मेथी की खेती

मेथी एक शाकीय पौधा है जो भारत में शाक एवं मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। मेथी के दानों से खाने में पौष्टिकता के साथ साथ सुगंध ट्रैगोनिल नाम के रसायन के कारण होती है। इसकी फलियों एवं पौधे के तने एवं पत्तियों को सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। मेथी की अच्छी पैदावार करने के लिए ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है । इसकी वानस्पतिक वृद्धि के समय लंबे ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है । यह पाले को भी सहन कर लेती है।


मेथी

मेथी उगाने वाले क्षेत्र

भारत में राजस्थान मुख्य मेथी उत्पादक राज्य है। मध्य प्रदेश, तामिलनाडू, राज्यस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और पंजाब अन्य मेथी उत्पादक राज्य हैं। जलवायु और तापमान :- ठंडी और तुलनात्मक रूप से शुष्क जलवायु फसल के लिए उपयुक्त होती है। पुष्पन और अनाज भरने के चरण में पाला पड़ने से फसल प्रभावित होती है। फ़सल को मैदानी इलाकों में सालभर उगाया जा सकता है। खेती के लिए अधिकतर रबी मौसम अच्छा होता है। भारी और निरंतर बारिश वाले क्षेत्रों में खेती नहीं करनी चाहिए। तापमान सीमा 10-27.5°C होती है। उच्च तापमान से अंकुरण प्रतिशत और वनस्पति विकास कम होता है।

मेथी की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

मेथी प्रोटीन, फाइबर, विटामिन सी, पोटैशियम और आयरन से भरपूर होता है। इसमें वसा, कार्बोहाईड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस तथा लोहा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसमें फास्फोरिक एसिड, कोलाइन और ट्राइगोनेलिन एल्केलाइड्स, गोंद, लेसीथिन, एलब्युमिन प्रोटीन, पीले रंग के रंजक तत्व भी पाएं जाते हैं।

बोने की विधि

बुवाई छिटकवाँ विधि से भी की जाती है, लेकिन यह विधि उपयुक्त नहीं है। मेथी की बुवाई पंक्तियों (लाइनो) में ही करनी चाहिए। पंक्ति-से-पंक्ति की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर एवं पौध-से-पौध की दूरी 5 से 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बीज की मात्रा:- एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 12 किलोग्राम प्रति एकड़ बीजों का प्रयोग करें। बीज का उपचार :- बिजाई से पहले बीजों को 8 से 12 घंटे के लिए पानी में भिगो दें। बीजों को मिट्टी से पैदा होने वाले कीट और बीमारियों से बचाने के लिए थीरम 4 ग्राम और कार्बेनडाज़िम 50 प्रतिशत डब्लयु पी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद एज़ोसपीरीलियम 600 ग्राम + ट्राइकोडरमा विराइड 20 ग्राम प्रति एकड़ से प्रति 12 किलो बीजों का उपचार करें।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मेथी की अच्छी पैदावार एवं वृद्धि के लिए दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। जिसमें अच्छी उर्वरा शक्ति तथा उचित जल निकास होना चाहिए। मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की दो - तीन बार जोताई करें। उसके बाद सुहागे की सहायता से ज़मीन को समतल करें। आखिरी जुताई के समय 4 - 5 टन प्रति एकड़ अच्छी तरह से सड़ी गली गोबर की खाद डालें। बुवाई के लिए 3 x 2 मीटर समतल बीज बैड तैयार करें।

बीज की किस्में

मेथी के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

हिसार सोनाली :- ऊँची बढ़ने वाली क़िस्म है। पत्तियाँ हरी गहरी, बीज सुनहरे पीले होते हैं । 140-150 दिन में पक जाती है। 700-900kg/एकड़ उपज प्राप्त होती है। लामसेलेक्शन 1 :- 68 दिन में पककर तैयार होने वाली यह अगेती क़िस्म है। इस क़िस्म के पौधे झाड़ीनुमा होते हैं। 400 - 500 किलोग्राम / एकड़ उपज इस क़िस्म से प्राप्त होती है। राजेंद्र क्रांति :- इस क़िस्म के पौधे अधिक शाखाओं वाले मध्यम,ऊँचाई वाले झाड़ीनुमा होते हैं। पत्ती रोग धब्बा प्रतिरोधी क़िस्म - 120 दिन में तैयार व 600-800 किलो / एकड़ उपज । को0 1 :- इसमें 20-30% प्रोटीन होता है। पत्तों व मसालों के लिए लोकप्रिय क़िस्म 90 दिन में पककर तैयार होती है। 4-6 टन शाक व 700 kg / एकड़ बीज उपज । RMT 143 :-यह क़िस्म चूर्णी फफूँदी प्रतिरोधी होती है। भारी मृदा में उगाने के लिए उपयुक्त यह क़िस्म 140-150 दिन में तैयार हो जाती है। 700 -800 किलो / एकड़ तक उपज। RMT 1 :- यह भी चूर्णी फफूँदी के प्रति सहनशील होती है। बुवाई के 140-150 दिन में तैयार होने वाली यह क़िस्म 600-800 किलोग्राम /एकड़ तक उपज देती है। HM 103 :- इस क़िस्म के पौधे अर्धसीधे झाड़ीनुमा होते हैं। दाने पीले व आकर्षक होते हैं। बुवाई के 140-150 दिन में तैयार होती है। उपज 900-1000 किलोग्राम / एकड़ उपज। पूसा अर्ली बंचिंग - इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली में किया गया है। यह अगेती किस्म बुवाई से बीज बनने तक 125 दिन का समय लेती है। प्रभा - इसके पौधे सीमित रूप से झुके होते हैं । यह किस्म रोग व कीड़ों के प्रति अवरोधी है तथा इसके उपज क्षमता अच्छी है। कसूरी मेथी - इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली से किया गया है। यह देर से तैयार होने वाली किस्म है। इसमें बुवाई से लेकर बीज बनने तक 156 दिन लगते हैं। IC 74 - इस किस्म के पौधे सीधे बढ़ने वाले होते हैं जिनमें काफी शाखाएं होती हैं। इसे पत्ती तथा बीज दोनों के लिए उगाया जाता है।

बीज की जानकारी

मेथी की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक एकड़ क्षेत्र के लिए 12 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

मेंथा के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदें।

उर्वरक की जानकारी

मेथी की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही किया जाना चाहिए। मृदा विश्लेषण के आधार पर यह मात्रा घट- बढ़ सकती है। उर्वरको का अनुपात एनपीके 20:10:10 प्रयोग करें। नत्रजन :- 22 किलो यूरिया प्रति एकड़ बुवाई के समय खेत में मिलाएं और 22 किलो यूरिया खड़ी फ़सल में 30 से 35 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में दें। फॉस्फोरस :- 62 किलों एसएसपी प्रति एकड़ सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय खेत में मिलाएं। पोटाश :- 17 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय खेत में मिलाएं। अच्छी वृद्धि के लिए अंकुरन के 15-20 दिनों के बाद ट्राइकोंटानोल हारमोन 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। बुवाई के 20 दिनों के बाद NPK(19:19:19) 75 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी का स्प्रे भी अच्छी और तेजी से वृद्धि करने में सहायता करता है। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए ब्रासीनोलाइड 50 मि.ली. प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 40-50 दिनों के बाद स्प्रे करें। इसकरता दूसरी स्प्रे 10 दिनों के बाद करें। कोहरे से होने वाले हमले से बचाने के लिए थाइयूरिया 150 ग्राम प्रति एकड़ की 150 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 45 और 65 दिनों के बाद स्प्रे करें।

जलवायु और सिंचाई

मेथी की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

मेथी की अच्छी पैदावार एवं जमाव हेतु खेत में पर्याप्त नमी का होना बहुत ही आवश्यक है। खेत में यदि नमी की कमी हो तो हल्की सिंचाई करनी चाहिए। मेथी की उचित पैदावार के लिए बिजाई के 30, 75, 85, 105 दिनों के बाद तीन से चार सिंचाई करें। फली के विकास और बीज के विकास के समय पानी की कमी नहीं होने देनी चाहिए क्योंकि इससे पैदावार में भारी नुकसान होता है।

रोग एवं उपचार

मेथी की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

जड़ गलन :- फसल को जड़ गलन से बचाने के लिए मिट्टी में नीम केक - 60 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से डालें। बीज उपचार के लिए ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीजों का उपचार करें। यदि खेत में जड़ गलन का प्रकोप दिखें तो इसकी रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 50 % WP  5 ग्राम या कॉपर ऑक्सीकलोराइड 50% WP 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर डालें। पत्तों पर सफेद धब्बे :- पत्तों की ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। यदि इनका प्रकोप दिखे तो पानी में घुलनशील दवा 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि दोबारा स्प्रे की जरूरत पड़े तो 10 दिनों के अंतराल पर करें या प्रोपिकोनाजोल10 ई सी 200 मि.ली को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। चेपा / ऱस चूसक कीट :- यदि चेपे का हमला दिखे तो इमीडाक्लोप्रिड 17.8 % SL  3 मि.ली को 10 लीटर पानी या थायामैथोक्सम 25 %WG 4 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

खरपतवार नियंत्रण

खेत को खरपतवार मुक्त करने के लिए एक या दो बार गुड़ाई करें। पहली निराई गुड़ाई बुवाई के 25-30 दिनों के बाद और दूसरी निराई गुड़ाई पहली निराई के 30 दिनों के बाद करें। खरपतवारों को रासायनिक तरीके से रोकने के लिए फलूक्लोरालिन 300 ग्राम प्रति एकड़ में डालने की सिफारिश की जाती है। बुवाई के 1 - 2 दिनों के अंदर अंदर मिट्टी में नमी बने रहने पर स्प्रे करें या पैंडीमैथालिन 1.3 लीटर प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के 1 - 2 दिनों के अंदर अंदर मिट्टी में नमी बने रहने पर स्प्रे करें।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, हैरों या कल्टीवेटर, खुर्पी, कुदाल, हसियां या दराँती, आदि यंत्रों की आवश्यकता पड़ती है।