मिर्च की खेती

मिर्च एक नकदी फसल है। इसकी व्यवसायिक खेती करके अधिक लाभ कमाया जा सकता है। यह हमारे भोजन का प्रमुख अंग है। स्वास्थ्य की दृष्टि से मिर्च में विटामिन ए व सी पाये जाते हैं एवं कुछ लवण भी होते हैं। मिर्च को अचार, मसालों और सब्जी के रुप में भी काम में लिया जाता है।


मिर्च

मिर्च उगाने वाले क्षेत्र

यह भारत की एक महत्तवपूर्ण फसल है। भारत में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा राजस्थान प्रमुख मिर्च उत्पादक राज्य हैं।मिर्च का मूल स्थान मैक्सिको और दूसरे दर्जे पर गुआटेमाला माना जाता है। भारत में मिर्चें 17वीं सदी में पुर्तगालियों के द्वारा गोवा लाई गई और इसके बाद यह पूरे भारत में बड़ी तेजी से फैल गई।भारत, संसार में मिर्च पैदा करने वाले देशों में मुख्य देश हैं। इसके बाद चीन और पाकिस्तान का नाम आता है। जलवायु और तापमान :- फूल और फल आने के समय भारी बारिश, बादल का मौसम होने पर फूलों और फलों का झड़ना शुरू हो जाता है| अधिक आर्द्रता होने पर फलों में सड़न होती है। प्रकाश की उच्च तीव्रता के कारण फलों को रंग आने में देरी होती है। तापमान 10C से कम होने पर पौधों की वृद्धि रुक जाती है। पौधों के प्रारंभिक वृद्धि होने के दौरान तापमान 30C से ऊपर होने पर जड़ो की वृद्धि रुक जाती है। यदि तापमान 37C से अधिक हो जाता है, तो फल वृद्धि पर विपरीत रूप सें प्रभाव पड़ता है। 20 से 25 C तापमान मिर्च का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए अनुकूल रहता है|

मिर्च की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

विटामिन ए, विटामिन सी कैल्सियम, आयरन, विटामिन डी, विटामिन बी12, विटामिन बी6, मैग्नेशियम

बुवाई और कटाई का समय

मिर्च को बोने का सही समय है जून-जुलाई का महीना व कटाई के लिए <p>मिर्च की रोपाई वर्षा, शरद, ग्रीष्म तीनों मौसम &nbsp;मे की जा सकती है। परन्तु मिर्च की मुख्य फसल खरीफ (जून-अक्टूबर) में तैयार की जाती है। जिसकी रोपाई जून.-जूलाई मे, शरद ऋतु की फसल की रोपाई सितम्बर-अक्टूबर तथा ग्रीष्म कालीन फसल की रोपाई फर-मार्च में की जाती है।</p> के महीने को उपयुक्त माना जाता है।

बोने की विधि

 नर्सरी ऐसे तैयार करें :-मिर्च की पौध तैयार करने के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करें जहाँ पर पर्याप्त मात्रा में धूप आती हो तथा बीजो की बुवाई 3x1 मीटर आकार की भूमि से 20 सेमी ऊँची उठी क्यारी में करें। मिर्च की पौधषाला की तैयारी के समय 2-3 टोकरी वर्मी कंपोस्ट या पूर्णतया सड़ी गोबर खाद 50 ग्राम फोरेट 10 g/ क्यारी मिट्टी में मिलाऐं। बुवाई के 1 दिन पूर्व कार्बेंडाजिम दवा 1.5 ग्राम/ली. पानी की दर से क्यारी में छिड़काव करे। अगले दिन क्यारी में 5 सेमी दूरी पर 0.5-1 सेमी गहरी नालियाँ बनाकर बीज बुवाई करें। आवश्यकतानुसार समय-समयपर सिंचाई करते रहें। बीज बोने के 25-30 दिन बाद पौधे रोपने योग्य हो जाते हैं। पौध-से-पौध एवं पंक्ति-से-पंक्ति की दूरी क्रमशः 60 सेमी, 45 सेमी रखते हैं।  पो ट्रे में नर्सरी तैयार ऐसे करें :-1 मीटर चौड़े और आवश्यकतानुसार लंबे बैड बनाएं। रोगाणुरहित कोकोपिट 300 किलो, 5 किलो नीम केक को मिलाएं और 1-1 किलो एज़ोसपीरिलियम और फासफोबैक्टीरिया भी डालें। 11,600 नए पौधे तैयार करने के लिए 96 या 100 सेल वाली120 ट्रे की जरूरत होती है, जो कि एक एकड़ के लिए प्रयोग की जाती है। उपचार किए हुए बीज ट्रे में एक बीज प्रति सैल बोयें। बीज को कोकोपिट से ढक दें और ट्रे एक- दूसरे के साथ रखें। बीज अंकुरन तक इन्हें पॉलीथीन से ढक दें। नर्सरी में बीज बीजने के बाद बैडों को 400 मैश नाइलोन जाल या पतले सफेद कपड़े से ढक दें। यह नए पौधों को कीड़े-मकौड़े और बीमारियों के हमले से बचाता है। 6 दिनों के बाद ट्रे में लगे नए पौधों को एक एक करके जाल की छांव के नीचे बैडों में लगाएं। बीज अंकुरन तक पानी देने वाले बर्तन की मदद से पानी दें। बिजाई के 18 दिन बाद 19:19:19 की 0.5 प्रतिशत (5 ग्राम प्रति लीटर ) की स्प्रे करें।  खेत में पनीरी लगाना :-30-40 दिनों के बाद पौधे रोपाईके लिए तैयार हो जाते हैं। पौधखेत में लगाने के लिए 6-8 सप्ताह पुराने और 15-20 सैं.मी. वाले लम्बाईके पौधे ही चुनें।  रोपाई से पहले जडोपर उपचार :-समतल कंटेनर में 20 लीटर पानी लें। 40 ग्राम कार्बेन्डाजिम + 40 मिली इमिडाक्लोप्रिड पानी में मिलाये। जडोंको रोपाई से पहले ऊपरी मिश्रण में 5 मिनट के लिए डुबोये। ट्रे की पौधोंके लिए, पूरी ट्रे ऊपरी द्रवमें 5 मिनट के लिए डुबोकर रखे।"

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

खेत को तैयार करने के लिए 2-3 बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद मिट्टी के ढेलों को तोड़ें। रोपाई से 15-20 दिन पहले गोबर की खाद 150-200 क्विंटल प्रति एकड़ डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। खेत में 60 सैं.मी. के दुरी पर मेंड़ और खालियां बनाएं। एज़ोसपीरीलियम 800 ग्राम प्रति एकड़ और फासफोबैक्टीरिया 800 ग्राम प्रति एकड़ को गोबर की खाद में मिलाकर खेत में डालें।

बीज की किस्में

मिर्च के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

"मिर्च की ज्यादा पैदावार वाली भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR-IIHR) द्वारा रिलीज की गई किस्में ! मिर्च हाइब्रिड: अर्का हरिता :-ये किस्म क्रॉस है IHR 3905 (CGMS) X IHR 3312 की ।ये 15-18 टन ताज़ी उपज और 2-2.5 टन / एकड़सूखी उपज के साथ उच्च उपज देने वाली संकर किस्म है !मिर्च हरे और परिपक्व होने पर लाल रंग की होती हैं !चिकनी और अत्यधिक तीखी होती हैं !अरका हरिता ख़स्ता फफूंदी और वायरस के प्रति सहनशील है।मार्च 2007 में कर्नाटक राज्य वैरिएटल रिलीज समिति द्वारा जारी करने की सिफारिश की गई। गजट 16 मार्च 2020 को अधिसूचित किया गय। हाइब्रिड :- अर्का मेघना:-ये किस्म IHR 3905 (CGMS) X IHR 3310 का F1 हाइब्रिड क्रॉस है ।अर्का मेघना 15-17t / एकड़ताजा उपज और 3t / एकड़सूखी उपज के साथ उच्च उपज वाली एफ 1 हाइब्रिड किस्म है !ये किस्म बहुत जल्दी पकने वाली व मिर्च गहरे हरे रंग की होती हैं और परिपक्वता पर गहरे लाल रंग में बदल जाती हैं !यह वायरस और चूसने वाले कीटों के प्रति सहनशील है ।राष्ट्रीय स्तर पर रिलीज़ के लिए 2005 में अनुशंसित और 2006 में अधिसूचित की गई ।  मिर्च-MSH-206 :-यह एक सीएमएस आधारित उच्च उपज एफ 1 हाइब्रिड है, मिर्च 12 X 1 सेमी आकार में चिकनी और मध्यम तीखी, हल्की हरी, परिपक्वता पर लाल रंग की हो जाती है !ये किस्म वायरस के प्रति सहनशील है !उपज: 180 दिनों में 20-22टन / एकड़(ताजा) और 2-3टन / एकड़(सूखी) मिर्च की पैदावार देती है !  मिर्च-अर्का सुफल :-चयन की वंशावली विधि के माध्यम से विकसित किया गया है और पंत सी 1 x आईएचआर 517 ए क्रॉस का एफ 9 व्युत्पन्न है !हरे रंग की और चिकनी होती है ! मध्यम लंबी (6-7 सेमी x 1 सेमी), पेंडेंट, परिपक्वता पर गहरे लाल रंग की होती हैं !ये किस्म सिंचित और बरसाती खेती के लिए उपयुक्त है !ख़स्ता फफूंदी और वायरस के प्रति सहनशील है !ये किस्म प्रति एकड़12टन (हरी मिर्च) और 1 -1.5टन / एकड़(सूखी मिर्च) की उपज देती है।राष्ट्रीय रिलीज 2002 में एआईसीआरपी (वीसी) कार्यशाला में जारी करने की सिफारिश की गई। मिर्च-अर्का स्वेता :-IHR 3903 (CGMS लाइन) X IHR 3315 का F1 हाइब्रिड है।14 -15टन / एकड़ताजा उपज और 2 -2.5 टन / एकड़सूखी उपज के साथ उच्च उपज देने वाली संकर किस्म है !चिकनी, हल्के हरे रंग और परिपक्व होने पर लाल रंग की हो जाती हैं ! वायरस के प्रति सहनशील है ।AICRP-VC समूह, 2005 के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर रिलीज़ के लिए अनुशंसित।अर्का स्वेता की सिफारिश पूरे देश के लिए सीएसएन की 14 वीं बैठक सीएसएन एंड आरवी ऑन हॉर्टिकल्चर फसलों, 2007 में की गई थी।  मिर्च-अर्का ख्याति :-क्रॉस MS4 (A लाइन) X IHR 3315 (R लाइन) का F1 हाइब्रिड (INGR नंबर 05024)।मिर्च की ये किस्म 15-18 टन / एकड़ताजा उपज और 2-2.5 टन / एकड़सूखी उपज के साथ उच्च उपज देने वाली संकर किस्म है !अर्का ख्याति मिर्च चिकनी और अत्यधिक तीखी होती हैं !मिर्च हरे और परिपक्व होने पर लाल हो जाती हैं।कर्नाटक राज्य रिलीज समिति, 2007 द्वारा जारी करने के लिए अनुशंसित।ख़स्ता फफूंदी और वायरस के प्रति सहनशील किस्म है। मिर्च नर बाँझ लाइन: MS 1-4 :-पौधे की ऊँचाई एक मीटर होती है और सीधा होता है !इस वैरायटी परछह महीने की अवधि के लिए लगातार फूल लगाते है ।यह किस्म ख़स्ता (पाउडर) फफूंदी और मिर्च के शिरापरक मोटल वायरस रोग के प्रति सहनशील है !फल 6-7 सेमी लंबाई और 0.8 -1.0 सेमी मोटाई के होते है !मिर्च हरी होती है जो की पकने पर लाल हो जाती है !फ्रूट ओरिएंटेशन पेंडेन (लटकने वाली)काशी अनमोल (उपज 100 क्विंटल प्रति एकड़), काशी विश्वनाथ (उपज 90 क्विंटल प्रति एकड़), जवाहर मिर्च - 283 (उपज 60क्विंटल प्रति एकड़ हरी मिर्च.) जवाहर मिर्च -218 (उपज 8क्विंटल प्रति एकड़सूखी मिर्च.) अर्का सुफल (उपज 110क्विंटल प्रति एकड़) संकर किस्म काशी अर्ली (उपज 15-17 टन/ एकड़), काषी सुर्ख या काशी हरिता (उपज 15 टन/ एकड़ ) का चयन करें। पब्लिक सेक्टर की एचपीएच-1900, 2680, उजाला तथा यूएस-611, 720 संकर किस्में की खेती की जा रही है। 01. पंजाब लाल - यह एक बहुवार्षीय किस्म है। यह किस्म मोजैक वायरस, कूकर्वित मोजैक वायरस के लिए प्रतिरोधी है इस किस्म की पैदावार 22-25क्विंटल/ एकड़ है। 02. पूसा सदाबहार - यह एक बारहमासी किस्म है, जिनमें एक गुच्छे में 6-22 फल लगते हैं इस किस्म में साल में 2 से 3 फलन होता है उपज 150 से 200 दिन में तैयार होती है। उपज 15-20 क्विंटल/एकड़तक प्राप्त होती है। 03. पूसा ज्वाला - इस किस्म के फल लंबे एवं तीखे तथा फसल शीघ्र तैयार होने वाली है। प्रति एकड़ 8से 10 क्विंटल मिर्च (सूखी) प्राप्त होती है।"

बीज की जानकारी

मिर्च की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

 बीज दर :-हाइब्रिड किस्मों के लिए बीज की मात्रा 80-100 ग्राम और बाकी किस्मों के लिए 200 ग्राम प्रति एकड़ होनी चाहिए। बीज का उपचार :- नर्सरी में बुवाईसे पहले बीज को 3 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कार्बेनडाज़िम प्रति किलो बीज से उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद बीज को 5 ग्राम ट्राइकोडरमा या 10 ग्राम सीडियूमोनस फ्लोरीसैन्स प्रति किलो बीज से उपचार करें और छांव में रखें। फिर यह बीज, बिवाईके लिए प्रयोग करें।ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी नर्सरी में 15 दिनों के अंतरालपर डालें। इससे मुरझानेवाले रोग से पौधों को बचाया जा सकता है। फसल को उखेड़ा रोग और रस चूसने वाले कीटोंसे बचाने के लिए बिजाई से पहले जड़ों को 15 मिनट के लिए ट्राइकोर्डमा हर्जीनम 20 ग्राम प्रति लीटर+0.5 मि.ली. प्रति लीटर इमीडाक्लोप्रिड में डुबोयें। पौधों को तंदरूस्त रखने के लिए वी ए एम के साथ नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया डालें। इस तरह करने से हम 50 प्रतिशत सुपर फासफेट और 25 प्रतिशत नाइट्रोजन बचा सकते हैं।"

बीज कहाँ से लिया जाये?

मिर्च का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

मिर्च की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

"मिर्चकी अच्छी व गुणवत्तायुक्त फसल लेने के लिए भूमि में पोषक तत्वों की उचित मात्रा होनी चाहिए। उर्वरकों की मात्रा मृदा परीक्षण केपरिणाम के आधार पर तय किया जाना चाहिए। मिर्च मे उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी । उर्वरकोंका अनुपात एनपीके 30:15:15किलो प्रति एकड़ प्रयोग करें।  नत्रजन :- 33किलो यूरिया प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं और 17किलो यूरिया रोपाईके 30दिन बाद और 45 दिन बाद 17 किलो यूरियाखड़ी फ़सलमें डालें।  फॉस्फोरस :- 94किलो एसएसपी प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्रा खेत में मिलाएं।  पोटास :- 25किलो म्यूरेट ऑफ पोटास (mop)प्रति एकड़ बुवाई के समय सम्पूर्ण मात्राखेत में मिलाएं।जड़ों के अच्छे विकास के लिए पोटाश की जरूरत होती है।  अच्छी पैदावार लेने के लिए, टहनियां निकलने के 40-45 दिनों के बाद मोनो अमोनियम फासफेट 12:61:00 की 75 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे करें। अधिक पैदावार के साथ साथ अधिक तुड़ाइयां करने के लिए, फूल निकलने के समय सलफर/बैनसल्फ 10 किलो प्रति एकड़ डालें और कैल्श्यिम नाइट्रेट 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। पानी में घुलनशील खादें :-नर्सरीखेत में लगाने के 10-15 दिनों के बाद 19:19:19 जैसे सूक्ष्म तत्वों की 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फिर 40-45 दिनों के बाद 20 प्रतिशत बोरोन 1 ग्राम + सूक्ष्म तत्व 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फूल निकलने के समय 0:52:34 की 4-5 ग्राम + सूक्ष्म तत्व 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फूल निकलने के समय 0:52:34 की 4-5 ग्राम + बोरोन 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फल तैयार होने के समय 13:0:45 की 4-5 ग्राम + कैल्श्यिम नाइट्रेट की 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।  विकास दर बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले हार्मोन:- फूल गिरने से रोकने के लिए और फल की अच्छी क़्वालिटीलेने के लिए , फूल निकलने के समय एन एन ए 40 पी पी एम 40 एम जी प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फूल और फलों के गुच्छे बनने के समय फसल का ध्यान रखने से 20 प्रतिशत अधिक पैदावार मिलती है। फूल निकलने के समय 15 दिनों के फासले पर होमोबरासिनालाइड 5 मि.ली. प्रति 10 लीटर की तीन स्प्रे करें। अच्छी क्वालिटी वाले अधिक फलों के गुच्छे लेने के लिए बिजाई के 20,40,60 और 80 दिन पर ट्राइकोंटानोल की स्प्रे विकास दर बढ़ाने के लिए 1.25 पी पी एम (1.25 मि.ली. प्रति लीटर) करें।"

जलवायु और सिंचाई

मिर्च की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

शीतकालीन मौसम के मिर्च के खेती में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। सिंचाई की आवश्यकता पड़ने पर दो तिहाई सिंचाई दिसंबर से फरवरी तक करनी पड़ती है। ग्रीष्म कालीन मौसम की खेती में 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए।

रोग एवं उपचार

मिर्च की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

टमाटर और मिर्च की खेती एक ही या नज़दीक वाले खेत में ना करें, क्योंकि दोनों की बीमारियां एक जैसी होती हैं और इस कारण एंथ्राक्नोस और बैक्टीरिया वाली बीमारियों के बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। मिर्च के साथ प्याज और धनिये की खेती करने से आयमें वृद्धि होती है और खरपतवारोंको रोका जा सकता है। कीटोंकी रोकथाम के लिए मिर्च के साथ प्याज, लहसुन या मैरी गोल्ड की खेती करें।  पर्णकुंचन व मोजेक विषाणु रोग :- इस रोग के प्रभाव से पत्ते सिकुड़ कर छोटे रह जाते हैं व उन पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। मोजेक विषाणु रोग के कारण पत्तियों पर गहरे व हल्का पीलापन लिए हुए धब्बे बन जाते हैं। रोगों को फैलाने में कीट सहायक होते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए रोगी पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए। रोग को आगे फैलने से रोकने के लिए डाइमिथोएट 30 ईसी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए। नर्सरी तैयार करते समय बुवाई से पूर्व कार्बोफ्यूरान 3जी 8-10 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से जमीन में मिलाएं। रोपाई के समय निरोगी पौधे काम में लें। रोपाई के 10 से 12 दिनों बाद मिथाइल डिमेटोन 25 ईसी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। छिड़काव 15 से 20 दिनों के अंतर पर जरूरत के हिसाब से दोहराएं। फूल आने पर मैलाथियान 50 ईसी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर के हिसाब से छिड़कना चाहिए। थ्रिप्स :-यह ज्यादातर शुष्क मौसम में पाया जाने वाला कीड़ा है। यह पत्तों का रस चूसता है और पत्ता मरोड़ रोग पैदा करता है। इससे फूल भी झड़ने लग जाते हैं। इनका हमला मापने के लिए नीले चिपकने वाले कार्ड 6-8 प्रति एकड़ लगाएं। इनके हमले को कम करने के लिए वर्टीसिलियम लिकानी 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे की जा सकती है। यदि इसका हमला अधिक हो तो इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल या फिप्रोनिल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या फिप्रोनिल 80 प्रतिशत डब्लयु पी 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी या एसीफेट 75 प्रतिशत डब्लयु पी 1.0 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें या थायामैथोक्सम 25 प्रतिशत डब्लयु जी 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।

खरपतवार नियंत्रण

मिर्च की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए। रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई से पहले पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ या फलूक्लोरालिन 800 मि.ली. प्रति एकड़ खरपतवारनाशक के तौर पर डालें और रोपाईके 30 दिन बाद एक बार हाथों से निराई गुड़ाई करें।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, या हैरों, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।

मिर्च का फसल चक्र

मिर्च की फसल में कितना समय लगता है?

<p>मिर्च की रोपाई वर्षा, शरद, ग्रीष्म तीनों मौसम &nbsp;मे की जा सकती है। परन्तु मिर्च की मुख्य फसल खरीफ (जून-अक्टूबर) में तैयार की जाती है। जिसकी रोपाई जून.-जूलाई मे, शरद ऋतु की फसल की रोपाई सितम्बर-अक्टूबर तथा ग्रीष्म कालीन फसल की रोपाई फर-मार्च में की जाती है।</p>