नींबू घास की खेती

परिचय घास तृण कुल की यह वनौषधि है। भारतीय घरों में इसकी पत्तियों का चाय में उपयोग के कारण आमतौर पर लगाई जाती है। इसको अलग-अलग प्रदेशों में चाइना घास पूर्वी भारतीय नींबू घास, माला बार घास, कोचीन घास, नामों से पहचाना जाता है। इसकी व्यवसाय खेती इसके तेल की प्राप्ति हेतु केरल कर्नाटक उत्तर प्रदेश तमिलनाडु पश्चिम बंगाल तथा महाराष्ट्र में की जाती है। इसके तेल का मुख्य घटक सीट्राल है। जो इसमें 80 से 90% पाया जाता है। सीट्राल के कारण ही नींबू घास में नींबू जैसी तीक्ष्ण गंध आती है। इसी के कारण इस घास का नाम नींबू घास रखा गया होगा।


नींबू घास

नींबू घास उगाने वाले क्षेत्र

इसकी खेती केरल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, तथा महाराष्ट्र,आदि में की जाती है।

नींबू घास की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

यह एक प्रकार का औषधि है। इस औषधि के तेल की मालिश करने से जोड़ों के दर्द, चोट के दर्द में तुरंत आराम मिलता है।

बोने की विधि

बुवाई विधि खेत में बुवाई करते समय छोटी कुदाल से 5 से 8 सेंटी मीटर गहरी गुड़ाई करके पाटा लगाकर रोपाई कर देनी चाहिए तथा गड्ढे में सिल्प सीधी खड़ी रहे सिल्प का निचला हिस्सा मिट्टी से पूरी तरह दबा होना चाहिए रोपाई के पश्चात खेत में पानी छोड़ दिया जाना चाहिए पानी पौधे के पास रुका ना रहे रोपाई करते समय पौधे से पौधे तथा कतार से कतार के बीच की दूरी 7 से 30 या 7 से 45 सेंटीमीटर रखी जानी चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

खेत की तैयारी बुवाई से पूर्व खेत की हर लहरों से क्रश जुताई करनी चाहिए। अंतिम जुताई के समय 5% बीएससी पाउडर 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर दीमक के प्रकोप से बचने के लिए खेत में मिला देनी चाहिए। इसके पश्चात खेत को समतल कर दिया जाना चाहिए।

बीज की किस्में

नींबू घास के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

विभिन्न प्रजातियां - इसकी विभिन्न प्रजातियां परगट, परिणाम, कीड़ा जम्मू ग्रास और इसकी अन्य 25 प्रजातियां मध्यप्रदेश की जलवायु के बहुत ही अनुकूल हैं। खेती के प्रमाण - अन्य प्रजातियों की अपेक्षा सीकेपी 25 के प्रमाण आश्चर्यजनक रूप से अच्छे प्राप्त हुए हैं। घास की ऊंचाई 3 फुट तक होती है एवं तेल की मात्रा ज्यादा मिलती है।

बीज की जानकारी

नींबू घास की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पौध तैयार करने हेतु 2 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है| बीजों का अंकुरण 5 से 6 दिन में हो जाता है|

बीज कहाँ से लिया जाये?

नींबू घास  के बीज किसी विश्वसनीय  स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

नींबू घास की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

उर्वरकों की आवश्यकता: गोबर की सड़ी हुई खाद का प्रयोग एक तो खेत तैयार करते समय और दूसरा एक एक बार फसल की प्रत्येक कटाई के उपरांत करना चाहिए। खाद डालते समय सावधानी बरतनी चाहिए की खाद पौधे की जड़ों के पास ही डालें। खाद के कुल 5 डोज़ दिए जा सकते हैं। खेत तैयार करते समय 10 टन गोबर की खाद एवं प्रत्येक कटाई पर 5 टन डाल देना चाहिए। रासायनिक उर्वरकों में 68 किग्रा नाइट्रोजन 13 किग्रा फास्फोरस और 13 किग्रा पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। खेत तैयार करते समय नाइट्रोजन का एक बटा तीन हिस्सा जबकि फास्फोरस और पोटाश का संपूर्ण भाग डाल दिया जाना चाहिए। नाइट्रोजन का शेष भाग फसल की प्रत्येक कटाई के पश्चात डाल देना चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

नींबू घास की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाई रोपाई के पश्चात भूमि गीली रहनी चाहिए गर्मियों में 10 दिनों के अंतराल पर तथा सर्दियों के समय 15 दिनों के अंतराल से सिंचाई करना चाहिए

रोग एवं उपचार

नींबू घास की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

फसल में होने वाले रोग तथा उनका नियंत्रण: दीमक - बुवाई के पूर्व खेत में बी एस सी पाउडर का प्रयोग किया जाना चाहिए या नीम की खली को पीसकर प्रयोग करने से पौधे को दीमक के प्रकोप से बचाया जा सकता है।पौधे को दीमक के प्रकोप से बचाया जा सकता है श्वेत मक्खी - झुंडों में रहते हुए इन कीटों का प्रकोप फरवरी से मई तक देखा गया है । यह पत्तों की निचली सतह पर चिपके रहकर उनका रस चूसते हैं। इनके नियंत्रण के लिए फास्फा मिडाइन या डाइमेथोइट  30 % EC 200 से 250 मिली जल में मिलाकर प्रत्येक पौधे पर प्रयोग करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

गुड़ाई तथा खरपतवार इस की फसल में ज्यादा खरपतवार पहली बार होता है जब की बाद की कटाईयों में कम हो जाता है पहली कटाई के पूर्व हाथ से गुड़ाई करके करने से खरपतवार निकल जाती है इसके पश्चात खरपतवार नहीं के बराबर होता है फिर भी खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर आधा किलोग्राम डयोरान या 250 ग्राम आकसीफन्ल्यूरोफेन बुवाई के पूर्व खेत में मिला देनी चाहिए। प्रत्येक कटाई के पश्चात हाथ से ही गुड़ाई करना लाभकारी होता है।

सहायक मशीनें

कुदाल फावड़ा हल देशी हल मट्टी पलट वाला हल गहरी जुताई करके के लिए आदि मशीनों की आवश्कता पड़ती हैं।