लीची की खेती

लीची एक अत्यंत ही स्वादिष्ट फल है। जिसे विशेष रूप से बच्चे पसंद करते हैं। यह फल हल्के लाल रंग का होता है। छिलका उतार देने पर सफेद गूदा निकलता है जो खाने में बहुत स्वादिष्ट तथा पोष्टिक होता है। गूदे की परत के अंदर एक बीज होता है। लीची का फल प्रकृति में ठंडा तथा तर होता है। लीची के लिए गर्म तथा मामूली नम जलवायु की आवश्यकता होती है। लीची 100-125 सेमी. प्रतिवर्ष वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक पैदा की जा सकती है। लीची की फसल को ग्रीष्म ऋतु में तेज लू तथा शरद ऋतु का पहला चरण बहुत हानि पहुंचाता है। अतः लीची की फसल के लिये गर्म तर जलवायु अधिक उपयुक्त रहती है।


लीची

लीची उगाने वाले क्षेत्र

भारत में सबसे ज्यादा लीची का उत्पादन बिहार में होता है जहां मुज़्ज़फरपुर और दरभंगा जिलों में सबसे ज्यादा लीची पैदा होती है. बिहार के बाद पश्चिम बंगाल, असम, उत्तराखंड और पंजाब का नंबर आता है.

लीची की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

लीची का फल ह्रदय तथा मस्तिष्क के लिए अच्छा रहता है। यह किंचित भारी होता है इसलिए एक ही साथ इसे अधिक नहीं खाना चाहिए।

बोने की विधि

(i) बीज बोकर, (ii) गूटी द्वारा, (iii) दाब कलम लगाकर, (iv) भेंट कलम लगाकर, (v) मुकुलन द्वारा। • उपरोक्त सभी विधियों में से गूटी अथवा दाब कलम द्वारा लीची का प्रवर्धन अधिक लोकप्रिय तथा सफल है क्योंकि बीज द्वारा उगाये गये पौधे 7-10 वर्ष में फल देते हैं तथा गुणवत्ता में भी अंतर आ जाता है।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

लीची के लिए मृतिका दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है। दोमट मिट्टी में भी लीची की फसल अच्छी उपज देती है। भूमि का P.H. मान 6-7 के बीच रहना सबसे अच्छा होता है। मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए।

बीज की किस्में

लीची के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

(i) शीघ्र पकने वाली _अरली लार्ज रेड, अरली बेदाना तथा एकस्ट्राअरली ग्रीन। इन जातियों के फल जून के प्रथम सप्ताह तक पककर तैयार हो जाते हैं। (ii) मध्यम समय वाली_ रोज सैन्टेड तथा लेट लार्ज रेड आदि। इन जातियों के फल जून के तीसरे सप्ताह तक पककर तैयार होते हैं। (iii) देर से पकने वाली_ लेट बेदाना तथा कलकत्तिया, सहारनपुरी, देहरादूनी तथा गुलाबी आदि। इन जातियों के फल जून के अंतिम सप्ताह से मध्य जुलाई तक पकते हैं। उपरोक्त प्रजातियां उत्तर प्रदेश में उगाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त चाइना, पूर्वी देशी, बेदाना और देहरा रोज भी लीची की प्रजातियां हैं।

बीज की जानकारी

लीची की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

10x10 मीटर की दूरी पर रोपे गये पौधों में प्रति हैक्टेयर 100 पौधे लगते हैं

बीज कहाँ से लिया जाये?

लीची के पौधे किसी नर्सरी या कृषि विज्ञान केंद्र से प्राप्त कर सकते है

उर्वरक की जानकारी

लीची की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

प्रारम्भ के 2 से 3 वर्षों तक लीची के पौधों को 30 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद, 2 किलोग्राम करंज की खली, 250 ग्राम यूरिया, 150 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पौधा प्रति वर्ष की दर से देना चाहिए| तत्पश्चात् पौधे की बढ़वार के साथ-साथ खाद की मात्रा में वृद्धि करते जाना चाहिए| करंज की खली एवं कम्पोस्ट के प्रयोग से लीची के फल की गुणवत्ता एवं पैदावार में वृद्धि होती है| 

जलवायु और सिंचाई

लीची की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

लीची के पौधों को पाले तथा लू से बचाने के लिए भी सिंचाई की जाती है तथा पौधों पर फूल लगने के पहले से लेकर फल लगने तक, अर्थात दिसंबर से मई तक 3-4 सिंचाइयाँ की जानी चाहिए। प्रत्येक सिंचाई के बाद निकाई गुड़ाई करके खरपतवारों को हटा देना चाहिए।

रोग एवं उपचार

लीची की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

(i) पाउडरी मिल्ड्यू या चूर्णी फफूँदी - इस रोग में पौधों की पत्तियों तथा फलों पर सफेद रंग का पाउडर (चूर्ण) दिखाई देने लगता है। इस रोग की रोकथाम के लिए कैरोटीन का 0.06% घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए। (ii) लीची के फलों का फटना - यह रोग बाग की ठीक प्रकार से देखभाल ना किये जाने से या पौधों की आयु अधिक हो जाने पर अधिक दिखाई देता है। अधिक गर्मी के दिनों में फलों पर फव्वारे से 2-3 बार पानी का छिड़काव कर देना चाहिये। कम फटने वाली उत्तम जातियों को ही उगाना चाहिए। नेप्थीलीन एसिटिक एसिड (N.A.A.) का 10-20 P.P.M. का घोल फलों पर छिड़काव करने से फल कम फटते हैं।

खरपतवार नियंत्रण

लीची के पौधे को खरपतवारों से बचाने के लिए खेत की समय-समय पर आवश्यकतानुसार निकाई-गुड़ाई की जाती है।

सहायक मशीनें

लीची के वृक्षों से 4-5 वर्ष की आयु में फल मिलने लगते हैं लेकिन पूरी फलत 10 वर्ष बाद ही प्राप्त होती है। लीची का वृक्ष लगभग 100 वर्ष तक फल देता है। लीची में फरवरी में फूल लगने प्रारंभ हो जाते हैं और मई-जून में फल तैयार होते हैं। जब लीची हल्के लाल रंग की हो जाती है तो लीची के फलों को 20-25 सेमी. लंबी टहनियों सहित गुच्छों में तोड़ा जाता है।