जावा घास (सिट्रोनेला) की खेती

जावा घास को जावा सिट्रोनेला के नाम से भी जाना जाता है। यह बहुवर्षीय सगन्ध पौधा है। इसका सगन्ध तेल सुगन्ध प्रसाधन सामग्री के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है। इसका तेल जिरेनियॉल, सिट्रोनेलाल एवं जिरेनियॉल एसीटेट का प्रमुख स्रोत है। विश्व में प्रति वर्ष लगभग 5000 टन सिट्रोनेला तेल का उत्पादन होता है।


जावा घास (सिट्रोनेला)

जावा घास (सिट्रोनेला) उगाने वाले क्षेत्र

भारतवर्ष में इस तेल का उत्पादन लगभग 500 टन प्रति वर्ष होता है जो प्रमुख रूप से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, नागालैण्ड, कर्नाटक एवं पश्चिमी बंगाल में पैदा किया जाता है।

जावा घास (सिट्रोनेला) की स्वास्थ्य एवं पौष्टिक गुणवत्ता

जावा घास को जावा सिट्रोनेला के नाम से जाना जाता है, यह बहुवर्षीय सगन्ध पौधा है। इसका सगन्ध तेल सुगन्ध प्रसाधन सामग्री के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है। इसका तेल जिरेनियॉल, सिट्रोनेलाल एवं जिरेनियॉल एसीटेट का प्रमुख स्रोत है

बोने की विधि

मानसून आने से पूर्व ही खेत को जोतकर अच्छी प्रकार से तैयार कर लेते हैं। मानसून प्रारंभ होते ही जावा स्लिप्स जिसमें 2-3 किल्ले हो, उन्हें 6 सेमी गहराई में 45 x 45 सेमी की दूरी पर तैयार खेत में लगा देना चाहिए। रोपने के बाद यदि वर्षा न हो तो सिंचाई करना भी आवश्यक है। समुचित पानी की व्यवस्था में इसे उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र में फरवरी-मार्च में भी रोपा जा सकता है। लगभग 8-10 दिन में पौधों में नई पत्तियां निकलने लगती हैं।

खेत की जुताई व मिट्टी की तैयारी

अच्छे जल निकास वाली बलुई-दोमट भूमि जावा घास की खेती के लिए सर्वोत्तम है, परंतु दोमट एवं बलुई भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है। मृदा पीएच 6.0 - 7.5 तक उपयुक्त है।

बीज की किस्में

जावा घास (सिट्रोनेला) के लिए कौन कौन सी किस्मों के बीज आते हैं ?

जावा घास की प्रचलित जातियां मंजूषा एवं मन्दाकिनी हैं, परंतु अधिक तेल वाली दो अन्य जातियां बायो - 13 एवं क्लोन - 71 - 1 भी विकसित हो चुकी है।

बीज की जानकारी

जावा घास (सिट्रोनेला) की फसल में बीज की कितनी आवश्यकता होती है ?

बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

बीज कहाँ से लिया जाये?

जावा घास के बीज किसी विश्वसनीय स्थान से ही खरीदना चाहिए।

उर्वरक की जानकारी

जावा घास (सिट्रोनेला) की खेती में उर्वरक की कितनी आवश्यकता होती है ?

जावा घास के लिए 120 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस पेण्टा ऑक्साइड तथा 40 किग्रा पोटेशियम ऑक्साइड प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की चौथाई मात्रा एवं फॉस्फोरस पेण्टा ऑक्साइड तथा पोटेशियम ऑक्साइड की पूरी मात्रा रोपाई से पहले ही खेत में मिला देनी चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा तीन बार में प्रत्येक कटाई के बाद देनी चाहिए। पोषक तत्वों की यह मात्रा प्रति साल देना आवश्यक है। कमजोर भूमि में 200 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर चार बार में देनी चाहिए। क्लोरोसिस होने पर 0.25% फेरस सल्फेट का घोल 15 दिन के अंतर से 2-3 बार छिड़कना चाहिए।

जलवायु और सिंचाई

जावा घास (सिट्रोनेला) की खेती में सिंचाई कितनी बार करनी होती है ?

जावा घास की बढ़वार के लिए पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। अतः जहां सालाना वर्षा लगभग 200 से 250 सेमी होती है, वहाँ अधिक सिंचाई कीआवश्यकता नहीं पड़ती। परन्तु उत्तर भारत में दिसंबर से जून तक लगभग 6-8 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।

रोग एवं उपचार

जावा घास (सिट्रोनेला) की खेती में किन चीजों से बचाव करना होता है?

जावा घास में कभी-कभी झुलसा रोग लग जाता है जिसमें पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं। यह रोग कलबुलेरिया क्यूरियूरिया एण्ड्रोफोनिस नामक फफूंदी के कारण उत्पन्न होता है। इन बीमारियों में पत्तियों का अग्र भाग तथा सिरे काले-भूरे रंग के हो जाते हैं तथा पत्तियां सूखने लगती हैं। इस रोग के नियंत्रण हेतु डायथेन एम-45 तथा डायथेन जेड-78 का 10 से 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए। • दक्षिण भारत में एन्थ्रोक्नेज बीमारी का अधिक प्रकोप रहता है। है। बचाव हेतु डाइथायो कार्बोमेट का प्रयोग करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

पहली कटाई तक 2-3 बार खुरपी से निकाई-गुड़ाई कर देनी चाहिए जिससे खरपतवार फसल के पौधों को न दबा लें। खरपतवार नियंत्रण हेतु जावा घास के आसन के बाद बचे व्यर्थ पदार्थ को 3 टन प्रति हेक्टेयर एवं 1.5 किलो डाई यूरोन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में मिलाया जा सकता है। बाद में प्रत्येक कटाई के बाद एक निकाई करते रहने से जावा घास की वृद्धि अच्छी होती है।

सहायक मशीनें

जावा घास की पहली कटाई रोपाई के लगभग 6 माह बाद की जाती है, परन्तु अन्य कटाइयाँ में 3 माह के अंतर पर की जाती हैं। जावा घास चार वर्ष तक आर्थिक लाभ देती है, परन्तु इसके बाद उत्पादन कम होने लगता है। भूमि के 15 सेमी ऊपर से पौधों की कटाई करनी चाहिए।