मक्का की खेती

परिचय➣मक्का एक बहुपयोगी फसल है।  इसकी खेती भारत में व्यापक स्तर पर की जाती है जो विभिन्न कृषि  जलवायु के लिए अनुकूलित होती है। ➣मक्के को मोटे अनाज की श्रेणी में रखा जाता है। इसको भारत में हरा चारा और खाद्य फसल के रूप में उगाया जाता है। ➣यह फसल चारा के रूप में पशुपालकों  की लागत को बचाता है और दुधारू पशुओं में सूक्ष्म पोषक तत्व की कमी की  पूर्ति और प्रति पशु दुग्ध  उत्पादन की क्षमता  को बढाता है। ➣भारत में मक्का के उत्पादन का 85% से अधिक उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है। ➣मक्का का उपयोग क्रूड तेल, बायोफ्यूल आदि के लिए होता  है। ➣औद्योगिक दृष्टि से मक्के का प्रोटिनेक्स, चॉक्लेटस, पेन्ट्स, स्याही,  लोशन, स्टार्च कोका-कोला और कॉर्न सिरप आदि में भी  प्रयोग होता  है।  जलवायु➣मक्का उष्ण एवं आर्द जलवायु की फसल है। ➣मक्के की फसल के लिए तापमान 15 - 30 डिग्री होना चाहिए। ➣सामान्यतः दिन का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 15 डिग्री सेल्सियस  जो अनाज भरने के लिए अच्छा होता है। ➣उष्ण कटिबंधीय मक्का का तापमान 21 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच सीमित होता है। दिन में 28 डिग्री सेल्सियस और रात में  23 डिग्री सेल्सियस तापमान अनाज भरने  के लिए अच्छा होता है।➣मक्के की फसल में वृद्धि और विकास के लिए 28 डिग्री सेल्सियस तापमान उत्तम माना जाता है। ➣50-100 सेमी. बारिश और धूप का मौसम मक्के की खेती के लिए आदर्श होता हैं। खेती का समय ➣मक्के  की बुवाई वर्ष भर में कभी भी  खरीफ ,जायद और रबी ऋतु में कर सकते हैं। ➣अधिकतर राज्य जहाँ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहां पर खरीफ में बुवाई का उपयुक्त समय मध्य जून से मध्य जुलाई तक होती है।  ➣पहाड़ी और कम तापमान वाले क्षेत्र में अंतिम मई से शुरुवाती जून तक बुवाई की जाती है। ➣मक्के की बुवाई रबी ऋतु  के समय अक्टूबर से नवम्बर तक के मध्य में करना चाहिए। ➣जायद  ऋतु  के समय फरवरी से मार्च  के मध्य में करें।


मक्का

मक्का उगाने वाले क्षेत्र

प्रमुख क्षेत्र➽  भारत में, मक्का की फसल आमतौर पर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, और कर्नाटक राज्यों में उगाई जाती है। 

मक्का की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

पोषण मूल्य ➣मक्का में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम मौजूद होता है जो हड्डियों की मज़बूती के लिए ज़रूरी  है। इसके अलावा इसके भुट्टे में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट गुण भी बोन लॉस (हड्डियों का कमजोर होने) से बचाता है। ➣मक्का में विटामिन-ई (एंटीऑक्सीडेंट) पाया जाता है जो अल्जाइमर (भूलने) की बीमारी को रोकने में  मददगार साबित होता है।➣मक्का में आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जिसके सेवन से  शरीर में आयरन (लोहा) की कमी को पूरा करने में मदद मिलती  है। ➣मक्का  कैल्शियम, आयरन और फोलेट का अच्छा स्रोत होता है इसलिए गर्भावस्था में इसका सेवन करना लाभकारी होता है।➣आजकल सामान्य मक्का के साथ -साथ बेबी कॉर्न ,स्वीट कॉर्न ,पोप कॉर्न तथा प्रोटीन युक्त मक्का की खेती की जाती है। मक्का कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत होता है। 

बोने की विधि

बुवाई➽ ➣मक्के की बुवाई सीड ड्रिल के द्वारा रिज बेड में कतार से  करें  तथा बुवाई के एक माह के बाद मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें।➣मक्का की बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी  60 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी  22 सेमी. रखें।➣वर्षा प्रारंभ होने पर मक्का बोना चाहिए।➣पशु चारे के लिए मक्की उगाने के लिए दो लाइनों के बीच 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे के बीच 15 सेंटीमीटर का फासला रखें।➣सिंचाई का साधन हो तो 10 से 15 दिन पूर्व ही बुवाई  करनी चाहिये इससे पैदावार में  वृध्दि होती है।➣बीज की बुवाई मेंड़ के उपर 3-5 से.मी. की गहराई पर करनी चाहिए। 

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टी➽ ➣मक्का सभी प्रकार की ज़मीन (रेतीली से भारी मिट्टी) में उगाया जाता है।➣परन्तु यह मक्का अच्छी जल निकासी वाली जलोढ़ और लाल मिट्टी में अच्छी तरह से बढ़ता है।➣इसके लिए लवणीय और अम्लीय मृदा उपयुक्त नहीं मानी जाती है क्योंकि इसमें  बीज अंकुरण के बाद प्रतिकूल असर होने लगता है। ➣मक्का के खेत में जल जमाव नहीं होना चाहिए इसके लिए जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए। मिट्टी का शोधन➽ जैविक विधि➱➣जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा विरडी नामक जैविक फफूंद नाशक से उपचार किया जाता है।➣इसे प्रयोग करने  के लिए 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में 1 किलो ट्राईकोडर्मा विरडी को मिला देते हैं एवं मिश्रण में नमी बनाये रखते हैं ।➣4-5 दिन पश्चात फफूंद का अंकुरण हो जाता है तब इसे तैयार क्यारियों में अच्छी तरह मिला देते हैं ।रसायनिक विधि➱➣रसायनिक विधि के तहत उपचार हेतु कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी की दर से मिला देते है तथा घोल से भूमि को तर करते हैं , जिससे 8-10 इंच मिट्टी तर हो जाये।➣4-5 दिनों के पश्चात बुवाई करते हैं ।भूमि की तैयारी➽ ➣पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें।  उसके बाद 2 से 3 जुलाई हैरो या देसी हल से करें, मिट्टी के ढेले तोड़ने एवं खेत सीधा करने हेतु हर जुताई के बाद पाटा या सुहागा लगाएँ।  यदि मिट्टी में नमी कम हो तो पलेवा करके जुताई करनी चाहिए।  सिंचित अवस्था में 60 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़े बनानी चाहिए जिससे जल निकासी में आसानी रहती है और फसल भी अच्छी बढ़ती है। 

बीज की किस्में

मक्का के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

प्रजातियाँ गंगा - 11 ➣इसके पौधे मजबूत, भुट्टा शंकु आकार का और दानों का रंग पीला होता है।➣औसतन उपज - 20-26  क्विंटल प्रति एकड़ ➣फसल की अवधि - 105-110 दिन गंगा सफेद - 2 ➣मक्के की इस  किस्म के  दाने सफेद होते हैं ।➣यह किस्म मध्य क्षेत्रों में उगाने के लिये उपयुक्त है। ➣औसतन उपज - 20-26 क्विंटल प्रति एकड़➣फसल की अवधि - 105-110 दिन डेक्कन - 101➣मक्के की इस किस्म के  पौधे ऊँचे, भुट्टे मध्यम आकार के और दानों का रंग पीला होता है।➣औसतन उपज - 24-26 क्विंटल ➣फसल की अवधि- 110-115 दिन डी के एच - 9705 ➣मक्के की यह किस्म अधिक पैदावार देने वाली प्रतिरोधि वर्ण की  संकर किस्म है।➣यह किस्म मध्यम लम्बाई वाली होती है  और भुट्टे भी मध्य से ऊपर की ओर  लगते हैं।➣इसके पत्ते चौड़े व गहरे हरे और भुट्टे लम्बे, पतले होते है जिनके ऊपर पूरा छिलका चढ़ा होता है।➣यह किस्म पत्तों के झुलसा रोग के प्रति भी प्रतिरोधी होती है।➣औसतन उपज - 23-25 क्विंटल प्रति एकड़➣फसल की अवधि- 91-94 दिन सरताज ➣मक्के  की  यह किस्म  संकर प्रजाति की किस्म है।➣इसके पौधे मध्यम लम्बाई के व पत्ते हरे से गहरे हरे रंग के होते हैं।➣पौधे का  तना मोटा एवं भुट्टे मध्य में लगते हैं, जो बहुत कठोर होते हैं।➣यह किस्म खेतों में बैक्टीरिया द्वारा सड़न बिमारी के लिए सहनशील है और यह पत्तों के झुलसा रोग के प्रति साधारण प्रतिरोधी है।➣यह किस्म नमी की कमी को सहन कर सकती है इसलिए कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।➣यह किस्म पशुओं के चारे के लिए भी उपयुक्त है, क्योंकि कटाई के समय इसका तना हरा ही होता है।➣औसतन उपज- 17-20  क्विंटल प्रति एकड़➣फसल की अवधि- 80-85 दिन

बीज की जानकारी

मक्का की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर➽ ➣सामन्यत मक्के की  बिजाई के लिए बीज दर 8-10  किलो प्रति एकड़  ली जाती  है। ➣लाइन-बुवाई के लिए, बीज की दर बीज के आकार के आधार पर 8 -12  किग्रा प्रति एकड़ होती है।➣पशु चारे के लिए मक्की बुवाई के लिए 16 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ के लिए पर्याप्त होता हैं।बीज उपचार➽ ➣मक्के के फसल को मिट्टी जनित बीमारियों और कीड़ों से बचाने के लिए बीज का उपचार करें। ➣सफेद रतुआ  से बीजों को बचाने के लिए कार्बेनडाज़िम या थीरम 2 ग्राम प्रति किलो बीज के साथ उपचार करें।➣रासायनिक उपचार के बाद बीज को अज़ोसपीरीलम 600 ग्राम + चावलों के चूरे के साथ उपचार करें। उपचार के बाद बीज को 15-20 मिनटों के लिए छांव में सुखाएं।➣अज़ोसपीरिलम मिट्टी में नाइट्रोजन को बांधकर रखने में मदद करता है। ➣कीट प्रबंध के लिये एमीडाक्लोप्रीड 70 (डब्ल्यू एस) 5 ग्राम/किग्रा बीज से उपचारित करे जिससे पौधे 30 दिन तक सुरक्षित रह सकते है ।

बीज कहाँ से लिया जाये?

मक्का का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

मक्का की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

खाद और उर्वरक/ प्रति एकड़➣नाइट्रोजन (एन) - 48 किलो (104 किलोग्राम यूरिया)➣फास्फोरस (पी) -  24 किलो  (52 किलोग्राम डीएपी या 150 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट)➣पोटाश (के )  -  16 किलो (27 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश)➣सिंचित परिस्थितियों में बुवाई के समय फास्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा एवं नाइट्रोजन की एक तिहाई  मात्रा का प्रयोग करनी चाहिए। ➣शेष नाइट्रोजन  की मात्रा को बराबर-बराबर मात्रा में दो बार दें।  पहली, बुवाई से 30-35 दिन बाद तथा दूसरी, नर मंजरी (टैसलिंग) निकलते समय छिड़काव के रूप में देनी चाहिए।  सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन ➣मक्की की फसल में नाइट्रोजन, पोटाश, जिंक, आयरन और बोरोन पोषक तत्व की कमी ज्यादातर आती है। इनकी कमी को पूरा करने के लिए रोपाई से पहले मिटटी की जांच करवा लें और उसके हिसाब से खेत में पोषक तत्व डालें।➣अगर फसल में पोषक तत्वों की कमी आती हैं तो नाइट्रोजन की कमी होने पर यूरिया @ 2 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से, पोटाश की कमी होने पर पौधों को पोटैशियम क्लोराइड @ 2 किग्रा प्रति एकड़, जिंक सल्फेट 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी और आयरन की कमी होने पर आयरन सल्फेट 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी और बोरोन की कमी होने पर बोरिक एसिड 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से पौधों पर छिड़काव करे।

जलवायु और सिंचाई

मक्का की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाई➣मक्का का पौधा जल जमाव और सूखा दोनों के प्रति काफी सवेंदनशील होता है, इसलिए खरीफ के मौसम में जल जमाव नहीं होने दे और जल निकास का उचित प्रबंधन रखें।  ➣इसकी पहली सिंचाई बीज की रोपाई बुआई  के तुरंत बाद कर देनी चाहिए।  इसके बाद जब पौधों में दाने भरने लगे तब इसे सिंचाई की आवश्यकता होती है। ➣यदि इस समय पानी की कमी हुई तो पैदावार बहुत कम हो जाती है। यदि पानी की कमी हो तो एक मेंड़ छोड़कर पानी दें इससे पानी भी बचता है।➣रबी और जायद के मौसम में 6-8 सिंचाई की आवश्कता होती है। 

रोग एवं उपचार

मक्का की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

रोग और उनका नियंत्रण1 ) जीवाणु तना झुलस (बैक्टीरियल स्टेम ब्लाइट )➽  नुकसान के लक्षण➱➣मिट्टी के ऊपर पहले इंटर्नोड पर इसके लक्षण दिखाई देते है। छिलका और पिठ नरम, भूरा और पानी से भीगे हुए हो जाते हैं। ➣प्रभावित पौधों में दुर्गंध आती है। डंठल आमतौर पर मुड़ जाता है और गिर जाता है, लेकिन पौधा कई हफ्तों तक हरा रह सकता है।नियंत्रण➱➣यदि उपलब्ध हो तो रोग प्रतिरोधी किस्में उगाएं, ऊपरी सिंचाई से बचें।➣खेत में जलजमाव की स्थिति से बचें। नाइट्रोजन उर्वरकों की संतुलित मात्रा खेत में डालें।➣रोग का संक्रमण होने पर पौधों के तने के पास की मिटटी को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड @ 2 ग्राम/ लीटर पानी की दर से भीगे। 2 ) सामान्य रतुआ (कॉमन रस्ट )➽ नुकसान के लक्षण➱➣पत्ती की दोनों सतहों पर भूरे रंग के दाने निकल आते हैं। गंभीर संक्रमण में पौधों से पत्ते गिर सकते हैं।नियंत्रण➱➣उगाने के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।➣वैकल्पिक पौधों को नष्ट कर दें, मिश्रित फसल और फसल रोटेशन प्रथाओं का पालन करें, नाइट्रोजन उर्वरकों की अधिक खुराक से बचें।➣गिरे हुए पौधों के हिस्सों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें। ऊपरी सिंचाई से बचें और नाइट्रोजन उर्वरकों की अधिक मात्रा का प्रयोग करें।➣फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें, खेत और मेड़ को खरपतवार मुक्त रखें।➣प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी @ 200 मिली/एकड़ के साथ पौधों का छिड़काव करें। 3) पत्तों के नीचे भूरे रंग के धब्बे (ब्राउन स्पॉट डिजीज)➽ नुकसान के लक्षण➱➣रोग के लक्षण केवल पत्तियों पर ही देखे जाते हैं। ➣पौधों का सुखना आमतौर पर ऊपरी पत्तियों से शुरू होता है; पत्तियाँ सुस्त हरी हो जाती हैं, अंततः रंग ढीली हो जाती हैं और सूख जाती हैं।➣3 -7 मिमी चौड़ी क्लोरोटिक धारियां विकसित होंगी और वे समानांतर फैशन में आगे बढ़ेंगी और गंभीर मामलों में पूरी पत्ती के लैमिना को कवर कर सकती हैं।➣गंभीर संक्रमण भी ब्लोटिंग को उकसाता है। उन्नत अवस्था में धारियाँ बैंगनी या लाल रंग के साथ परिगलित हो जाती हैं और जली हुई दिखाई देती हैं।नियंत्रण➱➣खेत और आस पास के क्षेत्र से खरप्तवार हटा दे।➣गहरी जुताई और अन्य तरीकों से पौधे के मलबे को नष्ट करना।➣4 ग्राम/किलोग्राम पर मेटालैक्सिल के साथ बीज उपचार और मैनकोजेब 2.5 ग्राम/लीटर या मेटलैक्सिल एमजेड 2 ग्राम /लीटर पर पत्तेदार स्प्रे की सिफारिश की जाती है।➣प्रतिरोधी किस्मों जैसे डीएमआर 1, डीएमआर 5 और गंगा 11 का उपयोग करे।4) तने का गलना(बैक्टीरियल स्टॉक रॉट)➽ नुकसान के लक्षण➱➣इस रोग के संक्रमण से जड़ों, ऊपरी पत्तियों और तनों पर गांठो वाली जगह पर झुलस और गलन हो जाती हैं।नियंत्रण➱➣खेत में पोटैशियम उर्वरकों की कम मात्रा डालें।➣फसल चक्रण का पालन करें।➣फूल विकास चरण के दौरान पानी की कमी न होने दें। खेत की बुवाई करने से पहले ट्राईकोडर्मा विरडी 1 किलोग्राम प्रति एकड़ 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ डालें।5) पत्ता झुलस रोग (लीफ ब्लाइट )➽ नुकसान के लक्षण➱➣इस रोग का संक्रमण सभी फसल विकास चरणों के दौरान होता हैं।➣रोग के शुरुआती संक्रमण के दौरान पत्तों पर छोटे धब्बे बन जाते हैं जो बाद में बड़े हो जाते हैं और पूरी पत्तियों को घेर लेते हैं।➣ज्यादा संक्रमण होने पर पत्ते झुलस जाते हैं।नियंत्रण➱➣फसल चक्रण का पालन करें।➣रोग के शुरुआती लक्षण दिखाई देने पर मैंकोजेब या ज़िनेब फंफूदनाशक की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से 7- 10 दिन के अंतराल पर पौधों पर 2- 3 बार छिड़काव करें।कीट  प्रबंधन 1 ) तना छेदक (स्टेम बोरर )➽ नुकसान के लक्षण➱➣तना छेदक कीट की इल्लियां पौधों के अंदर तने में प्रवेश कर जाती हैं और उन्हें अंदर से खाती रहती हैं जिसके कारण पौधे की एक शाखा या पूरा पौधा सुख जाता हैं।➣कीट के हमले के कारण पौधा टिलर या पूरा पौधा सूख जाता है। तने पर छिद्र बन जाते हैं।➣लार्वा पौधे के तने में प्रवेश करते हैं और अंदर भोजन करते हैं। ➣कीट के हमले के कारण टिलर या पूरा पौधा सूख जाता है नियंत्रण➱➣फसल कटाई के बाद फसल अवशेषों को हटा दें और उनका उचित निदान करें।➣कीट के अंडो  को एकत्रित कर नष्ट कर दें। ➣करीबी रोपण से बचें। रोगग्रस्त पौधों या शाखा को हटाकर नष्ट कर दें।➣निवारक उपायों के लिए क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 0.4GR @ 4 किलोग्राम/एकड़ के हिसाब से रेत या खाद में मिलकर खेत में भुरकाव करें।➣कीट का ज्यादा संक्रमण होने पर फ्लुबेंडियामाइड 480 SC @ 30ml/ एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें।2 ) हरा तेला (लीफ हॉपर)➽ नुकसान के लक्षण➱➣पत्तियों की युक्तियाँ भूरे रंग की हो जाती हैं, ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं और सूख जाती हैं। प्रभावित खेत में हॉपर बर्न के लक्षण दिखाई देते हैं।➣कोमल पत्तियाँ पीली हो जाती हैं, पत्तियों के किनारे नीचे की ओर मुड़ने लगते  हैं, और लाल हो जाते हैं। ➣गंभीर संक्रमण के मामले में पत्तियां कांस्य रंग की हो जाती है, है जो "हॉपर बर्न" का विशिष्ट लक्षण है।  पत्ती के किनारे टूट जाते हैं और कुचलने पर टुकड़े टुकड़े हो जाते हैं।नियंत्रण➱➣फसल चक्र अपनाएं, ➣कीट प्रतिरोधी किस्मो को खेत में उगाएं।➣नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से बचें, ➣खरपतवारों को हटा दें और गैर कीट संक्रमित फसलों को उगाएं। ➣नीम के तेल या एंटोमोपैथोजेनिक फंगस (ब्यूवेरिया बेसियाना, मेटारिज़ियम एनिसोप्लिया) के साथ पौधों का छिड़काव करें। ➣छोटे ततैया, मिरिड बग, एम्पीड मक्खियाँ, डैम्फ़्लाइज़, ड्रैगनफ़्लाइज़, मकड़ियाँ जैसे प्राकृतिक शत्रुओं को छोड़ें।➣रासायनिक नियंत्रण के लिए एसिटामिप्रिड 20 एस पी @ 60 ग्राम या ट्राइफ्लुमेज़ोपाइरिम 10% एस सी @ 94 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।3) सैनिक कीट (फॉल आर्मीवर्म)➽ नुकसान के लक्षण➱ ➣अन्तिम अवस्था की सूँडी के सिर पर उल्टे V आकार का हल्के रंग का चिन्ह एवं शरीर पर काले धब्बे होते हैं | ➣सूंडी के शरीर के पृष्ठीय सतह पर उभरे हुए स्पॉट होते हैं, जो गहरे रंग के व उन पर रोएं होते हैं | ➣विकसित हो रही सूंडी गहरे भूरे रंग की एवं शरीर दानेदार होता है | नियंत्रण➱➣खेत में अंडा परजीवी ट्राइकोग्रामा के अंडे 40,000 प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतराल पर 2- 3 दिन बार खेत में छोड़ें।➣इसके नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेन्जोएट की 4 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी या स्पाईनोसेड की 0.3 मि.ली. प्रति लीटर पानी में डालकर छिंडकाव करे |4) कॉर्न भेदक कीट  (कॉर्न बोरर )➽ नुकसान के लक्षण➱ ➣इसके अंडे शुरुआती समय में हरे तथा कुछ समय पश्चात् पीले हो जाते हैं| ➣लार्वा का सिर हल्का भूरा होता है जिस पर एक सफेद जाल की तरह पैटर्न पाया जाता है | ➣शरीर भूरा, हरा कभी-कभी पीला या काला होता है. आमतौर पर लार्वा के ऊपर की ओर एक हल्के पीले रंग की चैड़ी गहरी पट्टी होती है व नीचे सफेद धारी होती है | ➣वयस्क पतंगों के अग्र पंख आमतौर पर पीले भूरे रंग के होते हैं और अक्सर केन्द्र में एक धब्बा पाया जाता है, वहीं पिछले पंख हल्के पीले व सफ़ेद रंग के होते हैं | ➣यह अक्सर भूट्टे के सिरे पर पाया जाता है लेकिन धीरे-धीरे दानों को खाते हुए नीचे की ओर जाता है | ➣इसके अतिक्रमण से फफूंद के लिए एक आदर्श वातावरण तैयार हो जाता है और फसल की गुणवत्ता कम हो जाती है | नियंत्रण➱➣खेत में अंडा परजीवी ट्राइकोग्रामा के अंडे 40,000 प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतराल पर 2- 3 दिन बार खेत में छोड़ें।➣इसके नियंत्रण के लिए लेम्डासायहेलोथ्रिन 9.5 प्रतिशत की 0.5 मि.ली. प्रति लीटर या क्लोरेन्ट्रानिलिप्रोल की 0.3 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें| 5) तेला कीट (एफिड्स)➽ नुकसान के लक्षण➱ ➣तेले से ग्रसित पत्तियाँ पीली हो जाती हैं, नीचे की ओर मुड़ जाती हैं और पौधों की वृद्धि रूक जाती है। ➣बच्चे और वयस्क बड़ी मात्रा में पौधे का रस चूसते हैं जिसके कारण वे शहद की ओस का उत्सर्जन करते हैं और इस पर काले फफूंद का विकास होता है। नियंत्रण➱➣पौधों की वृद्धि के दौरान उर्वरकों की संतुलित मात्रा का प्रयोग करें।➣रसायनिक नियंत्रण के लिए एफिड का प्रकोप दिखाई देने पर डाइमेथोएट 30 %ईसी 400 मि.ली. या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल 100 मिलीलीटर प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण ➣मक्का में खरपतवार के नियंत्रण के लिए  अंकुरण पूर्व (बुवाई के दो दिन बाद ) एट्राजीन का 600-800 ग्रा./एकड़ की दर से छिड़काव करें।➣इसके उपरांत लगभग 25-30 दिन बाद मिट्टी चढावें। खरपतवार नाशक छिड़काव हेतु फ्लेट फैन या फ्लड जेट नोजल प्रयोग करें। अच्छे परिणाम हेतु एक ही रसायन हर साल न छिड़कें। ➣खरपतवार प्रबंधन के लिये वुवाई के 20 से 25 दिन पश्चात पहली निराई-गुड़ाई एवं 40-45 दिन पश्चात दूसरी निराई-गुड़ाई करनी चाहिये। खड़ी फसल में खरपतवार नियंत्रण  ➣मक्का की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 20 से 25 दिन बाद टेम्बोट्रियोन 42% एससी 120 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से 150 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।➣या मक्का में चौड़ी एवं सकरी पत्ती के खरपतवारों की रोकथाम के लिए टोपरामेजोन 33.6 % एससी ( टिनज़र ) 30 मिली प्रति एकड़ + एडजुवेंट 200 मिली प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 15 से 20 दिन बाद छिड़काव करें ।

सहायक मशीनें

देशी हल,कुदाल खुरपी आदि औजारों की आवश्कता पड़ती है।