भिंडी की खेती

सब्जियों में भिंडी का प्रमुख स्थान है जिसे लोग लेडी फिंगर या ओकरा के नाम से भी जानते हैं।परिचय ➽➢भारत में भिंडी की फसल पूरे वर्ष उगाई जाती है | ➢यह पूरे उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तथा समशीतोष्ण क्षेत्रों के गर्म भागों में भी उगाई जाती है।➢यह फसल कुल निर्यात की जाने वाली ताजा सब्जियों का 65% हिस्सा होती है।➢इसमे विटामिन और खनिज भरपूर मात्रा में पाए जाते है और इसका औषधीय महत्व भी होता है। ➢भिंडी की खेती विशेष तौर पर इसे लगने वाले हरे फल के लिए की जाती है। ➢इसके सूखे फल और छिलकों का उपयोग कागज़ उद्योग में और रेशा (फाइबर) प्राप्ति के लिए किया जाता है।जलवायु ➽➢भिंडी की फसल को अपनी बढ़ोतरी के दौरान लंबे गरम मौसम की आवश्यकता होती है।  ➢इसकी फसल 22-35 डिग्री सेल्सियस की तापमान सीमा के भीतर अधिक बढ़ता है। ➢भिंडी को बरसात के मौसम में भारी वर्षा वाले क्षेत्र में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। भिंडी  की फसल पाला गिरने पर खराब हो जाती  है। ➢तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से कम होने पर इसके बीज अंकुरित नहीं हो पाते हैं। ➢भिंडी के लिए लंबी अवधि का गरम व नम वातावरण श्रेष्ठ माना जाता है। बीज उगने के लिए 27-30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है तथा 17 डिग्री  सेल्सियस से कम पर बीज अंकुरित नहीं होते।➢यह फसल ग्रीष्म तथा खरीफ़ दोनों ही ऋतुओं में उगाई जाती है।➢यह ठंड के प्रति सहनशील  नहीं है |खेती का समय ➽➢भिंडी के बीज बोने का उपयुक्त समय क्षेत्र की जलवायु और किस्म के आधार पर तथा फसल के अच्छे विकास के लिए उचित तापमान के आधार पर  भिन्न-भिन्न होता है। ➢आमतौर पर फसल जनवरी-मार्च और जून-अगस्त के बीच बोई जाती है। ➢बुआई का सही महीना उसके क्षेत्र पर निर्भर करता है।➢यदि भिंडी की फसल लगातार लेनी है तो तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के मध्य अलग-अलग खेतों में भिंडी की बुआई की जा सकती है।


भिंडी

भिंडी उगाने वाले क्षेत्र

प्रमुख क्षेत्र ➽ भारत में भिंडी के प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक हैं।   

भिंडी की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

पोषण मूल्य ➽➢मुख्य रुप से भिंडी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फॉस्फोरस आदि के अतिरिक्त विटामिन(ए, बी, सी), थाईमीन एवं रिबोफ्लेविन भी पाए जाते हैं । ➢इसमें विटामिन ए तथा सी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है।➢भिंडी के फल में आयोडीन की मात्रा अधिक होती है। भिंडी का फल कब्ज के रोगियों के लिए विशेष गुणकारी होता है।

बोने की विधि

बुवाई की विधि ➽   ➢खेत की  2-3 जुताई करके भूमि को अच्छी तरह तैयार कर लेना चाहिए। भूमि की तैयारी के समय अच्छी तरह से पुराना सड़ा एफवाईएम (10 टन / एकड़ ) को दिया जाता है।➢भिंडी को मेड़ों पर या समतल भूमि पर बोया जाता है। यदि मिट्टी भारी हो तो बुआई मेड़ों पर करनी चाहिए। ➢नीम की खली और गोबर खाद जैसी जैविक खाद के प्रयोग से इस फसल के पौधों की वृद्धि और उपज में सुधार होता है।➢आप भिंडी की फसल में मल्चिंग का प्रयोग करते है तो पौधों की वृद्धि और उपज में सुधार होता है साथ ही  मल्चिंग द्वारा खेत में नमी का संरक्षण भी बढ़ता है | ➢भिंडी के बीज सीधे खेत में ही बोए जाते है। वर्षाकालीन भिंडी के लिए कतार से कतार के बीच की दूरी 40-45 सेमी एवं कतार में पौधों  के बीच  की दूरी 25-30 सेमी  तक उचित मानी जाती है।➢ग्रीष्मकाल में भिंडी की बुआई कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार के बीच की  दूरी 25-30 सेमी एवं कतार में पौधों  के बीच  की दूरी 15-20 सेमी रखनी चाहिए। 

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

मिट्टी ➽➢भिंडी को हर प्रकार की मिट्टी में अच्छी तरह से उगाया जा सकता है लेकिन इसकी खेती के लिए बलुई दोमट और चिकनी दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।➢मिट्टी में अच्छी आंतरिक जल निकासी होनी चाहिए।➢इसके लिए सर्वोत्तम पीएच मान 6 से 6.8 के बीच होना चाहिए |खेत की तैयारी ➽  ➢भूमि की दो-तीन बार जुताई कर भुरभुरी कर तथा पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए।मिट्टी का शोधन ➽   जैविक विधि ➱ ➢जैविक विधि से मिट्टी का शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा बिरडी नामक जैविक फफूंद नाशक से उपचार किया जाता है। ➢100 किलो गोबर की खाद में 1 किलो ट्राइकोडर्मा फॉर्म्युलेशन मिलाकर 7 दिनों के लिए पॉलीथिन से ढक दें। ढेर को बीच-बीच में पानी से छिड़कें। मिश्रण को हर 3-4 दिन के अंतराल में पलट दें और फिर खेत में प्रसारित करें |➢4-5 दिन पश्चात फफूंद का अंकुरण हो जाता है, तब इसे तैयार क्यारियों में अच्छी तरह मिला देते हैं।रासायनिक विधि ➱ ➢रासायनिक उपचार विधि के तहत उपचार के लिए कार्बेंडाजिम, मेन्कोजेब नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी की दर से मिला कर घोल से भूमि को तर करते हैं, जिससे 8-10 इंच मृदा तर हो जाये।4-5 दिनों के पश्चात बुवाई  कर  सकते हैं ।

बीज की किस्में

भिंडी के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

⇻उन्नत किस्में⇺1)पूसा ए -4 ➽ ➢यह भिंडी की एक उन्नत किस्म है । ➢यह एफिड तथा जैसिड के प्रति सहिष्णु हैं।➢यह किस्म पीला शिरा (यैलो वेन) मोज़ेक  विषाणु प्रतिरोधी होती  है।➢फल मध्यम आकार के गहरे, कम लस(ग्लूटेन) वाले, 12-15 सेमी लंबे तथा आकर्षक होते है।➢बुआई के लगभग 15 दिन बाद से फल आना शुरू हो जाते है तथा पहली तुड़ाई 45 दिनों के बाद शुरू की जा सकती हैं।➢औसतन उपज -   ग्रीष्म काल में 4 टन व खरीफ़ के समय  7 टन प्रति एकड़ ➢फसल की अवधि -  50  दिन2)परभनी क्रांति ➽ ➢इस  किस्म में  पीला शिरा रोग   प्रतिरोधकता होती  है।➢फल बुआई के लगभग 50 दिन बाद आना शुरू हो जाते है।➢फल गहरे हरे एवं 15-18 सेमी लम्बे होते है।➢औसतन उपज - 5-6  टन /एकड़ ➢फसल की अवधि - 60 -65 दिन 3)पंजाब -7 ➽➢यह किस्म भी पीला शिरा रोग प्रतिरोधी है। यह प्रजाति पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा विकसित की  गई हैं। फल हरे एवं मध्यम आकार के होते है। बुआई के लगभग 55 दिन बाद फल आने शुरू हो जाते है।➢औसतन उपज - 5-6   टन /एकड़➢फसल की अवधि- 55 दिन4)अर्का अभय ➽ ➢यह प्रजाति भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा विकसित की  गई हैं।➢यह प्रजाति यैलोवेन मोज़ेक  विषाणु रोग प्रतिरोधी है।➢इसके पौधे 120-150 सेमी सीधे ऊँचे तथा अच्छे शाखा युक्त होते हैं।➢औसतन उपज -  5-6 टन /एकड़➢फसल की अवधि-  60 दिन5)अर्का अनामिका  ➢यह प्रजाति भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा विकसित की गई हैं।➢यह प्रजाति यैलोवेन मोज़ेक  विषाणु रोग प्रतिरोधी है।➢इसके पौधे 120-150 सेमी सीधे  ऊँचे व अच्छे  शाखा युक्त होते हैं।➢फल रोमरहित मुलायम गहरे हरे तथा 5-6 धारियों वाले होते हैं।➢फलों का डंठल लम्बा होने के कारण तोड़ने में सुविधा होती हैं।➢औसतन उपज-  5-6 टन /एकड़ ➢फसल की अवधि-  55 दिन 6)वर्षा उपहार➢यह प्रजाति यैलोवेन मोज़ेक  विषाणु रोग प्रतिरोधी है।➢पौधे मध्यम ऊँचाई 90-120 सेमी तथा इंटरनोड़ के बीच दूरी कम  होती  हैं।➢पौधे में  प्रत्येक नोड़ से 2-3 शाखाएँ निकलती हैं।➢पत्तियों का रंग गहरा हरा, निचली पत्तियाँ चौड़ी व छोटे छोटे लोब्स वाली जबकि ऊपरी पत्तियाँ  बड़े  लोब्स वाली होती हैं।➢वर्षा ऋतु में 40 दिनों में फूल निकलना शुरू हो जाते हैं इसके  7 दिनों बाद फल  तोड़े जा सकते हैं।➢फल चौथी पांचवी गाठों  पर उगने शुरू होते  हैं। ➢इसकी खेती ग्रीष्म ऋतु में भी कर सकते हैं।➢औसतन उपज -    5  टन /एकड़ ➢फसल की अवधि - 50 दिन

बीज की जानकारी

भिंडी की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज दर ➽➢बसंत, गर्मी और सर्दी के मौसम में 8 किग्रा जबकि  बरसात के मौसम की  फसल के लिए 4  किग्रा  प्रति एकड़  बीज की आवश्यकता  होती है |बीज उपचार ➽➢किसान अपने स्वयं के बीजों का उपयोग करके, भिंडी के बीजों को बोने से पहले 10 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 70% WS या 9 मिली इमिडाक्लोप्रिड 600% FS या 4.5 ग्राम थियामेथोक्सम 70% WS या 9 मिली थियामेथोक्सम 35% FS, प्रति 1 किलो बीज से उपचारित करें।➢इसके बाद बीजों को छाया में सुखाया जाता है और फिर इसका बुआई के लिए उपयोग करते है ।

बीज कहाँ से लिया जाये?

भिंडी के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदें। भिण्डी की प्रथम बार फलियां बनने के प्रत्येक 2-3 दिन बाद फलियों की तुड़ाई करें। देरी से उनकी तुड़ाई करने से वे कठोर हो जाती हैं। फल तोड़ने के लिए सर्वोत्तम समय फूल खिलने के 6-7 दिन बाद होता है। लेकिन फलियों की तुड़ाई उनकी जातियों पर निर्भर करती हैं।

उर्वरक की जानकारी

भिंडी की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

खाद और उर्वरक ➽  ➢नाइट्रोजन - 32 किलोग्राम/एकड़ (69 किलो यूरिया )➢फॉस्फोरस - 24  किलोग्राम/एकड़ (150 किलों सुपर फॉस्फेट)➢पोटाश - 24 किलोग्राम/एकड़ (40 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश)➢भिंडी की फसल से अच्छे उत्पादन की प्राप्ति हेतु लगभग 12 टन एफवाईएम (फार्म यार्ड खाद) को प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिए।➢नाइट्रोजन को तीन खुराकों में विभाजित करके फर्टिगेशन के माध्यम से लगाया जाना चाहिए।➢नाइट्रोजन की आधी मात्रा फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के पूर्व भूमि में देनी  चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा को दो भागों में 30-40 दिन के अंतराल पर देना चाहिए।सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन ➽  ➢भिंडी  के पौधों में यदि मैग्नीशियम तत्व की ज्यादा कमी दिखे जिसके लक्षण निचली पत्तियों पर पीले धब्बो के रूप में दिखे । शिराएँ हरी दिखाई तो इसके लिए 1 - 2% मैग्नीशियम सल्फेट (MgSO4.7 H2O)का कुछ पत्तों पर परीक्षण करने के उपरांत सारे पत्तों पर छिड़काव किया जा सकता है । 

जलवायु और सिंचाई

भिंडी की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

सिंचाई ➽➢भिंडी में पहली सिंचाई बुआई के ठीक बाद की जाती है। ➢पौधे में सिंचाई मार्च में 10-12 दिन, अप्रैल में 7-8 दिन और मई-जून मे 4-5 दिन के अंतराल  पर करें। बरसात में यदि संतुलित वर्षा होती है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।

रोग एवं उपचार

भिंडी की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

⇻रोग और नियंत्रण⇺ 1)पत्ती धब्बा (लीफ़ स्पॉट) ➽ नुकसान के लक्षण ➱ ➢पुराने पत्तों पर गहरे भूरे या काले रंग के बॉर्डर दिखाई देते हैं!नियंत्रण ➱ ➢फसल उगाने के लिए रोगमुक्त बीजों का प्रयोग करें। फसल की कटाई के बाद फसल के अवशिष्ट  हटा दें और नष्ट कर दें। गैर परपोषी  फसल के साथ फसल चक्रण प्रथाओं का पालन करें।➢मैनकोज़ेब 75 WP @ 2 ग्राम/लीटर पानी के साथ पौधों पर छिड़काव करें।➢या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG 500 ग्राम प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।2)पीली शिरा मोज़ेक वायरस ➽नुकसान के लक्षण ➱➢पत्तियाँ छोटी और मोटी रहती हैं। पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं, पौधे की वृद्धि रुक जाती है। संक्रमित पौधों में फूल नहीं आते हैं।नियंत्रण ➱ ➢यदि उपलब्ध हो तो प्रतिरोधी या सहिष्णु किस्मों का ही चयन करें। रोगमुक्त बीजों की बुआई करें ।➢सफेद मक्खी के प्रकोप को रोकने का प्रबंध करें क्योंकि सफेद मक्खी से वायरस फैलता है।➢कीट प्रबंधन के लिए सिंथेटिक कीटनाशक (जो कि कीटों के पुनरुत्थान का कारण होते है ) के प्रयोग से बचें।➢इमिडाक्लोरोप्रिड 17.8 SL @ 60- 80 मिली / एकड़ के साथ पौधों पर छिड़काव करें।3)फ्यूजेरियम विल्ट ➽नुकसान के लक्षण ➱ ➢छोटे पत्ते एक के बाद एक मर सकते हैं और कुछ ही दिनों में पूरी मुरझाकर मर सकती है। शीघ्र ही डंठल और पत्तियाँ झड़ जाती हैं और मुरझा जाती हैं। साथ ही पत्तियों में पीलापन भी देखा जाता हैनियंत्रण ➱➢प्रभावित पौधों को हटाकर नष्ट कर देना चाहिए।➢मैंकोज़ेब @ 3 ग्राम/किलोग्राम बीज से बीज का उपचार करें।➢0.25% की दर से कॉपर ऑक्सीक्लोराइड से खेत को सींचें।4)पाउडर रूपी फफूंद (पाउडरी मिल्डू) ➽नुकसान के लक्षण ➱➢भिंडी पर फफूंदी बहुत तेज होती है।➢पत्ती के नीचे और साथ ही ऊपरी सतह पर भूरे रंग के चूर्ण का विकास होता है जिससे फलों की उपज में भारी कमी आती है।नियंत्रण ➱➢अकार्बनिक सल्फर 0.25% या डिनोकैप 0.1% 3 या 4 बार 15 दिनों के अंतराल पर उपयोग करें। ➢या प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम मैंकोज़ेब 72 एम.जेड मिलाकर भी छिड़काव करने से भी इस रोग पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।➢आवश्यकता होने पर 10 से 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा छिड़काव करें।5)आर्द्र गलन ➽नुकसान के लक्षण ➱➢ठण्डी एवं वर्षा वाले मौसम बादल, अधिक नमी, नम एवं कठोर मिटटी इस तरह की समस्या होने पर यह रोग अधिक फैलता है इस रोग के कारण पौधो की अंकुरण क्षमता कम हो जाती है। तथा पौधे उगते ही या उगने से पहले ही मर जाते है।➢पौधे के तने का वह जहा से वह मिटटी के जुडा रहता उसी स्थान ने घाव बनने के कारण पौधे मर जाते है। इस रोग का फैलाव मिटटी मे पाये जाने वाले फफुंद पाइथियम या राईजोक्टोनिया तथा पर्यावरण स्थिति पर निर्भर करता है।नियंत्रण ➱➢आवश्यकता से अधिक सिचाई नही करनी चाहिए।➢ट्राइकोडर्मा विरीडी 3 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज दर से बीजोपचार करना चाहिए।➢डाइथेन एम-45 @ 0.2 प्रतिशत एवं कार्बेन्डाजिम 50 %डब्लूपी 1 प्रतिशत की दर से मिटटी मे मिलाने से इस रोग मे कमी आती हैं।⇻कीट और नियंत्रण⇺1)ऐश वीविल ➽ नुकसान के लक्षण ➱ ➢पौधे की पत्तियाँ किनारों से नोकदार होती हैं।  पौधा पीला हो कर  मुरझा कर सूख जाता है जिससे पौधे मर जाते हैं। ➢पौधे  मुरझाने के बाद  खींचे जाने पर पौधे आसानी से निकल आते हैं।नियंत्रण ➱➢पहली फसल को हटाकर नष्ट कर दें, फसल बोने से पहले बाढ़ सिंचाई विधि से सिंचाई करें, रोपण से पहले खेत की गहरी जुताई करें। ➢कटाई के बाद फसल अवशेषों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें, नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों की अधिक मात्रा के प्रयोग से बचें। ➢क्लोरोपायरीफॉस 25 ईसी @ 2 मिली/लीटर पानी के साथ पौधों पर  छिड़काव करें।2)तना और फल छेदक (शूट एंड फ्रूट बोरर ) ➽ नुकसान के लक्षण ➱ ➢इस कीट द्वारा क्षति के सामान्य लक्षण हैं मुरझाए हुए सिरे वाले अंकुर, बंद टहनियों पर छेद, फूलों की कलियों का गिरना, लार्वा द्वारा पेटीओल्स पर छेद के कारण पत्तियों का सूखना।नियंत्रण ➱ ➢इसके नियंत्रण के लिए  हर साल एक ही खेत में फसल उगाने से बचें और नाइट्रोजन उर्वरकों की अधिक मात्रा का प्रयोग करें। ➢लंबे और संकरे फलों वाली किस्में उगाए । नीम के तेल और एंटोमोपैथोजेनिक कवकनाशी  के साथ पौधों पर  छिड़काव करें।➢क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 10% OD @ 0.6 मिली / लीटर पानी के साथ पौधों पर  छिड़काव करें।3)पत्ता रोलर (लीफ रोलर) ➽   नुकसान के लक्षण ➱ ➢यह कीट रेशमी धागों जैसा लार्वा पत्ते पर छोड़ते  हैं।➢लार्वा पत्तियों के हरे ऊतकों को खुरचता है जिससे वह सफेद और शुष्क हो जाती है। ➢पत्ते किनारों से खाए हुए पाए जाते है ।  गंभीर प्रकोप में पत्तियाँ  मुरझा जाती हैं।नियंत्रण ➱ ➢नीम उत्पादों, बैसिलस थुरिंगिनेसिस 5% डब्ल्यूपी @ 300- 400 ग्राम / एकड़ के साथ पौधों पर  छिड़काव करें। ➢रोपण से पहले और बाद में खेत की मिट्टी में एंटोमोपैथोजेनिक नेमाटोड लगाए। फ्लुबेंडियामाइड 480 SC @ 40ml/एकड़ के साथ पौधों पर  छिड़काव करें।4)सफेद मक्खी (वाइट फ़्लाई) ➽ नुकसान के लक्षण ➱➢पत्तियों का पीला पड़ना एवं मुरझा जाना➢पत्तियों का नीचे की ओर मुड़ना और सुखनानियंत्रण ➱ ➢नाइट्रोजन और सिंचाई का प्रयोग विवेकपूर्ण ढंग से करें।➢फॉसलोन 35 ईसी @ 2.5 लीटर/हेक्टेयर का छिड़काव करें➢या डिनोटेफ्यूरॉन 20% SG 60 ग्राम प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें।5) तेला (एफिड्स) ➽ नुकसान के लक्षण ➱➢कोमल टहनियों और पत्तियों की सतह के नीचे संक्रमित करते हैं➢पत्तों का मुड़ना और सिकुड़ना➢अवरुद्ध विकासनियंत्रण ➱➢इमिडाक्लोप्रिड 200 SL 100 मिली/हेक्टेयर  का उपयोग करें अथवा➢मिथाइल डेमेटोन 25 ईसी 500 मिली/हेक्टेयर का उपयोग करें। 

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण ➽   ➢भिंडी की  फसल में  नियमित निराई व गुड़ाई करके  खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। बोने के 15-20 दिन बाद पहली  निराई व गुड़ाई करना जरुरी होता है।➢खरपतवार नियंत्रण हेतु रासायनिक खरपतवारनाशी का भी प्रयोग किया जा सकता है। खरपतवारनाशी फ्ल्यूक्लरेलिन की 40  ग्राम  सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति एकड़  की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रित  किया जा सकता है।  

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, या हैरों, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है।