लैवेंडर की खेती

लैवेंडर को खास उसकी खुशबू के लिए जाना जाता है। लैवेंडर एक बारहमासी आने वाला पौधा है। इस छोटे पौधे की लम्बी टहलियां होती हैं लैवेंडर का प्रयोग चाय, कुकीज और मिठाइयो जैसी खाने की चीज़ो के साथ-साथ, घर सजाने में भी किया जाता है। इसकी खुशबु काफी मनमोहक होती है,जिससे इसकी खुशबू से ही आस-पास का वातावरण काफी अच्छा हो जाता है। इसलिए इसका ज्यादा उपयोग परफ्यूम बनाने में किया जाता है।


लैवेंडर

लैवेंडर उगाने वाले क्षेत्र

लैवेंडर की खेती मुख्य रूप से भूमध्यसागरीय क्षेत्र में की जाती हैं. वैसे इसकी उत्पत्ति स्थान एशिया महाद्वीप को माना जाता हैं. इसकी खेती के लिए ठंडा मौसम उपयुक्त होता है. इसके पौधे की पत्तियां सकरी पाई जाती हैं. इसकी खेती के लिए अधिक तेज़ गर्मी को उपयुक्त नही माना जाता. इसकी खेती के लिए सर्दी का मौसम उपयुक्त होता है. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए.

लैवेंडर की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

लैवेंडर में एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं. इसका तेल आंतों की सूजन, दर्द और डायरिया में फायदेमंद होता है. यह खराब बैक्टीरिया को दूर करने और संक्रमण से लड़ने में भी मदद करता है.!लैवेंडर के तेल में एंटी-एंग्जायटी और एंटी-डिप्रेसेन्ट होता है. जो चिंता के लक्षणों को कम कर सकते हैं.

बोने की विधि

पौध के रूप में लगाते वक्त इन्हें खेत में मेड तैयार कर लगाया जाता हैं. खेत में मेड तैयार करने के दौरान प्रत्येक मेड़ों के बीच एक से डेढ़ मीटर के बीच दूरी होनी चाहिए. मेड पर इसकी पौध की रोपाई के दौरान उन्हें आपस में 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए. जबकि सघन खेती के लिए इन्हें 5 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए. एक हेक्टेयर में औसतन 20 हज़ार के आसपास पौधे लगाए जाते हैं.

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

लैवेंडर का पौधा एक बार लगाने के बाद कई साल पैदावार देता हैं. इसलिए खेत की शुरुआत में अच्छे से तैयारी की जानी जरूरी होती हैं. लैवेंडर की खेती के लिए शुरुआत में खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दें. उसके बाद तेज़ धूप लगने के लिए खेत को कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दें. खेत को खुला छोड़ने के बाद पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर दें. पलेव करने बाद जब भूमि की ऊपरी सतह हल्की सूखी हुई दिखाई देने लगे तब खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से जुताई कर उसमें रोटावेटर चला दें. इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी दिखाई देने लगती हैं. खेत में रोटावेटर चलाने के बाद उसमें पाटा लगाकर खेत को समतल बना दें. ताकि खेत में बारिश के मौसम में जलभराव ना हो पायें.

बीज की किस्में

लैवेंडर के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

बीचवुड ब्लू -लैवेंडर की इस किस्म के पोधेव1.5-2 फीट की ऊंचाई के होते हैं। इस किस्म के पौधों से प्रति एकड़ उत्पादन अधिक पाई जाती है। इस किस्म के पौधे के फूलों का रंग बैंगनी नीला दिखाई देता है। भोर ए कश्मीर लैवेंडर -इस किस्म के पौधे की लंबाई 2 फ़ीट से ज्यादा पाई जाती है। इस किस्म के पौधों पर नीले रंग के फूल पाए जाते हैं। मेलिसा लिलाक- इस किस्म के पौधे औषधीय गुणों के लिए अधिक उपयोगी होते हैं। जिनकी लम्बाई 60-75 सेमी के आस पास पाई होती है। इस किस्म के फूलों का रंग हल्का लाल पाया जाता है, जिनका आकार काफी बड़ा पाया जाता है।इसके अतिरिक्त अन्य भी किस्में हैं, जिनमे काजन लुक, ए एम 1, हेमस, एरामा, कारलोवो, स्वीट्जेस्ट

बीज की जानकारी

लैवेंडर की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

लैवेंडर की खेती बीज और पौधों दोनों माध्यम से की जा सकती हैं. लेकिन पौध लगाने से पैदावार जल्दी और अधिक मिलती हैं  एक हेक्टेयर में औसतन 20 हज़ार के आसपास पौधे लगाए जाते हैं.

बीज कहाँ से लिया जाये?

लावेंडेर के बीज कृषि विश्वविद्यालय या बागवानी विभाग से प्राप्त कर सकते है 

उर्वरक की जानकारी

लैवेंडर की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

खेत की तैयारी के समय 8-10 टन गोबर की सड़ी खाद को खेत में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें। रासायनिक उर्वरकों में 20 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश की मात्रा को आखिरी जुताई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए।लैवेंडर पौधे एक बार लगाने के बाद कई साल तक पैदावार देते हैं। इसलिए पौधों की हर कटाई के बाद उपरोक्त मात्रा बताई गई रासायनिक उर्वरक की सामान मात्रा को चार बराबर भागों में बांटकर चार बार में पौधों को देनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

लैवेंडर की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

पौध प्रतिरोपण के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद 15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार सिंचाई करनी चाहिए सामान्यता इसे आगे सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है लेकिन यदि सूखे की स्थिति हो तो 2-3 बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए। अधिक जलभराव की समस्या से लैवेंडर के बागानों को बचाना चाहिए।

रोग एवं उपचार

लैवेंडर की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

इस फसल को कीट पतंगे कम ही प्रभावित करते हैं। फफूँद द्वारा उत्पन्न रूट-रॉट एवं विल्ट रोगों से छुटकारा पाने के लिए ट्राइकोडरमा, स्यूडोमोनास का प्रयोग करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

पौधों की उचित वृद्धि एवं विकास के लिए खेत को खरपतवार से मुक्त रखना आवश्यक है। निराई-गुड़ाई कर खरपतवार को नष्ट किया जा सकता है। एक गुड़ाई मार्च-अप्रैल में, दूसरी मई-जून व तीसरी अगस्त-सितंबर में हल्की गुड़ाई करनी चाहिए। लैवेंडर के बागान में कई प्रकार की मल्च का सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

सहायक मशीनें

देसी हल,कुदाल ,खुरपी ,कल्टीवेटर की आवश्यकता होती है