कमल का पौधा (कमलिनी, नलिनी, पद्मिनी) पानी में ही उत्पन्न होता है और भारत के सभी उष्ण भागों में तथा ईरान से लेकर आस्ट्रेलिया तक पाया जाता है। कमल का फूल सफेद या गुलाबी रंग का होता है और पत्ते लगभग गोल, ढाल जैसे, होते हैं। पत्तों की लंबी डंडियों और नसों से एक तरह का रेशा निकाला जाता है जिससे मंदिरों के दीपों की बत्तियाँ बनाई जाती हैं।
सूजन कम करने में मददगार 👉🏻कमल ककड़ी में एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं. इसका सेवन करने से शरीर में आने वाली सूजन को कम करने में मदद मिलती है. कमल ककड़ी के मेथेनॉल अर्क को प्रभावी एंटी इंफ्लेमेटरी एजेंट के रूप में जाना जाता है. जो सूजन कम करने में सहायक होते है पाचन क्रिया सही रखती है 👉🏻कमल ककड़ी पाचन क्रिया को सही रहने में मदद करती है. इसमें काफी मात्रा में फाइबर होता है. ये डाइजेशन को सही रखने में मदद करती है साथ ही कब्ज़, अपच और पेट में भारीपन जैसी दिक्कतों से बचाने में मदद करती है। ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रोल कंट्रोल करती है 👉🏻कमल ककड़ी ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने में मदद करती है. इसमें डाइटरी फाइबर होते हैं जो कोलेस्ट्रोल को कंट्रोल करते हैं. तो वहीं इसमें मौजूद इथेनॉल अर्क ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में सहायता करता है। एनीमिया से बचाती है। 👉🏻कमल ककड़ी एनीमिया की दिक्कत को दूर करने में भी मदद करती है. इसके सेवन से शरीर में रेड ब्लड सेल्स बढ़ते हैं जिसके चलते शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी नहीं होने पाती है.
कमल की फसल जुलाई में लगाई जाती है। खेत की जुताई करके उसमें कमल की जड़ लगाई जाती है या बीज बोए जाते हैं। इसके बाद करीब दो महीने तक खेत में पानी भरा रहना चाहिए।
कमल की खेती के लिए खेत में हमेशा भरपूर पानी रहना चाहिए
कमल ककड़ी निलम्बो न्यूसीफेरा रोजिया प्लेनहा शिरोमणि निलंबो
एक हैक्टेयर क्षेत्र में 10-12 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है।
कमल के बीज या नर्सरी किसी विश्वसनीय स्थान या बीज भंडार से खरीदना चाहिए।
पौधे को तेजी से बढ़ने के लिए बोनमील और एनपीके का भी इस्तेमाल कर सकते हैं
कमल की खेती के लिए खेत में हमेशा भरपूर पानी रहना चाहिए
कमल के फूल की खेती में खरपतवार को हाथ द्वारा उखाड़ कर फेक दिया जाता है
कमल के फूल की खेती में किसी विशेष प्रकार की मशीन की आवयश्कता नहीं होती है