राजमा की खेती

राजमा की खेती रबी ऋतु में की जाती है। यह मैदानी क्षेत्रों में अधिक उगाया जाता है। राजमा की अच्छी पैदावार हेतु 10-27 सेल्सियस ताप की आवश्यकता पड़ती है। राजमा हल्की दोमट मिट्टी से लेकर भारी चिकनी मिट्टी तक में उगाया जा सकता है।


राजमा

राजमा उगाने वाले क्षेत्र

भारत में, महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, बंगाल, तामिलनाडू, केरल, कर्नाटक मुख्य राजमा उत्पादक राज्य हैं।

राजमा की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

राजमा में ढेर सारे एंटी-ऑक्सिडेंट्स, फाइबर, आयरन, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, सोडियम और कई पोषक तत्व होते हैं. इतना ही नहीं इसमें मौजूद घुलनशील फाइबर शरीर में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा को कम करने में मदद कर सकते हैं!भूरे और लाल रंग के राजमा में उच्च मात्रा में फोलिक एसिड, प्रोटीन, कैल्शियम और फाइबर जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं।

बोने की विधि

राजमा की बुवाई हल के पीछे कूड़ों मे करनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 30-40 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखनी चाहिये। बीज को 8 - 10 सेमी गहराई पर बोना चाहिए। इसके लिए पाटा चलाकर बीज को ढक देना चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 जुताई देशी हल, या कल्टीवेटर से करके पाटा लगा देना चाहिए।

बीज की किस्में

राजमा के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

(i) उदय - यह बड़े दानों वाली किस्म है जिसके 100 दानों का वजन 44 ग्राम होता है। इसके दानों का रंग सफेद-चित्तीदार होता है। यह किस्म 125-130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है तथा इसकी पैदावार 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। (ii) एच.यू.आर.15 - यह सफेद दानों वाली किस्म है। इसके 100 दानों का वजन 40 ग्राम है। यह किस्म 120-125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 18-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। (iii) एच.यू.आर.137 - इस किस्म के दाने बड़े तथा भूरा-लाल रंग लिये हुए होते हैं। 100 दानों का वजन 45 ग्राम होता है। यह 100-110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी उपज लगभग 15-16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

बीज की जानकारी

राजमा की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 80  - 90  किग्रा बीज पर्याप्त रहता है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

राजमा का बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

राजमा की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

4-5 टन प्रति हैक्टेयर गोबर की सड़ी खाद बुवाई के एक माह पूर्व खेत में डालकर अच्छी तरह मिला देनी चाहिए। 80-100 किग्रा नाइट्रोजन, 80 किग्रा फॉस्फोरस एवं 40 किग्रा प्रति हेक्टेयर पोटाश की आवश्यकता होती है।

जलवायु और सिंचाई

राजमा की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

खेत में नमी बनाए रखने के लिए आवश्यक्तानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 25 दिनों के अंतराल पर 3 सिंचाइयाँ अवश्य करनी चाहिए - फसल के खिलने, फूल निकलने के दौरान और फलियां विकसित होने की अवस्था में।

रोग एवं उपचार

राजमा की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

मोजैक रोग - यह रोग राजमा में सबसे खतरनाक और तेजी से फैलने वाला रोग है, जो विषाणुजनित बीमारी है। इसको फैलाने वाले कीटों में सफेद मक्खी की प्रमुख भूमिका होती है। इस बीमारी के नियंत्रण हेतु रोगोर, डेमोक्रान या नुवाक्रोन नामक दवा को 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर पौधों पर छिड़कना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण हेतु प्रथम निराई-गुडा़ई बुवाई के 15-20 दिन बाद, तथा दूसरी निराई-गुडा़ई 35-40 दिन बाद करना चाहिए। रसायनिक विधि से नियंत्रण हेतु पैंडीमैथालीन रसायन का प्रयोग अंकुरण से पूर्व करना चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल या हैरों या कल्टीवेटर, खुर्पी, कुदाल, फावड़ा, आदि यंत्रों की आवश्कता पड़ती हैं।