लूसर्न की खेती

लुसर्न विश्व की महत्वपूर्ण चारे की फसलों में से एक है। शुष्क जलवायु की अवस्थाओं में भी सिंचाई के आधार पर लुसर्न की फसल सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। यह चारे की एक बहुवर्षीय फसल है अर्थात एक बार बोई गई फसल 4 से 6 वर्ष तक बराबर उपज देती रहती है। बहुवर्षीय फसल होने के कारण लुसर्न की फसल से ग्रीष्मकाल में उस समय भी हरा चारा प्राप्त होता रहता है जबकि अन्य किसी फसल से हरा चारा प्राप्त नहीं होता है। मृदा में काफी गहराई से जड़ें पानी सोख लेती हैं।


लूसर्न

लूसर्न उगाने वाले क्षेत्र

 लूसर्न  मुख्य रूप से गुजरात, मध्य प्रदेश, महांराष्ट्र और राज्यस्थान में उगाई  की खेती जाती है।

लूसर्न की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

लूसर्न प्रोटीन, खनिज पदार्थ मुख्यतः कैल्सियम तथा फास्फोरस, विटामिन आदि का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। औसत पाचनशीलता 60-70 प्रतिशत तक पायी जाती है।

बोने की विधि

फासलाबिजाई के समय पंक्ति से पंक्ति का फासला 30 सैं.मी. रखें।बीज की गहराईबीज को 2-4 सैं.मी. गहरा बोयें।बिजाई का ढंगइसकी बिजाई हाथ से छींटे द्वारा की जाती है। लूसर्न की बिजाई से पहले 15 किलो प्रति एकड़ जई का छींटा दें और हल की सहायता से इसे मिट्टी में अच्छे से मिला दें। 

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके 2-3 जुताई देशी हल या हैरों से करना चाहिए।

बीज की किस्में

लूसर्न के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

सिरसा टा. 8 - यह रिजका की एकवर्षीय किस्म है जिसका विकास चारा अनुसंधान केंद्र, सिरसा (हरियाणा) में हुआ है। इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की होती हैं तथा फूल बैंगनी रंग के होते हैं। यह किस्म पंजाब, हरियाणा, दिल्ली के लिए उपयुक्त है। इस किस्म की बुवाई से प्रति हेक्टेयर 500 से 600 क्विंटल हरा चारा तथा 2 से 3 क्विंटल बीज प्राप्त हो जाता है। सिरसा टा. 9 - यह रिजका की बहुवर्षीय किस्म(8-10 वर्ष तक) है, जिसका विकास चारा अनुसंधान केंद्र सिरसा (हरियाणा) में हुआ। यह शीघ्र बढ़ने वाली किस्म है। इस किस्म के पौधे की पत्तियां गहरे हरे रंग के होते हैं तथा फूल नीलापन लिए हुए बैंगनी रंग के होते हैं। यह किस्म उत्तरी भारत में उगाने के लिए उपयुक्त पाई गई है। एक हेक्टेयर से लगभग 600 से 800 क्विंटल हरा चारा तथा 3 से 4 क्विंटल बीज प्राप्त हो जाता है। रेम्लबर - यह किस्म हमारे देश में कनाडा से लाई गई है। यह किस्म पर्वतीय क्षेत्रों में उगाने के लिए बहुत ही उपयुक्त पाई गई है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 600 से 800 क्विंटल हरा चारा देती है।

बीज की जानकारी

लूसर्न की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

छिटकवाँ विधि - 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर। हावर्ड विधि - 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।

बीज कहाँ से लिया जाये?

लूसर्न का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से  खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

लूसर्न की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

 लूसर्न की बिजाई के समय नाइट्रोजन 10 किलो (यूरिया 22 किलो), फासफोरस 32 किलो (एस एस पी 200 किलो) प्रति एकड़ डालें।

जलवायु और सिंचाई

लूसर्न की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

बुवाई के शीघ्र पश्चात, फसल में पहली सिंचाई की जानी चाहिए। इसके पश्चात ग्रीष्मकाल में 10 से 12 दिन के अंतर पर और सर्दियों के दिनों में 20 से 25 दिन के अंतर पर फसल में सिंचाईयाँ करना चाहिए। वर्षा ऋतु में सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं होती है। जल निकासी न होने पर पूरी फसल नष्ट हो सकती है।

रोग एवं उपचार

लूसर्न की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

(i) गेरुई - मार्च-अप्रैल में इनका आक्रमण हो सकता है। पत्ती व तने पर लाल भूरे धब्बे पड़ जाते हैं। इनकी रोकथाम के लिए 0.2% डाइथेन एम 45 या डाइथेन जैड 78 के घोल का छिड़काव करना चाहिए। लाडाक नामक लुसर्न की जाति उगानी चाहिए क्योंकि यह गेरुई रोधक है। 15 से 20 दिन तक चारे की कटाई नहीं करना चाहिए। (ii) मृदुरोमिल आसिता - मृदुरोमिल नामक बीमारी का प्रकोप सर्दियों में होता है जब हवा में अधिक नमी होती है। रोग के कारण पौधों की पत्तियां खराब हो जाती है। जैसे ही रोग प्रारंभ हो, फसल शीघ्र काट लेनी चाहिए। यदि बीमारी फिर भी नियंत्रित न हो तो 0.3% डाइथेन जैड 78 के 800 लीटर घोल को प्रति हेक्टेयर छिड़कना चाहिए। छिड़काव के बाद 15 से 20 दिन तक फसल को पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए। 1.0% बोर्डो मिश्रण के छिड़काव से भी रोग नियंत्रित किया जा सकता है।

खरपतवार नियंत्रण

साधारण लूसर्न की एकवर्षीय फसल में खरपतवार की समस्या उत्पन्न नहीं होती है क्योंकि फसल छिटकवाँ विधि से पर्याप्त घनी बोई जाती है। अतः खरपतवार वृद्धि नहीं कर पाते हैं तथा बार-बार फसल की कटाई करने के कारण खरपतवार भी कटकर नष्ट हो जाते हैं। क्रैब नामक दवाई की एक किलोग्राम मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर, बुवाई के बाद अमरबेल से प्रभावित क्षेत्रों में छिड़कना चाहिए या सी.आई. पी. सी. 5 किलोग्राम 1000 लीटर पानी में घोलकर अमरबेल के अंकुरण के बाद छिड़कना चाहिए। नम भूमि होना भी आवश्यक है।

सहायक मशीनें

इसमें किसी खास मशीन का उपयोग नहीं होता है