नींबू की खेती

नींबू की खेती साधारणतः देश के सभी भागों में की जाती है। भारत में  फल के कुल उत्पादन में नींबू को तीसरे स्थान पर रखा गया है।परिचय ➽➢नींबू एक छोटा पेड़ (साइट्रस लिमोन) है, जो सर्दियों में भी हरा- भरा रहता  है।➢नींबू में विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ➢नींबू स्वास्थ के लिए तो लाभकारी होता ही  है, साथ ही व्यवसायिक और आर्थिक रूप से भी  फायदेमंद  है।जलवायु ➽➢नींबू के उत्पादन के लिए गर्म, हल्की नमी युक्त व तेज हवा रहित जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। ➢गर्मियों में अधिक तापमान व सिंचाई का आभाव जुलाई से अगस्त में आने वाली नींबू की फसल पर कुप्रभाव डालते हैं।  ➢जबकि ज्यादा बारिश वाले क्षेत्रों में रोग और कीट की वजह से इसकी उचित पैदावर नही मिलती है। ➢नींबू की खेती के लिए वार्षिक वर्षा 75 सेंटीमीटर -200 सेंटीमीटर होनी चाहिए। ➢पौधे के बुवाई के समय तापमान 20°C - 25°C होना चाहिए। ➢फलों की तुड़ाई के समय 25°C - 30°C तापमान उपयुक्त होता हैं।खेती का समय ➽➢नींबू के पौधे की रोपाई के लिए जुलाई-अगस्त का मौसम सबसे अच्छा होता  है।


नींबू

नींबू उगाने वाले क्षेत्र

भारतवर्ष में काफी बड़े क्षेत्रफल पर नींबू प्रजाति के फलों को उगाया जाता है। यह केरल, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू, कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक उगाई जाती है। उत्तर प्रदेश में लखनऊ जिले में अधिकतर कागजी नींबू पाया जाता है।

नींबू की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

➢नींबू हृदय स्वास्थ्य में सहायक होता है। यह  विटामिन सी का एक अच्छा स्रोत है। ➢नींबू को अक्सर वजन घटाने वाले भोजन के रूप में प्रचारित किया जाता है। ➢इसके सेवन से  गुर्दे में  पथरी होने की संभावना को रोका जा सकता  है।➢यह एनीमिया से बचाव करता है, और कैंसर के जोखिम को कम करता है।➢नींबू पाचन स्वास्थ्य में भी सुधार करता है ।

बोने की विधि

बुवाई की विधि ➽➢पौधा रोपण के लिए जमीन की तैयारी में अच्छे से जुताई और खरपतवार मुक्त बनाने के लिए भूमि को दो बार जुताई कर देनी चाहिए।➢मुख्य रूप से बडिंग या बीज पद्धति के माध्यम से एसिड लाइम के पौधों को लगाया जाता है।➢दो पौधों के बीच में 5- 6 मीटर का अन्तर रखा जाना चाहिए|➢पौधा रोपण के लिए 75x75x75 सेंटीमीटर के आकार के गड्ढों को खोदा जाना चाहिए और उनमे 15-20 किलो गाय का गोबर भरकर कुछ दिन के लिए धूप  में छोड़ देना चाहिए।➢रोपाई के बाद गड्ढों को जमीनी स्तर से 15 सेंटीमीटर ऊपर दोमट मिट्टी से भरा जाना चाहिए।➢पौधों की रोपाई दिन के ठंडे समय में की जानी चाहिए।➢गड्ढों में रोपाई के समय 10 किलो गली हुई रूड़ी की खाद और 500 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट  डालें।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टी ➽➢नींबू उगाने के लिए पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी आदर्श मानी जाती है। ➢इसका पौधा जलभराव की स्थिति के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है।➢अगर अच्छी तरह से सूखी हुई भारी मिट्टी हो तो अच्छी फसल होती है, परन्तु भारी मिटटी में इसकी खेती करना मुश्किल होता हैं।➢उचित पोषक तत्व संग्रहण के लिए 6.5 से 7.5 मिटटी का पीएच आदर्श होता है।खेत की तैयारी ➽➢नींबू के पौधा पूर्ण रूप से तैयार हो जाने पर कई वर्षो तक पैदावार देता है | इसलिए इसके खेत को अच्छे से तैयार कर लेना चाहिए |➢इसके लिए सबसे पहले खेत की अच्छी तरह से मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर देनी चाहिए | इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है |➢इसके बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद को डालकर उसकी रोटावेटर से जुताई कर मिट्टी में अच्छे से मिला देना चाहिए |➢खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर देना चाहिए |➢इसके बाद खेत में पौधों की रोपाई के लिए गड्डो को तैयार कर लिया जाता है |मिट्टी का शोधन ➽जैविक विधि➩  ➢जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा बिरडी नामक जैविक फफूंद नाशक से उपचार किया जाता है। ➢100 किलो गोबर की खाद में 1 किलो ट्राइकोडर्मा फॉर्म्युलेशन मिलाकर 7 दिनों के लिए पॉलीथिन से ढक दें। ढेर को बीच-बीच में पानी से छिड़कें। मिश्रण को हर 3-4 दिन के अंतराल में पलट दें और फिर खेत में प्रसारित करें|➢4-5 दिन पश्चात फफूंद का अंकुरण हो जाता है, तब इसे तैयार क्यारियों में अच्छी तरह मिला देते हैं।रासायनिक विधि➩ ➢रासायनिक उपचार विधि के तहत उपचार के लिए कार्बेंडाजिम, मेन्कोजेब नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी की दर से मिला कर घोल से भूमि को तर करते हैं, जिससे 8-10 इंच मृदा तर हो जाये।4-5 दिनों के पश्चात बुवाई  कर  सकते हैं ।

बीज की किस्में

नींबू के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

उन्नत किस्में➽ पंजाब बारामास➩ ➢नींबू  की इस किस्म की शाखाएं आमतौर पर ज़मीन को स्पर्श करती हैं। ➢इसके फल पीले रंग के और आकार में गोल होते है, जिसका छिलका लंबा और पतला होता है।  ➢कुदरती रूप से  इसके फल बीज-रहित और रसभरे होते हैं। ➢औसतन उपज -     84 किलो प्रति वृक्ष➢फसल की अवधि -  12 महीनेसीडलेस लाईम➩ ➢यह निम्बू की नई चयन की गयी किस्म हैं। इसके फल का आकर अंडाकार, छिलका पतला, गेंदा फूल के  रंग का होता है। ➢इस किस्म में प्रचुर फल होने  के कारण यह देर से एंव स्थानीय प्रभेदों से दुगुना उपज देता है।➢औसतन उपज - 50-70 किलो प्रति पेड़➢फसल की अवधि - 12 महीनेएसिड लाईम➩ ➢नींबू की इस किस्म को व्यापारिक तौर पर उत्पादन  किया जाता है, क्योंकि यह कैंकर रोग से मुक्त तथा अधिक मात्रा में फल देते हैं।➢औसतन उपज - 50-70 किलो प्रति पेड़➢फसल की अवधि- 12 महीनेप्रभालिनी➩ ➢निम्बू की इस किस्म के फल 3-7 के गुच्छे में होते हैं तथा साधारण कागजी नींबू से 30% अधिक उपज देते हैं। ➢इनके फलों में 57% रस होता है जो कि विक्रम (53%) एवं साधारण नींबू (52%) से अधिक होता है।➢औसतन उपज - 50-70 किलो प्रति पेड़➢फसल की अवधि- 12 महीनेपीकेएम 1➩ ➢नींबू की  इस किस्म का  फल गोल, मध्यम- बड़े आकार का एवं आकर्षक पीले रंग का छिलका लिए होता है। ➢इसमें 52.31% रस होता है। स्थानीय किस्मों से इसकी उपज अधिक होती है।➢औसतन उपज-  50-75 किलो प्रति पेड़➢फसल की अवधि- 12 महीनेस्लेकशन 49➩ ➢नींबू की यह किस्म प्रचुर मात्रा में फल देती  है।➢इसके फल बड़े आकार के होते हैं। ➢इसके फल ग्रीष्मकाल में आते हैं तथा कैंकर, ट्रिसटेजा एवं पत्ती छेदक रोग के प्रतिरोधी होते  हैं।➢औसतन उपज - 20 से 25 किलो प्रति पेड़➢फसल की अवधि - 14 महीने

बीज की जानकारी

नींबू की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर ➽➢नींबू का 250 -300 पौधे प्रति एकड़ का  घनत्व बना कर रखना  चाहिए।बीज उपचार ➽➢बीज वाले तरीके से पौधा लगाने के लिए बीज को पूरी तरह से पके होने चाहिए, बीज सेहतमंद पौधे के अच्छे फल से लें। ➢बीजों को निकालने के बाद राख में मिलाएं और छांव में सुखाएं और उन्हें 3-4 सैं.मी. की गहराई में बोयें। बीज बुवाई के बाद 3-4 सप्ताह में अंकुरित हो जाते हैं। 

बीज कहाँ से लिया जाये?

नींबू के पौधे किसी विश्वसनीय स्थान या कृषि विज्ञान केंद्र से खरीद सकते है

उर्वरक की जानकारी

नींबू की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

फलदार वृक्षों में वर्ष में मुख्यतः तीन बार जैविक व रासायनिक खाद का प्रयोग करते हैं।👉प्रथम वानस्पतिक वृद्धि के समय 👉द्वितीय फूलों के निर्माण के समय 👉तृतीय फलों के विकास के समय खाद व उर्वरक का प्रयोग करते हैं।नाइट्रोजन➱ 12  ग्राम/पौधा/वर्ष ( यूरिया -26 ग्राम//पौधा/वर्ष)फॉस्फोरस➱ 60 ग्राम/पौधा/वर्ष (डीएपी - 130 ग्राम /पौधा/वर्ष या 375 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट)पोटाश➱ 40 ग्राम/पौधा/वर्ष (मुरिट ऑफ़ पोटाश/ MOP -87  ग्राम /पौधा/वर्ष)गोबर की खाद➱  12 किलोग्राम/पौधा/वर्ष➢इस मात्रा को प्रत्येक वर्ष तथा पांच वर्ष तक उसी अनुपात में बढाया जाता है। ➢इसके बाद खाद की मात्रा को स्थिर कर दी जाती है जिसे आगे समय -समय पर दिया जाता है।➢सूक्ष्म पोषक तत्व पर्णीय या पेड़ की पत्तियों पर घोल के छिड़काव द्वारा उपयोग करते है। वर्ष में फरवरी व जुलाई माह में ठोस रूप में सूक्ष्म तत्वों के उर्वरकों का मृदा में मिलाकर उपयोग किया जाता हैं।सूक्ष्म पोषक तत्वों का पर्णीय छिड़काव ➽➢रसायन मात्रा ग्राम में (प्रति 10 लीटर पानी) जिंक सल्फेट 55 कॉपर सल्फेट 30 मैग्नीशियम सल्फेट 25 फैरस सल्फेट 25 बोरोन 10 चूना (बूझा) 100 यूरिया 100 ठोस रूप में सूक्ष्म तत्वों का उपयोग मृदा में जिंक सल्फेट 55 ग्राम कॉपर सल्फेट 30 ग्राम मैग्नीशियम सल्फेट 25 ग्राम बोरिक अम्ल 50 ग्राम फैरस सल्फेट 20 ग्राम उपरोक्त मात्रा प्रथम वर्ष में प्रति पौधा उपयोग में लें।👉 नींबू के बाग़ में जैविक उर्वरकों का प्रयोग ➽➢जैविक उर्वरक पौधों में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण जिब्रेलिन तथा विटामिन्स का संश्लेषण, कार्बनिक अम्लों का उत्पादन करते हैं। ये उर्वरक भूमि में पहले से बिखरे पोषक तत्वों को जैसे N, P, को ठोस माध्यम से तरल माध्यम में परिवर्तित कर पौधों की जड़ों को उपलब्ध करवाते हैं तथा मिट्टी की भौतिक दशा में सुधार करते हैं।➢नाइट्रोजन तत्व वाले जैविक उर्वरक एजोटोबैकटर, एजोस्पिरिलम फॉस्फोरस तत्व वाले जैविक उर्वरक स्यूडोमोनास, VAM जैविक उर्वरक के उपयोग की विधि व मात्रा ➢नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए एजोटोबैक्टर या 200 ग्राम 20-25 किग्रा/है. एजोस्पाइरिलम फॉस्फोरस की पूर्ति के लिए स्यूडोमोनास यावाम (VAM) ) मिट्टी में 200 स्पोर/50 ग्राम 25-30 /है। जैविक उर्वरक तरल व चूर्ण माध्यम में बाजार में उपलब्ध हैं।➢तरल माध्यम वालों को बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति द्वारा सीधे जड़ों में पहुँचाया जाता है। चूर्ण माध्यम वाले उर्वरक को गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर 24-48 घंटे तक रखकर उसे छायादार स्थान पर सड़ाकर पौधों के थॉवलों में मिलाते हैं।

जलवायु और सिंचाई

नींबू की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाई ➽➢नींबू के पौधे वर्ष भर फल देते हैं, अतः इनको पूरे वर्ष पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। ➢नींबू के बागों में शरद ऋतु में एक माह व ग्रीष्म ऋतु में साप्ताहिक अंतराल पर सिंचाई आवश्यक होती है। ➢सिंचाई के पूर्व वृक्षों के तने पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए, ताकि सिंचाई करते समय पानी तने के सम्पर्क में न आए। ➢फूल आने के समय, फल लगने के समय और पौधे के अच्छे विकास के लिए सिंचाई आवश्यक है। लेकिन ज्यादा सिंचाई से जड़ गलन और तना गलन की बीमारियों का खतरा हो सकता  है। 

रोग एवं उपचार

नींबू की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

रोग और नियंत्रण➛1) स्कैब रोग ➽ नुकसान के लक्षण➩➢छोटे हल्के नारंगी रंग के धब्बे ज्यादातर पत्तियों के निचले हिस्से पर विकसित होते हैं और बाद में संक्रमित हिस्सा विकृत हो जाता है और शीर्ष पर घाव के साथ खोखला शंक्वाकार विकास हो जाता है। ➢बाद में संक्रमित क्षेत्रों पर पपड़ीदार कार्की विकसित  होती है और उम्र के साथ गहरे जैतून रंग में बदल जाती है। ➢बाद में पत्तियों के दोनों ओर फफूंद का विकास होता है। पत्तियाँ झुर्रीदार, विकृत, रूखी तथा इसी प्रकार के घाव टहनियों पर विकसित हो जाते हैं। ➢फलों पर अनियमित पपड़ीदार धब्बे गहरे जैतून से भूरे रंग के दिखाई देते हैं। फल मस्से के साथ विकृत हो जाते हैं और समय से पहले गिर सकते हैं।नियंत्रण➩➢यदि उपलब्ध हो तो रोग सहिष्णु या प्रतिरोधी किस्में उगाएं।➢खेत और आसपास के क्षेत्रों को खरपतवारों से मुक्त रखें। सघन रोपण और ऊपरी सिंचाई से बचें।➢समय पर पेड़ों की छंटाई करें, रोगग्रस्त शाखाओं और फलों को हटा दें।➢कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP या कार्बेन्डाजिम 50 WP @ 1 ग्राम / लीटर पानी के साथ पौधों का छिड़काव करें।2) कैंकर रोग ➽  नुकसान के लक्षण➩➢पत्तियों और फलों पर, पानी से भीगे हुए पीले रंग से घिरे अनियमित घाव विकसित हो जाते हैं।➢धब्बे कोणीय हो जाते हैं और कैंसरयुक्त धब्बे बन जाते हैं और सूख भी सकते हैं।नियंत्रण➩➢रोपण के लिए रोग मुक्त रोपण सामग्री का चयन करें। ➢खिलने के दौरान पेड़ों की छंटाई करें, संक्रमित पौधों की शाखा को संक्रमित क्षेत्रों के नीचे  से हटा दें। शुरुआती वसंत के मौसम में छंटाई और ट्रिमिंग से बचें। ➢बोर्डो पेस्ट के साथ सभी काटी हुई टहनियों का तुरंत इलाज करें। बगीचे को खरपतवारों से मुक्त रखें। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का प्रयोग करें। ➢कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP @ 2 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 50 WP @ 1.5 ग्राम/ लीटर पानी के साथ पौधों का छिड़काव करें।3) डाई बैक ➽ नुकसान के लक्षण➩ ➢टहनियाँ सिरे से नीचे की ओर सूखने लगती हैं और काले रंग की हो जाती हैं। ➢बाद में रोग जड़ तक फैल जाता है और पौधे मर जाते हैं।नियंत्रण➩ ➢बोर्डोक्स पेस्ट तैयार करें (1 किलो कॉपर सल्फेट और 1 किलो चूना 10 लीटर पानी में मिलाकर) और पेस्ट के साथ ट्रंक की छाल को कोट करें।➢इंटरकल्चरल प्रैक्टिस के दौरान पौधों को चोट लगने से बचाएं। फसल उगाने के लिए रोगमुक्त रोपण सामग्री का प्रयोग करें। ➢पौधों को पानी की कमी या अत्यधिक सिंचाई से बचें। कीटों की आबादी को नियंत्रण में रखें। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP @ 2 ग्राम/ लीटर पानी के साथ पौधों का छिड़काव करें।4) जड़ गलन (विल्ट) ➽ नुकसान के लक्षण➩ ➢इस रोग के संक्रमण से पत्तियाँ पीली हो जाती हैं और पौधे सूख जाते हैं। ➢अंकुर हल्के पीले हो जाते हैं, तना और जड़ का जोड़ नरम हो जाता है, थोड़ा सिकुड़ जाता है और सड़ने लगता है। संक्रमित तने का भाग भूरा-सफेद हो जाता है।नियंत्रण➩➢बड़े पैमाने पर प्रबंधन के लिए, सभी संक्रमित पौधों के रूट ज़ोन क्षेत्र के पास और आसपास के स्वस्थ पौधों के रूट ज़ोन क्षेत्र के पास की मिट्टी को मेटलैक्सिल + मैनकोज़ेब 4% + 64% डब्ल्यूपी @ 1 ग्राम या ➢कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से भीगें।5) पत्तों का धब्बा रोग (एन्थ्राकनोज) ➽ नुकसान के लक्षण➩ ➢इस रोग के संक्रमण से पत्तों की ऊपरी सतह पर सफेद रूई जैसे धब्बे बन जाते हैं और बाद में पत्तियाँ पिले रंग की हो जाती हैं।➢रोग संक्रमित पौधों के नए फल पकने से पहले गिर जाते हैं।नियंत्रण➩ ➢रोग संक्रमित हिस्सों को हटा दें।➢शुरुआती वसंत के मौसम में छंटाई और ट्रिमिंग से बचें। ➢बोर्डो पेस्ट के साथ सभी सभी काटी हुई टहनियों का तुरंत इलाज करें।➢पौधों को कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी जा मैनकोज़ेब 75% डब्ल्यू पी @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करें। 6) निम्बू का ट्रिस्टेज़ा वायरस रोग ➽नुकसान के लक्षण➩ ➢यह रोग एफिड कीट द्वारा स्वस्थ पौधों में फैलता हैं। ➢इस रोग के संक्रमण से पौधों की जड़ें सड़ जाती हैं और टहनियाँ पीछे की तरफ सुख जाती हैं। ➢फल बहुत कम लगते हैं और पौधों पर केवल सुखी टहनियां ही रह जाती हैं।नियंत्रण➩➢रोग मुक्त रोपण सामग्री को खेत में लगाएं।➢रोग संक्रमित पौधों के हिस्सों को हटा दें।➢पौधों की वृद्धि के दौरान उर्वरकों की संतुलित मात्रा का प्रयोग करें।➢खेत में एफिड कीट के हमले को नियंत्रण में रखें।➢एफिड नियंत्रण के लिए कीट का प्रकोप दिखाई देने पर एसिटामिप्रिड 75 WP  @ 4 ग्राम या एसीफेट 15 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 2 मिली या थियामेथोक्सम 4 ग्राम/10 लीटर पानी के साथ पौधों का छिड़काव करें।कीट और नियंत्रण➛1) तेला चेपा/माहु (एफिड्स) ➽नुकसान के लक्षण➩ ➢कीट ग्रसित पत्तियाँ पीली हो जाती हैं, नीचे की ओर मुड़ जाती हैं और पौधों की वृद्धि रूक जाती है। ➢बच्चे और वयस्क बड़ी मात्रा में पौधे का रस चूसते हैं जिसके कारण वे शहद की ओस का उत्सर्जन करते हैं और इस पर काले कालिख के सांचे में पत्तियों पर फफूंद का विकास होता है।नियंत्रण➩➢खेत में नीला चिपचिपा ट्रैप @ 5/एकड़ लगाएं (एफिड्स के पंखों वाले रूप की निगरानी और उसे कम करने के लिए)।➢पौधों की वृद्धि के दौरान उर्वरकों की संतुलित मात्रा का प्रयोग करें। ➢रसायनिक नियंत्रण के लिए एफिड का प्रकोप दिखाई देने पर एसिटामिप्रिड 75 WP  @ 4 ग्राम या एसीफेट 15 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 2 मिली या थियामेथोक्सम 4 ग्राम/10 लीटर पानी के साथ पौधों का छिड़काव करें।2) पत्तों को खाने वाली इल्ली (लीफ ईटिंग कैटरपिलर ) ➽ नुकसान के लक्षण➩ ➢इल्लियां हल्के हरे कोमल पत्तों को ज्यादा खाती हैं। इल्लियां पूरी तरह से पत्तियों के सख्त हिस्से (मध्य-पसलियों) को छोड़ सारा खा जाती है। गंभीर प्रकोप में सभी पत्ते झड़ जाते हैं।नियंत्रण➩➢इल्लियों और जिन पत्तियों पर अंडे दिए गए हैं उन्हें इकट्ठा  करके नष्ट कर देना चाहिए। ➢पक्षी पर्च स्थापित करें। संक्रमित पौधों और नर्सरी में बैसिलस थुरिंजिनिसिस @ 3% या नीम के बीज के अर्क का 3% छिड़काव करें। ➢रासायनिक प्रबंधन के लिए पौधों को डाइक्लोरवोस 76% ईसी @ 1.66 मिलीलीटर/ लीटर पानी का छिड़काव करें। 3) फल मक्खी (फ्रूट फ्लाई ) ➽नुकसान के लक्षण➩ ➢फलों के प्रारंभिक विकास चरण के दौरान फल मक्खियों  के मैगॉट फलों में प्रवेश करते हैं और फलों के गूदे को अंदर से खाते हैं। ➢संक्रमित फलों से राल द्रव निकलता है और उपभोग के लिए अनुपयुक्त हो जाता है। फलों का आकार विकृत हो जाता हैं।  नियंत्रण➩ ➢मिथाइल यूजेनॉल + मैलाथियान 50 ईसी को 1:1 के अनुपात में मिलाएं और 10 मिलीलीटर चारा को पॉलिथीन बैग में 10/एकड़ की दर से रखें। ➢वयस्क मक्खियों को पकड़ने और मारने के लिए फ्लाई ट्रैप 2 प्रति एकड़ की दर का प्रयोग करें। ➢5 ग्राम गीला फिशमील पॉलिथीन बैग (20 x 15 सेमी) में छह छेद (3 मिमी व्यास) के साथ रखें। मछली खाने में 0.01 मिली फ़्लूबंडामाइड  मिलाएं और हर 7 वें दिन दोहराएं। हर 20वें दिन फिशमील का नवीनीकरण करें।4) स्केल कीट ➽नुकसान के लक्षण➩ ➢स्केल कीट टहनियों, शाखाओं और फलों से रस चूसकर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं। ➢वे भोजन करते समय लार के विषाक्त पदार्थों को भी इंजेक्ट कर सकते हैं। कीट के भारी प्रकोप से टहनिया फूल जाते हैं और टहनियाँ, शाखाएँ और पूरे पेड़ मर जाते हैं। ➢कीट के चारों ओर टहनियों या संक्रमित फलों पर लाल रंग का मलिनकिरण होता है। नियंत्रण➩➢नीम के तेल या नीम के बीज की गिरी के अर्क @ 5% के साथ पौधों का छिड़काव करें। ➢बड़े पैमाने पर संक्रमण से मुक्त नर्सरी स्टॉक का चयन करें। अत्यधिक प्रभावित शाखाओं को छाँट कर नष्ट कर दें। खेत और आसपास के क्षेत्रों से खरपतवार हटा दें। ➢इमिडाक्लोप्रिड 17.8 असअल @ 3 मिली / 10 लीटर पानी या एसिटामिप्रिड 75 WP  @ 4 ग्राम /10 लीटर पानी के साथ पौधों का छिड़काव करें।5) साइला कीट ➽नुकसान के लक्षण➩ ➢कीट नई पत्तियों और फूलों का  रस चूसकर खाते हैं जिससे  पौधे मुरझा जाते हैं और  फूल झड़ जाते हैं अंततः पौधों की वृद्धि रूक जाती है।नियंत्रण➩ ➢उर्वरकों की संतुलित मात्रा का प्रयोग करें। खेत और आसपास के क्षेत्रों से खरपतवार नष्ट कर दें ।➢बाग उगाने के लिए कीट मुक्त रोपण सामग्री का चयन करें। ➢नीम के तेल या नीम के बीज की गिरी के अर्क @ 5% के साथ पौधों का छिड़काव करें। ➢पौधे के क्षतिग्रस्त भागों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें। डाइमेथोएट 30% ईसी @ 1 मिली/लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 असअल @ 3 मिली / 10 लीटर पानी के साथ पौधों का छिड़काव करें।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण ➽ ➢खरपतवार की वृद्धि को रोकने के लिए जमीन को नरम और भूरभूरा रखने हेतु साल में 2 से 3 बार आंतर जुताई करें।  ➢नदीनों को हाथ से गुड़ाई करके या रासायनों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। ग्लाइफोसेट 1.6 लीटर को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। ग्लाइफोसेट की स्प्रे सिर्फ नदीनों पर ही करें, मुख्य फसल पर ना करें।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, हैरों, खुर्पी, फावड़ा आदि यन्त्रों की आवश्यकता होती है।