खरबूजा की खेती

ख़रबूज़े की खेती मुख्यतः ग्रीष्म कालीन फसल के रूप में की जाती है। खरबूजे के बीजों की गिरी का उपयोग मिठाई को सजाने में किया जाता है। इसका सेवन मूत्राशय संबंधी रोगों में लाभकारी होता है। इसकी 80 प्रतिशत खेती नदियों के किनारे होती है। इसकी मिठास के कारण लोग इसे ज्यादा पसंद करते हैं।


खरबूजा

खरबूजा उगाने वाले क्षेत्र

इसकी खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा बिहार में बड़े पैमाने पर की जाती है।

खरबूजा की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

खरबूजे में प्रचुर मात्रा में विटामिन 'ए' तथा विटामिन 'सी' होता है। इसके अलावा इसमें कॉपर, आयरन, पोटेशियम, मैग्नेशियम, कैल्शियम तथा विटामिन 'B' समूह के थायमिन, नियासिन, फोलेट, पायरोडॉक्सिन आदि तत्व पाये जाते हैं।

बोने की विधि

मैदानी क्षेत्रों में ख़रबूज़े की बुआई के लिए 1.5-2.0 मीटर की दूरी पर 30-40 सेमी चौड़ी नालियां बना लेना चाहिए। बीज की बुवाई नाली की किनारों (मेड़ों) पर 50-60 सेमी की दूरी पर की जानी चाहिए । बीज को 1.5 - 2.0 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

नदियों के किनारे कछारी भूमि में खरबूजे की खेती की जाती है। मैदानी क्षेत्रों में उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि सर्वोतम मानी गई है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर चलाना चाहिए।

बीज की किस्में

खरबूजा के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

हरा मधु, पंजाब रसीला , दुर्गापुर मधु , पूसा रसराज , अर्का राजहंस , अरकाजीत।

बीज की जानकारी

खरबूजा की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 3-4 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

खरबूजे का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदें।

उर्वरक की जानकारी

खरबूजा की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

उन्नत खेती के लिए 20 किग्रा नाइट्रोजन, 70 किग्रा फॉस्फोरस, 60 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। बोरोन , कैल्शियम तथा मोलिब्डेनम का 3 मिलीग्राम के स्तर पर पर्णीय छिड़काव करने से फलो की संख्या और कुल उपज में वृद्धि होती है।

जलवायु और सिंचाई

खरबूजा की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

जब पौधे में दो से तीन पत्तियां निकल आएं, उसी समय पहली सिंचाई कर देनी चाहिए। उसके बाद प्रत्येक सप्ताह सिचाईं करनी चाहिए। फलों के विकास के समय पानी बेहद सावधानी से देना चाहिए ताकि फल की मिठास पर कोई विपरीत असर न पड़े।

रोग एवं उपचार

खरबूजा की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

(i) चूर्णी फफूँदी - यह रोग ऐरीसाइफी सिकोरे सिएरम नामक फफूंदी के कारण होता है। पत्तियां एवं तनों पर सफ़ेद दरदरा और गोलाकार जाल-सा दिखाई देता है, जिसका आकार बाद में बढ़ जाता है और कत्थई रंग का हो जाता है। पूरी पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है और पौधों की बढ़वार रुक जाती है। इसकी रोकथाम के लिए रोगग्रस्त पौधों को खेत में इकट्ठा करके जला देना चाहिए। फफूंद नाशक दवा जैसे ट्राइडीमोर्फ 1/2 मिली/लीटर या माइक्लोब्लूटानिल का 1 ग्राम/10 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर सात दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खरबूजे की लताओं के खेत में फैलने से पहले ही निराई-गुडाई करके खेत को खरपतवार से निजात दिला देना चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, हैरों, खुर्पी-कुदाल फावड़ा, आदि यंत्रो की आवश्यकता होती है