जायफल की खेती

जायफल एक सदाबहार वृक्ष है जिसकी उत्पत्ति इण्डोनेशिया के मोलुकास द्वीप पर हुई थी। वर्तमान में इसे भारत सहित कई देशों में उगाया जाता है। जायफल के सूखे फलों का इस्तेमाल सुगन्धित तेल, मसाले और औषधीय रूप में किया जाता है। जायफल का पौधा सामान्य रूप से 15 से 20 फिट के आसपास ऊंचाई का पाया जाता है जिस पर फल, पौध रोपाई के लगभग 6 से 7 साल बाद लगते हैं। इसके कच्चे फलों का इस्तेमाल अचार, जैम और कैंडी बनाने में किया जाता है। जायफल की काफी प्रजातियाँ पाई जाती हैं लेकिन मिरिस्टिका प्रजाति के वृक्ष पर लगने वाले फलों को जायफल कहा जाता है; जिससे जायफल के साथ जावित्री भी प्राप्त होती है। इसके पौधों पर फल और फूल गुच्छों में लगते हैं जिनका आकार नाशपाती की तरह दिखाई देता है और जो पकने के बाद फट जाते हैं। इन्हीं में से इसका बीज निकलता है।


जायफल

जायफल उगाने वाले क्षेत्र

भारत में इसे दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है.

जायफल की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

जायफल फाइबर से भरपूर होता है, जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद करता है और ब्लड शुगर को बढ़ने से रोकता है। यह भी एक स्रोत है: विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन ई, मैंगनीज, मैग्नीशियम, कोप्पे, फॉस्फोरस, जिंक, आयरन, पोषक तत्व।

बोने की विधि

जायफल की खेती के लिए इसकी पौध, बीज और कलम दोनों के माध्यम से नर्सरी में तैयार की जाती है। बीज के माध्यम से पौधा तैयार करने में सबसे बड़ी समस्या इसके नर और मादा पेड़ों के चयन में होती है क्योंकि बिना फलों के इसके पौधों में नर और मादा का चयन करना काफी कठिन होता है। इसलिए बीज से तैयार करने पर काफी बार ज्यादातर पौधे नर के रूप में प्राप्त हो जाते हैं। इस कारण इसकी पौध कलम रोपण के माध्यम से तैयार की जाती है। बीज के माध्यम से पौध तैयार करने के दौरान इसके बीजों को उचित मात्रा में उर्वरक मिलाकर तैयार की गई मिट्टी से भरी पॉलीथीन में लगा देना चाहिए और पॉलीथीन को छायादार जगह में रख देना चाहिए। जब इसके पौधे अच्छे से अंकुरित हो जाएँ तब उन्हें लगभग एक साल बाद खेत में लगाना चाहिए। कलम के माध्यम से पौध तैयार करने की सबसे अच्छी विधि कलम दाब और ग्राफ्टिंग होती है। ग्राफ्टिंग विधि से पौध तैयार करना काफी आसान होता है। ग्राफ्टिंग विधि से पौध तैयार करने के लिए अच्छे से उत्पादन देने वाली किस्म के पौधों की शाखाओं से पेंसिल के सामान आकार वाली कलम तैयार कर लेना चाहिए और उसके बाद इन कलमों को जंगली पौधों के मुख्य शीर्ष को काटकर उनके साथ लगाकर पॉलीथीन से बांध देना चाहिए। इनके अलावा कलम के माध्यम से पौध तैयार करने की अन्य विधियों की अधिक जानकारी आप हमारे इस आर्टिकल से ले सकते हैं। पौध रोपाई का तरीका और टाइम - जायफल के पौधों की रोपाई खेत में तैयार किये गए गड्ढों में की जाती है लेकिन पौधों की रोपाई से पहले गड्ढों के बीचोंबीच एक और छोटे आकार का गड्ढा बना लेना चाहिए। गड्ढे बनाने के बाद उसे गोमूत्र या बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए ताकि पौधे को शुरूआती दौर में किसी तरह की बीमारियों का सामना ना करना पड़े। गड्ढों को उपचारित करने के बाद पौधे की पॉलीथीन को हटाकर उस गड्ढे में लगा देना चाहिए। उसके बाद पौधे के तने को दो सेंटीमीटर तक मिट्टी से दबा देना चाहिए। इसके पौधों की रोपाई का सबसे उपयुक्त समय बारिश का मौसम होता है। इस दौरान इसके पौधों की रोपाई जून के मध्य से अगस्त माह के शुरुआत तक कर देनी चाहिए क्योंकि इस दौरान पौधों को विकास करने के लिए उचित वातावरण मिलता है। इससे पौधों का विकास अच्छे से होता है। इसके अलावा इसके पौधों को मार्च के बाद भी उगा सकते हैं। इस दौरान रोपाई करने पर इसके पौधों को देखभाल की ज्यादा जरूरत होती है।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

जायफल के पौधों की रोपाई खेत में गड्ढे तैयार करके की जाती है। उससे पहले खेत को पेड़ लगाने के लिए अच्छे से तैयार किया जाना जरूरी होता है, क्योंकि जायफल के पौधे एक बार लगाने के बाद कई सालों तक पैदावार देते हैं। इसकी खेती के शुरुआत में खेत की अच्छे से सफाई कर खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उसके बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर देना चाहिए। जुताई के बाद कुछ दिन खेत को खुला छोड़ देना चाहिए ताकि मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीट शुरुआत में ही नष्ट हो जाएँ। खेत को खुला छोड़ने के कुछ दिन बाद खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर देना चाहिए। उसके बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत में उचित दूरी पर पंक्तियों में गड्ढे बना देना चाहिए। पंक्तियों में गड्ढे बनाने के दौरान प्रत्येक गड्ढे के बीच 20 फीट के आसपास दूरी होनी चाहिए और साथ ही प्रत्येक पंक्ति के बीच भी 18 से 20 फिट की दूरी होनी चाहिए। गड्ढों की खुदाई के वक्त उनका आकार डेढ़ से दो फिट गहरा और दो फीट चौड़ा होना चाहिए। गड्ढों की खुदाई करने के बाद उनमें उचित मात्रा में जैविक और रासायनिक उर्वरकों को मिट्टी में मिलाकर भर देना चाहिए। इन गड्ढों को पौध रोपाई के लगभग एक से दो महीने पहले भरकर तैयार किया जाता है।

बीज की किस्में

जायफल के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

जायफल की काफी सारी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। लेकिन कुछ किस्में उत्पादन के रूप में उगाई जाते हैं। इसे दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। आई.आई.एस.आर विश्वश्री :- जायफल की इस किस्म को भारतीय मसाला फसल अनुसंधान संस्थान, कालीकट द्वारा तैयार किया गया है। इसके पौधे रोपाई के लगभग 8 साल बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं। इसके प्रत्येक पौधे से एक बार में 1000 के आसपास फल प्राप्त होते हैं। इसके सूखे छिल्के युक्त फलों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 3100 किलो के आसपास तब पाया जाता है, जब इसके पौधों की संख्या लगभग साढ़े तीन सौ के आसपास की होती है। इसके पौधे से जायफल और जावित्री दोनों प्राप्त किये जाते हैं जिनमें 70 प्रतिशत जायफल और 30 प्रतिशत जावित्री प्राप्त होती है। केरलाश्री :- जायफल की इस किस्म को भी भारतीय मसाला फसल अनुसंधान संस्थान, कालीकट द्वारा केरल और तमिलनाडु के क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार किया गया है। इसके पौधे, रोपाई के लगभग 6 साल बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं जिन पर पहली बार फूल रोपाई के लगभग चार साल बाद ही आना शुरू हो जाते हैं। पौध रोपाई के लगभग 25 साल बाद जब पौधे पूरी तरह वृक्ष बन जाते हैं तब इस किस्म के पौधों का सालाना प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 3200 किलो के आसपास पाया जाता है। इनके अलावा भी कुछ उन्नत किस्में हैं जिन्हें उत्तम पैदावार लेने के लिए उगाया जाता है।

उर्वरक की जानकारी

जायफल की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

 जायफल के पौधों को उर्वरक की जरूरत बाकी पौधों की तरह ही होती है। शुरुआत में इसके पौधों की रोपाई से पहले गड्ढों की तैयारी के वक्त प्रत्येक गड्ढे में 10 से 12 किलो जैविक खाद के रूप में गोबर की खाद और 200 ग्राम एन.पी.के. को मिट्टी में मिलाकर भर दिया जाना चाहिए। पौधों को उर्वरक की ये मात्रा लगातार तीन से चार साल तक देनी चाहिए। उसके बाद पौधों के विकास के साथ साथ उर्वरक की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए। जायफल के एक पूर्ण रूप से तैयार पेड़ को सालाना 20 से 25 किलो गोबर की खाद और आधा किलो रसायनिक खाद देना चाहिए। इसके पेड़ों को उर्वरक की ये मात्रा पौधों पर फूल बनने से पहले देनी चाहिए। इसके लिए पौधे के तने से दो फ़ीट की दूरी छोड़ते हुए आधा फ़ीट गहरा और डेढ़ से दो फ़ीट चौड़ा एक घेरा पौधे के चारों तरफ तैयार करके इस घेरे में जैविक और रसायनिक उर्वरक को मिट्टी में मिलाकर भर देना चाहिए। उसके बाद उस पर मिट्टी डालकर दबा दें। इस तरह उर्वरक देने से पौधे की सभी जड़ों को सामान रूप से उर्वरक मिलता है जिससे पौधे अच्छे से विकास करते हैं।

जलवायु और सिंचाई

जायफल की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

 जायफल के पौधों को सिंचाई की जरूरत शुरुआत में अधिक होती है। शुरुआत में इसके पौधों की गर्मियों के समय 15 से 17 दिन के अंतराल में सिंचाई कर देनी चाहिए और सर्दियों में 25 से 30 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए। बारिश के मौसम में पौधों को पानी की आवश्यकता नही होती, लेकिन बारिश सही वक्त पर न हो और पौधों को पानी की जरूरत हो तो पौधों को आवश्यकतानुसार पानी देना चाहिए। जब पौधा पूरी तरह बड़ा हो जाता है तब साल में पांच से सात बार ही सिंचाई की जरूरत होती है, जो पौधों की गुड़ाई और फल लगने के दौरान की जानी चाहिए। पौधों की देखभाल - किसी भी फसल या पौधों की देखभाल कर उसकी उपज को बढ़ाया जा सकता है। उसी तरह जायफल की खेती में इसके पौधों की देखभाल कर जल्दी और अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इसके पौधों को देखभाल की जरूरत शुरुआत से ही होती है। शुरुआत में इसके पौधों के विकास के दौरान उन पर एक से डेढ़ मीटर तक की ऊंचाई पर किसी भी तरह की कोई शाखा का निर्माण नहीं होने देना चाहिए। इससे पौधे का तना मजबूत और पौधों का आकार अच्छा बनता है। उसके बाद जब पौधा पूर्ण रूप से बड़ा हो जाए और फल देने लगे, तब उसकी कटाई छटाई करते रहना चाहिए। पौधों की कटाई छटाई फलों के तोड़ने के बाद करनी चाहिए। इस दौरान पौधे सुषुप्त अवस्था में होते हैं। पौधों की कटाई छटाई के वक्त पौधों पर दिखाई देने वाली रोगग्रस्त और सूखी हुई डालियों के साथ साथ अनावश्यक शाखाओं को भी निकाल देना चाहिए। इससे पौधे में नई शाखाएं बनती है जिससे पेड़ों की उत्पादन क्षमता बढती है और किसान भाइयों को अधिक उत्पादन मिलता है।

रोग एवं उपचार

जायफल की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम जायफल के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं जिनकी उचित समय रहते देखभाल ना की जाए तो पौधों की पैदावार के साथ साथ उनके विकास को भी काफी हद तक प्रभावित करती है। डाई बैक - जायफल के पौधों में लगने वाला ये एक कवक जनित रोग है। पौधों पर इस रोग का सबसे ज्यादा प्रभाव उसकी शाखाओं पर देखने को मिलता हैं। इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियां पीली होकर गिरने लगती है और पौधे की रोगग्रस्त शखाएं ऊपर से नीचे की और काली होकर सूखने लगती हैं। रोग बढ़ने पर पौधे में गोंदिया रोग दिखाई देने लगता है जिससे धीरे धीरे पूरा पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए रोगग्रस्त शाखाओं को काटकर हटा देना चाहिए और काटे गए भाग पर बोर्डो मिश्रण का लेप कर देना चाहिए। इसके अलावा रोग दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 50 % WP की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए। काला शल्क - जायफल के पौधों में काला शल्क रोग कीट की वजह से फैलता है जिसका प्रभाव पौधे के तने और पत्तियों दोनों पर दिखाई देता है। इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों और तने को खाते हैं और उनका रस चूसते हैं। इसके कीट पत्तियों का रस चूसते वक्त चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं जिससे पौधे की पत्ती और तने दोनों पर काले रंग की फफूंद दिखाई देने लागती है। रोग बढ़ने पर पौधों का विकास रुक जाता है और फल अच्छे से नही बन पाते। इस रोग की रोकथाम के लिए कनोला तेल या मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए। सफेद अंगमारी - जायफल के पौधों पर सफ़ेद अंगमारी रोग मैरासमिअस पलकीरिमा कवक के माध्यम से फैलता है जो पौधों के अधिक समय तक छाया में रहने पर भी दिखाई देता है। इस रोग का प्रभाव पौधे के नीचे के भाग पर दिखाई देता है। इस रोग के लगने से पौधों के तने पर सफ़ेद धागे के जाल की तरह दिखाई देते हैं। इस रोग के बढ़ने की मुख्य वजह माईसीलियम युक्त सूखी पत्तियां होती है जिसकी रोकथाम के लिए रोगग्रस्त पौधों पर बोर्डों मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए। परिरक्षक शल्क - जायफल के पौधों में यह रोग नर्सरी में पौध तैयार करने के वक्त दिखाई देता है। इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों और तने पर पाए जाते हैं जो अंडाकार रूप में हल्के भूरे रंग के दिखाई देते हैं। रोग बढ़ने पर सम्पूर्ण पौधा नष्ट हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल का छिडकाव करना चाहिए। इसके अलावा मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव भी लाभदायक होता है। होर्स हेयर ब्लाइट - जायफल के पौधों पर फैलने वाला ये एक कवकीय रोग है जो मैरासमिअस इकयीनस के माध्यम से पौधों में फैलता है। इस रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों और तने दोनों पर दिखाई देता है। इस रोग के लगने पर पर रोगग्रस्त पौधों पर काले रंग की फफूंद दिखाई देने लगती है जिसे दूर से देखने पर चिड़िया के घोसलें का आकार दिखाई देता है। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर अधिक समय तक लगातार छाया नही बनी रहनी चाहिए और रोगग्रस्त पौधों पर बोर्डों मिश्रण या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए। शॉट होल - जायफल के पौधों में यह कोलिटोट्राइकम गिलाईस्पोरोइडिस कवक के माध्यम से फैलता है। पौधों पर इस रोग का प्रभाव उसकी पत्तियों पर दिखाई देता है। इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों पर गहरे भूरे काले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। रोग बढ़ने पर इन धब्बों का रंग हल्का लाल हो जाता है और पत्तियों में छिद्र बन जाते हैं जिससे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देते हैं। उनका विकास रुक जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर 1 प्रतिशत बोर्डिंग मिश्रण का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए. सफेद शल्क - जायफल के पौधों में सफेद शल्क रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों पर दिखाई देता है। इस रोग की शल्क पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर गुच्छों के रूप में दिखाई देती है जो भूरे रंग की सपाट दिखाई देती है। इसकी वजह से पौधे की पत्तियां पीली पड जाती हैं। रोग के बढ़ने से पौधे की पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं और पौधों का विकास रुक जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

 जायफल के पौधों में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से किया जाता है। प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके पौधों की रोपाई के 25 से 30 दिन बाद पौधों की हल्की गुड़ाई कर गड्ढों में मौजूद खरपतवार को निकाल देना चाहिए। उसके बाद जब भी गड्ढों में किसी भी तरह की खरपतवार दिखाई दे तो उसे निकाल देना चाहिए। इसके पौधों को शुरुआत में खरपतवार नियंत्रण के लिए साल में 7 से 8 गुड़ाई की जरूरत होती है, लेकिन जब पौधे पूरी तरह पेड़ का आकार धारण कर लेते हैं तब उन्हें दो से तीन गुड़ाई की ही जरूरत होती है। इसके अलावा खाली बची जमीन में अगर किसी भी तरह की फसल ना उगाई गई हो तो उसमें खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत की पावर टिलर के माध्यम से जुताई कर देना चाहिए। खेत की जुताई बारिश होने के बाद जब उसमें खरपतवार दिखाई देने लगे तब करनी चाहिए।

सहायक मशीनें

 कुदाल, खुरपी, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।

जायफल का फसल चक्र

जायफल की फसल में कितना समय लगता है?

<p><strong>पौधे लगाने का उचित समय&nbsp;जून के मध्य से अगस्त माह के शुरुआत तक </strong></p>