कुटकी की खेती

धान्य प्रजाति की कुटकी वर्षा ऋतु की तमाम फसलों में सबसे पहले तैयार होने वाली फसल है। संभवतः इसलिए इसे पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों में अधिक पसंद किया जाता है। इसे गरीबों की फसल की संज्ञा दी गई है। कुटकी जल्दी पकने वाली, सूखा और जलभराव जैसी विषम परिस्थितियों को सहन करने वाली फसल है।कुटकी गर्म क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसल है जिसके पौधे 35-42 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम को सहन कर लेते हैं। पौध बढ़वार के लिए 25-32 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम उचित पाया गया है। इसकी खेती 25-35 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है।


कुटकी

कुटकी उगाने वाले क्षेत्र

कुटकी उत्पन्न करने वाले राज्यों में तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ राज्यों के क्षेत्रों में कुटकी की खेती प्रचलित है।

कुटकी की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

यह एक पौष्टिक लघु धान्य फसल है। इसके 100 ग्राम दानें में 8.7 ग्राम प्रोटीन, 75.7 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 5.3 ग्राम वसा, 8.6 ग्राम रेशा के अलावा खनिज तत्व, कैल्शियम एवं फास्फोरस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

बोने की विधि

आमतौर पर कुटकी की बुवाई से छिटककर या बिखेर कर की जाती है। इस विधि से अंकुरण एक सा नहीं होता है तथा उपज कम मिलती है। कुटकी की बेहतर उपज के लिए बुवाई कतार में ही करनी चाहिए। इसका बीज छोटा, गोल एवं चिकना होता है अतः एक सार बुवाई के लिए एक भाग बीज को 20 भाग रेत या भुरभुरी गोबर की खाद मिलाकर बुवाई की जा सकती है। कतार बुवाई हेतु दो कतारों (पंक्ति) के बीच 22-25 सेमी तथा पौध से पौध की दूरी 8-10 सेमी रखनी चाहिए। बीज की गहराई 2-3 सेमी से अधिक नहीं होना चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

कुटकी की खेती उचित जल-निकास वाली भारी दोमट एवं रेतीली भूमियों में की जा सकती है। फसल के लिए भूमि का पीएच मान 5.5 से 7.5 के बीच उपयुक्त रहता है। मानसून की पहली वर्षा के साथ खेत की तैयारी करना चाहिए। पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के बाद 2-3 जुताई देशी हल, या हैरों से करके पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए।

बीज की किस्में

कुटकी के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

कुटकी की स्थानीय किस्मों की अपेक्षा उन्नत किस्मों के बीज का प्रयोग करने से अधिक उपज प्राप्त होती है। जवाहर कुटकी-1, टीएनयू-63, जवाहर कुटकी-2, जवाहर कुटकी-8, तारिनी (ओएलएम-2013), पीआरसी-3,आईजीएल-4,आईजीएल-4,आईजीएल-10, कोलब (ओएलएम-36), आदि।

बीज की जानकारी

कुटकी की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

अच्छे अंकुरण प्रतिशत वाले स्वस्थ बीज कतार में बुवाई हेतु 6 से 8 किलोग्राम तथा छिटकवाँ विधि से बुवाई करने के लिए 8 से 10 किलो ग्राम बीज  प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

कुटकी की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

आमतौर पर कुटकी में खाद व उर्वरकों का प्रयोग किसान नहीं करते हैं। परंतु अन्य फसलों की तरह इसे पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जिनकी पूर्ति हेतु खाद एवं उर्वरक देना आवश्यक होता है और तभी अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सकता है। प्रति हैक्टेयर 10 किग्रा नाइट्रोजन, 10 किग्रा फॉस्फोरस एवं 10 किग्रा पोटाश बुवाई के समय देना लाभकारी पाया गया है। इसके अलावा बुवाई के एक माह बाद (फसल में कल्ले बनते समय) 10 किग्रा प्रति हैक्टेयर नाइट्रोजन, निंदाई के पश्चात देना चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

कुटकी की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

कुटकी मुख्यतः वर्षा आधारित फसल है। समय पर वर्षा न होने से 1-2 सिंचाई करना लाभप्रद होता है।

खरपतवार नियंत्रण

वर्षा ऋतु की फसल होने के कारण कुटकी की फसल को भी खरपतवारों द्वारा क्षति होती है। इन पर नियंत्रण पाने के लिए बुवाई के 20 से 25 दिनों बाद एक निंदाई करनी चाहिए। फसल अंकुरण पूर्व 2 किग्रा एट्राजीन (50% घुलनशील पाउडर) को 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर प्रतिहैक्टेयर के हिसाबसे छिड़कने से खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, फावड़ा, खुर्पी आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।