प्याज़ की खेती

प्याज कंद वाली सब्जियों के अंतर्गत आती है। प्याज का प्रयोग कच्चे तथा पके दोनों रूपों में, तथा मसालों के साथ भी किया जाता है। प्याज में गंधक की मात्रा अधिक होने के कारण यह रक्त-वर्धक तथा रक्त-शोधक का गुण रखता है। प्याज में विटामिन बी, सी, लोहा तथा कैल्शियम भी सूक्ष्म मात्रा में पाये जाते हैं। प्याज की लोकप्रियता इसमें उपस्थित खनिज पौष्टिक तत्वों तथा रोग निवारक गुण (औषधि के रूप में प्रयोग) के कारण से अधिक है। इसमें चरपरापन चरपराहट अथवा तीखापन एलाइल प्रोपाइल डाइ सल्फाइड एक विशेष प्रकार के तेल अंश के कारण होती हैं।


प्याज़

प्याज़ उगाने वाले क्षेत्र

भारत के प्याज उत्पादक राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर-प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडू, मध्य-प्रदेश, आन्ध्रप्रदेश एवं बिहार प्रमुख हैं। मध्यप्रदेश भारत का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक प्रदेश है।जलवायु और तापमान :-प्याज को किसी भी मौसम में उगाया जा सकता है, ध्यान रखे कि फसल की कटाई बारिश के दिनों में नहीं आनी चाहिए। बढ़वार की अवस्था में उच्च आर्द्रता से अधिक होने पर कीट व रोगो का प्रकोप होने की संभावना अधिक होती है। 15-25°C यह प्याज के लिए आदर्श तापमान है। प्याज के वानस्पतिक विकास के लिए आदर्श तापमान 12.3- 23°C है। प्याज निर्माण के लिए इसे लंबे दिन एवं उच्च तापमान (20-25°C) की आवश्यकता होती है।

प्याज़ की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

प्याज में 89% पानी , 9% कार्बोहायड्रेट और 1 % प्रोटीन होता है | प्याज के कई फायदे है जैसे की यह प्रतिरक्षा प्रणाली की छमता बढाती है , संक्रमण नियंत्रण, सूजन को घटाता है, ब्लड शुगर के स्तर को बनाये रखता है |

बोने की विधि

 प्याज के पौध तैयार करना :-पौध शाला के लिए चुनी हुई जगह की पहले जुताई करें इसके पश्चात् उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट डालना चाहिए। पौधशाला का आकार 3 मीटर * 0.75 मीटर रखा जाता है और दो क्यारियों के बीच 60-70 सेमी. की दूरी रखी जाती है जिससे कृषि कार्य आसानी से किये जा सके। पौधशाला के लिए रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती हैं, पौध शाला लगभग 15 सेमी. जमीन से ऊँचाई पर बनाना चाहिए बुवाई के बाद नर्सरी में बीजों को 2-3 सेमी. मोटी सतह जिसमें छनी हुई महीन मृदा एवं सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद से ढंक देना चाहिए। बुवाई से पूर्व शैय्या को 250 गेज पालीथीन द्वारा सौर्यकरण उपचारित कर ले। बीजों को हमेशा पंक्तियों में बोना चाहिए। खरीफ मौसम की फसल के लिए 5-7 सेमी. लाइन से लाइन की दूरी रखते हैं। इसके पश्चात् क्यारियों पर कम्पोस्ट, सूखी घास की पलवार(मल्चिंग) बिछा देते हैं जिससे भूमि में नमी संरक्षण हो सके। पौधशाला में अंकुरण हो जाने के बाद पलवार हटा देना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाये कि पौधशाला की सिंचाई पहले फव्वारे से करना चाहिए। पौधों को अधिक वर्षा से बचाने के लिए पौधशाला या रोपणी को पॉलिटेनल में उगाना उपयुक्त होगा। बिजाई का समय :- नर्सरी तैयार करने के उचित समय मध्य-अक्तूबर से मध्य-नवबंर होता है। नए पौधे मध्य-दिसंबर से मध्य-जनवरी तक रोपाई के लिए तैयार हो जाते है।रोपाई के लिए 10-15 सैं.मी. कद के पौधे चुनें। नर्सरी में पौधों को सड़न से बचने के लिए अंकुरण के 3 दिनों के बाद रिडोमिल गोल्ड 15-20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में पौंधो को जड़ों के पास भिगोए। बुवाई के बाद 25 दिनों पर प्रति लीटर पानी में 19:19:19 - 5 ग्राम + थायमेथोक्साम 0.25 ग्राम को मिलाकर छिड़काव करें। खेत में पौध रोपण से उपचार :- फ्लैट कंटेनर या ड्रम में 20 लीटर पानी लें 40 ग्राम कार्बेन्डाजिम + 40 मिली इमिडाक्लोप्रिड मिलाएं। रोपाई से पहले 5 मिनट के लिए घोल में जड़ों को डुबोएं। रोपण की विधि व दुरी:- उठाए हुए बेड पर दो पंक्ति रोपण पद्धती का पालन करें। बीजों को 15 X 10 सेमी की दुरी से बेड पर रोपाई करें। रोपाई से पहले पौधों के 1/3 ऊपरी भाग को काट लें। प्याज की सीधी बुवाई छिटकवां विधि से करते है।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

प्याज को लगभग सभी भूमियों में पैदा किया जा सकता है परंतु बलुई दोमट तथा दोमट भूमियों में यह अच्छी प्रकार से पैदा की जा सकती है। दोमट भूमि प्याज के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। प्याज की खेती के लिए अधिक गहरी जुताई की आवश्यकता नहीं होती। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए तीन-चार बार गहराई से जुताई करें। मिट्टी में जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए 4 से 5 टन गोबर की सड़ी गली खाद भी पर्याप्त मात्रा में खेत की तैयारी करते समय ही खेत में मिला देते हैं।

बीज की किस्में

प्याज़ के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

भीमा किरण: यह रबी के मौसम में उगाने योग्य किस्म है। इसके प्याज़ हल्के लाल रंग के और गोल से अंडाकार होते है। यह किस्म 145 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इसके प्याज़ों को ज्यादा समय तक स्टोर करके रखा जा सकता है। इसकी औसतन पैदावार 165 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। भीमा शक्ति :- यह खरीफ और रबी दोनों मौसम में उगाने योग्य किस्म है। यह किस्म पौध लगाने से 130 दिनों तक तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 170 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। भीमा श्वेत :- यह रबी के मौसम में उगाने योग्य किस्म है| इसके प्याज़ सफेद और गोल होते है। यह किस्म पौध लगाने से 110-115 दिनों तक तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। अर्ली ग्रेनो :- यह किस्म आइ ऐ आर आई, नई दिल्ली द्वारा तैयार की गई है। इसके प्याज़ पीले रंग के होते है। यह खरीफ और रबी दोनों मौसम में उगाने योग्य किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 200 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। प्रो 6 :- यह सामान्य कंद, गहरे लाल रंग, बढ़े सामान्य और गोल गांठों वाली किस्म है| यह किस्म पनीरी लगाने से 120 दिनों तक तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 175 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| इसके प्याज़ ज्यादा समय तक रखे जा सकते है| पंजाब नरोया :- यह सामान्य कद, गहरे लाल रंग, बढ़े सामान्य और गोल गांठों वाली किस्म है| यह किस्म पनीरी लगाने से 145 दिनों तक तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 150 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| यह जामुनी धब्बों के रोग की रोधक किस्म है| पंजाब सफ़ेद :- यह बढ़े-मध्यम, गोल और सफेद गांठों वाली किस्म है| इसकी औसतन पैदावार 135 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| पूसा रेड, पूसा रतनार, निफाद-53, पटना रेड, अर्कानिकेतन, अर्का कल्याण, भीमा सुपर, भीम लाल, भीमा श्वेता, भीमा शुभ्रा।

बीज की जानकारी

प्याज़ की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक एकड़ क्षेत्रफल में रोपाई के लिए 4-5 किलो बीज की नर्सरी पर्याप्त रहती है। यदि सीधे कन्द बोये जाये तो 5-6 क्विंटल कन्दों की प्रति एकड़ आवश्यकता होती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

प्याज़ के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदें।

उर्वरक की जानकारी

प्याज़ की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

 प्याज की फसल में उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही किया जाना चाहिए। मृदा विश्लेषण के आधार पर यह मात्रा घट-बढ़ सकती है। उर्वरको का अनुपात एनपीके 40:20:30 प्रति एकड़ प्रयोग करें। नत्रजन :- 44 किलो यूरिया प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं और रोपाई के 30 दिन बाद 22 किलो यूरिया व रोपाई के 45 दिन बाद 22 किलो यूरिया टॉप ड्रेसिंग के रूप में डालें। फॉस्फोरस :-125 किलो एसएसपी प्रति एकड़ सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय अंतिम जुताई के साथ खेत में मिलाएं। पोटाश :- 51 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा अंतिम जुताई के साथ खेत में मिलाएं। पानी में घुलनशील खादें :- रोपण के 10 -15 दिन बाद सूक्ष्म-तत्व 2.5  - 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ  एनपीके  19:19:19  10 ग्राम स्प्रे करें।

जलवायु और सिंचाई

प्याज़ की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

प्याज की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए भूमि में पर्याप्त नमी का रहना अति आवश्यक होता है इसलिए लगभग 10-12 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। दो सिंचाइयों के बीच का अंतर मौसम के अनुसार निर्भर करता है। आमतौर पर जाड़ों में 12-15 दिन के अंतर से तथा गर्मियों में 7-8 दिन के अंतर पर सिंचाई करना ठीक होता है। सिंचाई पूरे खेत में एक समान तथा हल्की करनी चाहिए।

रोग एवं उपचार

प्याज़ की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

(i) बैंगनी धब्बा (पर्पल ब्लॉच ) - यह रोग प्याज की पत्तियों तथा गाँठों पर लगता है। रोगग्रस्त भाग पर छोटे सफेद धंसे हुए धब्बे बनते हैं जिनका मध्य भाग बैंगनी रंग का होता है। इन धब्बों की सीमायें लाल या बैंगनी रंग की होती हैं और उनके चारों ओर कुछ दूरी पर फैला एक पीला क्षेत्र पाया जाता है। रोग के प्रभाव से पत्तियां और तने सूखकर गिर जाते हैं। रोग की उग्र अवस्था में कंद भी गलने लगते हैं। बीज को थाइरम  दवा से 2.5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए। इन्डोफिल M-45 की 2.5 किग्रा मात्रा को 1,000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। जिन प्याज के खेतों में यह रोग लग गया हो उसमें आगामी 2-3 वर्ष तक प्याज या लहसुन नहीं बोना चाहिए। (ii) मृदु रोमिल आसिता _ इस रोग में पीले आयताकार या अंडाकार धब्बे बनते हैं। रोग के प्रभाव से पत्तियों का रोगग्रस्त भाग सूख जाता है। रोगी पौधे से प्राप्त कंद छोटे होते हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए फसल पर इन्डोफिल M-45 की 2.5 किग्रा मात्रा 1,000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए तथा खेत में जल निकास का उचित प्रबंधन करना चाहिए। थ्रिप्स :- यदि इनको न रोका जाये तो यह पैदावार को 50% तक नुकसान पहुंचाते है।यह ज्यादातर शुष्क मौसम में पाए जाते हैं| यह पत्तों का रस चूसते हैं, जिस कारण पत्ते मुड़ जाते है, कप के आकार के हो जाते है या ऊपर की तरफ मुड़ जाते हैं | थ्रिप्स के प्रकोप की जाँच के लिए 6 - 8 नीले चिपके कार्ड प्रति एकड़ लगाएं।अगर इनका हमला दिखाई दें तो फिपरोनिल (रीजेंट) 30 मि.ली. को प्रति 15 लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करें, या प्रोफैनफोस  50% इ सी  10 मि.ली. को प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर  स्प्रे 8-10 दिनों के फासले पर करें।

खरपतवार नियंत्रण

प्याज के खेत में अधिक निराई-गुड़ाई की आवश्यकता नहीं होती है। लगभग 2 बार निराई-गुड़ाई पर्याप्त होती है- पहली रोपाई के एक माह बाद तथा दूसरी रोपाई के दो माह बाद। शुरुआत में नए पौधे धीरे-धीरे बढ़ते हैं। इसलिए नुकसान से बचाव के लिए निराई गुड़ाई की जगह रासायनिक खरपतवारनाशी का प्रयोग करें। रसायनिक विधि:- खरपतवारों की रोकथाम के लिए बुवाई से 72 घंटे के बीच पेंडीमिथाइल (स्टंप) 1 लीटर को 200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ पर स्प्रे करें। खरपतवारों के अंकुरण के उपरांत बुवाई से 7 दिन बाद ऑक्सीफ्लोफैन 425 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ पर स्प्रे करें।

सहायक मशीनें

देशी हल या हैरों खुर्पी, कुदाल, फावड़ा