आम की खेती

आम भारत का राष्ट्रीय फल है। प्राचीन काल से आम मनुष्य के लिए एक महत्वपूर्ण फल रहा है। भारतीय जनता आम को बड़े चाव से खाती है। वर्तमान समय में आम संसार के सर्वश्रेष्ठ फलों में से एक है। आम को अनेक प्रकार से खाने के काम में लिया जाता है; जैसे अमचूर, चटनी, अचार, मुरब्बा, स्क्वैश तथा पका आम चूसने और खाने के काम में लाया जाता है। आम के पत्ते तथा लकड़ियाँ भी धार्मिक उत्सवों में सजावट तथा यज्ञ आदि में काम आती हैं।


आम

आम उगाने वाले क्षेत्र

अकेले उत्तर प्रदेश में भारत के संपूर्ण क्षेत्रफल के आधे से अधिक क्षेत्रफल पर आम की खेती की जाती है। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी तथा पूर्वी दोनों ही भागों में आम की काफी पैदावार होती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ तथा बुलंदशहर आदि जिलों में आम का अधिक उत्पादन होता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में मलिहाबादी, इलाहाबाद तथा लखनऊ जिलों में

आम की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

आम विटामिन ए तथा सी काफी मात्रा में प्रदान करता है। कच्चे फलों का गूदा तथा शर्करा मिलाकर आम रस तैयार किया जाता है, जो हैजे तथा प्लेग के रोगों के लिए बहुत लाभदायक माना जाता है। यहां तक कि आम की गुठलियों का भी प्रयोग किया जाता है। दस्त तथा दमा आदि की बीमारियों में आम की गुठलियाँ काम आती हैं।

बोने की विधि

आम की रोपाई हेतु पौध से पौध की दूरी एवं कतार से कतार की दुरी 10x10 रखना चाहिए

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

आम कंकरीली, पथरीली, छिछली, अधिक क्षारीय तथा जलमग्न भूमियों को छोड़कर सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है। परंतु अच्छी बढ़वार और फसल के लिये दोमट भूमि अच्छी रहती है। पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करके 2 -3 जुताई देशी हल या हैरों से करके पाटा लगा देना चाहिए

बीज की किस्में

आम के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

(i) शीघ्र पकने वाली - ये जातियां मई के अंत से मध्य जून तक पक कर तैयार हो जाती हैं, जैसे शाहबाद, बम्बई हरा, बम्बई पीला, गोपाल भोग, जाफरानी, अल्फांसो, गुलाब खास आदि। (ii) मध्यम समय में पकने वाली - ये जातियां जून के अंत से मध्य जुलाई तक पक कर तैयार हो जाती हैं, जैसे लंगड़ा, दशहरी, मल्लिका, कृष्ण भोग, सफेदा लखनऊ, सफेदा मलीहाबादी, आम्रपाली, मल्लिका,अरुणिमा, बस्ती-5 आदि। (iii) देर से पकने वाली- ये जातियाँ मध्य जुलाई से अगस्त तक पकती हैं; जैसे फजरी, चौसा, रामकेला तथा बानेशान, तैमूरिया, नीलम आदि।

बीज की जानकारी

आम की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हेक्टेयर में 10x10 मीटर की दूरी पर आम लगाने पर पौधों की संख्या 100 होती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

आम की पौध किसी विश्वसनीय स्थान (नर्सरी) से लेनी चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

आम की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

सामान्यत: पौधों की 1 से लेकर दस वर्ष की अवस्था तक प्रति पौधा प्रति वर्ष 170 ग्राम यूरिया, 110 ग्राम सिंगिल सुपर फास्फेट और 115 ग्राम पोटाश का म्यूरियेट और उसके बाद 1.7 किग्रा. 1.1.किग्रा. दो समान मात्राओं (जून-जुलाई और अक्टूबर में) में दिया जा सकता है। 3% यूरिया का पर्णीय छिडकाव रेतीले क्षेत्रों में पुष्पण से पहले उपयुक्त है।

जलवायु और सिंचाई

आम की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

आम के पौधों की सिंचाई शरद ऋतु में 20-25 दिन के अन्तर पर कर देनी चाहिए। परन्तु ग्रीष्म ऋतु में सिंचाई 10-15 दिन के अन्तर पर करनी चाहिए। पौधों पर बौर (फूल) आने के समय सिंचाई नहीं करनी चाहिये।

रोग एवं उपचार

आम की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

(i) एन्थ्रोकनोज (काला वर्ण) - यह एक कवक जनित रोग है जो पौधों की नवीन टहनी, पत्ते तथा फल आदि कोमल भागों पर प्रभाव डालता है, तथा प्रभावित भाग सूखने लगता है, फलत कम होती है, तथा फलों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिये 0.25% ब्लाइटॉक्स के 2-3 छिड़काव किए जाने चाहिये। (ii) चूर्णी फफूँद या आम का खर्श रोग - यह भी एक कवक जनित रोग है, जो पौधे की पत्तियों, फूल तथा फलों को प्रभावित करता है। इस रोग में फूलों, फलों और पत्तियों पर सफेद चूर्ण जैसी फफूंदी उत्पन्न हो जाती है। प्रभावित भाग सूख कर गिर जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए फरवरी - मार्च में कैरोटीन दवाई के 0.06 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए। (iv) बंची टॉप (आम का गम्मा) - इस रोग में आम की टहनियों के अगले भाग सूखने लगते हैं। यह भी एक कवक जनित रोग है। इसकी रोकथाम के लिए ग्रसित टहनियों को काट कर जला देना चाहिए। इस रोग में आम की नई शाखाएं तथा फूलों के भाग गुच्छेदार बन जाते हैं, जिन पर फल नहीं लगते। रोकथाम के लिए ऐसे भागों को काट कर नष्ट कर देना चाहिये। (v) आम का कोयली रोग (ब्लैक टिप) - इस रोग में आम के फलों का निचला भाग काला पड़कर सड़ने लगता है। यह रोग विशेषकर वहां लगता है जहां पर आम के बागों के पास ईंटों के भट्टे लगे होते हैं। ईंटों के भट्टे से निकलने वाले धुएं में सल्फरडाइ-ऑक्साइड गैस होती है, जो फलों के नीचे के नुकीले भाग को काला कर देती है। इस रोग की रोकथाम के लिये आम के बाग से लगभग 2 किमी. की परिधि से बाहर की ईंटों के भट्टे लगाने चाहिए। यदि बाग भट्टे से 2 किमी. की परिधि के अंदर पड़ता हो तो आम के पौधों पर अप्रैल-मई के महीने में 10-10 दिन के अन्तर से 2-3 बार बोरेक्स (सुहागा) का 0.6% का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये।

खरपतवार नियंत्रण

पौधों के थालों की समय-समय पर निकाई-गुड़ाई करके खरपतवार आदि निकालते रहते हैं। यह कार्य वर्ष में दो बार जुलाई तथा दिसंबर में अवश्य कर देना चाहिये।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, या हैरों, फावड़ा या कुदाल आदि यन्त्र की आवश्यकता होती है।