करौंदा की खेती

करौंदे का पौधा झाड़ीनुमा होता है जो लगभग 3 - 7 मीटर ऊंचा होता है। पौधे में कांटे होने के कारण सामान्यत: उन्हें बाड़ में लगाया जाता है। इसका पौधा हमेशा हरा रहता है और पत्तियां गोलाकार व चपटी हरी होती हैं। यह नटाल पालम, कालिनी, चीरु, कीला आदि अन्य नामों से भी प्रचलित है। इनके फलों का आकार अण्डाकार होता है। प्रत्येक फल में सामान्यत: 2 - 4 बीज पाये जाते हैं। पौष्टिकता की दृष्टि से करौंदा स्वास्थ्य के लिए बहुत गुणकारी है। लौह की अच्छी मात्रा होने के कारण एनीमिया रोग में उपचार के लिए करौंदा एक अत्यंत लाभकारी फल है। करौंदा विटामिन सी का भी अच्छा स्रोत होने के कारण स्कर्वी रोग से लड़ने में सहायक है।


करौंदा

करौंदा उगाने वाले क्षेत्र

यह संपूर्ण भारत के उष्ण, समशीतोष्ण, शुष्क व अर्धशुष्क जलवायु वाले स्थानों पर पाया जाता है। पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल व केरल के कुछ भागों में करौंदा सफलतापूर्वक उगाया जाता है।

करौंदा की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

करौंदा प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट विटामिन 'सी' का अच्छा स्रोत है। इसके शुष्क फलों से 364 कैलोरी ऊर्जा, 2.3 प्रतिशत प्रोटीन, 2.8 प्रतिशत खनिज लवण, 9.6 प्रतिशत वसा, 67.1 प्रतिशत कार्बोज और 39.1 मिग्रा प्रति 100 ग्राम लोह पाया जाता है।

बोने की विधि

करौंदे का बाग लगाने के लिए वर्गाकार या आयताकार विधि से 3 x 3 - 5 x 5 सेंमी की दूरी पर रेखांकन करना चाहिए।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

करौंदा लगभग सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है। उपयुक्त जल निकास वाली तथा 6 - 8 पी. एच. मान वाली बलुई दोमट भूमि करौंदे के लिए उत्तम मानी जाती है।

बीज की किस्में

करौंदा के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

(i) पंत मनोहर - इसके पौधे मध्यम ऊंचाई के, सघन व झाड़ीनुमा होते हैं। फल श्वेत पृष्ठभूमि पर गहरी गुलाबी आभा लिए होते हैं। फलों का औसत आकार 2.13 x 1.69 सेमी व भार 3.49 ग्राम होता है। प्रत्येक फल में 3 - 4 बीज पाये जाते हैं। फल में गूदा 88.27 प्रतिशत, शुष्क पदार्थ 12.77 प्रतिशत, कुल घुलनशील ठोस पदार्थ 3.93 प्रतिशत, खटास 1.82 प्रतिशत और उपज 27 किग्रा प्रति झाड़ी होती है। (ii) पंत सुदर्शन - इस किस्म के पौधे मध्यम ऊंचाई के और फल श्वेत पृष्ठभूमि पर गुलाबी आभा लिए होते हैं। फलों का औसत आकार 2.16 x 1.69 सेमी और भार 3.46 ग्राम होता है। बीज संख्या 3 - 4, गूदा 88.47 प्रतिशत, शुष्क पदार्थ 3.45 प्रतिशत, कुल घुलनशील ठोस पदार्थ 3.45 प्रतिशत, खटास 1.89 प्रतिशत और उपज 29 किलोग्राम प्रति झाड़ी होती है। (iii) कैरिसा वोवैटा - इसका उत्पत्ति स्थान ऑस्ट्रेलिया है। फल छोटे आते हैं। इसका उपयोग जैम बनाने में होता है। इस किस्म के फल हल्के लाल रंग के होते हैं तथा फलों में खटास की मात्रा अधिक पायी जाती है। यह कम पानी में भी आसानी से फल देता है। इसकी उपज प्रति पौधा लगभग 30 - 35 किलोग्राम होती है।

बीज की जानकारी

करौंदा की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

4x4 मीटर की दूरी से एक हैक्टेयर क्षेत्र में 625 पौधे लगाये जा सकते है।

बीज कहाँ से लिया जाये?

बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

करौंदा की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

प्रारंभिक वर्षों में पौधे को स्वस्थ रखने व अच्छी बढ़वार हेतु एक वर्ष के हर पौधे पर 5 किग्रा गोबर की खाद, 100 ग्राम यूरिया, 150 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं 75 ग्राम पोटाश प्रति वर्ष देना चाहिए। उर्वरकों की इस निर्धारित मात्रा को इसी अनुपात में तीन वर्ष तक बढ़ाते रहना चाहिए। तीन वर्ष व उससे अधिक आयु वाले हर पौधे पर 300 ग्राम यूरिया, 450 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 225 ग्राम पोटाश व 15 - 20 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति वर्ष देना चाहिए। ऊसर भूमि में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं। अतः मई - जून में इनका पर्णीय छिड़काव कर सकते हैं। उर्वरकों को बराबर-बराबर भागों में बांट कर दो-दो महीने के अंतराल पर देना चाहिए। उर्वरकों का प्रयोग फरवरी माह से आरम्भ कर देना चाहिए। उर्वरकों के प्रयोग से पूर्व भूमि में समुचित नमी सुनिश्चित कर लेनी चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

करौंदा की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

करौंदा वैसे तो एक बहुत ही सहनशील व सूखा रोधक झाड़ी है तथा एक बार स्थापित हो जाने के उपरांत इसे पानी की अधिक आवश्यकता भी नहीं होती, परंतु नए लगाये पौधों की गर्मियों में 7 - 15 दिन व सर्दियों में 15 - 30 दिन के अंतराल पर सिंचाई करने से स्थापित होने पर अच्छी बढ़वार में सहायता मिलती है। उपयुक्त नमी बनी रहने से पौधों की बढ़वार, पुष्पन व फल वृद्धि भी अच्छी होती है।

रोग एवं उपचार

करौंदा की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

करौंदा में किसी प्रकार के विशेष कीट एवं बीमारी का प्रकोप नहीं देखा गया है 

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवारों को खुर्पी की सहायता से समय-समय से निकालते रहना चाहिए।

सहायक मशीनें

मिट्टी पलट हल, देशी हल, या हैरों, फावड़ा, खुर्पी, कुदाल, आदि यंत्रों की आवश्यकता पड़ती है।