किन्नू की खेती

नींबू-वर्गीय फलों की फसलें महत्वपूर्ण एवं बहूवर्षीय होती हैं। इनका उत्पादन विश्व के कई ऊष्ण एवं शीतोष्ण कटिबंधीय देशों में किया जाता है। भारत में फल उत्पादन की दृष्टि से नींबू-वर्गीय फलों का उत्पादन तीसरे स्थान पर है। इस फसल के लिए कम आर्द्रता, गर्मी और अपेक्षाकृत सुहानी सर्दी अनुकूल होती है।


किन्नू

किन्नू उगाने वाले क्षेत्र

किन्नू खेती पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर आदि किन्नू उगाने वाले मुख्य राज्य है।

किन्नू की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य लाभ दिलाने के लिए किन्नू में बहुत से पोषक तत्व मौजूद रहते हैं। इन पोषक तत्वों में विटामिन ए, विटामिन सी, कैल्शियम, आयरन, फाइबर, शुगर और सोडियम आदि मौजूद रहते हैं जो हमारे लिए बहुत ही आवश्यक होते हैं।

बोने की विधि

किन्नू संतरा के पौधे 6X 6 मीटर की दूरी पर लगाए जाने चाहिए। रेखांकन करने के बाद जून के महीने में 1 X 1 X 1 मीटर के गड्ढे खोदने चाहिए। प्रत्येक गड्डे में 10 किलो वर्मी कम्पोस्ट अथवा 25 किलो गोबर की खाद, 1 किलो सिंगल सुपरफास्फेट तथा 100 ग्राम मिथाइल पैराथियान चूर्ण को मिट्टी में मिलाकर भरना चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने के बाद 2-3 जुताई देशी हल या हैरो से करने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए।

बीज की किस्में

किन्नू के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

किन्नो - यह किस्म उत्तर भारत में अधिक लोकप्रिय है। इस किस्म के फल सुनहरी-संतरी रंग के होते है और इसका रस मीठा होता है। इसके फल हल्के खट्टे और स्वादिष्ट होते हैं।

बीज की जानकारी

किन्नू की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 500-600 पौधों की आवश्यकता होती है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

किन्नू का बीज (पौध) किसी विश्वसनीय स्रोत ही खरीदें।

उर्वरक की जानकारी

किन्नू की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

1 से 3 वर्ष के पौधे को 10 से 25 किलोग्राम गोबर की खाद, 250 से 750 ग्राम यूरिया, 200 - 350 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 4 से 7 वर्ष के पौधे को 40-60 किग्रा गोबर की खाद, 850- 1450 ग्राम यूरिया और 1.275 - 2.300 किग्रा सिंगल सुपर फॉस्फेट प्रति वृक्ष देना चाहिए। गोबर खाद की सम्पूर्ण मात्रा दिसंबर के महीने में डालना चाहिए, जबकि यूरिया को दो बराबर भागों में डालना चाहिए; पहला फरवरी और दूसरा अप्रैल से मई महीने के बीच।

जलवायु और सिंचाई

किन्नू की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

अधिक पैदावार व अच्छी बढ़ोतरी के लिए सही समय पर सिंचाई करना बहुत आवश्यक है। शुरुआती विकास के समय किन्नू की फसल को 3 - 6 दिन के अंतराल पर, 3 - 4 वर्ष के पौधों में 8 -10 दिन के अंतराल में सिंचाई करना चाहिए। अधिक उम्र के पौधों में मिट्टी, मौसम और बारिश के अनुसार 2 से 3 हफ्तों के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए। इस फसल को ज्यादा पानी नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे जड़ गलन, तना गलन आदि बीमारीयां लग सकती हैं। बढिया पैदावार के लिए थोड़े थोड़े समय के बाद हल्की सिंचाई करना उचित रहता है।

रोग एवं उपचार

किन्नू की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

1. टहनी मार रोग- इस रोग से ग्रसित पौधों की नवीन टहनियां ऊपर से सूखनी शुरू हो जाती हैं। कभी-कभी बड़ी बड़ी टहनियां भी सूख जाती हैं और फल व तने भी गलने लगते हैं। इसकी रोकथाम के लिए काट - छांट के बाद 0.3 प्रतिशत कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 % WP का छिड़काव करना चाहिए या 500 मिलीग्राम प्लान्टोमाइसिन और 3 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 % WP को प्रति लीटर पानी की दर से जुलाई, अक्टूबर, दिसम्बर व फरवरी में छिड़काव कर देना चाहिए। 2. सिल्ला - सिल्ला नींबू वर्गीय वृक्षों का प्रमुख कीट है। इसका प्रकोप नींबू वर्गीय सभी प्रजातियों में होता है। इसके शिशु व प्रौढ नई टहनियों से रस चूसते रहते हैं जिससे पौध की बढ़वार रुक जाती है व फल कम लगते है। इस कीट की रोकथाम के लिए 750 मिलीलीटर मैटासिस्टोक्स 25 ईसी. को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए या इमीडाक्लोप्रिड 17.8 %SL  1 मिलीलीटर को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव कर देना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार की रोकथाम के लिए पौध रोपाई के 20-25 दिन पश्चात निराई-गुड़ाई अवश्य करना चाहिए। बाग़ को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों, फावड़ा, खुर्पी, कुदाल आदि यंत्रो की आवश्यकता होती है।