप यदि बाली वाली अवस्था में हो तो बालियाँ सूख कर सफेद हो जाती है, तथा दाने नहीं बन पाते हैं. ➢अगर विकास के प्रारंभिक चरण में संक्रमण होता है तो बालिया सफेद हो जाती है, यदि संक्रमण विकास के बाद के चरणों में होता है, तो डेड हार्ट तने के बीच हो जाता है |नियंत्रण➱➢फसल की कटाई के बाद फसल अवशेषों को हटा दें और उनका उचित निपटान करें।➢अंडे के गुच्छों  को इकट्ठा और नष्ट कर दें। पोधो के करीबी रोपण से बचें।➢रोगग्रस्त पौधों या टिलर को हटाकर नष्ट कर दें।➢फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग करे इसके लिए 4 ट्रैप प्रति एकड़ लगाए ➢क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 0.4% जीआर @ 4 किग्रा /एकड़ रेत या यूरिया उर्वरक में मिलाकर खेत में समान रूप से प्रसारित करें।2) पत्ता लपेटक (लीफ फोल्डर)➽ नुकसान के लक्षण➱➢लार्वा पत्तियों को मोड़ते हैं, पत्तियों से हरे पदार्थ को खाते हैं और पत्तियों पर सफेद धारियाँ पैदा करते हैं।नियंत्रण➱➢ट्राइकोग्रामा (अंडा परजीवी) रोपण के 37 दिन बाद @ 2 सीसी (40 हजार अंडा परजीवी), साप्ताहिक अंतराल पर तीन बार (सुबह या शाम के घंटों के दौरान पत्ती की सतह के नीचे बाहर की ओर बांधकर) छोड़ें। ➢फ्लुबेंडियामाइड 480 SC @ 20ml/एकड़ के साथ पौधों का छिड़काव करें।➢क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 0.4% जीआर @ 4 किग्रा /एकड़ रेत या यूरिया उर्वरक में मिलाकर खेत में समान रूप से प्रसारित करें।3) गंधी बग➽ नुकसान के लक्षण➱➢यह कीट  धान में  शिशु  तथा  प्रौढ़ अवस्था में हमला करता है |➢यह धान की बाल के  दुग्धावस्था में दानो से रस चूस लेते है, जिसके फलस्वरूप  दाने नहीं बनते है |➢इस कीट से आने वाले दुर्गन्ध से भी इस कीट की पहचान की जा सकती है |नियंत्रण➱➢इसके नियंत्रण के लिए मलाथिओंन डस्ट  5% @ 10 से 12 किलोग्राम प्रति  एकड़  की  दर से बुरकाव करना चाहिए | या प्रोफेनोफॉस 40%+ साइपरमेथ्रिन 4% ईसी 30 मिलीलीटर प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर में घोलकर स्प्रे करें।4) सैनिक किट (आर्मी वर्म )➽ नुकसान के लक्षण➱➢इस कीट की सुन्डिया  ही हानिकारक  होती है | ➢शुरुवात में यह पत्तियाँ खाती है परन्तु धान के पकने के समय सायंकाल पौध पर चढ़कर बालियों को काँटकर ज़मीन पर गिरा देती है |नियंत्रण➱➢इसके नियंत्रण के लिए सायंकाल में क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई.सी. को 600 मिली प्रति एकड़ की  दर से छिड़काव  करना चाहिए I➢या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% एससी 80 से 100 मिलीलीटर प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। 5 ) भूरा फुदका (ब्राउन प्लांट हॉपर)➽ नुकसान के लक्षण➱➢निम्फ और वयस्क दोनों जमीनी स्तर पर रहते हैं और पौधे का रस चूसते हैं।➢प्रारंभिक प्रकोप पर, गोलाकार पीले धब्बे दिखाई देते हैं जो पौधों के सूखने के कारण जल्द ही भूरे रंग के हो जाते हैं।➢इसके बाद संक्रमण के धब्बे फैल सकते हैं और पूरे खेत को कवर कर सकते हैं।➢अनाज का जमाव भी काफी हद तक प्रभावित होता है। ➢निरंतर हमले  के दौरान, यह बड़ी मात्रा में शहद की बून्द जैसा उत्सर्जन करता है।नियंत्रण➱➢संक्रमण के प्रारंभिक चरण के दौरान धान के खेत को 3-4 दिनों के लिए खेत से पानी को निकालकर सुखा देने की सलाह दी जाती है।➢बीपीएच पर प्रभावी नियंत्रण के लिए पाइमेट्रोजिन 50% डब्ल्यूजी की 120 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की स्प्रे करे | 

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण की रासायनिक विधि➽➢धान की फसल में खरपतवार प्रबंधन के लिए बुआई  के 20 से 25 दिन पश्चात पहली   निराई -गुड़ाई एवं 40-45 दिन पश्चात दूसरी निराई -गुड़ाई करनी चाहिए ।➢प्रेटीलाक्लोर 50 % EC 500 मिली बुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दर घास कुल के खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रयोग करें। पाइरोजोसल्फयूरॉन 100 ग्राम बुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दर चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रयोग करें।➢धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 25 से 30 दिन बाद बिसपायरीबैक सोडियम 10% एससी 80 से 100 मिलीलीटर के साथ मेटसल्फ्यूरॉन मिथाइल 10% + क्लोरीमुरॉन एथिल 10% WP ( PI Mix ) 8 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से रोपाई के 25 से 30 दिन बाद 150 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।➢फिनॉक्साप्रॉकप पी ईथाइल 200 मिली प्रति  बुआई/रोपाई के 25-35 दिन के अन्दर घास कुल के खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रयोग करें।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, या रूटावेटर, फावड़ा, खुर्पी, ड्रम सीडर, सीड ड्रिलआदि यंत्रों की आवश्कता होती है।