जई की खेती

रबी मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में जई का एक मुख्य स्थानहै। यह दुधारु पशुओं के लिए सर्वाधिक उत्तम आहार है। जई की फसल को कम सिंचाई में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। जई की खेती के लिए ठंडी एवं शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। इसकी खेती के लिए 15 से 25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान सर्वोतम माना जाता है।


जई

जई उगाने वाले क्षेत्र

जई की खेती के लिए ठंडी एवं शुष्क जलवायु उपयुक्त समझी जाती है, दक्षिण भारत में अधिक तापक्रम होने के कारण इसकी खेती अच्छी उपज नही देती है| इसलिए उत्तर भारत में कम तापक्रम के कारण इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है| 

जई की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

रोल्ड ओट्स के खनिज और पोषक तत्व स्टील-कट ओट्स से मेल खाते हैं: आयरन: 1.7 मिलीग्राम (मिलीग्राम) पोटेशियम: 140 मिलीग्राम। पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड (PUFAs): 1 ग्राम अपने कई लाभों, जैसे कि रक्त शर्करा और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के कारण, ओट्स ने स्वास्थ्य भोजन के रूप में काफी ध्यान आकर्षित किया है।वे आमतौर पर लुढ़के या कुचले जाते हैं और दलिया (दलिया) के रूप में सेवन किया जा सकता है या बेक किए गए सामान, ब्रेड, मूसली और ग्रेनोला में उपयोग किया जा सकता है।साबुत अनाज जई को जई का दलिया कहा जाता है।

बोने की विधि

बुवाई पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 सेमी बनाकर कतारों में करना चाहिये। 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई में बुवाई करना उचित रहता है।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

जई की खेती हेतु बलुई दोमट भूमि उपयुक्त रहती है।पहली जुताई गहरी मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 जुताई देशी हल या हैरों से करके पाटा लगा देना चाहिए।

बीज की किस्में

जई के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

जे.एच.ओ.-822, जे.एच.ओ.-851, जे.एच.ओ.-99-2, जे.एच.ओ. 2000-4, एन.पी.1, एन.पी.2, केन्ट, एच ऍफ़ ओ 114 यूपीओ -13

बीज की जानकारी

जई की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 80 - 100 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

जौ के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

जई की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

बुवाई से पूर्व खेत में 2 - 3 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। उर्वरकों में 60 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस तथा 30 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

जई की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाई की संख्या व मात्रा भूमि की किस्म व तापमान पर निर्भर करती है। जई के अंकुरण के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना अति आवश्यक है। इसके बाद 15 - 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।

रोग एवं उपचार

जई की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

चेपा : यह जई की फसल का मुख्य कीट है। यह पौधे के सैलों का रस चूस लेता है। इससे पत्ते मुड़ जाते हैं और इन पर धब्बे पड़ जाते हैं।इन के हमले को रोकने के लिए डाइमैथोएट 30 ई सी 0.03 प्रतिशत का प्रयोग करें। स्प्रे करने के 10-15 दिनों के बाद जई की फसल को चारे के तौर पर पशुओं को ना डालें।पत्तों पर काले धब्बे : इससे फफूंदी सैलों में अपने आप पैदा हो जाती है। पौधों के शिखरों से कोंडिओफोरस स्टोमैटा के बीच में ही एक सिंगल राह बना लेते हैं। यह फंगस भूरे रंग से काले रंग की हो जाती है। शुरूआती बीमारी पत्तों के शिखरों से आती है और दूसरी बार यह बीमारी हवा द्वारा सुराखों में फैलती है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए बीज का उपचार करना जरूरी है।जड़ गलन : यह जड़ों के विषाणुओं के कारण होता है। बिजाई से पहले बीजों को अच्छी तरह उपचार करने से इस बीमारी को रोका जा सकता है।

खरपतवार नियंत्रण

बुवाई के 20 से 25 दिन बाद एक निराई करना आवश्यक है अन्यथा उपज तथा चारे की पौष्टिकता कम हो जाती है। 500 ग्राम 2 - 4डी को 500 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में छिड़कना चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, कल्टीवेटर, फावड़ा, खुर्पी, दरांती।