शहतूत (वानस्पतिक नाम : मोरस अल्बा) एक फल है। इसका वृक्ष छोटे से लेकर मध्यम आकार का (10 मीटर से 20 मीटर ऊँचा) होता है और तेजी से बढ़ता है। इसका जीवनकाल कम होता है। यह चीन का देशज है किन्तु अन्य स्थानों पर भी आसानी से इसकी खेती की जाती है। इसे संस्कृत में 'तूत', मराठी में 'तूती', तुर्की भाषा में 'दूत', तथा फारसी, अजरबैजानी एवं आर्मेनी भाषाओं में 'तूत' कहते हैं। रेशम के कीड़ों को खिलाने के लिये सफेद शहतूत की खेती की जाती है। यह खासकर उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मध्य-प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल-प्रदेश इत्यादि राज्यों में उगाया जाता है।
शहतूत का फल खाने में जितना स्वादिष्ट होता है उतना सेहतमंद भी। आयुर्वेद में शहतूत के ढेरों फायदों का बखान है। शहतूत में पोटैशियम, विटामिन ए और फॉस्फोरस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। आमतौर पर शहतूत दो प्रकार के होते हैं। शहतूत एक ऐसा फल है जिसे कई लोग कच्चा ही खाना पसंद करते हैं और कुछ पक जाने पर खाते हैं।
नर्सरी तैयार करके पौधा रोपाई करना चाहिए। पौधा से पौधा की दुरी 10 X 10 मीटर रखना चाहिए।
मानसून की वर्षा से पूर्व भूमि की जुताई प्रारम्भ कर देते है। जमीन की 30-35 से.मी. गहरी जूताई करके उसमे पाटा लगा कर खेत की मिट्टी को भूरभूरी बना लेना चाहिए।
S-36: इसको पत्तों का आकार दिल के जैसा, मोटा और हल्के हरे रंग का होता है । V-1: यह किस्म 1997 में तैयार की गई थी। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के अंडाकार और चौड़े होते है।
एक एकड़ के लिए 4 किलो बीजों का प्रयोग करें।
शहतूत के पौधे अपने कृषि केंद्र या ब्लॉक से ले सकते हैं।
वृक्षारोपण के 2-3 माह उपरापन्त, 50 किग्रा नाइट्रोजन का उपयोग प्रति एकड़ की दर से करते रहना चाहिए।
हर एक सप्ताह में 80-120 मि.मी. सिंचाई करना चाहिए। जिस क्षेत्र में पानी की कमी हो वहां ड्रिप सिंचाई का प्रयोग करना चाहिए।
पत्तों पर सफेद धब्बे - यह बीमारी फाइलैकटीनियाकोरिली के कारण होती है। इससे पत्तों के निचले भाग पर सफेद पाउडर जैसे धब्बे दिखाई देने लगते हैं। कुछ समय बाद यह धब्बे बढ़ जाते है और पीले रंग के हो जाते हैं और पत्ते पकने से पहले ही गिरने लग जाते हैं। रोकथाम - इसकी रोकथाम के लिए पौधे के नीचे वाले भाग पर सलफैक्स 80 डब्लयु पी (2 ग्राम प्रति लीटर) 0.2% मिट्टी में डालना चाहिए और पत्तों पर भी स्प्रे करना चाहिए। पत्तों की कुंगी - यह बीमारी पैरीडियोसपोरामोरी के कारण होती है। इससे पत्तों के निचले भाग पर भूरे दाने और ऊपरी सतह पर लाल भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। यह धब्बे कुछ समय में पीले रंग के हो जाते हैं और फिर पत्ते सूख जाते हैं। यह बीमारी आम तौर पर फरवरी-मार्च के महीने में हमला करती है| रोकथाम - पत्तों की कुंगी से बचाव के लिए बलाईटॉक्स 50 डब्लयू पी 300 ग्राम या बविस्टन 50 डब्लयू पी 300 ग्राम का पत्तों पर स्प्रे करना चाहिए।
फसल की अच्छी वृद्धि और अधिक पैदावार के लिए फसल के शुरूआती समय में खेत को नदीन मुक्त रखें| पहले छ: महीनों में 3 बार गोडाई करें और कांट-छांट करने के बाद हर दो महीने के अंतराल पर गोडाई करें और फिर उसके बाद 2-3 महीने के अंतराल गोडाई करें|
मिट्टी पलट हल, देशी हल, या हैरों, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।